Book of Common Prayer
अन्तियोख़ नगर में कलीसिया की नींव
19 वे शिष्य, जो स्तेफ़ानॉस के सताहट के फलस्वरूप शुरुआत में तितर-बितर हो गए थे, फ़ॉयनिके, कुप्रास तथा अन्तियोख़ नगरों में जा पहुँचे थे. ये यहूदियों के अतिरिक्त अन्य किसी को भी सन्देश नहीं सुनाते थे 20 किन्तु कुछ कुप्रास तथा कुरेनेवासी अन्तियोख़ नगरों में आकर यूनानियों को भी मसीह येशु के विषय में सुसमाचार देने लगे. 21 उन पर प्रभु की कृपादृष्टि थी. बड़ी संख्या में लोगों ने विश्वास कर प्रभु को ग्रहण किया.
22 यह समाचार येरूशालेम की कलीसिया में भी पहुँचा. इसलिए उन्होंने बारनबास को अन्तियोख़ नगर भेजा. 23 वहाँ पहुँच कर जब बारनबास ने परमेश्वर के अनुग्रह के प्रमाण देखे तो वह बहुत आनन्दित हुए और उन्होंने उन्हें पूरी लगन के साथ प्रभु में स्थिर बने रहने के लिए प्रोत्साहित किया. 24 बारनबास भले, पवित्रात्मा से भरे हुए और विश्वास में परिपूर्ण व्यक्ति थे. बहुत बड़ी संख्या में लोग प्रभु के पास लाए गए.
25 इसलिए बारनबास को तारस्यॉस नगर जाकर शाऊल को खोजना सही लगा. 26 शाऊल के मिल जाने पर वह उन्हें लेकर अन्तियोख़ नगर आ गए. वहाँ कलीसिया में एक वर्ष तक रह कर दोनों ने अनेक लोगों को शिक्षा दी. अन्तियोख़ नगर में ही सबसे पहले मसीह येशु के शिष्य मसीही कहलाए.
बारनबास तथा शाऊल द्वारा येरूशालेम का प्रतिनिधित्व
27 इन्ही दिनों में कुछ भविष्यद्वक्ता येरूशालेम से अन्तियोख़ आए. 28 उन्हीं में से अगाबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता ने पवित्रात्मा की प्रेरणा से यह संकेत दिया कि सारी पृथ्वी पर अकाल पड़ने पर है—यह कयसर क्लॉदियॉस के शासनकाल की घटना है. 29 इसलिए शिष्यों ने यहूदिया प्रदेश के मसीह के विश्वासियों के लिए अपनी सामर्थ के अनुसार सहायता देने का निश्चय किया. 30 अपने इस निश्चय के अनुसार उन्होंने दानराशि बारनबास और शाऊल के द्वारा पुरनियों को भेज दी.
पेतरॉस की सास को स्वास्थ्यदान
(मत्ति 8:14-17; लूकॉ 4:38-41)
29 यहूदी सभागृह से निकल कर वे सीधे याक़ोब और योहन के साथ शिमोन तथा आन्द्रेयास के घर पर गए. 30 वहाँ शिमोन की सास बुखार में पड़ी हुई थीं. उन्होंने बिना देर किए मसीह येशु को इसके विषय में बताया. 31 मसीह येशु उनके पास आए, उनका हाथ पकड़ उन्हें उठाया और उनका बुखार जाता रहा तथा वह उनकी सेवा टहल में जुट गईं.
32 सन्ध्या समय सूर्यास्त के बाद लोग अस्वस्थ तथा जिनमें दुष्टात्माऐं थी उन लोगों को येशु के पास लाने लगे. 33 सारा नगर ही द्वार पर इकट्ठा हो गया 34 मसीह येशु ने विभिन्न रोगों से पीड़ित अनेकों को स्वस्थ किया और अनेक दुष्टात्माओं को भी निकाला. वह दुष्टात्माओं को बोलने नहीं देते थे क्योंकि वे उन्हें पहचानती थी.
समग्र गलील प्रदेश में मसीह येशु द्वारा प्रचार तथा स्वास्थ्यदान सेवा
(मत्ति 4:23-25; लूकॉ 4:42-44)
35 भोर होने पर, जब अन्धकार ही था, मसीह येशु उठे और एक सुनसान जगह को गए. वहाँ वह प्रार्थना करने लगे. 36 शिमोन तथा उनके अन्य साथी उन्हें खोज रहे थे. 37 उन्हें पाकर वे कहने लगे, “सभी आपको खोज रहे हैं.”
38 किन्तु मसीह येशु ने उनसे कहा, “चलो, कहीं और चलें—यहाँ पास के नगरों में—जिससे कि मैं वहाँ भी प्रचार कर सकूँ क्योंकि मेरे यहाँ आने का उद्धेश्य यही है.” 39 वह सारे गलील प्रदेश में घूमते हुए यहूदी सभागृहों में जा-जा कर प्रचार करते रहे तथा लोगों में से दुष्टात्माओं को निकालते गए.
कोढ़ रोगी की शुद्धि
(मत्ति 8:1-4; लूकॉ 5:12-16)
40 एक कोढ़ रोगी उनके पास आया. उसने मसीह येशु के सामने घुटने टेक उनसे विनती की, “आप चाहें तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं.”
41 तरस खाकर मसीह येशु ने हाथ बढ़ाकर उसे स्पर्श किया और कहा, “मैं चाहता हूँ. तुम शुद्ध हो जाओ!” 42 उसी समय उसका कोढ़ रोग जाता रहा और वह शुद्ध हो गया.
43 मसीह येशु ने उसे उसी समय इस चेतावनी के साथ विदा किया, 44 “सुनो! इस विषय में किसी से कुछ न कहना. हाँ, जाकर स्वयं को याजक के सामने प्रस्तुत करो तथा अपनी शुद्धि के प्रमाण के लिए मोशेह द्वारा निर्धारित विधि के अनुसार शुद्धि सम्बन्धी भेंट चढ़ाओ.” 45 किन्तु उस व्यक्ति ने जा कर खुलेआम इसकी घोषणा की तथा यह समाचार इतना फैला दिया कि मसीह येशु इसके बाद खुल्लम खुल्ला किसी नगर में न जा सके और उन्हें नगर के बाहर सुनसान स्थानों में रहना पड़ा. फिर भी सब स्थानों से लोग उनके पास आते रहे.
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