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Revised Common Lectionary (Semicontinuous)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with sequential stories told across multiple weeks.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
अय्यूब 1:1

अय्यूब एक उत्तम व्यक्ति

ऊज नाम के प्रदेश में एक व्यक्ति रहा करता था। उसका नाम अय्यूब था। अय्यूब एक बहुत अच्छा और विश्वासी व्यक्ति था। अय्यूब परमेश्वर की उपासना किया करता था और अय्यूब बुरी बातों से दूर रहा करता था।

अय्यूब 2:1-10

शैतान द्वारा अय्यूब को फिर दु:ख देना

फिर एक दिन, यहोवा से मिलने के लिये स्वर्गदूत आये। शैतान भी उनके साथ था। शैतान यहोवा से मिलने आया था। यहोवा ने शैतान से पूछा, “तू कहाँ रहा?”

शैतान ने उत्तर देते हुए यहोवा से कहा, “मैं धरती पर इधर—उधर घूमता रहा हूँ।”

इस पर यहोवा ने शैतान से पूछा, “क्या तू मेरे सेवक अय्यूब पर ध्यान देता रहा है? उसके जैसा विश्वासी धरती पर कोई नहीं है। सचमुच वह अच्छा और वह बहुत विश्वासी व्यक्ति है। वह परमेश्वर की उपासना करता है, बुरी बातें से दूर रहता है। वह अब भी आस्थावान है। यद्यपि तूने मुझे प्रेरित किया था कि मैं अकारण ही उसे नष्ट कर दूँ।”

शैतान ने उत्तर दिया, “खाल के बदले खाल! एक व्यक्ति जीवित रहने के लिये, जो कुछ उसके पास है, सब कुछ दे डालता है। सो यदि तू अपनी शक्ति का प्रयोग उसके शरीर को हानि पहुँचाने में करे तो तेरे मुँह पर ही वह तुझे कोसने लगेगा!”

सो यहोवा ने शैतान से कहा, “अच्छा, मैंने अय्यूब को तुझे सौंपा, किन्तु तुझे उसे मार डालने की छूट नहीं है।”

इसके बाद शैतान यहोवा के पास से चला गया और उसने अय्यूब को बड़े दु:खदायी फोड़े दे दिये। ये दु:खदायी फोड़े उसके पाँव के तलवे से लेकर उसके सिर के ऊपर तक शरीर में फैल गये थे। सो अय्यूब कूड़े की ढेरी के पास बैठ गया। उसके पास एक ठीकरा था, जिससे वह अपने फोड़ों को खुजलाया करता था। अय्यूब की पत्नी ने उससे कहा, “क्या परमेश्वर में अब भी तेरा विश्वास है? तू परमेश्वर को कोस कर मर क्यों नहीं जाता!”

10 अय्यूब ने उत्तर देते हुए अपनी पत्नी से कहा, “तू तो एक मूर्ख स्त्री की तरह बातें करती है! देख, परमेश्वर जब उत्तम वस्तुएं देता है, हम उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। सो हमें दु:ख को भी अपनाना चाहिये और शिकायत नहीं करनी चाहिये।” इस समूचे दु:ख में भी अय्यूब ने कोई पाप नहीं किया। परमेश्वर के विरोध में वह कुछ नहीं बोला।

भजन संहिता 26

दाऊद को समर्पित।

हे यहोवा, मेरा न्याय कर, प्रमाणित कर कि मैंने पवित्र जीवन बिताया है।
    मैंने यहोवा पर कभी विश्वस करना नहीं छोड़ा।
हे यहोवा, मुझे परख और मेरी जाँच कर,
    मेरे हृदय में और बुद्धि को निकटता से देख।
मैं तेरे प्रेम को सदा ही देखता हूँ,
    मैं तेरे सत्य के सहारे जिया करता हूँ।
मैं उन व्यर्थ लोगो में से नहीं हूँ।
उन पापी टोलियों से मुझको घृणा है,
    मैं उन धूर्तो के टोलों में सम्मिलित नहीं होता हूँ।

हे यहोवा, मैं हाथ धोकर तेरी वेदी पर आता हूँ।
हे यहोवा, मैं तेरे प्रशंसा गीत गाता हूँ,
    और जो आश्चर्य कर्म तूने किये हैं, उनके विषय में मैं गीत गाता हूँ।
हे यहोवा, मुझको तेरा मन्दिर प्रिय है।
    मैं तेरे पवित्र तम्बू से प्रेम करता हूँ।

हे यहोवा, तू मुझे उन पापियों के दल में मत मिला,
    जब तू उन हत्यारों का प्राण लेगा तब मुझे मत मार।
10 वे लोग सम्भव है, छलने लग जाये।
    सम्भव है, वे लोग बुरे काम करने को रिश्वत ले लें।
11 लेकिन मैं निश्चल हूँ, सो हे परमेश्वर,
    मुझ पर दयालु हो और मेरी रक्षा कर।
12 मैं नेक जीवन जीता रहा हूँ।
    मैं तेरे प्रशंसा गीत, हे यहोवा, जब भी तेरी भक्त मण्डली साथ मिली, गाता रहा हूँ।

इब्रानियों 1:1-4

परमेश्वर अपने पुत्र के माध्यम से बोलता है

परमेश्वर ने अतीत में नबियों के द्वारा अनेक अवसरों पर अनेक प्रकार से हमारे पूर्वजों से बातचीत की। किन्तु इन अंतिम दिनों में उसने हमसे अपने पुत्र के माध्यम से बातचीत की, जिसे उसने सब कुछ का उत्तराधिकारी नियुक्त किया है और जिसके द्वारा उसने समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की है। वह पुत्र परमेश्वर की महिमा का तेज-मंडल है तथा उसके स्वरूप का यथावत प्रतिनिधि। वह अपने समर्थ वचन के द्वारा सब वस्तुओं की स्थिति बनाये रखता है। सबको पापों से मुक्त करने का विधान करके वह स्वर्ग में उस महामहिम के दाहिने हाथ बैठ गया। इस प्रकार वह स्वर्गदूतों से उतना ही उत्तम बन गया जितना कि उनके नामों से वह नाम उत्तम है जो उसने उत्तराधिकार में पाया है।

इब्रानियों 2:5-12

उद्धारकर्ता मसीह का मानव देह धारण

उस भावी संसार को, जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं, उसने स्वर्गदूतों के अधीन नहीं किया बल्कि शास्त्र में किसी स्थान पर किसी ने यह साक्षी दी है:

“मनुष्य क्या है,
    जो तू उसकी सुध लेता है?
मानव पुत्र का क्या है
    जिसके लिए तू चिंतित है?
तूने स्वर्गदूतों से उसे थोड़े से समय को किंचित कम किया।
    उसके सिर पर महिमा और आदर का राजमुकुट रख दिया।
और उसके चरणों तले उसकी अधीनता मे सभी कुछ रख दिया।”(A)

सब कुछ को उसके अधीन रखते हुए परमेश्वर ने कुछ भी ऐसा नहीं छोड़ा जो उसके अधीन न हो। फिर भी आजकल हम प्रत्येक वस्तु को उसके अधीन नहीं देख रहे हैं। किन्तु हम यह देखते हैं कि वह यीशु जिसको थोड़े समय के लिए स्वर्गदूतों से नीचे कर दिया गया था, अब उसे महिमा और आदर का मुकुट पहनाया गया है क्योंकि उसने मृत्यु की यातना झेली थी। जिससे परमेश्वर के अनुग्रह के कारण वह प्रत्येक के लिए मृत्यु का अनुभव करे।

10 अनेक पुत्रों को महिमा प्रदान करते हुए उस परमेश्वर के लिए जिसके द्वारा और जिसके लिए सब का अस्तित्व बना हुआ है, उसे यह शोभा देता है कि वह उनके छुटकारे के विधाता को यातनाओं के द्वारा सम्पूर्ण सिद्ध करे।

11 वे दोनों ही-वह जो मनुष्यों को पवित्र बनाता है तथा वे जो पवित्र बनाए जाते हैं, एक ही परिवार के हैं। इसलिए यीशु उन्हें भाई कहने में लज्जा नहीं करता। 12 उसने कहा:

“मैं सभा के बीच अपने बन्धुओं
    में तेरे नाम का उदघोष करूँगा।
सबके सामने मैं तेरे प्रशंसा गीत गाऊँगा।”(B)

मरकुस 10:2-16

फिर कुछ फ़रीसी उसके पास आये और उससे पूछा, “क्या किसी पुरुष के लिये उचित है कि वह अपनी पत्नी को तलाक दे?” उन्होंने उसकी परीक्षा लेने के लिये उससे यह पूछा था।

उसने उन्हें उत्तर दिया, “मूसा ने तुम्हें क्या नियम दिया है?”

उन्होंने कहा, “मूसा ने किसी पुरुष को त्यागपत्र लिखकर पत्नी को त्यागने की अनुमति दी थी।”

यीशु ने उनसे कहा, “मूसा ने तुम्हारे लिए यह आज्ञा इसलिए लिखी थी कि तुम्हें कुछ भी समझ में नहीं आ सकता। सृष्टि के प्रारम्भ से ही, ‘परमेश्वर ने उन्हें पुरुष और स्त्री के रूप में रचा है।’ ‘इसीलिये एक पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ कर अपनी पत्नी के साथ रहेगा। और वे दोनों एक तन हो जायेंगे।’ इसलिए वे दो नहीं रहते बल्कि एक तन हो जाते हैं। इसलिये जिसे परमेश्वर ने मिला दिया है, उसे मनुष्य को अलग नहीं करना चाहिए।”

10 फिर वे जब घर लौटे तो शिष्यों ने यीशु से इस विषय में पूछा। 11 उसने उनसे कहा, “जो कोई अपनी पत्नी को तलाक दे कर दूसरी स्त्री से ब्याह रचाता है, वह उस पत्नी के प्रति व्यभिचार करता है। 12 और यदि वह स्त्री अपने पति का त्याग करके दूसरे पुरुष से ब्याह करती है तो वह व्यभिचार करती है।”

बच्चों को यीशु की आशीष

(मत्ती 19:13-15; लूका 18:15-17)

13 फिर लोग यीशु के पास नन्हें-मुन्ने बच्चों को लाने लगे ताकि वह उन्हें छू कर आशीष दे। किन्तु उसके शिष्यों ने उन्हें झिड़क दिया। 14 जब यीशु ने यह देखा तो उसे बहुत क्रोध आया। फिर उसने उनसे कहा, “नन्हे-मुन्ने बच्चों को मेरे पास आने दो। उन्हें रोको मत क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों का ही है। 15 मैं तुमसे सत्य कहता हूँ जो कोई परमेश्वर के राज्य को एक छोटे बच्चे की तरह नहीं अपनायेगा, उसमें कभी प्रवेश नहीं करेगा।” 16 फिर उन बच्चों को यीशु ने गोद में उठा लिया और उनके सिर पर हाथ रख कर उन्हें आशीष दी।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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