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Chronological

Read the Bible in the chronological order in which its stories and events occurred.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
मत्तियाह 8:14-34

पेतरॉस की सास की चंगाई

(मारक 1:29-34; लूकॉ 4:38-41)

14 जब येशु पेतरॉस के घर पर आए, उन्होंने उनकी सास को बुखार से पीड़ित पाया. 15 उन्होंने उनके हाथ का स्पर्श किया और वह बुखार से मुक्त हो गईं और उठ कर उन सबकी सेवा करने में जुट गईं.

16 जब सन्ध्या हुई तब लोग प्रेतात्मा से पीड़ित लोगों को उनके पास लाने लगे और येशु अपने वचन मात्र से उन्हें प्रेत मुक्त करते गए, साथ ही रोगियों को स्वस्थ. 17 यह भविष्यद्वक्ता यशायाह द्वारा की गई इस भविष्यवाणी की पूर्ति थी:

“उन्होंने स्वयं हमारी दुर्बलताओं को
    अपने ऊपर ले लिया तथा हमारे रोगों को उठा लिया.”

प्रेरिताई की बुलाहट पर अनुसरण की कठिनाई

(लूकॉ 9:51-62)

18 अपने आसपास भीड़ को देख येशु ने शिष्यों को झील की दूसरी ओर जाने की आज्ञा दी. 19 उसी समय एक शास्त्री ने आ कर येशु से विनती की, “गुरुवर, आप जहाँ भी जाएँ, मैं आपके साथ चलूँगा.”

20 येशु ने उसके उत्तर में कहा, “लोमड़ियों के पास उनकी गुफाएं तथा पक्षियों के पास उनके बसेरे होते हैं किन्तु मनुष्य के पुत्र के पास तो सिर रखने तक का स्थान नहीं है!”

21 एक अन्य शिष्य ने उनसे विनती की, “प्रभु, मुझे अपने पिता का अन्तिम संस्कार तक परिचर्या करने की अनुमति दे दीजिए.”[a]

22 किन्तु येशु ने उससे कहा, “मृत अपने मरे हुओं का प्रबन्ध कर लेंगे,[b] तुम मेरे पीछे हो लो.”

बवण्डर का शमन

(मारक 4:35-41; लूकॉ 8:22-25)

23 जब उन्होंने नाव में प्रवेश किया उनके शिष्य भी उनके साथ हो लिए. 24 अचानक झील में ऐसा प्रचण्ड बवण्डर उठा कि लहरों ने नाव को ढ़ांक लिया किन्तु येशु इस समय सो रहे थे. 25 इस पर शिष्यों ने येशु के पास जा कर उन्हें जगाते हुए कहा, “प्रभु, हमारी रक्षा कीजिए, हम नाश हुए जा रहे हैं!”

26 येशु ने उनसे कहा, “क्यों डर रहे हो, अल्पविश्वासियो!” वह उठे और उन्होंने बवण्डर और झील को डाँटा और उसी क्षण ही पूरी शान्ति छा गई.

27 शिष्य हैरान रह गए और विचार करने लगे, “ये किस प्रकार के व्यक्ति हैं कि बवण्डर और झील तक इनकी आज्ञा का पालन करते हैं!”

प्रेतों को सूअरों के झुण्ड में भेजना

(मारक 5:1-20; लूकॉ 8:26-39)

28 झील पार कर वे गदारा नामक अंचल (प्रदेश) में आए. वहाँ क़ब्रों की गुफाओं से निकल कर दो प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति उनके सामने आ गए. वे दोनों इतने अधिक हिंसक थे कि कोई भी उस ओर से निकल नहीं पाता था. 29 येशु को देख वे दोनों चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगे, “परमेश्वर-पुत्र, आपका हमसे क्या लेना-देना? क्या आप समय से पहले ही हमें दुःख देने आ पहुँचे हैं?”

30 वहाँ कुछ दूर सूअरों का एक झुण्ड चर रहा था. 31 प्रेत येशु से विनती करने लगे, “यदि आप हमें बाहर निकाल ही रहे हैं तो हमें इन सूअरों के झुण्ड में भेज दीजिए.”

32 येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “जाओ!” वे निकल कर सूअरों में प्रवेश कर गए और पूरा झुण्ड ढलान पर सरपट भागता हुआ झील में जा गिरा और डूब गया. 33 रखवाले भागे और नगर में जा कर घटना का सारा हाल कह सुनाया; साथ ही यह भी कि उन प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्तियों के साथ क्या-क्या हुआ. 34 सभी नागरिक नगर से निकल कर येशु के पास आने लगे. जब उन्होंने येशु को देखा तो उनसे विनती करने लगे कि वह उस क्षेत्र की सीमा से बाहर चले जाएँ.

मारक 4-5

बीज और भूमि का दृष्टान्त

(मत्ति 13:1-9; लूकॉ 8:4-8)

एक बार फिर मसीह येशु ने झील तट पर शिक्षा देना प्रारम्भ किया. ऐसी बड़ी भीड़ उनके आस-पास इकठ्ठी हो गयी कि उन्हें झील तट पर लगी एक नाव में जा कर बैठना पड़ा और भीड़ झील तट पर खड़ी रही. वह अनेक विषयों को दृष्टान्तों के माध्यम से स्पष्ट करने लगे. शिक्षा देते हुए उन्होंने कहा, “ध्यानपूर्वक सुनो: एक बीज बोने वाले ने बीज बोना शुरू किया. इस प्रक्रिया में कुछ बीज मार्ग के किनारे जा गिरे जिन्हें पक्षियों ने आ कर चुग लिया. कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे. वहाँ मिट्टी काफी न थी. वे जल्द ही अंकुरित हो गए क्योंकि मिट्टी गहरी न थी. सूर्य निकलने पर उसकी गर्मी में वे झुलस गए तथा जड़ न पकड़ने के कारण मुरझा गए. कुछ अन्य बीज कँटीली झाड़ियों में गिरे और कँटीली झाड़ियों ने उन्हें दबा दिया और उनसे कोई फल उत्पन्न न हुआ. कुछ अन्य बीज अच्छी भूमि पर जा गिरे, अंकुरित हो बड़े हुए तथा उनमें तीस गुणा, साठ गुणा तथा सौ गुणा फसल हुई.”

मसीह येशु ने आगे कहा, “जिस किसी के सुनने के कान हों, वह सुन ले.”

10 जैसे ही शिष्यों और अन्य साथियों ने मसीह येशु को अकेला पाया, उन्होंने मसीह येशु से दृष्टान्तों के विषय में पूछा. 11 मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम्हें तो परमेश्वर के राज्य का भेद सौंपा गया है किन्तु अन्यों को सब कुछ दृष्टान्तों के माध्यम से समझाया जाता है 12 क्योंकि,

“वे देखते तो हैं किन्तु उन्हें कुछ दिखता नहीं,
    वे सुनते तो हैं किन्तु कुछ समझ नहीं पाते ऐसा न हो वे मेरे पास लौट आते और क्षमा प्राप्त कर लेते!”

13 तब मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “क्या यह दृष्टान्त तुम्हारी समझ में नहीं आया? तब तुम अन्य सब दृष्टान्तों का अर्थ कैसे समझोगे? 14 बीज बोने वाला परमेश्वर के सुसमाचार को बोता है. 15 मार्ग के किनारे की भूमि वे लोग हैं, जिनमें सुसमाचार बोया तो जाता है किन्तु जैसे ही वे उसे सुनते हैं शैतान आ कर उस बोये हुए सुसमाचार को उठा ले जाता है. 16 इसी प्रकार पथरीली भूमि वे लोग हैं, जिनमें सुसमाचार बोया जाता है और वे इसे तुरन्त खुशी से अपना लेते हैं. 17 उनमें स्थायी जड़ें तो होती नहीं इसलिए जब सुसमाचार के कारण उन पर कष्ट और अत्याचारों का प्रहार होता है, वे शीघ्र ही पीछे हट जाते हैं. 18 अन्य लोग उस भूमि के समान हैं, जहाँ सुसमाचार काँटों के बीच बोया जाता है. वे सुसमाचार को सुनते हैं, 19 संसार की चिन्ताएँ, धन-सम्पत्ति का छलावा तथा अन्य वस्तुओं की लालसाओं का प्रवेश उस सुसमाचार को दबा देता है, जिससे उसका फलदाई होना असम्भव हो जाता है. 20 अन्य लोग उस बीज के समान हैं, जो उत्तम भूमि में बोया जाता है. वे सुसमाचार सुनते हैं, उसे ग्रहण करते हैं तथा उनमें फल आता है—तीस गुणा, साठ गुणा तथा सौ गुणा.”

दीपक का दृष्टान्त

21 मसीह येशु ने आगे कहा, “दीपक को इसलिए नहीं जलाया जाता कि उसे टोकरी या चारपाई के नीचे रख दिया जाए. क्या उसे दीवट पर नहीं रखा जाता? 22 ऐसा कुछ भी नहीं, जो छुपा है और खोला न जाएगा और न कुछ गुप्त है, जो प्रकाश में न लाया जाएगा. 23 जिस किसी के सुनने के कान हों, वह सुन ले.”

24 इसके बाद मसीह येशु ने कहा, “इसका विशेष ध्यान रखो कि तुम क्या सुनते हो. तुम्हारा नापना उसी नाप से किया जाएगा जिसका इस्तेमाल स्वयं तुम करते हो—तुम्हें ज़रूर इससे भी अधिक दिया जाएगा. 25 जिसके पास है उसे और भी अधिक दिया जाएगा; जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है.”

विकसित होते बीज का दृष्टान्त

26 मसीह येशु ने आगे कहा, “परमेश्वर का राज्य उस व्यक्ति के समान है, जिसने भूमि पर बीज डाल दिया 27 और रात में जा कर सो गया. प्रातः उठ कर उसने देखा कि बीज अंकुरित हो कर बड़ा हो रहा है. कैसी होती है यह प्रक्रिया, यह वह स्वयं नहीं जानता. 28 भूमि स्वयं उपज उत्पन्न करती है. सबसे पहले आती हैं पत्तियाँ, फिर बालें उसके बाद बालों में दाना. 29 दाना पड़ने पर वह उसे बिना देरी किए काट लेता है क्योंकि उपज तैयार है.”

राई के बीज का दृष्टान्त

(मत्ति 13:31, 32)

30 तब मसीह येशु ने आगे कहा, “परमेश्वर के राज्य की तुलना किससे की जा सकती है? किस दृष्टान्त के द्वारा इसे स्पष्ट किया जा सकता है? 31 यह राई के बीज के समान है. जब यह भूमि में बोया जाता है, यह बोये गए अन्य सभी बीजों की तुलना में छोटा होता है 32 फिर भी बोये जाने पर यह बड़ा होना शुरू कर देता है तथा खेत के सभी पौधों से अधिक बड़ा हो जाता है—इतना कि आकाश के पक्षी उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं.”

33 सुनने वालों की समझ के अनुसार मसीह येशु इसी प्रकार के दृष्टान्तों के द्वारा अपना सुसमाचार प्रस्तुत करते थे; 34 बिना दृष्टान्त के वह उनसे कुछ भी नहीं कहते थे, और वह अपने शिष्यों के लिए इनका अर्थ तभी बताया करते थे, जब शिष्य उनके साथ अकेले होते थे.

बवण्डर को शान्त करना

(मत्ति 8:23-27; लूकॉ 8:22-25)

35 उसी दिन शाम के समय में मसीह येशु ने शिष्यों से कहा, “चलो, उस पार चलें.” 36 भीड़ को वहीं छोड़, उन्होंने मसीह येशु को, वह जैसे थे वैसे ही, अपने साथ नाव में ले तुरन्त चल दिए. कुछ अन्य नावें भी उनके साथ हो लीं. 37 उसी समय हवा बहुत तेज़ी से चलने लगी. तेज़ लहरों के थपेड़ों के कारण नाव में पानी भरने लगा. 38 मसीह येशु नाव के पिछले भाग में तकिया लगाए हुए सो रहे थे. उन्हें जगाते हुए शिष्य बोले, “गुरुवर! आपको हमारी चिन्ता ही नहीं कि हम नाश हुए जा रहे हैं!”

39 मसीह येशु जाग गए. उन्होंने बवण्डर को डाँटा तथा लहरों को आज्ञा दी, “शान्त हो जाओ! स्थिर हो जाओ!” बवण्डर शान्त हो गया तथा पूरी शान्ति छा गई.

40 मसीह येशु शिष्यों को देखकर बोले, “क्यों इतने भयभीत हो तुम? क्या कारण है कि तुममें अब तक विश्वास नहीं?”

41 शिष्य अत्यन्त भयभीत थे. वे आपस में कहने लगे, “कौन है यह कि बवण्डर और झील[a] तक इनका आज्ञापालन करते हैं!”

गिरासेनॉस का प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति

तब वे झील के दूसरे तट पर गिरासेनॉस क्षेत्र में आए. मसीह येशु के नाव से नीचे उतरते ही एक मनुष्य जिसमें अशुद्ध आत्मा थी क़ब्र से निकल कर उनके पास आया. वह क़ब्रों के मध्य ही रहा करता था. अब कोई भी उसे साँकलों तथा बेड़ियों से भी बान्ध पाने में समर्थ न था. बहुधा उसे बेड़ियों तथा साँकलों में बांधे जाने के प्रयास किए गए किन्तु वह साँकलों को तोड़ देता तथा बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर डालता था. अब किसी में इतनी क्षमता न थी कि उसे वश में कर सके. रात-दिन क़ब्रों के मध्य तथा पहाड़ियों में वह चिल्लाता रहता था तथा स्वयं को पत्थर मार-मार कर घायल कर लेता था.

दूर से ही जब उसने मसीह येशु को देखा, वह दौड़ कर उनके पास आया, अपना सिर झुकाया और उसमें से उँची आवाज़ में ये शब्द सुनाई दिए, “परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र येशु! मेरा आपका कोई लेन-देन नहीं. आपको परमेश्वर की शपथ, मुझे कोई कष्ट न दें,” क्योंकि मसीह येशु उसे आज्ञा दे चुके थे, “ओ दुष्टात्मा, इस मनुष्य में से निकल आ!”

तब मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “क्या नाम है तेरा?”

प्रेत ने उत्तर दिया, “सेना—क्योंकि हम बहुत हैं.” 10 प्रेत मसीह येशु से विनती करने लगा कि वह उसे उस प्रदेश से बाहर न भेजें.

11 वहीं पहाड़ी पर सूअरों का एक विशाल झुण्ड चर रहा था. 12 प्रेत-समूह ने मसीह येशु से विनती की, “हमें इन सूअरों में भेज दीजिए कि हम उनमें जा बसें.” 13 मसीह येशु ने उन्हें यह आज्ञा दे दी. वे प्रेत बाहर निकल कर उन सूअरों में प्रवेश कर गए. लगभग दो हज़ार सूअरों का वह झुण्ड पहाड़ की तीव्र ढलान पर तेज़ गति से दौड़ता हुआ झील में जा डूबा.

14 भयभीत रखवाले भाग गए तथा नगर और पास के क्षेत्रों में जा कर इस घटना के विषय में बताने लगे. नगरवासी, जो कुछ हुआ था, उसे देखने वहाँ आने लगे. 15 जब वे मसीह येशु के पास पहुँचे, उन्होंने देखा कि वह प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति वस्त्र धारण किए हुए सचेत स्थिति में वहाँ बैठा था. यह वही व्यक्ति था जिसमें प्रेतों की सेना पैठी थी. यह देख वे डर गए. 16 सारे घटनाक्रम को देखने वाले लोगों ने उनके सामने इसका बयान किया कि प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति तथा सूअरों के साथ क्या-क्या हुआ है. 17 इस पर वे मसीह येशु से विनती करने लगे कि वह उनके क्षेत्र से बाहर चले जाएँ.

18 जब मसीह येशु नाव पर सवार हो रहे थे, प्रेतों से विमुक्त हुआ व्यक्ति मसीह येशु से विनती करने लगा कि उसे उनके साथ ले लिया जाए. 19 मसीह येशु ने उसे इसकी अनुमति नहीं दी परन्तु उसे आदेश दिया, “अपने परिजनों के पास लौट जाओ और उन्हें बताओ कि तुम्हारे लिए प्रभु ने कैसे-कैसे आश्चर्यकाम किए हैं तथा तुम पर उनकी कैसी कृपादृष्टि हुई है.” 20 वह देकापोलीस नगर में गया और उन कामों का वर्णन करने लगा, जो मसीह येशु ने उसके लिए किए थे. यह सुन सभी चकित रह गए.

तथा मरी हुई लड़की का जी उठना

(मत्ति 9:18-26; लूकॉ 8:40-56)

21 मसीह येशु दोबारा झील के दूसरे तट पर चले गए. एक बड़ी भीड़ उनके पास इकट्ठी हो गयी. मसीह येशु झील तट पर ही रहे. 22 स्थानीय यहूदी सभागृह का एक अधिकारी, जिसका नाम याइरॉस था, वहाँ आया. यह देख कि वह कौन हैं, वह उनके चरणों पर गिर पड़ा. 23 बड़ी ही विनती के साथ उसने मसीह येशु से कहा, “मेरी बेटी मरने पर है. कृपया चलिए और उस पर हाथ रख दीजिए कि वह स्वस्थ हो जाए और जीवित रहे.” 24 मसीह येशु उसके साथ चले गए.

बड़ी भीड़ भी उनके पीछे-पीछे चल रही थी और लोग उन पर गिरे पड़ रहे थे.

25 एक स्त्री बारह वर्ष से रक्तस्राव से पीड़ित थी. 26 अनेक चिकित्सकों के हाथों उसने अनेक पीड़ाएं सही थीं. इसमें वह अपना सब कुछ व्यय कर चुकी थी फिर भी इससे उसे लाभ के बदले हानि ही उठानी पड़ी थी. 27 मसीह येशु के विषय में सुन कर उसने भीड़ में उनके पीछे आ कर उनका वस्त्र छुआ. 28 उसका यह विश्वास था: “यदि मैं उनके वस्त्र को छू भर लूँ तो मैं स्वस्थ हो जाऊँगी.” 29 उसी क्षण उसका रक्तस्राव थम गया. स्वयं उसे अपने शरीर में यह मालूम हो गया कि वह अपनी पीड़ा से ठीक हो चुकी है.

30 उसी क्षण मसीह येशु को भी यह आभास हुआ कि उनमें से सामर्थ्य निकली है. भीड़ में ही उन्होंने मुड़ कर प्रश्न किया, “कौन है वह, जिसने मेरे वस्त्र को छुआ है?”

31 शिष्यों ने उनसे कहा, “आप तो देख ही रहे हैं कि किस प्रकार भीड़ आप पर गिरी पड़ रही है और आप प्रश्न कर रहे हैं, ‘कौन है वह, जिसने मेरे वस्त्र को छुआ है’!”

32 प्रभु की दृष्टि उसे खोजने लगी, जिसने यह किया था. 33 वह स्त्री यह जानते हुए कि उसके साथ क्या हुआ है, भय से काँपती हुई उनके चरणों पर आ गिरी और उन पर सारी सच्चाई प्रकट कर दी. 34 मसीह येशु ने उस स्त्री से कहा, “पुत्री, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया है. शान्ति में विदा हो जाओ और स्वस्थ रहो.”

35 जब मसीह येशु यह कह ही रहे थे, याइरॉस के घर से आए कुछ लोगों ने यह सूचना दी, “आपकी पुत्री की मृत्यु हो चुकी है. अब गुरुवर को कष्ट देने का क्या लाभ?”

36 मसीह येशु ने यह सुन उस यहूदी सभागृह अधिकारी से कहा, “भयभीत न हो—केवल विश्वास करो.”

37 उन्होंने पेतरॉस, याक़ोब तथा याक़ोब के भाई योहन के अतिरिक्त अन्य किसी को भी अपने साथ आने की अनुमति न दी 38 और ये सब यहूदी सभागृह अधिकारी के घर पर पहुँचे. मसीह येशु ने देखा कि वहाँ शोर मचा हुआ है तथा लोग ऊँची आवाज़ में रो-पीट रहे हैं. 39 घर में प्रवेश कर मसीह येशु ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा, “यह शोर और रोना-पीटना क्यों! बच्ची की मृत्यु नहीं हुई है—वह केवल सो रही है.” 40 यह सुन वे मसीह येशु का ठठ्ठा करने लगे, किन्तु मसीह येशु ने उन सभी को वहाँ से बाहर निकाल बच्ची के पिता तथा अपने साथियों को साथ ले उस कक्ष में प्रवेश किया, जहाँ वह बालिका थी.

41 वहाँ उन्होंने बालिका का हाथ पकड़ कर उससे कहा, “तालीथा कोऊम” अर्थात् बालिके, उठो! 42 उसी क्षण वह उठ खड़ी हुई और चलने-फिरने लगी. इस पर वे सभी चकित रह गए. बालिका की आयु बारह वर्ष थी. 43 मसीह येशु ने उन्हें स्पष्ट आदेश दिए कि इस घटना के विषय में कोई भी जानने न पाए और फिर उनसे कहा कि उस बालिका को खाने के लिए कुछ दिया जाए.

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