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New Testament in a Year

Read the New Testament from start to finish, from Matthew to Revelation.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
लूकॉ 11:1-28

प्रभु द्वारा दिया गया प्रार्थना का उदाहरण

(मत्ति 6:9-13)

11 एक दिन मसीह येशु एक स्थान पर प्रार्थना कर रहे थे. जब उन्होंने प्रार्थना समाप्त की उनके शिष्यों में से एक ने उनसे विनती की, “प्रभु, हमको प्रार्थना करना सिखा दीजिए—ठीक जैसे योहन ने अपने शिष्यों को सिखाया है.”

मसीह येशु ने उनसे कहा, “जब भी तुम प्रार्थना करो, इस प्रकार किया करो:

“‘हमारे स्वर्गीय पिता!
आपका नाम सभी जगह सम्मानित हो.
आपका राज्य हर जगह स्थापित हो.
हमारा रोज़ का भोजन हमें हर दिन दिया कीजिए.
हमारे पापों को क्षमा कीजिए.
    हम भी उनके पाप क्षमा करते हैं, जो हमारे विरुद्ध पाप करते हैं.
हमें परीक्षा में फँसने से बचाइए.’”

“कल्पना करो,” मसीह येशु ने उनसे आगे कहा, “तुममें से किसी का एक मित्र आधी रात में आ कर यह विनती करे, ‘मित्र! मुझे तीन रोटियां दे दो; क्योंकि मेरा एक मित्र यात्रा करते हुए घर आया है और उसके भोजन के लिए मेरे पास कुछ नहीं है.’ तब वह अंदर ही से उत्तर दे, ‘मुझे मत सताओ! द्वार बन्द हो चुका है और मेरे बालक मेरे साथ सो रहे हैं. अब मैं उठ कर तुम्हें कुछ नहीं दे सकता.’ मैं जो कह रहा हूँ उसे समझो: हालांकि वह व्यक्ति मित्र होने पर भी भले ही उसे देना न चाहे, फिर भी उस मित्र के बहुत विनती करने पर उसकी ज़रूरत के अनुसार उसे अवश्य देगा.

“यही कारण है कि मैंने तुमसे कहा है: विनती करो, तो तुम्हें दिया जाएगा; खोजो, तो तुम पाओगे; द्वार खटखटाओ, तो वह तुम्हारे लिए खोल दिया जाएगा 10 क्योंकि हर एक, जो विनती करता है, प्राप्त करता है; हर एक, जो खोजता है, पाता है तथा हर एक, जो खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोल दिया जाता है.

11 “तुममें कौन पिता ऐसा है, जो अपने पुत्र के मछली माँगने पर उसे साँप दे 12 या अण्डे की विनती पर बिच्छू? 13 जब तुम बुरे होते हुए भी अपने बालकों को सबसे अच्छी वस्तुएं देना जानते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता कहीं अधिक बढ़कर उन्हें, जो उनसे विनती करते हैं, पवित्रात्मा क्यों न देंगे!”

मसीह येशु पर शैतान का दूत होने का आरोप

(मत्ति 12:22-37; मारक 3:20-30)

14 मसीह येशु एक व्यक्ति में से, जो गूँगा था, एक प्रेत को निकाल रहे थे. प्रेत के निकलते ही वह, जो गूँगा था, बोलने लगा. यह देख भीड़ अचम्भित रह गई. 15 किन्तु उनमें से कुछ ने कहा, “वह तो प्रेतों के प्रधान शैतान की सहायता से प्रेत निकालता है.” 16 कुछ अन्य ने मसीह येशु को परखने के उद्देश्य से उनसे अद्भुत चिह्न की माँग की.

17 उनके मन की बातें जानकर मसीह येशु ने उनसे कहा, “कोई भी राज्य, जिसमें फूट पड़ चुकी है, नाश हो जाता है और जिस परिवार में फूट पड़ चुकी हो, उसका नाश हो जाता है. 18 यदि शैतान अपने ही विरुद्ध काम करने लगे तो उसका राज्य स्थिर कैसे रह सकता है? मैं ये सब इसलिए कह रहा हूँ कि तुम यह दावा कर रहे हो कि मैं प्रेतों को शैतान की सहायता से निकाला करता हूँ. 19 अच्छा, यदि मैं प्रेतों को शैतान की सहायता से निकाला करता हूँ, तब तुम्हारे शिष्य उन्हें किसकी सहायता से निकाला करते हैं? परिणामस्वरूप तुम्हारे ही शिष्य तुम पर आरोप लगाएँगे. 20 किन्तु यदि मैं प्रेतों को परमेश्वर के सामर्थ्य के द्वारा निकालता हूँ, तब परमेश्वर का राज्य तुम्हारे मध्य आ चुका है.

21 “जब कोई बलवान व्यक्ति शस्त्रों से पूरी तरह से सुसज्जित हो कर अपने घर की चौकसी करता है, तो उसकी सम्पत्ति सुरक्षित रहती है 22 किन्तु जब उससे अधिक बलवान कोई व्यक्ति उस पर आक्रमण कर उसे अपने वश में कर लेता है और वे सभी शस्त्र, जिन पर वह भरोसा करता था, छीन लेता है, तो वह उसकी सम्पत्ति को लूट कर बांट देता है.

23 “वह, जो मेरे पक्ष में नहीं है मेरे विरुद्ध है और वह, जो मेरे साथ इकट्ठा नहीं करता, वह बिखेरता है.

24 “जब प्रेत किसी व्यक्ति में से बाहर निकलता है, वह सूखे स्थानों में विश्राम की खोज में भटकता रहता है और न मिलने पर वह विचार करता है, ‘मैं उसी घर में लौट जाऊँगा, जिसमें से मैं निकला था.’ 25 वहाँ पहुँच कर वह उस घर को साफ़ और सजा हुआ पाता है. 26 वह जा कर अपने से अधिक दुष्ट सात अन्य प्रेत ले आता है. वे सभी उस मनुष्य में प्रवेश कर उसमें निवास करने लगते हैं. उस व्यक्ति की यह दशा पहली दशा से अधिक बुरी हो जाती है.”

27 जब मसीह येशु यह शिक्षा दे रहे थे, भीड़ में से एक नारी पुकार उठी, “धन्य है वह माता, जिसने आपको जन्म दिया और आपका पालन-पोषण किया.”

28 किन्तु मसीह येशु ने कहा, “परन्तु धन्य वे हैं, जो परमेश्वर के वचन को सुन कर उसका पालन करते हैं.”

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