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Chronological

Read the Bible in the chronological order in which its stories and events occurred.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
लूकॉ 12-13

मसीह येशु का स्पष्ट तथा निडर प्रवचन

12 इसी समय वहाँ हज़ारों लोगों का इतना विशाल समूह इकट्ठा हो गया कि वे एक दूसरे पर गिरे पड़ते थे. मसीह येशु ने सबसे पहिले अपने शिष्यों को सम्बोधित करते हुए कहा, “फ़रीसियों के ख़मीर अर्थात् ढ़ोंग से सावधान रहो. ऐसा कुछ भी ढ़का नहीं, जिसे खोला न जाएगा या ऐसा कोई रहस्य नहीं, जिसे प्रकट न किया जाएगा. वे शब्द, जो तुमने अन्धकार में कहे हैं, प्रकाश में सुने जाएँगे, जो कुछ तुमने भीतरी कमरे में कानों में कहा है, वह छत से प्रचार किया जाएगा.

“मेरे मित्रों, मेरी सुनो: उनसे भयभीत न हो, जो शरीर का तो नाश कर सकते हैं किन्तु इसके बाद इससे अधिक और कुछ नहीं पर मैं तुम्हें समझाता हूँ कि तुम्हारा किससे डरना सही है: उन्हीं से, जिन्हें शरीर का नाश करने के बाद नर्क में झोंकने का अधिकार है. सच मानो, तुम्हारा उन्हीं से डरना उचित है. क्या दो अस्सारिओन में पाँच गौरैयाँ नहीं बेची जातीं? फिर भी परमेश्वर उनमें से एक को भी नहीं भूलते. सच तो यह है कि तुम्हारे सिर का एक-एक बाल तक गिना हुआ है. मत डरो! तुम्हारा दाम अनेक गौरैयों से कहीं अधिक बढ़कर है.

“मैं तुमसे कहता हूँ कि जो कोई मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करता है, मनुष्य का पुत्र उसे परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने स्वीकार करेगा, किन्तु जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करता है, उसका परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने इनकार किया जाएगा. 10 यदि कोई मनुष्य के पुत्र के विरुद्ध एक भी शब्द कहता है, उसे तो क्षमा कर दिया जाएगा किन्तु पवित्रात्मा की निन्दा बिलकुल क्षमा न की जाएगी.

11 “जब तुम उनके द्वारा सभागृहों, शासकों और अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किए जाओ तो इस विषय में कोई चिन्ता न करना कि अपने बचाव में तुम्हें क्या उत्तर देना है या क्या कहना है 12 क्योंकि पवित्रात्मा ही तुम पर प्रकट करेंगे कि उस समय तुम्हारा क्या कहना सही होगा.”

सम्पत्ति के इकट्ठा करने पर विचार

13 उपस्थित भीड़ में से किसी ने मसीह येशु से कहा, “गुरुवर, मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे साथ पिता की सम्पत्ति का बँटवारा कर ले.”

14 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “भलेमानुस! किसने मुझे तुम्हारे लिए न्यायकर्ता या मध्यस्थ ठहराया है?” 15 तब मसीह येशु ने भीड़ को देखते हुए उन्हें चेतावनी दी, “स्वयं को हर एक प्रकार के लालच से बचाए रखो. मनुष्य का जीवन उसकी सम्पत्ति की बहुतायत होने पर भला नहीं है.”

16 तब मसीह येशु ने उनके सामने यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया: “किसी व्यक्ति की भूमि से अच्छी फसल उत्पन्न हुई. 17 उसने मन में विचार किया, ‘अब मैं क्या करूँ? फसल रखने के लिए तो मेरे पास स्थान ही नहीं है.’

18 “तब उसने विचार किया, ‘मैं ऐसा करता हूँ: मैं इन बखारियों को तोड़ कर बड़े भण्डार निर्मित करूँगा. तब मेरी सारी उपज तथा वस्तुओं का रख रखाव हो सकेगा. 19 तब मैं स्वयं से कहूँगा, “अनेक वर्षों के लिए अब तेरे लिए उत्तम वस्तुएं इकट्ठा हैं. विश्राम कर! खा, पी और आनन्द कर!.”’

20 “किन्तु परमेश्वर ने उससे कहा, ‘अरे मूर्ख! आज ही रात तेरे प्राण तुझ से ले लिए जाएँगे; तब ये सब, जो तूने अपने लिए इकट्ठा कर रखा है, किसका होगा?’

21 “यही है उस व्यक्ति की स्थिति, जो मात्र अपने लिए इस प्रकार इकट्ठा करता है किन्तु जो परमेश्वर की दृष्टि में धनवान नहीं है.”

चिन्ता के विरुद्ध चेतावनी

22 इसके बाद अपने शिष्यों से उन्मुख हो मसीह येशु ने कहा, “यही कारण है कि मैंने तुमसे कहा है, अपने जीवन के विषय में यह चिन्ता न करो कि हम क्या खाएँगे या अपने शरीर के विषय में कि हम क्या पहनेंगे. 23 जीवन भोजन से तथा शरीर वस्त्रों से बढ़कर है. 24 कौवों पर विचार करो: वे न तो बोते हैं और न काटते हैं. उनके न तो खलिहान होते हैं और न भण्ड़ार; फिर भी परमेश्वर उन्हें भोजन प्रदान करते हैं. तुम्हारा दाम पक्षियों से कहीं अधिक बढ़कर है! 25 तुममें से कौन है, जो चिन्ता के द्वारा अपनी आयु में एक पल भी बढ़ा पाया है? 26 जब तुम यह छोटा-सा काम ही नहीं कर सकते तो भला अन्य विषयों के लिए चिन्तित क्यों रहते हो?

27 “जंगली फूलों को देखो! वे न तो कताई करते हैं और न बुनाई; परन्तु मैं कहता हूँ कि राजा शलोमोन तक अपने सारे ऐश्वर्य में इनमें से एक के तुल्य भी सजे न थे. 28 यदि परमेश्वर भूमि की घास को, जो आज तो है किन्तु कल आग में झोंक दी जाएगी, इस रीति से सजाते हैं तो अल्पविश्वासियो! वह तुम्हें और कितना अधिक सुशोभित न करेंगे! 29 इस उधेड़-बुन में लगे न रहो कि तुम क्या खाओगे या क्या पिओगे और न ही इसकी कोई चिन्ता करो. 30 विश्व के सभी राष्ट्र इसी कार्य में लगे हैं. तुम्हारे पिता को पहले ही यह मालूम है कि तुम्हें इन वस्तुओं की ज़रूरत है. 31 इनकी जगह परमेश्वर के राज्य की खोज करो और ये सभी वस्तुएं तुम्हारी हो जाएँगी.

32 “तुम, जो संख्या में कम हो, भयभीत न होना क्योंकि तुम्हारे पिता तुम्हें राज्य दे कर संतुष्ट हुए हैं.

33 “अपनी सम्पत्ति बेच कर प्राप्त धनराशि निर्धनों में बांट दो. अपने लिए ऐसा धन इकट्ठा करो, जो नष्ट नहीं किया जा सकता है—स्वर्ग में इकट्ठा किया धन; जहाँ न तो किसी चोर की पहुँच है और न ही विनाश करने वाले कीड़ों की. 34 तुम्हारा मन वहीं लगा होगा, जहाँ तुम्हारा धन है.”

मसीह येशु के दोबारा आगमन की अनपेक्षितता

35 “हमेशा तैयार रहो तथा अपने दीप जलाए रखो, 36 उन सेवकों के समान, जो अपने स्वामी की प्रतीक्षा में हैं कि वह जब विवाह उत्सव से लौट कर आए और द्वार खटखटाए तो वे तुरन्त उसके लिए द्वार खोल दें. 37 धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी लौटने पर जागते पाएगा. सच तो यह है कि स्वामी ही सेवक के वस्त्र धारण कर उन्हें भोजन के लिए बैठाएगा तथा स्वयं उन्हें भोजन परोसेगा. 38 धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी रात के दूसरे या तीसरे प्रहर में भी आ कर जागते पाए. 39 किन्तु तुम यह जान लो: यदि घर के स्वामी को यह मालूम हो कि चोर किस समय आएगा तो वह उसे अपने घर में घुसने ही न दे. 40 इसलिए तुम भी हमेशा तैयार रहो क्योंकि मनुष्य के पुत्र का आगमन ऐसे समय पर होगा जब तुमने उसके आगमन की आशा भी न की होगी.”

41 पेतरॉस ने उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, आपका यह दृष्टान्त मात्र हमारे लिए ही है या भीड़ के लिए भी?”

42 प्रभु ने उत्तर दिया, “वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान भण्ड़ारी कौन होगा जिसे स्वामी सभी सेवकों का प्रधान ठहराए कि वह अन्य सेवकों को निर्धारित समय पर भोज्य सामग्री दे दे. 43 धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी लौटने पर यही करता हुआ पाए. 44 सच तो यह है कि स्वामी उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी ठहराएगा. 45 किन्तु यदि वह दास अपने मन में कहने लगे, ‘अभी तो मेरे स्वामी के लौटने में बहुत समय है’ और वह अन्य दास-दासियों की पिटाई करने लगे और खा-पी कर नशे में चूर हो जाए. 46 उसका स्वामी एक ऐसे दिन लौटेगा, जिसकी उसने कल्पना ही न की थी और एक ऐसे क्षण में, जिसके विषय में उसे मालूम ही न था तो स्वामी उसे मृत्युदण्ड दे कर उसकी गिनती अविश्वासियों में कर देगा.

47 “वह दास, जिसे अपने स्वामी की इच्छा का पूरा पता था किन्तु वह न तो इसके लिए तैयार था और न उसने उसकी इच्छा के अनुसार व्यवहार ही किया, कठोर दण्ड पाएगा. 48 किन्तु वह, जिसे इसका पता ही न था और उसने दण्ड पाने योग्य अपराध किए, कम दण्ड पाएगा. हर एक से, जिसे बहुत ज़्यादा दिया गया है उससे बहुत ज़्यादा मात्रा में ही लिया जाएगा तथा जिसे अधिक मात्रा में सौंपा गया है, उससे अधिक का ही हिसाब लिया जाएगा.

49 “मैं पृथ्वी पर आग बरसाने के लक्ष्य से आया हूँ और कैसा उत्तम होता यदि यह इसी समय हो जाता! 50 किन्तु मेरे लिए बपतिस्मा की प्रक्रिया निर्धारित है और जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, कैसी दुःखदायी है इसकी पीड़ा!”

आने वाली फूट की भविष्यवाणी

51 “क्या विचार है तुम्हारा—क्या मैं पृथ्वी पर शान्ति की स्थापना का लक्ष्य ले कर आया हूँ? नहीं! शान्ति नहीं परन्तु फूट का. 52 अब से पाँच सदस्यों के परिवार में फूट पड़ जाएगी तीन के विरुद्ध दो और दो के विरुद्ध तीन. 53 वे सब एक-दूसरे के विरुद्ध होंगे—पिता पुत्र के और पुत्र पिता के; माता पुत्री के और पुत्री माता के; सास पुत्रवधू के और पुत्रवधू सास के.”

निकट आते संकट की भविष्यवाणी

54 भीड़ को सम्बोधित करते हुए मसीह येशु ने कहा, “जब तुम पश्चिम दिशा में बादल उठते देखते हो तो तुम तुरन्त कहते हो, ‘बारिश होगी’ और बारिश होती है. 55 जब पवन दक्षिण दिशा से बहता है तुम कहते हो, ‘अब गर्मी पड़ेगी,’ और ऐसा ही हुआ करता है. 56 पाखण्डियो! तुम धरती और आकाश की ओर देख कर तो भेद कर लेते हो किन्तु इस युग का भेद क्यों नहीं कर सकते?

57 “तुम स्वयं अपने लिए सही गलत का फैसला क्यों नहीं कर लेते? 58 जब तुम अपने शत्रु के साथ न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत होने जा रहे हो, पूरा प्रयास करो कि मार्ग में ही तुम दोनों में मेल हो जाए अन्यथा वह तो तुम्हें घसीट कर न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत कर देगा, न्यायाधीश तुम्हें अधिकारी के हाथ सौंप देगा और अधिकारी तुम्हें जेल में डाल देगा. 59 मैं तुमसे कहता हूँ कि जेल से बाहर आने के कार्य में तुम कंगाल हो जाओगे.”

पश्चाताप की विनती

13 उसी समय वहाँ उपस्थित कुछ लोगों ने मसीह येशु को उन गलीलवासियों की याद दिलायी, जिनका लहू पिलातॉस ने उन्हीं के बलिदानों में मिला दिया था. मसीह येशु ने उनसे पूछा, “क्या तुम्हारे विचार से ये गलीली अन्य गलीलवासियों की तुलना में अधिक पापी थे कि उनकी यह स्थिति हुई? नहीं! मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि तुम मन न फिराओ तो तुम सब भी इसी प्रकार नाश हो जाओगे. या वे अठारह व्यक्ति, जिन पर सीलोअम का खम्भा गिरा, जिससे उनकी मृत्यु हो गई, येरूशालेमवासियों की अपेक्षा अधिक दोषी थे? नहीं! मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि तुम मन न फिराओ तो तुम सब भी इसी प्रकार नाश हो जाओगे.”

तब मसीह येशु ने उन्हें इस दृष्टान्त के द्वारा समझाना प्रारम्भ किया, “एक व्यक्ति ने अपने बगीचे में एक अंजीर का पेड़ लगाया. वह फल की आशा में उसके पास आया. उसने माली से कहा, ‘देखो, मैं तीन वर्ष से इस पेड़ में फल की आशा लिए आ रहा हूँ और मुझे अब तक कोई फल प्राप्त नहीं हुआ. काट डालो इसे! भला क्यों इसके कारण भूमि व्यर्थ ही घिरी रहे?’

“किन्तु माली ने स्वामी से कहा, ‘स्वामी, इसे इस वर्ष और रहने दीजिए. मैं इसके आस-पास की भूमि खोदकर इसमें खाद डाल देता हूँ. यदि अगले वर्ष यह फल लाए तो अच्छा नहीं तो इसे कटवा दीजिएगा.’”

अपंग स्त्री को चंगाई

10 शब्बाथ पर मसीह येशु यहूदी सभागृह में शिक्षा दे रहे थे. 11 वहाँ एक ऐसी स्त्री थी, जिसे एक प्रेत ने अठारह वर्ष से अपंग किया हुआ था. जिसके कारण उसका शरीर झुक कर दोहरा हो गया था और उसके लिए सीधा खड़ा होना असम्भव हो गया था. 12 जब मसीह येशु की दृष्टि उस पर पड़ी, उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और उससे कहा, “हे नारी, तुम अपने इस रोग से मुक्त हो गई हो,” 13 यह कहते हुए मसीह येशु ने उस पर अपने हाथ रखे और उसी क्षण वह सीधी खड़ी हो गई और परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी.

14 किन्तु यहूदी सभागृह प्रधान इस पर अत्यन्त रुष्ट हो गया क्योंकि मसीह येशु ने उसे शब्बाथ पर स्वस्थ किया था. सभागृह प्रधान ने वहाँ इकट्ठा लोगों से कहा, “काम करने के लिए छः दिन निर्धारित किए गए हैं इसलिए इन छः दिनों में आ कर अपना स्वास्थ्य प्राप्त करो, न कि शब्बाथ पर.”

15 किन्तु प्रभु ने इसके उत्तर में कहा, “पाखण्डियो! क्या शब्बाथ पर तुम में से हर एक अपने बैल या गधे को पशुशाला से खोल कर पानी पिलाने नहीं ले जाता? 16 और क्या इस स्त्री को, जो अब्राहाम ही की सन्तान है, जिसे शैतान ने अठारह वर्ष से बान्ध रखा था, शब्बाथ पर इस बन्धन से मुक्त किया जाना उचित न था?”

17 मसीह येशु के ये शब्द सुन उनके सभी विरोधी लज्जित हो गए. सारी भीड़ मसीह येशु द्वारा किए जा रहे इन महान कामों को देख आनन्दित थी.

परमेश्वर के राज्य की शिक्षा

18 इसलिए मसीह येशु ने उनसे कहना प्रारम्भ किया, “परमेश्वर का राज्य कैसा होगा? मैं इसकी तुलना किससे करूँ? 19 परमेश्वर का राज्य राई के बीज के समान है, जिसे किसी व्यक्ति ने अपनी वाटिका में बोया, और उसने विकसित होते हुए पेड़ का रूप ले लिया—यहाँ तक कि पक्षी भी आ कर उसकी शाखाओं पर बसेरा करने लगे.”

20 मसीह येशु ने दोबारा कहा, “परमेश्वर के राज्य की तुलना मैं किससे करूँ? 21 परमेश्वर का राज्य ख़मीर के समान है, जिसे एक स्त्री ने तीन माप आटे में मिलाया और सारा आटा ही खमीर युक्त हो गया.”

स्वर्ग-राज्य में प्रवेश के विषय में शिक्षा

22 नगर-नगर और गाँव-गाँव होते हुए और मार्ग में शिक्षा देते हुए मसीह येशु येरूशालेम नगर की ओर बढ़ रहे थे. 23 किसी ने उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, क्या मात्र कुछ ही लोग उद्धार प्राप्त कर सकेंगे?” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, 24 “तुम्हारी कोशिश यह हो कि तुम संकरे द्वार से प्रवेश करो क्योंकि मैं तुम्हें बता रहा हूँ कि अनेक इसमें प्रवेश तो चाहेंगे किन्तु प्रवेश करने में असमर्थ रहेंगे. 25 एक बार जब घर का स्वामी द्वार बन्द कर दे तो तुम बाहर खड़े, द्वार खटखटाते हुए विनती करते रह जाओगे: ‘महोदय, कृपया हमारे लिए द्वार खोल दें.’

“किन्तु वह उत्तर देगा, ‘तुम कौन हो और कहां से आये हो मैं नहीं जानता.’

26 “तब तुम कहोगे, ‘हम आपके साथ खाया-पिया करते थे और आप हमारी गलियों में शिक्षा दिया करते थे.’

27 “परन्तु उसका उत्तर होगा, ‘मैं तुमसे कह चुका हूँ तुम कौन हो, मैं नहीं जानता. चले जाओ यहाँ से! तुम सब कुकर्मी हो!’

28 “जब तुम परमेश्वर के राज्य में अब्राहाम, इसहाक, याक़ोब तथा सभी भविष्यद्वक्ताओं को देखोगे और स्वयं तुम्हें बाहर फेंक दिया जाएगा, वहाँ रोना और दाँतों का पीसना ही होगा. 29 चारों दिशाओं से लोग आ कर परमेश्वर के राज्य के उत्सव में शामिल होंगे 30 और सच्चाई यह है कि जो अन्तिम हैं वे पहिले होंगे तथा जो पहिले वे अन्तिम.”

येरूशालेम नगर पर विलाप

31 उसी समय कुछ फ़रीसियों ने उनके पास आ कर उनसे कहा, “यहाँ से चले जाओ क्योंकि हेरोदेस तुम्हारी हत्या कर देना चाहता है.”

32 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “जा कर उस लोमड़ी से कहो, ‘मैं आज और कल प्रेतों को निकालूंगा और लोगों को चँगा करूँगा और तीसरे दिन मैं अपने लक्ष्य पर पहुँच जाऊँगा.’ 33 फिर भी यह ज़रूरी है कि मैं आज, कल और परसों यात्रा करूँ क्योंकि यह हो ही नहीं सकता कि किसी भविष्यद्वक्ता की हत्या येरूशालेम नगर के बाहर हो.

34 “येरूशालेम, ओ येरूशालेम! तुम ऐसे नगर हो, जो भविष्यद्वक्ताओं की हत्या कर देता है तथा उनका पथराव करता है, जो इसके लिए भेजे जाते हैं. कितनी ही बार मैंने यह चाहा कि तुम्हारी संतानो को इकट्ठा करूँ—ठीक वैसे ही, जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा कर लेती है, किन्तु तुम ही ने न चाहा! 35 इसलिए तुम्हारा घर तुम्हारे लिए उजाड़ छोड़ा जा रहा है. जो मैं तुमसे कह रहा हूँ उसे सुनो: तुम मुझे तब तक न देखोगे जब तक वह समय न आए जब तुम यह कहोगे: ‘धन्य है वह, जो प्रभु के नाम में आता है.’”

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