Revised Common Lectionary (Complementary)
आरोहण गीत।
1 हे यहोवा, मैं गहन कष्ट में हूँ
सो सहारा पाने को मैं तुम्हें पुकारता हूँ।
2 मेरे स्वामी, तू मेरी सुन ले।
मेरी सहायता की पुकार पर कान दे।
3 हे यहोवा, यदि तू लोगों को उनके सभी पापों का सचमुच दण्ड दे
तो फिर कोई भी बच नहीं पायेगा।
4 हे यहोवा, निज भक्तों को क्षमा कर।
फिर तेरी अराधना करने को वहाँ लोग होंगे।
5 मैं यहोवा की बाट जोह रहा हूँ कि वह मुझको सहायता दे।
मेरी आत्मा उसकी प्रतीक्षा में है।
यहोवा जो कहता है उस पर मेरा भरोसा है।
6 मैं अपने स्वामी की बाट जोहता हूँ।
मैं उस रक्षक सा हूँ जो उषा के आने की प्रतीक्षा में लगा रहता है।
7 इस्राएल, यहोवा पर विश्वास कर।
केवल यहोवा के साथ सच्चा प्रेम मिलता है।
यहोवा हमारी बार—बार रक्षा किया करता है।
8 यहोवा इस्राएल को उनके सारे पापों के लिए क्षमा करेगा।
मानव जाति का आरम्भ
4 यह पृथ्वी और आकाश का इतिहास है। यह कथा उन चीज़ों की है, जो परमेश्वर द्वारा पृथ्वी और आकाश बनाते समय, घटित हुईं। 5 तब पृथ्वी पर कोई पेड़ पौधा नहीं था और खेतों में कुछ भी नहीं उग रहा था, क्योंकि यहोवा ने तब तक पृथ्वी पर वर्षा नहीं भेजी थी तथा पेड़ पौधों की देख—भाल करने वाला कोई व्यक्ति भी नहीं था।
6 परन्तु कोहरा पृथ्वी से उठता था और जल सारी पृथ्वी को सींचता था। 7 तब यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी से धूल उठाई और मनुष्य को बनाया। यहोवा ने मनुष्य की नाक में जीवन की साँस फूँकी और मनुष्य एक जीवित प्राणी बन गया। 8 तब यहोवा परमेश्वर ने पूर्व में अदन नामक जगह में एक बाग लगाया। यहोवा परमेश्वर ने अपने बनाए मनुष्य को इसी बाग में रखा। 9 यहोवा परमेश्वर ने हर एक सुन्दर पेड़ और भोजन के लिए सभी अच्छे पेड़ों को उस बाग में उगाया। बाग के बीच में परमेश्वर ने जीवन के पेड़ को रखा और उस पेड़ को भी रखा जो अच्छे और बुरे की जानकारी देता है।
10 अदन से होकर एक नदी बहती थी और वह बाग़ को पानी देती थी। वह नदी आगे जाकर चार छोटी नदियाँ बन गई। 11 पहली नदी का नाम पीशोन है। यह नदी हवीला प्रदेश के चारों ओर बहती है। 12 (उस प्रदेश में सोना है और वह सोना अच्छा है। मोती और गोमेदक रत्न उस प्रदेश में हैं।) 13 दूसरी नदी का नाम गीहोन है जो सारे कूश प्रदेश के चारों ओर बहती है। 14 तीसरी नदी का नाम दजला है। यह नदी अश्शूर के पूर्व में बहती है। चौथी नदी फरात है।
बीज बोने की दृष्टान्त कथा
(मत्ती 13:1-17; मरकुस 4:1-12)
4 जब नगर-नगर से आकर लोगों की बड़ी भीड़ उसके यहाँ एकत्र हो रही थी, तो उसने उनसे एक दृष्टान्त कथा कही:
5 “एक किसान अपने बीज बोने निकला। जब उसने बीज बोये तो कुछ बीज राह किनारे जा पड़े और पैरों तले रूँद गये। और चिड़ियाँए उन्हें चुग गयीं। 6 कुछ बीज चट्टानी धरती पर गिरे, वे जब उगे तो नमी के बिना मुरझा गये। 7 कुछ बीज कँटीली झाड़ियों में गिरे। काँटों की बढ़वार भी उनके साथ हुई और काँटों ने उन्हें दबोच लिया। 8 और कुछ बीज अच्छी धरती पर गिरे। वे उगे और उन्होंने सौ गुनी अधिक फसल दी।”
ये बातें बताते हुए उसने पुकार कर कहा, “जिसके पास सुनने को कान हैं, वह सुन ले।”
9 उसके शिष्यों ने उससे पूछा, “इस दृष्टान्त कथा का क्या अर्थ है?”
10 सो उसने बताया, “परमेश्वर के राज्य के रहस्य जानने की सुविधा तुम्हें दी गयी है किन्तु दूसरों को यह रहस्य दृष्टान्त कथाओं के द्वारा दिये गये हैं ताकि:
‘वे देखते हुए भी
न देख पायें
और सुनते हुए भी
न समझ पाये।’(A)
बीज बोने के दृष्टान्त की व्याख्या
(मत्ती 13:18-23; मरकुस 4:13-20)
11 “इस दृष्टान्त कथा का अर्थ यह है: बीज परमेश्वर का वचन है। 12 वे बीज जो राह किनारे गिरे थे, वे वह व्यक्ति हैं जो जब वचन को सुनते हैं, तो शैतान आता है और वचन को उनके मन से निकाल ले जाता है ताकि वे विश्वास न कर पायें और उनका उद्धार न हो सके। 13 वे बीज जो चट्टानी धरती पर गिरे थे उनका अर्थ है, वह व्यक्ति जो जब वचन को सुनते हैं तो उसे आनन्द के साथ अपनाते हैं। किन्तु उनके भीतर उसकी जड़ नहीं जम पाती। वे कुछ समय के लिये विश्वास करते हैं किन्तु परीक्षा की घड़ी में वे डिग जाते हैं।
14 “और जो बीज काँटो में गिरे, उसका अर्थ है, वह व्यक्ति जो वचन को सुनते हैं किन्तु जब वह अपनी राह चलने लगते हैं तो चिन्ताएँ धन-दौलत और जीवन के भोग विलास उसे दबा देते हैं, जिससे उन पर कभी पकी फसल नहीं उतरती। 15 और अच्छी धरती पर गिरे बीज से अर्थ है वे व्यक्ति जो अच्छे और सच्चे मन से जब वचन को सुनते हैं तो उसे धारण भी करते हैं। फिर अपने धैर्य के साथ वह उत्तम फल देते हैं।
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