Book of Common Prayer
4 उस हर एक व्यक्ति के लिए, जो मसीह में विश्वास करता है, मसीह ही धार्मिकता की व्यवस्था की समाप्ति हैं.
मोशेह का गवाह
5 मोशेह के अनुसार व्यवस्था पर आधारित धार्मिकता का पालन करनेवाला उसी धार्मिकता के द्वारा जीवित रहेगा. 6 किन्तु विश्वास पर आधारित धार्मिकता का भेद है: अपने मन में यह विचार न करो: स्वर्ग पर कौन चढ़ेगा, मसीह को उतार लाने के लिए? 7 “या ‘मसीह को मरे हुओं में से जीवित करने के उद्धेश्य से पाताल में कौन उतरेगा?’” 8 क्या है इसका मतलब: परमेश्वर का वचन तुम्हारे पास है—तुम्हारे मुख में तथा तुम्हारे हृदय में—विश्वास का वह सन्देश, जो हमारे प्रचार का विषय है: 9 इसलिए यदि तुम अपने मुख से मसीह येशु को प्रभु स्वीकार करते हो तथा हृदय में यह विश्वास करते हो कि परमेश्वर ने उन्हें मरे हुओं में से जीवित किया है तो तुम्हें उद्धार प्राप्त होगा 10 क्योंकि विश्वास हृदय से किया जाता है, जिसका परिणाम है धार्मिकता तथा स्वीकृति मुख से होती है, जिसका परिणाम है उद्धार. 11 पवित्रशास्त्र का लेख है: हर एक, जो उनमें विश्वास करेगा, वह लज्जित कभी न होगा. 12 यहूदी तथा यूनानी में कोई भेद नहीं रह गया क्योंकि एक ही प्रभु सबके प्रभु हैं, जो उन सबके लिए, जो उनकी दोहाई देते हैं, अपार सम्पदा हैं. 13 क्योंकि: हर एक, जो प्रभु को पुकारेगा, उद्धार प्राप्त करेगा.
अपनी रक्षा में इस्राएल की असमर्थता
14 वे भला उन्हें कैसे पुकारेंगे जिनमें उन्होंने विश्वास ही नहीं किया? वे भला उनमें विश्वास कैसे करेंगे, जिन्हें उन्होंने सुना ही नहीं? और वे भला सुनेंगे कैसे यदि उनकी उद्घोषणा करने वाला नहीं? 15 और प्रचारक प्रचार कैसे कर सकेंगे यदि उन्हें भेजा ही नहीं गया? जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: कैसे सुहावने हैं वे चरण जिनके द्वारा अच्छी बातों का सुसमाचार लाया जाता है!
16 फिर भी सभी ने ईश्वरीय सुसमाचार पर ध्यान नहीं दिया. भविष्यद्वक्ता यशायाह का लेख है: प्रभु! किसने विश्वास किया है हमारे प्रतिवेदन पर? 17 इसलिए स्पष्ट है कि विश्वास की उत्पत्ति होती है सुनने के माध्यम से तथा सुनना मसीह के वचन के माध्यम से.
29 “धिक्कार है तुम पर पाखण्डी, फ़रीसियो, शास्त्रियो! तुम भविष्यद्वक्ताओं की क़ब्रें सँवारते हो तथा धर्मी व्यक्तियों के स्मारक को सजाते हो और कहते हो 30 ‘यदि हम अपने पूर्वजों के समय में होते, हम इन भविष्यद्वक्ताओं की हत्या के साझी न होते.’ 31 यह कह कर तुम स्वयं अपने ही विरुद्ध गवाही देते हो कि तुम उनकी सन्तान हो जिन्होंने भविष्यद्वक्ताओं की हत्या की थी. 32 ठीक है! भरते जाओ अपने पूर्वजों के पापों का घड़ा.”
उनके अपराध तथा आनेवाला दण्ड
33 “अरे सांपो! विषधर की सन्तान! कैसे बचोगे तुम नर्क-दण्ड से? 34 इसलिए मेरा कहना सुनो: मैं तुम्हारे पास भविष्यद्वक्ता, ज्ञानी और पवित्रशास्त्र के शिक्षक भेज रहा हूँ. उनमें से कुछ की तो तुम हत्या करोगे, कुछ को तुम क्रूस पर चढ़ाओगे तथा कुछ को तुम यहूदी-सभागृह में कोड़े लगाओगे और नगर-नगर यातनाएँ दोगे 35 कि तुम पर सभी धर्मी व्यक्तियों के पृथ्वी पर बहाए लहू का दोष आ पड़े—धर्मी हाबिल के लहू से ले कर बैरेखाया के पुत्र ज़कर्याह के लहू तक का, जिसका वध तुमने मन्दिर और वेदी के बीच किया. 36 सच तो यह है कि इन सबका दण्ड इसी पीढ़ी पर आ पड़ेगा.”
येशु का येरूशालेम नगर पर विलाप
37 “येरूशालेम! ओ येरूशालेम! तू भविष्यद्वक्ताओं की हत्या करता तथा उनका पथराव करता है, जिन्हें तेरे लिए भेजा जाता है. कितनी बार मैंने यह प्रयास किया कि तेरी सन्तान को इकट्ठा कर एकजुट करूँ, जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा करती है किन्तु तूने न चाहा. 38 इसलिए अब यह समझ ले कि तेरा घर तेरे लिए उजाड़ छोड़ा जा रहा है. 39 मैं तुझे बताए देता हूँ कि इसके बाद तू मुझे तब तक नहीं देखेगा जब तक तू यह नारा न लगाए.
“धन्य है वह, जो प्रभु के नाम में आ रहा है!”
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