Book of Common Prayer
मसीह येशु में उद्धार एक वरदान
2 तुम अपने अपराधों और पापों में मरे हुए थे, 2 जिनमें तुम पहले इस संसार के अनुसार और आकाशमण्डल के अधिकारी, उस आत्मा के अनुसार जी रहे थे, जो आत्मा अब भी आज्ञा न माननेवालों में काम कर रहा है. 3 एक समय था जब हम भी इन्हीं में थे और अपनी वासनाओं में लीन रहते थे, शरीर और मन की अभिलाषाओं को पूरा करने में लगे हुए अन्यों के समान क्रोध की सन्तान थे 4 परन्तु दया में धनी परमेश्वर ने अपने अपार प्रेम के कारण, 5 जब हम अपने अपराधों में मरे हुए थे, मसीह में हमें जीवित किया—उद्धार तुम्हें अनुग्रह ही से प्राप्त हुआ है. 6 परमेश्वर ने हमें मसीह येशु में जीवित किया और स्वर्गीय राज्य में उन्हीं के साथ बैठाया; 7 कि वह आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का उत्तम धन मसीह येशु में हमारे लिए की गई कृपा में दिखा सकें 8 क्योंकि अनुग्रह ही से, विश्वास के द्वारा तुम्हें उद्धार प्राप्त हुआ है. इसके कारण तुम नहीं, यह परमेश्वर का वरदान है 9 और यह कामों का प्रतिफल नहीं है कि कोई घमण्ड़ करे, 10 क्योंकि हम परमेश्वर द्वारा पहले से ठहराए हुए भले कामों के लिए मसीह में रचे गए परमेश्वर की रचना हैं कि हम इन भले कामों का स्वभाव करें.
24 “शिष्य अपने गुरु से श्रेष्ठ नहीं और न दास अपने स्वामी से. 25 शिष्य के पक्ष में यही काफी है कि वह अपने गुरु के तुल्य हो जाए तथा दास अपने स्वामी के. यदि उन्होंने परिवार के प्रधान को ही शैतान घोषित कर दिया तो उस परिवार के सदस्यों को क्या कुछ न कहा जाएगा!
26 “इसलिए उनसे भयभीत न होना क्योंकि ऐसा कुछ भी छुपा नहीं, जिसे खोला न जाएगा या ऐसा कोई रहस्य नहीं, जिसे प्रकट न किया जाएगा. 27 मैं जो कुछ तुम पर अन्धकार में प्रकट कर रहा हूँ, उसे प्रकाश में स्पष्ट करो और जो कुछ तुमसे कान में कहा गया है, उसकी घोषणा हर जगह करो. 28 उनसे भयभीत न हो, जो शरीर को तो नाश कर सकते हैं किन्तु आत्मा को नाश करने में असमर्थ हैं. सही तो यह है कि भयभीत उनसे हो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नर्क में नाश करने में समर्थ हैं. 29 क्या दो गौरैयाँ बहुत सस्ती नहीं बिकतीं? फिर भी ऐसा नहीं कि यदि उनमें से एक भी भूमि पर गिर जाए और तुम्हारे पिता को उसके विषय में मालूम न हो. 30 तुम्हारे सिर का तो एक-एक बाल गिना हुआ है. 31 इसलिए भयभीत न हो. तुम्हारा दाम अनेक गौरैयों से कहीं अधिक है.
32 “जो कोई मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करता है, मैं भी उसे अपने स्वर्गीय पिता के सामने स्वीकार करूँगा 33 किन्तु जो कोई मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करता है, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने अस्वीकार करूँगा.
40 “वह, जो तुम्हें स्वीकार करता है, मुझे स्वीकार करता है और जो मुझे स्वीकार करता है, उन्हें स्वीकार करता है, जिन्होंने मुझे भेजा है. 41 जो कोई एक भविष्यद्वक्ता को एक भविष्यद्वक्ता के नाम में स्वीकार करता है एक भविष्यद्वक्ता का इनाम प्राप्त करेगा और वह, जो एक धर्मी व्यक्ति को एक धर्मी व्यक्ति के नाम में स्वीकार करता है, धर्मी व्यक्ति का ही इनाम प्राप्त करेगा. 42 जो कोई इन मामूली व्यक्तियों में से किसी एक को एक कटोरा शीतल जल मात्र इसलिए दे कि वह मेरा शिष्य है, तुम सच तो मानो, वह अपना इनाम नहीं खोएगा.”
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