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Chronological

Read the Bible in the chronological order in which its stories and events occurred.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
मत्तियाह 17

येशु का रूपान्तरण

(मारक 9:2-13; लूकॉ 9:28-36)

17 इस घटना के छः दिन बाद येशु पेतरॉस, याक़ोब और उनके भाई योहन को अन्यों से अलग एक ऊँचे पर्वत पर ले गए. वहाँ उन्हीं के सामने येशु का रूपान्तरण हो गया. उनका चेहरा सूर्य के समान अत्यन्त चमकीला हो उठा तथा उनके वस्त्र प्रकाश के समान उज्ज्वल हो उठे. उसी समय उन्हें मोशेह तथा एलियाह येशु से बातें करते हुए दिखाई दिए.

यह देख पेतरॉस येशु से बोल उठे, “प्रभु! हमारा यहाँ होना कैसे आनन्द का विषय है! यदि आप कहें तो मैं यहाँ तीन मण्डप बनाऊँ—एक आपके लिए, एक मोशेह के लिए तथा एक एलियाह के लिए.”

पेतरॉस अभी यह कह ही रहे थे कि एक उजला बादल उन पर छा गया और उसमें से एक शब्द सुनाई दिया, “यह मेरा पुत्र है—मेरा प्रिय, जिसमें मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूँ; इसकी आज्ञा का पालन करो.”

यह सुन भय के कारण शिष्य भूमि पर मुख के बल गिर पड़े. येशु उनके पास गए, उन्हें स्पर्श किया और उनसे कहा, “उठो! डरो मत!” जब वे उठे, तब वहाँ उन्हें येशु के अलावा कोई दिखाई न दिया.

जब वे पर्वत से उतर रहे थे येशु ने उन्हें कठोर आज्ञा दी, “मानव-पुत्र के मरे हुओं में से जीवित किए जाने तक इस घटना का वर्णन किसी से न करना.”

10 शिष्यों ने येशु से प्रश्न किया, “शास्त्री ऐसा क्यों कहते हैं कि पहले एलियाह का आना अवश्य है?”

11 येशु ने उत्तर दिया, “एलियाह आएंगे और सब कुछ सुधारेंगे 12 किन्तु सच तो यह है कि एलियाह पहले ही आ चुके और उन्होंने उन्हें न पहचाना. उन्होंने एलियाह के साथ मनमाना व्यवहार किया. ठीक इसी प्रकार वे मनुष्य के पुत्र को भी यातना देंगे.” 13 इस पर शिष्य समझ गए कि येशु बपतिस्मा देने वाले योहन का वर्णन कर रहे हैं.

विक्षिप्त प्रेतात्मा से पीड़ित की मुक्ति

(मारक 9:14-29; लूकॉ 9:37-43)

14 जब वे भीड़ के पास आए, एक व्यक्ति येशु के सामने घुटने टेक कर उनसे विनती करने लगा, 15 “प्रभु! मेरे पुत्र पर कृपा कीजिए. वह विक्षिप्त तथा अत्यन्त रोगी है. वह कभी आग में जा गिरता है, तो कभी जल में. 16 मैं उसे आपके शिष्यों के पास लाया था किन्तु वे उसे स्वस्थ न कर सके.”

17 येशु कह उठे, “अविश्वासी और भ्रष्ट पीढ़ी! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? कब तक मुझे यह सब सहना होगा? लाओ अपने पुत्र को मेरे पास!” 18 येशु ने उस प्रेत को फटकारा और वह उस बालक में से निकल गया और बालक उसी क्षण स्वस्थ हो गया.

19 जब येशु अकेले थे तब शिष्य उनके पास आए और उनसे पूछने लगे, “प्रभु! हम उस प्रेत को निष्कासित क्यों न कर सके?”

20 “अपने विश्वास की कमी के कारण,” येशु ने उत्तर दिया, “एक सच मैं तुम पर प्रकट कर रहा हूँ: यदि तुममें राई के एक बीज के तुल्य भी विश्वास है और तुम इस पर्वत को आज्ञा दो, ‘यहाँ से हट जा!’ तो यह पर्वत यहाँ से हट जाएगा—असम्भव कुछ भी न होगा.

21 “यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के बाहर नहीं निकाली जा सकती.”[a]

दुःखभोग और क्रूस की मृत्यु की दूसरी भविष्यवाणी

(मारक 9:30-32; लूकॉ 9:44-45)

22 जब वे गलील प्रदेश में इकट्ठा हो रहे थे, येशु ने उनसे कहा, “अब मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथों में पकड़वा दिए जाएगा. 23 वे उसकी हत्या कर देंगे. तीसरे दिन वह मरे हुओं में से जीवित किया जाएगा.” शिष्य अत्यन्त दुःखी हो गए.

मछली के मुँह में सिक्के का मिलना

24 जब वे कफ़रनहूम नगर पहुँचे, तब उन्होंने, जो मन्दिर के लिए निर्धारित कर इकट्ठा करते थे, पेतरॉस के पास आ कर पूछा, “क्या तुम्हारे गुरु निर्धारित कर नहीं देते?”

25 “देते हैं,” पेतरॉस ने उन्हें उत्तर दिया.

घर में प्रवेश करते हुए येशु ने ही पेतरॉस से प्रश्न किया, “शिमोन, मुझे यह बताओ, राजा किससे कर तथा शुल्क लेते हैं—अपनी सन्तान से या प्रजा से?” “प्रजा से,” पेतरॉस ने उत्तर दिया.

26 “अर्थात् सन्तान कर-मुक्त है”.

येशु ने पेतरॉस से कहा; 27 “फिर भी, ऐसा न हो कि वे हमसे क्रुद्ध हो जाएँ, झील में जाओ, जो पहिले मछली पकड़ में आए उसका मुख खोलना. वहाँ तुम्हें एक सिक्का प्राप्त होगा. वही सिक्का उन्हें अपनी तथा मेरी ओर से कर-स्वरूप दे देना.”

मारक 9

तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: यहाँ उपस्थित व्यक्तियों में कुछ ऐसे हैं, जो मृत्यु का स्वाद तब तक बिलकुल न चखेंगे, जब तक वे परमेश्वर के राज्य को सामर्थ्य के साथ आया हुआ न देख लें.”

मसीह येशु का रूपान्तरण

(मत्ति 17:1-13; लूकॉ 9:28-36)

छः दिन बाद मसीह येशु केवल पेतरॉस, याक़ोब तथा योहन को एक ऊँचे पर्वत पर ले गए कि उन्हें वहाँ एकान्त मिल सके. वहाँ उन्हीं के सामने मसीह येशु का रूपान्तरण हुआ. उनके वस्त्र उज्ज्वल तथा इतने अधिक सफ़ेद हो गए कि पृथ्वी पर कोई भी किसी भी रीति से इतनी उज्ज्वल सफेदी नहीं ला सकता. उन्हें वहाँ मोशेह के साथ एलियाह दिखाई दिए. वे मसीह येशु के साथ बातें कर रहे थे.

यह देख पेतरॉस बोल उठे, “रब्बी! हमारा यहाँ होना कितना सुखद है! हम यहाँ तीन मण्डप बनाएँ—एक आपके लिए, एक मोशेह के लिए तथा एक एलियाह के लिए.” पेतरॉस को यह मालूम ही न था कि वह क्या कहे जा रहे हैं—इतने अत्यधिक भयभीत हो गए थे शिष्य!

तभी एक बादल ने वहाँ अचानक प्रकट हो कर उन्हें ढ़क लिया और उसमें से निकला एक शब्द सुनाई दिया, “यह मेरा पुत्र है—मेरा परमप्रिय—जो वह कहता है, उस पर ध्यान दो!”

तभी उन्होंने देखा कि मसीह येशु के अतिरिक्त वहाँ कोई भी न था.

पर्वत से नीचे उतरते हुए मसीह येशु ने शिष्यों को सावधान किया कि जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से जीवित न हो जाए, तब तक जो उन्होंने देखा है उसकी चर्चा किसी से न करें. 10 इस घटना को उन्होंने अपने तक ही सीमित रखा. हाँ, वे इस विषय पर विचार-विमर्श अवश्य करते रहे कि मरे हुओं में से जीवित होने का मतलब क्या हो सकता है.

11 शिष्यों ने मसीह येशु से प्रश्न किया, “क्या कारण है कि शास्त्री कहते हैं कि पहले एलियाह का आना अवश्य है?”

12 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “सच है. एलियाह ही पहले आएगा तथा सब कुछ व्यवस्थित करेगा. अब यह बताओ: पवित्रशास्त्र में मनुष्य के पुत्र के विषय में यह वर्णन क्यों है कि उसे अनेक यातनाएँ दी जाएँगी तथा उसे तुच्छ समझा जाएगा? 13 सुनो! वास्तव में एलियाह आ चुके और उन्होंने उनके साथ मनमाना व्यवहार किया—ठीक जैसा कि वर्णन किया गया था.”

14 जब ये तीन लौट कर शेष शिष्यों के पास आए तो देखा कि एक बड़ी भीड़ उन शिष्यों के चारों ओर इकट्ठा है और शास्त्री वाद-विवाद किए जा रहे थे. 15 मसीह येशु को देखते ही भीड़ को आश्चर्य हुआ और वह नमस्कार करने उनकी ओर दौड़ पड़ी.

16 मसीह येशु ने शिष्यों से पूछा, “किस विषय पर उनसे वाद-विवाद कर रहे थे तुम?”

17 भीड़ में से एक व्यक्ति ने उनसे कहा, “गुरुवर, मैं अपने पुत्र को आपके पास लाया था. उसमें समाई हुई आत्मा ने उसे गूँगा बना दिया है. 18 जब यह दुष्टात्मा उस पर प्रबल होती है, उसे भूमि पर पटक देती है. उसके मुँह से फेन निकलने लगता है, वह दाँत पीसने लगता है तथा उसका शरीर ऐंठ जाता है. मैंने आपके शिष्यों से इसे निकालने की विनती की थी किन्तु वे असफल रहे.”

19 मसीह येशु ने भीड़ से कहा, “अरे अविश्वासी पीढ़ी! मैं अब और कितने समय तुम्हारे साथ हूँ? मैं कब तक तुम्हारे साथ धीरज रखूँ? यहाँ लाओ उस बालक को.”

20 लोग बालक को उनके पास ले आए. मसीह येशु पर दृष्टि पड़ते ही प्रेत ने बालक में ऐंठन उत्पन्न कर दी. वह भूमि पर गिर कर लोटने लगा और उसके मुँह से फेन आने लगा.

21 मसीह येशु ने बालक के पिता से पूछा, “यह सब कब से हो रहा है?”

“बचपन से,” उसने उत्तर दिया. 22 “इस प्रेत ने उसे हमेशा जल और आग दोनों ही में फेंक कर नाश करने की कोशिश की है. यदि आपके लिए कुछ सम्भव है, हम पर दया कर हमारी सहायता कीजिए!”

23 “यदि आपके लिए!” मसीह येशु ने कहा, “सब कुछ सम्भव है उसके लिए, जो विश्वास करता है.”

24 ऊँचे शब्द में बालक के पिता ने कहा, “मैं विश्वास करता हूँ. मेरे अविश्वास को दूर करने में मेरी सहायता कीजिए.”

25 जब मसीह येशु ने देखा कि और अधिक लोग बड़ी शीघ्रतापूर्वक वहाँ इकट्ठा होते जा रहे हैं, उन्होंने प्रेत को डांटते हुए कहा, “ओ गूंगे और बहिरे प्रेत, मेरा आदेश है कि इसमें से बाहर निकल जा और इसमें फिर कभी प्रवेश न करना.”

26 उस बालक को और भी अधिक भयावह ऐंठन में डाल कर चिल्लाते हुए वह प्रेत उसमें से निकल गया. वह बालक ऐसा हो गया मानो उसके प्राण ही निकल गए हों. कुछ तो यहाँ तक कहने लगे, “इसकी मृत्यु हो गई है.” 27 किन्तु मसीह येशु ने बालक का हाथ पकड़ उसे उठाया और वह खड़ा हो गया.

28 जब मसीह येशु ने उस घर में प्रवेश किया एकान्त पा कर शिष्यों ने उनसे पूछा, “हम प्रेत को क्यों निकाल न पाए?”

29 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “इस वर्ग को किसी अन्य उपाय द्वारा निकाला ही नहीं जा सकता—सिवाय प्रार्थना के.”[a]

30 वहाँ से निकल कर उन्होंने गलील प्रदेश का मार्ग लिया. मसीह येशु नहीं चाहते थे कि किसी को भी इस यात्रा के विषय में मालूम हो. 31 इसलिए कि मसीह येशु अपने शिष्यों को यह शिक्षा दे रहे थे, “मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथों पकड़वा दिया जाएगा. वे उसकी हत्या कर देंगे. तीन दिन बाद वह मरे हुओं में से जीवित हो जाएगा.” 32 किन्तु यह विषय शिष्यों की समझ से परे रहा तथा वे इसका अर्थ पूछने में डर भी रहे थे.

33 कफ़रनहूम नगर पहुँच कर जब उन्होंने घर में प्रवेश किया मसीह येशु ने शिष्यों से पूछा, “मार्ग में तुम किस विषय पर विचार-विमर्श कर रहे थे?” 34 शिष्य मौन बने रहे क्योंकि मार्ग में उनके विचार-विमर्श का विषय था उनमें बड़ा कौन है.

35 मसीह येशु ने बैठते हुए बारहों को अपने पास बुला कर उनसे कहा, “यदि किसी की इच्छा बड़ा बनने की है, वह छोटा हो जाए और सबका सेवक बने.”

36 उन्होंने एक बालक को उनके मध्य खड़ा किया और फिर उसे गोद में ले कर शिष्यों को सम्बोधित करते हुए कहा, 37 “जो कोई ऐसे बालक को मेरे नाम में स्वीकार करता है, मुझे स्वीकार करता है तथा जो कोई मुझे स्वीकार करता है, वह मुझे नहीं परन्तु मेरे भेजने वाले को स्वीकार करता है.”

शिष्यों द्वारा अन्य शिष्य के

मसीह येशु नाम के उपयोग पर आपत्ति

(लूकॉ 9:49, 50)

38 योहन ने मसीह येशु को सूचना दी, “गुरुवर, हमने एक व्यक्ति को आपके नाम में प्रेत निकालते हुए देखा है. हमने उसे रोकने का प्रयास किया क्योंकि वह हममें से नहीं है.”

39 “मत रोको उसे!” मसीह येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “कोई भी, जो मेरे नाम में अद्भुत-काम करता है, दूसरे ही क्षण मेरी निन्दा नहीं कर सकता 40 क्योंकि वह व्यक्ति, जो हमारे विरुद्ध नहीं है, हमारे पक्ष में ही है.

41 “यदि कोई तुम्हें एक कटोरा जल इसलिए पिलाता है कि तुम मसीह के शिष्य हो तो मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: वह अपना प्रतिफल न खोएगा.

ठोकर का कारण बनने वाले के विषय में चेतावनी

(मत्ति 18:7-9)

42 “और यदि कोई इन मासूम बालकों के, जिन्होंने मुझ पर विश्वास रखा है, पतन का कारण बने, उसके लिए सही यही होगा कि उसके गले में चक्की का पाट बान्ध उसे समुद्र में फेंक दिया जाए. 43 यदि तुम्हारा हाथ तुम्हारे लिए ठोकर का कारण बने तो उसे काट फेंको. तुम्हारे लिए सही यह होगा कि तुम एक विकलांग के रूप में जीवन में प्रवेश करो, बजाय इसके कि तुम दोनों हाथों के होते हुए नर्क में जाओ, जहाँ आग कभी नहीं बुझती, 44 जहाँ उनका कीड़ा कभी नहीं मरता, जहाँ आग कभी नहीं बुझती.[b] 45 यदि तुम्हारा पांव तुम्हारे लिए ठोकर का कारण हो जाता है उसे काट फेंको. तुम्हारे लिए सही यही होगा कि तुम लँगड़े के रूप में जीवन में प्रवेश करो, बजाय इसके कि तुम दो पाँवों के होते हुए नर्क में फेंके जाओ, 46 जहाँ उनका कीड़ा कभी नहीं मरता, जहाँ आग कभी नहीं बुझती. 47 यदि तुम्हारी आँख तुम्हारे लिए ठोकर का कारण बने तो उसे निकाल फेंको! तुम्हारे लिए सही यही होगा कि तुम एक आँख के साथ परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करो, बजाय इसके कि तुम दोनों आँखों के साथ नर्क में फेंके जाओ,

48 “‘जहाँ उनका कीड़ा कभी नहीं मरता,
    जहाँ आग कभी नहीं बुझती.’

49 हर एक व्यक्ति आग द्वारा नमकीन किया जाएगा.

50 “नमक एक आवश्यक वस्तु है, किन्तु यदि नमक अपना खारापन खो बैठे तो किस वस्तु से उसका खारापन वापस कर सकोगे? तुम स्वयं में नमक तथा आपस में मेल मिलाप बनाए रखो.”

लूकॉ 9:28-62

मसीह येशु का रूपान्तरण

(मत्ति 17:1-13; मारक 9:2-13)

28 अपनी इस बात के लगभग आठ दिन बाद मसीह येशु पेतरॉस, योहन तथा याक़ोब को साथ ले कर एक ऊँचे पर्वत शिखर पर प्रार्थना करने गए. 29 जब मसीह येशु प्रार्थना कर रहे थे, उनके मुखमण्डल का रूप बदल गया तथा उनके वस्त्र सफ़ेद और उजले हो गए. 30 दो व्यक्ति—मोशेह तथा एलियाह—उनके साथ बातें करते दिखाई दिए. 31 वे भी स्वर्गीय तेज में थे. उनकी बातों का विषय था मसीह येशु का जाना, जो येरूशालेम नगर में शीघ्र ही होने पर था. 32 पेतरॉस तथा उनके साथी अत्यन्त नींद में थे किन्तु जब वे पूरी तरह जाग गए, उन्होंने मसीह येशु को उनके स्वर्गीय तेज में उन दो व्यक्तियों के साथ देखा. 33 जब वे पुरुष मसीह येशु के पास से जाने लगे पेतरॉस मसीह येशु से बोले, “प्रभु! हमारे लिए यहाँ होना कितना अच्छा है! हम यहाँ तीन मण्डप बनाएँ: एक आपके लिए, एक मोशेह के लिए तथा एक एलियाह के लिए.” स्वयं उन्हें अपनी इन कही हुई बातों का मतलब नहीं पता था.

34 जब पेतरॉस यह कह ही रहे थे, एक बादल ने उन सब को ढ़ाँप लिया. बादल से घिर जाने पर वे भयभीत हो गए. 35 बादल में से एक आवाज़ सुनाई दी: “यह मेरा पुत्र है—मेरा चुना हुआ. इसके आदेश का पालन करो.” 36 आवाज़ का कहना समाप्त होने पर उन्होंने देखा कि मसीह येशु अकेले हैं. जो कुछ उन्होंने देखा था, उन्होंने उस समय उसका वर्णन किसी से भी न किया. वे इस विषय में मौन बने रहे.

विक्षिप्त प्रेतात्मा से पीड़ित की मुक्ति

(मत्ति 17:14-21; मारक 9:17-29)

37 अगले दिन जब वे पर्वत से नीचे आए, एक बड़ी भीड़ वहाँ इकट्ठा थी. 38 भीड़ में से एक व्यक्ति ने ऊँचे शब्द में पुकार कर कहा, “गुरुवर! आप से मेरी विनती है कि आप मेरे पुत्र को स्वस्थ कर दें क्योंकि वह मेरी इकलौती सन्तान है. 39 एक प्रेत अक्सर उस पर प्रबल हो जाता है और वह सहसा चीखने लगता है. प्रेत उसे भूमि पर पटक देता है और मेरे पुत्र को ऐंठन प्रारम्भ हो जाती है और उसके मुख से फेन निकलने लगता है. यह प्रेत कदाचित ही उसे छोड़ कर जाता है—वह उसे नाश करने पर उतारु है. 40 मैंने आपके शिष्यों से विनती की थी कि वे उसे मेरे पुत्र में से निकाल दें किन्तु वे असफल रहे.”

41 “अरे ओ अविश्वासी और बिगड़ी हुई पीढ़ी!” मसीह येशु ने कहा, “मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा, कब तक धीरज रखूंगा? यहाँ लाओ अपने पुत्र को!”

42 जब वह बालक पास आ ही रहा था, प्रेत ने उसे भूमि पर पटक दिया, जिससे उसके शरीर में ऐंठन प्रारम्भ हो गई किन्तु मसीह येशु ने प्रेत को डाँटा, बालक को स्वस्थ किया और उसे उसके पिता को सौंप दिया. 43 परमेश्वर का प्रताप देख सभी चकित रह गए.

दुःखभोग और क्रूस-मृत्यु की दूसरी घोषणा

(मत्ति 17:22, 23; मारक 9:30-32)

जब सब लोग इस घटना पर अचम्भित हो रहे थे मसीह येशु ने अपने शिष्यों से कहा, 44 “जो कुछ मैं कह रहा हूँ अत्यन्त ध्यानपूर्वक सुनो और याद रखो: मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथों पकड़वाया जाने पर है.” 45 किन्तु शिष्य इस बात का मतलब समझ न पाए. इस बात का मतलब उनसे छुपाकर रखा गया था. यही कारण था कि वे इसका मतलब समझ न पाए और उन्हें इसके विषय में मसीह येशु से पूछने का साहस भी न हुआ.

46 शिष्यों में इस विषय को ले कर विवाद छिड़ गया कि उनमें श्रेष्ठ कौन है. 47 यह जानते हुए कि शिष्य अपने मन में क्या सोच रहे हैं मसीह येशु ने एक छोटे बालक को अपने पास खड़ा करके कहा, 48 “जो कोई मेरे नाम में इस छोटे बालक को ग्रहण करता है, मुझे ग्रहण करता है, तथा जो कोई मुझे ग्रहण करता है, उन्हें ग्रहण करता है जिन्होंने मुझे भेजा है. वह, जो तुम्हारे मध्य छोटा है, वही है जो श्रेष्ठ है.”

49 योहन ने उन्हें सूचना दी, “प्रभु, हमने एक व्यक्ति को आपके नाम में प्रेत निकालते हुए देखा है. हमने उसे ऐसा करने से रोकने का प्रयत्न किया क्योंकि वह हममें से नहीं है.”

50 “मत रोको उसे!” मसीह येशु ने कहा, “क्योंकि जो तुम्हारा विरोधी नहीं, वह तुम्हारे पक्ष में है.”

शोमरोन प्रदेश का अशिष्टता से भरा नगर

51 जब मसीह येशु के स्वर्ग में उठा लिए जाने का निर्धारित समय पास आया, विचार दृढ़ करके मसीह येशु ने अपने पांव येरूशालेम नगर की ओर बढ़ा दिए. 52 उन्होंने अपने आगे सन्देशवाहक भेज दिए. वे शोमरोन प्रदेश के एक गाँव में पहुँचे कि मसीह येशु के आगमन की तैयारी करें 53 किन्तु वहाँ के निवासियों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया क्योंकि मसीह येशु येरूशालेम नगर की ओर जा रहे थे. 54 जब उनके दो शिष्यों—याक़ोब और योहन ने यह देखा तो उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “प्रभु, यदि आप आज्ञा दें तो हम प्रार्थना करें कि आकाश से इन्हें नाश करने के लिए आग की बारिश हो जाए.” 55 पीछे मुड़ कर मसीह येशु ने उन्हें डाँटा, “तुम नहीं समझ रहे कि तुम यह किस मतलब से कह रहे हो. 56 मनुष्य का पुत्र इन्सानों के विनाश के लिए नहीं परन्तु उनके उद्धार के लिए आया है” और वे दूसरे नगर की ओर बढ़ गए.

प्रेरितों के बुलाए जाने पर पीछे चलने का कठिन कार्य

(मत्ति 8:18-22)

57 मार्ग में एक व्यक्ति ने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए उनसे कहा, “आप जहाँ कहीं जाएँगे, मैं आपके साथ रहूँगा.”

58 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “लोमड़ियों के पास उनकी अपनी मांदें होती हैं और पक्षियों के पास उनके अपने घोंसले, किन्तु मनुष्य के पुत्र के लिए तो सिर रखने तक का स्थान नहीं है.”

59 एक अन्य व्यक्ति से मसीह येशु ने कहा, “आओ! मेरे पीछे हो लो.” उस व्यक्ति ने कहा, “प्रभु! पहले मैं अपने पिता के अंतिम संस्कार का इंतज़ाम कर लूँ.”

60 मसीह येशु ने उससे कहा, “मरे हुओं को अपने मृत गाड़ने दो किन्तु तुम जा कर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करो.”

61 एक अन्य व्यक्ति ने मसीह येशु से कहा, “प्रभु, मैं आपके साथ चलूँगा किन्तु पहले मैं अपने परिजनों से विदा ले लूँ.”

62 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो हल चलाने को उद्यत हो, परन्तु उसकी दृष्टि पीछे की ओर लगी हुई हो, परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं.”

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