Book of Common Prayer
पिसिदिया प्रदेश के अन्तियोख़ में पौलॉस
13 पौलॉस और उनके साथियों ने पाफ़ॉस नगर से समुद्री यात्रा शुरु की और वे पम्फ़ूलिया प्रदेश के पेरगे नगर में जा पहुँचे. योहन उन्हें वहीं छोड़कर येरूशालेम लौट गए. 14 तब वे पेरगे से होते हुए पिसिदिया प्रदेश के अन्तियोख़ नगर पहुँचे और शब्बाथ पर यहूदी सभागृह में जाकर बैठ गए. 15 जब व्यवस्था तथा भविष्यद्वक्ताओं के ग्रंथों का पढ़ना समाप्त हो चुका, सभागृह के अधिकारियों ने उनसे कहा, “प्रियजन, यदि आप में से किसी के पास लोगों के प्रोत्साहन के लिए कोई वचन है तो कृपा कर वह उसे यहाँ प्रस्तुत करे.”
यहूदियों के सामने पौलॉस द्वारा भाषण
16 इस पर पौलॉस ने हाथ से संकेत करते हुए खड़े होकर कहा. “इस्राएलवासियो तथा परमेश्वर के श्रद्धालुओ, सुनो! 17 इस्राएल के परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को चुना तथा मिस्र देश में उनके घर की अवधि में उन्हें एक फलवन्त राष्ट्र बनाया और प्रभु ही अपने बाहुबल से उन्हें उस देश से बाहर निकाल लाए; 18 इसके बाद जंगल में वह लगभग चालीस वर्ष तक उनके प्रति सहनशील बने रहे 19 और उन्होंने कनान देश की सात जातियों को नाश कर उनकी भूमि अपने लोगों को मीरास में दे दी. 20 इस सारी प्रक्रिया में लगभग चार सौ पचास वर्ष लगे.
“इसके बाद परमेश्वर उनके लिए भविष्यद्वक्ता शमुएल के आने तक न्यायाधीश ठहराते रहे. 21 फिर इस्राएल ने अपने लिए राजा की विनती की. इसलिए परमेश्वर ने उन्हें बिन्यामीन के वंश से कीश का पुत्र शाऊल दे दिया, जो चालीस वर्ष तक उनका राजा रहा. 22 परमेश्वर ने शाऊल को पद से हटा कर उसके स्थान पर दाविद को राजा बनाया जिनके विषय में उन्होंने स्वयं कहा था कि यिशै का पुत्र दाविद मेरे मन के अनुसार व्यक्ति है. वही मेरी सारी इच्छा पूरी करेगा.
23 “उन्हीं के वंश से, अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार, परमेश्वर ने इस्राएल के लिए एक उद्धारकर्ता मसीह येशु की उत्पत्ति की. 24 मसीह येशु के आने के पहले योहन ने सारी इस्राएली प्रजा में पश्चाताप के बपतिस्मे का प्रचार किया. 25 अपनी तय की हुई सेवा का कार्य पूरा करते हुए योहन घोषणा करते रहे, ‘क्या है मेरे विषय में आपका विश्वास? मैं वह नहीं हूँ. यह समझ लीजिए: मेरे बाद एक आ रहे हैं. मैं जिनकी जूती का बन्ध खोलने योग्य तक नहीं हूँ.’
मसीह येशु में विशाल भीड़ की रुचि
(मत्ति 12:15-17)
7 मसीह येशु अपने शिष्यों के साथ झील के पास चले गए. एक विशाल भीड़, जो गलील तथा यहूदिया प्रदेश से आ कर इकठ्ठी हुई थी, उनके पीछे-पीछे चल रही थी. 8 मसीह येशु के बड़े-बड़े कामों का वर्णन सुन कर येरूशालेम नगर, इदूमिया प्रदेश, यरदन नदी के पार के क्षेत्र तथा त्सोर और त्सीदोन से भी अनेकों-अनेक इस भीड़ में सम्मिलित हो गए थे. 9 इस विशाल भीड़ के दबाव से बचने के उद्धेश्य से मसीह येशु ने शिष्यों को एक नाव तैयार रखने की आज्ञा दी. 10 मसीह येशु ने अनेकों को स्वास्थ्यदान दिया था इसलिए वे सभी, जो रोगी थे, मात्र उन्हें छू लेने के उद्धेश्य से उन पर गिरे पड़ रहे थे. 11 जब कभी दुष्टात्मा उनके सामने आती थी, वे उनके सामने गिर कर चिल्ला-चिल्ला कर कहती थी, “आप परमेश्वर-पुत्र हैं!” 12 किन्तु मसीह येशु ने उन्हें चेतावनी दी कि वे यह किसी से न कहें.
बारह शिष्यों का चयन
(लूकॉ 6:12-16)
13 इसके बाद मसीह येशु पर्वत पर चले गए. वहाँ उन्होंने उन्हें अपने पास बुलाया, जिन्हें उन्होंने सही समझा और वे उनके पास आए. 14 मसीह येशु ने बारह को चुना कि वे उनके साथ रहें, वह उन्हें प्रचार के लिए निकाल सकें 15 और उन्हें दुष्टात्मा निकालने का अधिकार हो. 16 मसीह येशु द्वारा चुने हुए बारह के नाम इस प्रकार हैं: शिमोन—जिन्हें उन्होंने पेतरॉस नाम दिया; 17 ज़ेबेदियॉस के पुत्र याक़ोब तथा उनके भाई योहन, जिनको उन्होंने उपनाम दिया था, बोएनेरगेस, जिसका अर्थ होता है गर्जन के पुत्र; 18 आन्द्रेयास, फ़िलिप्पॉस, बारथोलोमेयॉस, मत्तियाह, थोमॉस, हलफ़ेयॉस के पुत्र याक़ोब, थद्देइयॉस, शिमोन कनानी तथा 19 कारियोतवासी यहूदाह, जिसने मसीह येशु के साथ धोखा किया.
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