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Chronological

Read the Bible in the chronological order in which its stories and events occurred.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
मत्तियाह 12:1-21

शिष्यों का शब्बाथ पर बालें तोड़ना

(मारक 2:23-28; लूकॉ 6:1-5)

12 शब्बाथ पर येशु और उनके शिष्य अन्न के खेतों में से हो कर जा रहे थे. उनके शिष्यों को भूख लग गई और वे बालें तोड़ कर खाने लगे. यह देख फ़रीसियों ने आपत्ति उठाई, “देख लो, तुम्हारे शिष्य वह कर रहे हैं जो शब्बाथ सम्बन्धित व्यवस्था के अनुसार गलत है.”

इस पर येशु ने उन्हें उत्तर दिया.

“क्या आप लोगों ने उस घटना के विषय में नहीं पढ़ा जिसमें भूख लगने पर दाविद और उनके साथियों ने क्या किया था? कैसे उन्होंने परमेश्वर के भवन में प्रवेश किया और दाविद और उनके साथियों ने भेंट की वह रोटी खाई, जिसे पुरोहितों के अलावा किसी का भी खाना व्यवस्था के अनुसार न था? या क्या आप लोगों ने व्यवस्था में यह नहीं पढ़ा कि मन्दिर में सेवारत याजक शब्बाथ की व्यवस्था का उल्लंघन करने पर भी निर्दोष ही रहते हैं? किन्तु मैं तुम्हें बता रहा हूँ कि यहाँ वह है, जो मन्दिर से बढ़कर है. वस्तुतः तुमने यदि इस बात का अर्थ समझा होता: ‘मैं बलि की नहीं परन्तु दया की कामना करता हूँ’, तो तुमने इन निर्दोषों पर आरोप न लगाया होता. क्योंकि मानव-पुत्र शब्बाथ का स्वामी है.”

वहाँ से चल कर येशु यहूदी-सभागृह में गए. 10 वहाँ एक व्यक्ति था, जिसका हाथ सूख चुका था. उन्होंने येशु से प्रश्न किया, “क्या शब्बाथ पर किसी को स्वस्थ करना व्यवस्था के अनुसार है?” उन्होंने यह प्रश्न इसलिए किया कि वे येशु पर आरोप लगा सकें. 11 येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुममें कौन ऐसा व्यक्ति है जिसके पास एक भेड़ है और यदि वह भेड़ शब्बाथ पर गड्ढे में गिर जाए तो वह उसे हाथ बढ़ा कर बाहर न निकाले? 12 एक भेड़ की तुलना में मनुष्य कितना अधिक कीमती है! इसलिए शब्बाथ पर किया गया भला काम व्यवस्था के अनुसार होता है.” 13 तब येशु ने उस व्यक्ति को आज्ञा दी, “अपना हाथ आगे बढ़ाओ!” उसने हाथ आगे बढ़ाया—वह हाथ दूसरे हाथ के जैसा स्वस्थ हो गया था. 14 इसलिए फ़रीसी बाहर चले गए तथा येशु की हत्या का षड्यन्त्र रचने लगे.

येशु परमेश्वर के चुने हुए सेवक

(मारक 3:7-12)

15 येशु को इसका अहसास था इसलिए वह वहाँ से चले गए. अनेक थे, जो उनके साथ उनके पीछे-पीछे चल रहे थे. येशु ने उनमें से सभी रोगियों को स्वस्थ कर दिया 16 और उन्हें चेतावनी दी कि इस विषय में वे किसी से वर्णन न करें कि वह कौन हैं. 17 यह भविष्यद्वक्ता यशायाह द्वारा की गई इस भविष्यवाणी की पूर्ति थी:

18 यही है मेरा चुना हुआ सेवक,
    मेरा प्रियपात्र,
जिसमें मेरे प्राण को पूरा सन्तोष है.
    मैं उसे अपने आत्मा से भरा करूँगा
    और वह अन्यजाति में न्याय की घोषणा करेगा.
19 वह न तो विवाद करेगा,
    न ऊँचे शब्द में कुछ कहेगा और
    न ही गलियों में कोई उसका शब्द सुन सकेगा.
20 वह तब तक कुचले गए सरकण्डे को
    तोड़ कर न फेंकेगा और न बुझते हुए दीपक को बुझाएगा,
जब तक वह न्याय को विजय तक न पहुँचा दे.
21     उसकी प्रतिष्ठा में अन्यजातियों के लिए आशा होगी.

मारक 3

सूखे हाथ के व्यक्ति को स्वास्थ्यदान

(मत्ति 12:9-14; लूकॉ 6:6-11)

मसीह येशु एक यहूदी सभागृह में थे, जहाँ एक व्यक्ति था, जिसका हाथ सूख गया था. कुछ व्यक्ति इस अवसर की ताक में थे कि शब्बाथ पर मसीह येशु उस व्यक्ति को स्वस्थ करें और वे उन पर दोष लगा सकें. मसीह येशु ने उस व्यक्ति को, जिसका हाथ सूख गया था, आज्ञा दी, “उठो! सबके सामने खड़े हो जाओ!”

तब अन्यों को सम्बोधित करते हुए मसीह येशु ने पूछा, “शब्बाथ पर क्या करना व्यवस्था के अनुसार है—भला या बुरा? जीवन की रक्षा या विनाश?” वे सब मौन बने रहे.

तब उन सब पर गुस्से से भरी दृष्टि डालते हुए उनके मन की कठोरता पर व्यथित हो कर मसीह येशु ने उस व्यक्ति से कहा, “अपना हाथ आगे बढ़ाओ.” उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया—उसका हाथ पुनस्वस्थ हो गया था. फ़रीसियों ने तुरन्त जा कर राजा हेरोदेस के समर्थकों से मसीह येशु के विरुद्ध विचार किया कि उन्हें किसी भी प्रकार नाश करें.

मसीह येशु में विशाल भीड़ की रुचि

(मत्ति 12:15-17)

मसीह येशु अपने शिष्यों के साथ झील के पास चले गए. एक विशाल भीड़, जो गलील तथा यहूदिया प्रदेश से आ कर इकठ्ठी हुई थी, उनके पीछे-पीछे चल रही थी. मसीह येशु के बड़े-बड़े कामों का वर्णन सुन कर येरूशालेम नगर, इदूमिया प्रदेश, यरदन नदी के पार के क्षेत्र तथा त्सोर और त्सीदोन से भी अनेकों-अनेक इस भीड़ में सम्मिलित हो गए थे. इस विशाल भीड़ के दबाव से बचने के उद्धेश्य से मसीह येशु ने शिष्यों को एक नाव तैयार रखने की आज्ञा दी. 10 मसीह येशु ने अनेकों को स्वास्थ्यदान दिया था इसलिए वे सभी, जो रोगी थे, मात्र उन्हें छू लेने के उद्धेश्य से उन पर गिरे पड़ रहे थे. 11 जब कभी दुष्टात्मा उनके सामने आती थी, वे उनके सामने गिर कर चिल्ला-चिल्ला कर कहती थी, “आप परमेश्वर-पुत्र हैं!” 12 किन्तु मसीह येशु ने उन्हें चेतावनी दी कि वे यह किसी से न कहें.

बारह शिष्यों का चयन

(लूकॉ 6:12-16)

13 इसके बाद मसीह येशु पर्वत पर चले गए. वहाँ उन्होंने उन्हें अपने पास बुलाया, जिन्हें उन्होंने सही समझा और वे उनके पास आए. 14 मसीह येशु ने बारह को चुना कि वे उनके साथ रहें, वह उन्हें प्रचार के लिए निकाल सकें 15 और उन्हें दुष्टात्मा निकालने का अधिकार हो. 16 मसीह येशु द्वारा चुने हुए बारह के नाम इस प्रकार हैं: शिमोन—जिन्हें उन्होंने पेतरॉस नाम दिया; 17 ज़ेबेदियॉस के पुत्र याक़ोब तथा उनके भाई योहन, जिनको उन्होंने उपनाम दिया था, बोएनेरगेस, जिसका अर्थ होता है गर्जन के पुत्र; 18 आन्द्रेयास, फ़िलिप्पॉस, बारथोलोमेयॉस, मत्तियाह, थोमॉस, हलफ़ेयॉस के पुत्र याक़ोब, थद्देइयॉस, शिमोन कनानी तथा 19 कारियोतवासी यहूदाह, जिसने मसीह येशु के साथ धोखा किया.

मसीह येशु पर शैतान का दूत होने का आरोप

(मत्ति 12:22-37; लूकॉ 11:14-28)

20 जब मसीह येशु किसी के घर में थे तो दोबारा एक बड़ी भीड़ वहाँ इकठ्ठी हो गयी—यहाँ तक कि उनके लिए भोजन करना भी असम्भव हो गया. 21 जब मसीह येशु के परिवार जनों को इसका समाचार मिला तो वे मसीह येशु को अपने संरक्षण में अपने साथ ले जाने के लिए वहाँ आ गए—उनका विचार था कि मसीह येशु अपना मानसिक सन्तुलन खो चुके हैं.

22 येरूशालेम नगर से वहाँ आए हुए शास्त्रियों का मत था कि मसीह येशु में शैतान समाया हुआ है तथा वह दुष्टात्मा के प्रधान की सहायता से दुष्टात्मा निकाला करते हैं.

23 इस पर मसीह येशु ने उन्हें अपने पास बुला कर उनसे दृष्टान्तों में कहना प्रारम्भ किया, “भला शैतान ही शैतान को कैसे निकाल सकता है? 24 यदि किसी राज्य में फूट पड़ चुकी है तो उसका अस्तित्व बना नहीं रह सकता. 25 वैसे ही यदि किसी परिवार में फूट पड़ जाए तो वह स्थायी नहीं रह सकता. 26 यदि शैतान अपने ही विरुद्ध उठ खड़ा हुआ है और वह बंट चुका है तो उसका अस्तित्व बना रहना असम्भव है—वह तो नाश हो चुका है! 27 कोई भी किसी बलवान व्यक्ति के यहाँ जबरदस्ती प्रवेश कर उसकी सम्पत्ति उस समय तक लूट नहीं सकता जब तक वह उस बलवान व्यक्ति को बान्ध न ले. तभी उसके लिए उस बलवान व्यक्ति की सम्पत्ति लूटना सम्भव होगा.

28 “मैं तुम पर एक अटूट सच प्रकट कर रहा हूँ: मनुष्य द्वारा किए गए सभी पाप और परमेश्वर की निन्दाएँ क्षमा योग्य हैं 29 किन्तु पवित्रात्मा के विरुद्ध की गई निन्दा किसी भी प्रकार क्षमा योग्य नहीं है. वह व्यक्ति अनन्त पाप का दोषी है.”

30 मसीह येशु ने यह सब इसलिए कहा था कि शास्त्रियों ने उन पर दोष लगाया था कि मसीह येशु में प्रेत समाया हुआ है.

31 तभी मसीह येशु की माता और उनके भाई वहाँ आ गए. वे बाहर ही खड़े रहे. उन्होंने सन्देश भेज कर उन्हें बाहर बुलवाया. 32 भीड़ उन्हें घेरे हुए बैठी थी. उन्होंने मसीह येशु को बताया, “वह देखिए! आपकी माता तथा आपके भाई बाहर खड़े हैं.”

33 “कौन हैं मेरी माता और कौन हैं मेरे भाई?” मसीह येशु ने पूछा.

34 तब अपनी दृष्टि अपने आस-पास बैठे भीड़ पर डालते हुए उन्होंने कहा, “ये हैं मेरी माता तथा मेरे भाई! 35 जो कोई परमेश्वर की इच्छा को पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन तथा मेरी माता.”

लूकॉ 6

शिष्यों का शब्बाथ पर बालें तोड़ना

(मत्ति 12:1-8; मारक 2:23-28)

एक शब्बाथ पर मसीह येशु अन्न के खेत से हो कर जा रहे थे. उनके शिष्यों ने बालें तोड़ कर, मसल-मसल कर खाना प्रारम्भ कर दिया. यह देख कुछ फ़रीसियों ने कहा, “आप शब्बाथ पर यह काम क्यों कर रहे हैं, जो विधानसम्मत नहीं?”

मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या आपने यह कभी नहीं पढ़ा कि भूख लगने पर दाविद और उनके साथियों ने क्या किया था? दाविद ने परमेश्वर के भवन में प्रवेश कर वह समर्पित रोटी खाई, जिसका खाना पुरोहितों के अतिरिक्त किसी अन्य के लिए विधानसम्मत न था? यही रोटी उन्होंने अपने साथियों को भी दी.” मसीह येशु ने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र शब्बाथ का प्रभु है.”

एक अन्य शब्बाथ पर मसीह येशु यहूदी सभागृह में शिक्षा देने लगे. वहाँ एक व्यक्ति था, जिसका दायाँ हाथ सूख गया था. फ़रीसी और शास्त्री इस अवसर की ताक में थे कि शब्बाथ पर मसीह येशु इस व्यक्ति को स्वस्थ करें और वह उन पर दोष लगा सकें. मसीह येशु को उनके मनों में उठ रहे विचारों का पूरा पता था. उन्होंने उस व्यक्ति को, जिसका हाथ सूखा हुआ था, आज्ञा दी, “उठो! यहाँ सबके मध्य खड़े हो जाओ.” वह उठ कर वहाँ खड़ा हो गया.

तब मसीह येशु ने फ़रीसियों और शास्त्रियों को सम्बोधित कर प्रश्न किया, “यह बताइए, शब्बाथ पर क्या करना उचित है: भलाई या बुराई? जीवन रक्षा या विनाश?”

10 उन सब पर एक दृष्टि डालते हुए मसीह येशु ने उस व्यक्ति को आज्ञा दी, “अपना हाथ बढ़ाओ!” उसने ऐसा ही किया—उसका हाथ स्वस्थ हो गया था. 11 यह देख फ़रीसी और शास्त्री क्रोध से जलने लगे. वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे कि मसीह येशु के साथ अब क्या किया जाए.

बारह शिष्यों का चयन

(मारक 3:13-19)

12 एक दिन मसीह येशु पर्वत पर प्रार्थना करने चले गए और सारी रात वह परमेश्वर से प्रार्थना करते रहे. 13 प्रातः काल उन्होंने अपने चेलों को अपने पास बुलाया और उनमें से बारह को चुनकर उन्हें प्रेरित पद प्रदान किया. 14 शिमोन, जिन्हें वह पेतरॉस नाम से पुकारते थे. उनके भाई आन्द्रेयास, याक़ोब, योहन, फ़िलिप्पॉस, बारथोलोमेयॉस 15 मत्ति, थोमॉस, हलफ़ेयॉस के पुत्र याक़ोब, राष्ट्रवादी शिमोन, 16 याक़ोब के पुत्र यहूदाह तथा कारियोतवासी यहूदाह, जिसने उनके साथ धोखा किया.

भीड़ द्वारा मसीह येशु का अनुगमन

17 मसीह येशु उनके साथ पर्वत से उतरे और आ कर एक समतल स्थल पर खड़े हो गए. येरूशालेम तथा समुद्र के किनारे के नगर त्सोर और त्सीदोन से आए लोगों तथा सुनने वालों का एक बड़ा समूह वहाँ इकट्ठा था, 18 जो उनके प्रवचन सुनने और अपने रोगों से चंगाई के उद्धेश्य से वहाँ आया था. इस समूह में वे दुष्टात्मा से पीड़ित भी सम्मिलित थे, जिन्हें मसीह येशु प्रेतमुक्त करते जा रहे थे. 19 सभी लोग उन्हें छूने का प्रयास कर रहे थे क्योंकि उनसे निकली हुई सामर्थ्य उन सभी को स्वस्थ कर रही थी.

20 अपने शिष्यों की ओर दृष्टि करते हुए मसीह येशु ने उनसे कहा:

“धन्य हो तुम सभी जो निर्धन हो,
    क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है.
21 धन्य हो तुम जो भूखे हो,
    क्योंकि तुम तृप्त किए जाओगे.
धन्य हो तुम जो इस समय रो रहे हो,
    क्योंकि तुम आनन्दित होगे.
22 धन्य हो तुम सभी जिनसे सभी मनुष्य घृणा करते हैं,
    तुम्हारा बहिष्कार करते हैं, तुम्हारी निन्दा करते हैं,
    तुम्हारे नाम को मनुष्य के पुत्र के
        कारण बुराई करनेवाला घोषित कर देते हैं.

23 “आनन्दित हो कर हर्षोल्लास में उछलो-कूदो, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा फल होगा. उनके पूर्वजों ने भी भविष्यद्वक्ताओं को इसी प्रकार सताया था.

24 “धिक्कार है तुम पर! तुम,
    जो धनी हो! तुम अपने सारे सुख भोग चुके!
25 धिक्कार है तुम पर! तुम,
    जो अब तृप्त हो क्योंकि तुम्हारे लिए भूखा रहना निर्धारित है.
धिक्कार है तुम पर! तुम,
    जो इस समय हँस रहे हो क्योंकि तुम शोक तथा विलाप करोगे.
26 धिक्कार है तुम पर! जब सब मनुष्य तुम्हारी प्रशंसा करते हैं
    क्योंकि उनके पूर्वज झूठे भविष्यद्वक्ताओं के साथ यही किया करते थे.”

शत्रुओं से प्रेम करने की शिक्षा

(मत्ति 5:43-48)

27 “किन्तु तुम, जो इस समय मेरे प्रवचन सुन रहे हो, अपने शत्रुओं से प्रेम करो तथा उनके साथ भलाई, जो तुमसे घृणा करते हैं. 28 जो तुम्हें शाप देते हैं उनके लिए भलाई की कामना करो और जो तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करें उनके लिए प्रार्थना. 29 यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर प्रहार करे उसकी ओर दूसरा भी फेर दो. यदि कोई तुम्हारी चादर लेना चाहे तो उसे अपना कुर्ता भी देने में संकोच न करो. 30 जब भी कोई तुमसे कुछ माँगे तो उसे अवश्य दो और यदि कोई तुम्हारी कोई वस्तु ले ले तो उसे वापस न माँगो 31 अन्यों के साथ तुम्हारा व्यवहार ठीक वैसा ही हो जैसे व्यवहार की आशा तुम उनसे अपने लिए करते हो.

32 “यदि तुम उन्हीं से प्रेम करते हो, जो तुमसे प्रेम करते हैं तो इसमें तुम्हारी क्या प्रशंसा? क्योंकि दुर्जन भी तो यही करते हैं. 33 वैसे ही यदि तुम उन्हीं के साथ भलाई करते हो, जिन्होंने तुम्हारे साथ भलाई की है, तो इसमें तुम्हारी क्या प्रशंसा? क्योंकि दुर्जन भी तो यही करते हैं. 34 और यदि तुम उन्हीं को कर्ज़ देते हो, जिनसे राशि वापस प्राप्त करने की आशा होती है तो तुमने कौन सा प्रशंसनीय काम कर दिखाया? ऐसा तो परमेश्वर से दूर रहनेवाले लोग भी करते हैं—इस आशा में कि उनकी सारी राशि उन्हें लौटा दी जाएगी. 35 सही तो यह है कि तुम अपने शत्रुओं से प्रेम करो, उनका उपकार करो और कुछ भी वापस प्राप्त करने की आशा किए बिना उन्हें कर्ज़ दे दो. तब तुम्हारा ईनाम असाधारण होगा और तुम परमप्रधान की सन्तान ठहराए जाओगे क्योंकि वह उनके प्रति भी कृपालु हैं, जो उपकार नही मानते और बुरे हैं. 36 कृपालु बनो, ठीक वैसे ही, जैसे तुम्हारे पिता कृपालु हैं.

अन्यों पर दोष न लगाने की शिक्षा

(मत्ति 7:1-6)

37 “किसी का न्याय मत करो तो तुम्हारा भी न्याय नहीं किया जाएगा. किसी पर दोष मत लगाओ तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा. क्षमा करो तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा. 38 उदारतापूर्वक दो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा—पूरा नाप दबा-दबा कर और हिला-हिला कर बाहर निकलता हुआ तुम्हारी झोली में उंडेल (यानी अत्यन्त उदारतापूर्वक) देंगे. देने के तुम्हारे नाप के अनुसार ही तुम प्राप्त करोगे.”

39 मसीह येशु ने उन्हें इस दृष्टान्त के द्वारा भी शिक्षा दी.

“क्या कोई अंधा दूसरे अंधे का मार्गदर्शन कर सकता है? क्या वे दोनों ही गड्ढे में न गिरेंगे? 40 विद्यार्थी अपने शिक्षक से बढ़कर नहीं है परन्तु हर एक, जिसने शिक्षा पूरी कर ली है, वह अपने शिक्षक के समान होगा.

41 “तुम अपने भाई के आँख में उस बुरादे के तिनके को क्यों देख रहे हो जबकि अपने आँख में पड़े लट्ठे का तुम्हें ज्ञान ही नहीं? 42 तुम अपने भाई से यह कैसे कह सकते हो, ‘भाई आओ, मैं तुम्हारी आँख में से बुरादे का तिनका निकाल दूँ’ जबकि स्वयं तुमको अपनी आँख में पड़ा लट्ठा दिखाई नहीं देता? अरे पाखण्डी! पहले अपनी आँख में से लट्ठा तो निकाल! तभी तुझे अपने भाई की आँख में से बुरादे का तिनका निकालने के लिए साफ़ दृष्टि मिल सकेगी.”

फलदायी जीवन के विषय में शिक्षा

(मत्ति 7:15-20)

43 “कोई भी अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं लाता और न बुरा पेड़ अच्छा फल. 44 हर एक पेड़ उसके अपने फलों के द्वारा पहचाना जाता है. कंटीले वृक्षों में से लोग अंजीर या कंटीली झाड़ियों में से अंगूर इकट्ठा नहीं किया करते. 45 भला व्यक्ति अपने हृदय में एकत्रित भलाई में से भलाई ही प्रस्तुत करता है, वैसे ही बुरा मनुष्य अपने हृदय में एकत्रित बुरे विचारों में से बुराई ही निकालता है क्योंकि उसका मुख उसके हृदय के अंदर की वस्तुओं में से ही निकालता है.”

दो भवन-निर्माण

(मत्ति 7:21-29)

46 “तुम लोग मुझे, प्रभु-प्रभु कह कर क्यों पुकारते हो जबकि मेरी आज्ञाओं का पालन ही नहीं करते? 47 मैं तुम्हें बताऊँगा कि वह व्यक्ति किस प्रकार का है, जो मेरे पास आता है, मेरे सन्देश को सुनता तथा उसका पालन करता है: 48 वह उस घर बनानेवाले के जैसा है, जिसने गहरी खुदाई करके चट्टान पर नींव डाली. मूसलाधार बारिश के तेज बहाव ने उस घर पर ठोकरें मारी किन्तु उसे हिला न पाया क्योंकि वह घर मजबूत था. 49 वह व्यक्ति, जो मेरे सन्देश को सुनता है किन्तु उसका पालन नहीं करता, उस व्यक्ति के समान है, जिसने भूमि पर बिना नींव के घर बनाया और जिस क्षण उस पर तेज बहाव ने ठोकरें मारी, वह ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया.”

Saral Hindi Bible (SHB)

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