Book of Common Prayer
विश्वास में गिरने का जोखिम
6 इसलिए हम सिद्धता को अपना लक्ष्य बना लें, मसीह सम्बन्धित प्रारम्भिक शिक्षाओं से ऊपर उठकर परिपक्वता की ओर बढ़ें. नींव दोबारा न रखें, जो व्यर्थ की प्रथाओं से मन फिराना और परमेश्वर के प्रति विश्वास, 2 बपतिस्माओं के विषय, सिर पर हाथ रखने, मरे हुओं के जी उठने तथा अनन्त दण्ड के विषय है. 3 यदि परमेश्वर हमें आज्ञा दें तो हम ऐसा ही करेंगे.
4 जिन्होंने किसी समय सच के ज्ञान की ज्योति प्राप्त कर ली थी, जिन्होंने स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख लिया था, जो पवित्रात्मा के सहभागी हो गए थे, 5 तथा जो परमेश्वर के उत्तम वचन के, और आने वाले युग की सामर्थ का स्वाद चख लेने के बाद भी 6 परमेश्वर से दूर हो गए, उन्हें दोबारा पश्चाताप की ओर ले आना असम्भव है क्योंकि वे परमेश्वर-पुत्र को अपने लिए दोबारा क्रूस पर चढ़ाने तथा सार्वजनिक रूप से उनका ठठ्ठा करने में शामिल हो जाते हैं.
7 वह भूमि, जो वृष्टि के जल को सोख कर किसान के लिए उपयोगी उपज उत्पन्न करती है, परमेश्वर की ओर से आशीष पाती है. 8 किन्तु वही भूमि यदि कांटा और ऊंटकटारे उत्पन्न करती है तो वह किसी काम की नहीं है तथा शापित होने पर है—आग में जलाया जाना ही उसका अन्त है.
9 प्रियो, हालांकि हमने तुम्हारे सामने इस विषय को इस रीति से स्पष्ट किया है; फिर भी हम तुम्हारे लिए इससे अच्छी वस्तुओं तथा उद्धार से सम्बंधित आशीषों के प्रति आश्वस्त हैं. 10 परमेश्वर अन्यायी नहीं हैं कि उनके सम्मान के लिए तुम्हारे द्वारा पवित्र लोगों के भले के लिए किए गए—तथा अब भी किए जा रहे—भले कामों और तुम्हारे द्वारा उनके लिए अभिव्यक्त प्रेम की उपेक्षा करें. 11 हमारी यही इच्छा है कि तुममें से हर एक में ऐसा उत्साह प्रदर्शित हो कि अन्त तक तुम में आशा का पूरा निश्चय स्पष्ट दिखाई दे. 12 तुम आलसी न बनो परन्तु उन लोगों के पद-चिह्नों पर चलो, जो विश्वास तथा धीरज द्वारा प्रतिज्ञाओं के वारिस हैं.
शोमरोन प्रदेश का अशिष्टता से भरा नगर
51 जब मसीह येशु के स्वर्ग में उठा लिए जाने का निर्धारित समय पास आया, विचार दृढ़ करके मसीह येशु ने अपने पांव येरूशालेम नगर की ओर बढ़ा दिए. 52 उन्होंने अपने आगे सन्देशवाहक भेज दिए. वे शोमरोन प्रदेश के एक गाँव में पहुँचे कि मसीह येशु के आगमन की तैयारी करें 53 किन्तु वहाँ के निवासियों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया क्योंकि मसीह येशु येरूशालेम नगर की ओर जा रहे थे. 54 जब उनके दो शिष्यों—याक़ोब और योहन ने यह देखा तो उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “प्रभु, यदि आप आज्ञा दें तो हम प्रार्थना करें कि आकाश से इन्हें नाश करने के लिए आग की बारिश हो जाए.” 55 पीछे मुड़ कर मसीह येशु ने उन्हें डाँटा, “तुम नहीं समझ रहे कि तुम यह किस मतलब से कह रहे हो. 56 मनुष्य का पुत्र इन्सानों के विनाश के लिए नहीं परन्तु उनके उद्धार के लिए आया है” और वे दूसरे नगर की ओर बढ़ गए.
प्रेरितों के बुलाए जाने पर पीछे चलने का कठिन कार्य
(मत्ति 8:18-22)
57 मार्ग में एक व्यक्ति ने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए उनसे कहा, “आप जहाँ कहीं जाएँगे, मैं आपके साथ रहूँगा.”
58 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “लोमड़ियों के पास उनकी अपनी मांदें होती हैं और पक्षियों के पास उनके अपने घोंसले, किन्तु मनुष्य के पुत्र के लिए तो सिर रखने तक का स्थान नहीं है.”
59 एक अन्य व्यक्ति से मसीह येशु ने कहा, “आओ! मेरे पीछे हो लो.” उस व्यक्ति ने कहा, “प्रभु! पहले मैं अपने पिता के अंतिम संस्कार का इंतज़ाम कर लूँ.”
60 मसीह येशु ने उससे कहा, “मरे हुओं को अपने मृत गाड़ने दो किन्तु तुम जा कर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करो.”
61 एक अन्य व्यक्ति ने मसीह येशु से कहा, “प्रभु, मैं आपके साथ चलूँगा किन्तु पहले मैं अपने परिजनों से विदा ले लूँ.”
62 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो हल चलाने को उद्यत हो, परन्तु उसकी दृष्टि पीछे की ओर लगी हुई हो, परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं.”
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