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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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2 कोरिन्थॉस 12:1-10

पौलॉस का ईश्वरीय दर्शन तथा उनका काँटा

12 अपनी बड़ाई करना मेरे लिए ज़रूरी हो गया है—हालांकि इसमें कोई भी लाभ नहीं है—इसलिए मैं प्रभु के द्वारा दिए गए दर्शनों तथा दिव्य प्रकाशनों के वर्णन की ओर बढ़ रहा हूँ. मैं एक ऐसे व्यक्ति को, जो मसीह का विश्वासी है, जानता हूँ. चौदह वर्ष पहले यह व्यक्ति तीसरे स्वर्ग तक उठा लिया गया—शरीर के साथ या बिना शरीर के, मुझे मालूम नहीं—यह परमेश्वर ही जानते हैं. मैं जानता हूँ कैसे यही व्यक्ति—शरीर के साथ या बिना शरीर के, मुझे मालूम नहीं—यह परमेश्वर ही जानते हैं; स्वर्ग में उठा लिया गया. वहाँ उसने वे अवर्णनीय वचन सुने, जिनका वर्णन करना किसी भी मनुष्य के लिए संभव नहीं है. इसी व्यक्ति की ओर से मैं घमण्ड़ करूँगा—स्वयं अपने विषय में नहीं—सिवाय अपनी कमज़ोरियों के. वैसे भी यदि मैं अपनी बड़ाई करने ही लगूँ तो इसे मेरी मूर्खता नहीं माना जा सकेगा क्योंकि वह सत्य वर्णन होगा. किन्तु मैं यह भी नहीं करूँगा कि कोई भी मेरे स्वभाव, मेरे वर्णन से प्रभावित हो मुझे मेरे कथन अथवा करनी से अधिक श्रेय देने लगे.

मेरे अद्भुत प्रकाशनों की श्रेष्ठता के कारण मुझे अपनी बड़ाई करने से रोकने के उद्धेश्य से मेरे शरीर में एक काँटा लगाया गया है—मुझे कष्ट देते रहने के लिए शैतान का एक अपदूत—कि मैं अपनी बड़ाई न करूँ. इसके उपाय के लिए मैंने तीन बार प्रभु से गिड़गिड़ाकर विनती की. प्रभु का उत्तर था: “कमज़ोरी में मेरा सामर्थ्य सिद्ध हो जाता है इसलिए तुम्हारे लिए मेरा अनुग्रह ही काफी है.” इसके प्रकाश में मैं बड़े हर्ष के साथ अपनी कमज़ोरियों के विषय में घमण्ड़ करूँगा कि मेरे द्वारा प्रभु का सामर्थ्य सक्रिय हो जाए. 10 मसीह के लिए मैं कमज़ोरियों, अपमानों, कष्टों, सताहटों तथा कठिनाइयों में पूरी तरह सन्तुष्ट हूँ क्योंकि जब कभी मैं दुर्बल होता हूँ, तभी मैं बलवन्त होता हूँ.

लूकॉ 19:28-40

विजयोल्लास में येरूशालेम प्रवेश

(मत्ति 21:1-11; मारक 11:1-11; योहन 12:12-19)

28 इसके बाद मसीह येशु उनके आगे-आगे चलते हुए येरूशालेम नगर की ओर बढ़ गए. 29 जब मसीह येशु ज़ैतून नामक पर्वत पर बसे गाँव बैथफ़गे तथा बैथनियाह पहुँचे, उन्होंने अपने दो शिष्यों को इस आज्ञा के साथ आगे भेज दिया, 30 “सामने उस गाँव में जाओ. वहाँ प्रवेश करते ही तुम्हें गधे का एक बच्चा बंधा हुआ मिलेगा, जिसकी अब तक किसी ने सवारी नहीं की है उसे खोल कर यहाँ ले आओ. 31 यदि कोई तुमसे यह प्रश्न करे, ‘क्यों खोल रहे हो इसे?’ तो उसे उत्तर देना, ‘प्रभु को इसकी ज़रूरत है.’”

32 जिन्हें इसके लिए भेजा गया था, उन्होंने ठीक वैसा ही पाया, जैसा उन्हें सूचित किया गया था. 33 जब वे उस बच्चे को खोल ही रहे थे, उसके स्वामियों ने उनसे पूछा, “क्यों खोल रहे हो इसे?”

34 उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु को इसकी ज़रूरत है.”

35 वे उसे प्रभु के पास ले आए और उस पर अपने वस्त्र डाल कर मसीह येशु को उस पर बैठा दिया. 36 जब प्रभु जा रहे थे, लोगों ने अपने बाहरी वस्त्र मार्ग पर बिछा दिए.

37 जब वे उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ ज़ैतून पर्वत का ढाल प्रारम्भ होता है, सारी भीड़ उन सभी अद्भुत कामों को याद करते हुए, जो उन्होंने देखे थे, ऊँचे शब्द में आनन्दपूर्वक परमेश्वर की स्तुति करने लगी:

38 “स्तुति के योग्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम में आ रहा है!
स्वर्ग में शान्ति और सर्वोच्च में महिमा हो!”

39 भीड़ में से कुछ फ़रीसियों ने, आपत्ति उठाते हुए मसीह येशु से कहा, “गुरु, अपने शिष्यों को डांटिए!”

40 “मैं आपको यह बताना चाहता हूँ,” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यदि ये शान्त हो गए तो स्तुति इन पत्थरों से निकलने लगेगी.”

Saral Hindi Bible (SHB)

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