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Chronological

Read the Bible in the chronological order in which its stories and events occurred.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
मत्तियाह 16

फ़रीसियों द्वारा अद्भुत चिह्न की माँग

(मारक 8:11-13)

16 तब फ़रीसी और सदूकी येशु के पास आए और उनको परखने के लिए उन्हें कोई अद्भुत चिह्न दिखाने को कहा.

येशु ने उनसे कहा,[a] “सायंकाल होने पर तुम कहते हो कि मौसम अनुकूल रहेगा क्योंकि आकाश में लालिमा है. इसी प्रकार प्रातःकाल तुम कहते हो कि आज आँधी आएगी क्योंकि आकाश धूमिल है और आकाश में लालिमा है. तुम आकाश के स्वरूप को तो पहचान लेते हो किन्तु वर्तमान समय के चिह्नों को नहीं! व्यभिचारी और परमेश्वर के प्रति निष्ठाहीन पीढ़ी चिह्न खोजती है किन्तु इसे योनाह के चिह्न के अतिरिक्त और कोई चिह्न नहीं दिया जाएगा.” और येशु उन्हें वहीं छोड़ कर चले गए.

गलत शिक्षा के प्रति चेतावनी

(मारक 8:14-21)

झील की दूसरी ओर पहुँचने पर शिष्यों ने पाया कि वे अपने साथ भोजन रखना भूल गए थे. उसी समय येशु ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा, “फ़रीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान रहना.”

इस पर शिष्य आपस में विचार-विमर्श करने लगे, “क्या प्रभु ने यह इसलिए कहा है कि हम भोजन साथ लाना भूल गए?”

येशु उनकी स्थिति से अवगत थे, इसलिए उन्होंने शिष्यों से कहा, “अरे अल्प विश्वासियो! क्यों इस विवाद में उलझे हुए हो कि तुम्हारे पास भोजन नहीं है? क्या तुम्हें अब भी समझ नहीं आया? क्या तुम्हें पाँच हज़ार के लिए पाँच रोटियां याद नहीं? तुमने वहाँ शेष रोटियों से भरे कितने टोकरे उठाए थे? 10 या चार हज़ार के लिए वे सात रोटियां. तुमने वहाँ शेष रोटियों से भरे कितने टोकरे उठाए थे? 11 भला कैसे यह तुम्हारी समझ से परे है कि यहाँ मैंने भोजन का वर्णन नहीं किया है? परन्तु यह कि मैंने तुम्हें फ़रीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान किया है.” 12 तब उन्हें यह विषय समझ में आया कि येशु रोटी के ख़मीर का नहीं परन्तु फ़रीसियों और सदूकियों की गलत शिक्षा का वर्णन कर रहे थे.

पेतरॉस की विश्वास-स्वीकृति

(मारक 8:27-30; लूकॉ 9:18-20)

13 जब येशु कयसरिया फ़िलिप्पी क्षेत्र में पहुँचे, उन्होंने अपने शिष्यों के सामने यह प्रश्न रखा: “लोगो के मत में मनुष्य के पुत्र कौन है?”

14 शिष्यों ने उत्तर दिया, “कुछ के मतानुसार बपतिस्मा देने वाला योहन, कुछ अन्य के अनुसार एलियाह और कुछ के अनुसार यिर्मयाह या भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक.”

15 तब येशु ने उनसे प्रश्न किया, “किन्तु तुम्हारे मत में मैं कौन हूँ?”

16 शिमोन पेतरॉस ने उत्तर दिया, “आप ही मसीह हैं—जीवन्त परमेश्वर के पुत्र.”

17 इस पर येशु ने उनसे कहा, “योनाह के पुत्र शिमोन, धन्य हो तुम! तुम पर इस सच का प्रकाशन कोई मनुष्य का काम नहीं परन्तु मेरे पिता का है, जो स्वर्ग में हैं. 18 मैं तुम पर एक और सच प्रकट कर रहा हूँ: तुम पेतरॉस हो. अपनी कलीसिया का निर्माण मैं इसी पत्थर पर करूँगा. अधोलोक के फ़ाटक इस पर अधिकार न कर सकेंगे. 19 तुम्हें मैं स्वर्ग-राज्य की कुंजियाँ सौंपूँगा. जो कुछ पृथ्वी पर तुम्हारे द्वारा इकट्ठा किया जाएगा, वह स्वर्ग में भी इकट्ठा होगा और जो कुछ तुम्हारे द्वारा पृथ्वी पर खुलेगा, वह स्वर्ग में भी खुलेगा.”

20 इसके बाद येशु ने शिष्यों को सावधान किया कि वे किसी पर भी यह प्रकट न करें कि वही मसीह हैं.

दुःखभोग और क्रूस की मृत्यु की पहिली भविष्यवाणी

(मत्ति 16:21-28; मारक 8:31; 9:1; लूकॉ 9:21-27)

21 इस समय से येशु ने शिष्यों पर यह स्पष्ट करना प्रारम्भ कर दिया कि उनका येरूशालेम नगर जाना, पुरनियों, प्रधान याजक और शास्त्रियों द्वारा उन्हें यातना दिया जाना, मार डाला जाना तथा तीसरे दिन मरे हुओं में से जीवित किया जाना अवश्य है.

22 यह सुन पेतरॉस येशु को अलग ले गए और उन्हें झिड़की देते हुए कहने लगे, “परमेश्वर ऐसा न करें, प्रभु! आपके साथ ऐसा कभी न होगा.”

23 किन्तु येशु पेतरॉस से उन्मुख हो बोले, “दूर हो जा मेरी दृष्टि से, शैतान! तू मेरे लिए बाधा है! तेरा मन परमेश्वर सम्बन्धित विषयों में नहीं परन्तु मनुष्य सम्बन्धी विषयों में है.”

24 इसके बाद येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपना त्याग कर अपना क्रूस उठाए और मेरे पीछे हो ले. 25 जो कोई अपने जीवन को बचाना चाहता है, वह उसे गँवा देगा तथा जो कोई मेरे लिए अपने प्राणों की हानि उठाता है, उसे सुरक्षित पाएगा. 26 भला इसका क्या लाभ कि कोई व्यक्ति पूरा संसार तो प्राप्त करे किन्तु अपना प्राण खो दे? किस वस्तु से मनुष्य अपने प्राण का बदला कर सकता है? 27 मानव-पुत्र अपने पिता की महिमा में अपने स्वर्गदूतों के साथ आएगा, तब वह हर एक मनुष्य को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल देगा.

28 “सच तो यह है कि यहाँ कुछ हैं, जो मृत्यु का स्वाद तब तक नहीं चखेंगे, जब तक वे मनुष्य के पुत्र का उसके राज्य में प्रवेश न देख लें.”

मारक 8

सात रोटियों से अद्भुत काम

(मत्ति 15:32-39)

इन्हीं दिनों की घटना है कि एक बार फिर वहाँ एक बड़ी भीड़ इकठ्ठी हो गयी. उनके पास खाने को कुछ न था. मसीह येशु ने अपने शिष्यों को बुला कर उनसे कहा, “इनके लिए मेरे हृदय में करुणा उमड़ रही है क्योंकि ये सब तीन दिन से लगातार मेरे साथ हैं. इनके पास अब कुछ भी भोजन सामग्री नहीं है. यदि मैं इन्हें भूखा ही घर भेज दूँ, वे मार्ग में ही मूर्च्छित हो जाएँगे. इनमें से कुछ तो अत्यन्त दूर से आए हैं.”

शिष्य उनसे पूछने लगे, “प्रभु, इस सुनसान जगह में इन सबके लिए पर्याप्त भोजन कोई कहाँ से लाएगा?”

मसीह येशु ने उनसे पूछा, “कितनी रोटियां हैं तुम्हारे पास?”

“सात,” उन्होंने उत्तर दिया.

मसीह येशु ने भीड़ को भूमि पर बैठ जाने की आज्ञा दी; फिर सातों रोटियां लीं, उनके लिए धन्यवाद प्रकट कर उन्हें तोड़ा और उन्हें बाँटने के लिए शिष्यों को देते गए. शिष्य उन्हें भीड़ में बाँटते गए. उनके पास कुछ छोटी मछलियां भी थीं. उन पर धन्यवाद करते हुए मसीह येशु ने उन्हें भी बाँटने की आज्ञा दी. लोग खा कर तृप्त हुए. उन्होंने तोड़ी गई रोटियों के शेष टुकड़ों को इकट्ठा कर सात बड़े टोकरे भर लिए. इस भीड़ में लगभग चार हज़ार लोग थे. तब मसीह येशु ने उन्हें विदा किया. 10 इसके बाद मसीह येशु बिना देर किए अपने शिष्यों के साथ नाव पर सवार होकर दालमनूथा क्षेत्र में आ गए.

11 फ़रीसियों ने आ कर उनसे विवाद प्रारम्भ कर दिया. उन्होंने यह परखने के लिए कि मसीह येशु परमेश्वर-पुत्र हैं, चमत्कार चिह्न की माँग की. 12 मसीह येशु ने अपने अन्दर में गहरी पीड़ा में कराहते हुए उन्हें उत्तर दिया, “यह पीढ़ी चमत्कार चिह्न क्यों चाहती है? सच तो यह है कि इस पीढ़ी को कोई भी चमत्कार चिह्न नहीं दिया जाएगा.” 13 उन्हें छोड़ कर मसीह येशु नाव पर सवार हो दूसरी ओर चले गए.

गलत शिक्षा के प्रति चेतावनी

(मत्ति 16:5-12)

14 शिष्य अपने साथ भोजन रखना भूल गए थे—उनके पास नाव में मात्र एक रोटी थी. 15 मसीह येशु ने शिष्यों को चेतावनी देते हुए कहा, “फ़रीसियों के ख़मीर से तथा हेरोदेस के ख़मीर से सावधान रहना.”

16 इस पर वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे, “वह यह इसलिए कह रहे हैं कि हमने अपने साथ रोटियां नहीं रखीं.”

17 उनकी स्थिति समझते हुए मसीह येशु ने उनसे कहा, “रोटी के न होने के विषय में वाद-विवाद क्यों किए जा रहे हो? क्या अब भी तुम्हें कुछ समझ नहीं आ रहा? क्या तुम्हारा हृदय कठोर हो गया है? 18 आँखें होते हुए भी तुम्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा और कानों के होते हुए भी तुम कुछ सुन नहीं पा रहे? तुम्हें कुछ भी याद नहीं रहा! 19 जब मैंने पाँच हज़ार व्यक्तियों के लिए पाँच रोटियां परोसीं तुमने रोटी से भरे कितने टोकरे इकट्ठा किए थे?”

“बारह,” उन्होंने उत्तर दिया.

20 “जब मैंने चार हज़ार के लिए सात रोटियां परोसीं तब तुमने रोटी से भरे कितने टोकरे इकट्ठा किए थे?”

“सात,” उन्होंने उत्तर दिया.

21 तब मसीह येशु ने उनसे पूछा, “क्या अब भी तुम्हारी समझ में नहीं आया?”

अंधे को दृष्टिदान

22 वे बैथसैदा नगर आए. वहाँ लोग एक अंधे व्यक्ति को उनके पास लाए और उनसे विनती की कि वह उसका स्पर्श करें. 23 मसीह येशु उस अंधे का हाथ पकड़ उसे गाँव के बाहर ले गए. वहाँ उन्होंने उस व्यक्ति की आँखों पर थूका और उस पर हाथ रखते हुए उससे पूछा, “क्या तुम्हें कुछ दिखाई दे रहा है?”

24 उसने ऊपर दृष्टि करते हुए कहा, “मुझे लोग दिख रहे हैं परन्तु वे ऐसे दिख रहे हैं जैसे चलते-फिरते पेड़.”

25 मसीह येशु ने दोबारा उस पर अपने हाथ रखे और उसकी ओर एकटक देखा और उसे दृष्टि प्राप्त हो गई—उसे सब कुछ साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा. 26 मसीह येशु ने उसे उसके घर भेजते हुए कहा, “अब इस गाँव में कभी न आना.”

पेतरॉस द्वारा विश्वास करना

(मत्ति 16:13-20; लूकॉ 9:18-20)

27 मसीह येशु अपने शिष्यों के साथ कयसरिया प्रान्त के फ़िलिप्पॉय नगर के पास के गाँवों की यात्रा कर रहे थे. मार्ग में उन्होंने अपने शिष्यों से यह प्रश्न किया, “मैं कौन हूँ इस विषय में लोगों का क्या मत है?”

28 उन्होंने उत्तर दिया, “कुछ के लिए बपतिस्मा देने वाले योहन, कुछ के लिए एलियाह तथा कुछ के लिए आप भविष्यद्वक्ताओं में से एक हैं.”

29 “तुम्हारा अपना मत क्या है?” मसीह येशु ने उनसे आगे प्रश्न किया.

पेतरॉस ने उत्तर दिया, “आप मसीह[a] हैं.”

30 मसीह येशु ने शिष्यों को सावधान किया कि वे किसी से भी उनकी चर्चा न करें.

दुःखभोग और क्रूस की मृत्यु की पहिली भविष्यवाणी

(मत्ति 16:21-28; लूकॉ 9:21-27)

31 तब मसीह येशु उन्हें यह समझाने लगे कि यह अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र अनेक यातनाएँ सहे, पुरनियों, प्रधान पुरोहितों तथा विधान के शिक्षकों द्वारा तुच्छ घोषित किया जाए, उसकी हत्या कर दी जाए और तीन दिन बाद वह मरे हुओं में से जीवित हो जाए. 32 यह सब उन्होंने अत्यन्त स्पष्ट रूप से कहा. उनके इस कथन पर पेतरॉस उन्हें अलग ले जा कर डाँटने लगे.

33 किन्तु मसीह येशु पीछे मुड़े और अपने शिष्यों को देख कर उन्होंने पेतरॉस को डाँटा, “दूर हो जा मेरी दृष्टि से, शैतान! तेरा मन परमेश्वर सम्बन्धी विषयों में नहीं परन्तु मनुष्य सम्बन्धी विषयों में लगा हुआ है.”

मसीह येशु के पीछे चलने की शर्तें

34 तब उन्होंने भीड़ के साथ अपने शिष्यों को भी अपने पास बुलाया और उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा, “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपना इनकार कर अपना क्रूस उठाए और मेरे पीछे हो ले. 35 इसलिए कि जो कोई अपने जीवन की रक्षा करना चाहता है, वह उसे गँवा देगा तथा जो कोई मेरे तथा सुसमाचार के लिए अपने प्राण गँवा देता है, उसे सुरक्षित पाएगा. 36 क्या लाभ यदि कोई मनुष्य सारा संसार तो प्राप्त कर ले किन्तु अपना प्राण खो बैठे? 37 मनुष्य किस वस्तु से अपने प्राणों की तुलना करे? 38 जो कोई इस अविश्वासी तथा पापमय युग में मुझे तथा मेरे वचन को लज्जा का विषय समझता है, मनुष्य का पुत्र भी, जब वह अपने पिता की महिमा में पवित्र स्वर्गदूतों के साथ आएगा, उसे स्वीकार करने में लज्जा का अनुभव करेगा.”

लूकॉ 9:18-27

पेतरॉस की विश्वास-स्वीकृति

(मत्ति 16:13-20; मारक 8:27-30)

18 एक समय, जब मसीह येशु एकान्त में प्रार्थना कर रहे थे तथा उनके शिष्य भी उनके साथ थे, मसीह येशु ने शिष्यों से प्रश्न किया, “लोगों की मेरे विषय में क्या धारणा है? क्या कहते हैं वे मेरे विषय में—मैं कौन हूँ?”

19 उन्होंने उत्तर दिया, “कुछ कहते हैं बपतिस्मा देने वाला योहन; कुछ एलियाह; और कुछ अन्य कहते हैं पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से एक, जो दोबारा जीवित हो गया है.”

20 “मैं कौन हूँ इस विषय में तुम्हारी धारणा क्या है?” मसीह येशु ने प्रश्न किया.

पेतरॉस ने उत्तर दिया, “परमेश्वर के मसीह.”

दुःखभोग और क्रूस-मृत्यु की पहिली भविष्यवाणी

(मारक 8:3; 9:1)

21 मसीह येशु ने उन्हें कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि वे यह किसी से न कहें.

22 आगे मसीह येशु ने प्रकट किया, “यह अवश्य है कि मनुष्य के पुत्र अनेक पीड़ाएं सहे, यहूदी प्रधानों, प्रधान पुरोहितों तथा व्यवस्था के शिक्षकों के द्वारा अस्वीकृत किया जाए; उसका वध किया जाए तथा तीसरे दिन उसे दोबारा जीवित किया जाए.”

23 तब मसीह येशु ने उन सब से कहा, “यदि कोई मेरे पीछे होना चाहे, वह अपने अहम का त्याग कर प्रतिदिन अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे चले. 24 क्योंकि जो कोई अपने जीवन को सुरक्षित रखना चाहता है, उसे खो देगा किन्तु जो कोई मेरे हित में अपने प्राणों को त्यागने के लिए तत्पर है, वह अपने प्राणों को सुरक्षित रखेगा. 25 क्या लाभ है यदि कोई व्यक्ति सारे संसार पर अधिकार तो प्राप्त कर ले किन्तु स्वयं को खो दे या उसका जीवन ले लिया जाए? 26 क्योंकि जो कोई मुझसे और मेरी शिक्षा से लज्जित होता है, मनुष्य का पुत्र भी, जब वह अपनी, अपने पिता की तथा पवित्र दूतों की महिमा में आएगा, उससे लज्जित होगा.

27 “सच तो यह है कि यहाँ कुछ हैं, जो मृत्यु का स्वाद तब तक न चखेंगे जब तक वे परमेश्वर का राज्य देख न लें.”

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