Old/New Testament
क्रूस-मार्ग पर मसीह येशु
(मत्ति 27:32-34; मारक 15:21-24; योहन 19:17)
26 जब सैनिक मसीह येशु को ले कर जा रहे थे, उन्होंने सायरीनवासी शिमोन को पकड़ा, जो अपने गाँव से आ रहा था. उन्होंने मसीह येशु के लिए निर्धारित क्रूस उस पर लाद दिया कि वह उसे ले कर मसीह येशु के पीछे-पीछे जाए. 27 बड़ी संख्या में लोग उनके पीछे चल रहे थे. उनमें अनेक स्त्रियाँ भी थीं, जो मसीह येशु के लिए विलाप कर रही थीं. 28 मुड़ कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “येरूशालेम की पुत्रियो! मेरे लिए रोना छोड़ कर स्वयं अपने लिए तथा अपनी सन्तान के लिए रोओ. 29 क्योंकि वे दिन आ रहे हैं जब लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे स्त्रियाँ, जो बाँझ हैं, वे गर्भ, जिन्होंने सन्तान उत्पन्न नहीं किए और वे स्तन, जिन्होंने दूध नहीं पिलाया!’ 30 तब
“‘वे पर्वतों को सम्बोधित करके कहेंगे, “हम पर आ गिरो!”
और पहाड़ियों से, “हमको ढाँप लो!” ’
31 क्योंकि जब वे एक हरे पेड़ के साथ इस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं तब क्या होगी सूखे पेड़ की दशा?”
32 अन्य दो भी, जो राजद्रोह के अपराधी थे, मसीह येशु के साथ मृत्युदण्ड के लिए ले जाए जा रहे थे. 33 जब वे कपाल नामक स्थल पर पहुँचे उन्होंने मसीह येशु तथा उन दोनों राजद्रोहियों को भी क्रूसित कर दिया—एक को मसीह येशु की दायीं ओर दूसरे को उनकी बायीं ओर. 34 मसीह येशु ने प्रार्थना की, “पिता, इनको क्षमा कर दीजिए क्योंकि इन्हें यह पता ही नहीं कि ये क्या कर रहे हैं.” उन्होंने पासा फेंक कर मसीह येशु के वस्त्र आपस में बांट लिए.
35 भीड़ खड़ी हुई यह सब देख रही थी. यहूदी राजा यह कहते हुए मसीह येशु का ठठ्ठा कर रहे थे, “इसने अन्य लोगों की रक्षा की है. यदि यह परमेश्वर का मसीह, उनका चुना हुआ है, तो अब अपनी रक्षा स्वयं कर ले.”
36 सैनिक भी उनका ठठ्ठा कर रहे थे. वे मसीह येशु के पास आ कर उन्हें घटिया दाखरस प्रस्तुत करके कह रहे थे, 37 “यदि यहूदियों के राजा हो तो स्वयं को बचा लो.”
38 क्रूस पर उनके सिर के ऊपर सूचना पत्र के रूप में यह लिखा था: यही वह यहूदियों का राजा है.
39 वहाँ लटकाए गए राजद्रोहियों में से एक ने मसीह येशु पर अपशब्दों की बौछार करते हुए कहा: “अरे! क्या तुम मसीह नहीं हो? स्वयं अपने आपको बचाओ और हमको भी!”
40 किन्तु दूसरे राजद्रोही ने डपटते हुए उससे कहा, “क्या तुझे परमेश्वर का थोड़ा भी भय नहीं है? तुझे भी तो वही दण्ड दिया जा रहा है! 41 हमारे लिए तो यह दण्ड सही ही है क्योंकि हमें वही मिल रहा है, जो हमारे बुरे कामों के लिए सही है किन्तु इन्होंने तो कुछ भी गलत नहीं किया.”
42 तब मसीह येशु की ओर देखकर उसने उनसे विनती की, “आदरणीय येशु! अपने राज्य में मुझ पर दया कीजिएगा.”
43 मसीह येशु ने उसे आश्वासन दिया, “मैं तुम पर यह सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: आज ही तुम मेरे साथ स्वर्गलोक में होगे.”
मसीह येशु की मृत्यु
(मत्ति 27:45-56; मारक 15:33-41; योहन 19:28-37)
44 यह दिन का छठा घण्टा था. सारे क्षेत्र पर अन्धकार छा गया और यह नवें घण्टे तक छाया रहा. 45 सूर्य अंधियारा हो गया, मन्दिर का परदा फट कर दो भागों में बांट दिया गया. 46 मसीह येशु ने ऊँचे शब्द में पुकारते हुए कहा, “पिता! मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में सौंपता हूँ.” यह कहते हुए उन्होंने प्राण त्याग दिए.
47 वह सेनापति, जो यह सब देख रहा था, यह कहते हुए परमेश्वर की वन्दना करने लगा, “सचमुच यह व्यक्ति निर्दोष था.” 48 इस घटना को देखने के लिए इकट्ठा भीड़ यह सब देख विलाप करती हुई घर लौट गयी. 49 मसीह येशु के परिचित और गलील प्रदेश से मसीह येशु के साथ आई स्त्रियाँ कुछ दूर खड़ी हुई ये सब देख रही थीं.
मसीह येशु को क़ब्र में रखा जाना
(मत्ति 27:57-61; मारक 15:42-47; योहन 19:28-42)
50 योसेफ़ नामक एक व्यक्ति थे. वह महासभा के सदस्य, सज्जन तथा धर्मी थे. 51 वह न तो यहूदी अगुवों की योजना से और न ही उसके कामों से सहमत थे. योसेफ़ यहूदियों के एक नगर अरिमथिया के निवासी थे और वह परमेश्वर के राज्य की प्रतीक्षा कर रहे थे. 52 योसेफ़ ने पिलातॉस के पास जा कर विनती की कि मसीह येशु का शव उन्हें दे दिया जाए. 53 उन्होंने शव को क्रूस से उतार कर मलमल के वस्त्र में लपेटा और चट्टान में खोद कर बनाई गई एक क़ब्र की गुफ़ा में रख दिया. इस क़ब्र में अब तक कोई भी शव रखा नहीं गया था. 54 यह शब्बाथ की तैयारी का दिन था. शब्बाथ प्रारम्भ होने पर ही था.
55 गलील प्रदेश से आई हुई स्त्रियाँ भी उनके साथ वहाँ गईं. उन्होंने उस क़ब्र को देखा तथा यह भी कि शव को वहाँ कैसे रखा गया था. 56 तब वे सब घर लौट गए और उन्होंने अंत्येष्टि के लिए उबटन-लेप तैयार किए. व्यवस्था के अनुसार उन्होंने शब्बाथ पर विश्राम किया; किन्तु सप्ताह के पहिले दिन पौ फटते ही वे तैयार किए गए उबटन-लेपों को ले कर क़ब्र की गुफ़ा पर आईं.
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