Old/New Testament
इफ़ेसॉस नगर के कलीसिया-पुरनियों से विदाई
17 मिलेतॉस नगर से पौलॉस ने इफ़ेसॉस नगर को समाचार भेज कर कलीसिया के प्राचीनों को बुलवाया. 18 उनके वहाँ पहुँचने पर पौलॉस ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा: “आसिया प्रदेश में मेरे प्रवेश के पहिले दिन से आपको यह मालूम है कि मैं किस प्रकार हमेशा आपके साथ रहा, 19 और किस तरह सारी विनम्रता में आँसू बहाते हुए उन यातनाओं के बीच भी, जो यहूदियों के षड्यन्त्रों के कारण मुझ पर आईं, मैं प्रभु की सेवा करता रहा. 20 घर-घर जाकर तथा सार्वजनिक रूप से वह शिक्षा देने में, जो तुम्हारे लिए लाभदायक है, मैं कभी पीछे नहीं रहा. 21 मैं यहूदियों और यूनानियों से पूरी सच्चाई में पश्चाताप के द्वारा परमेश्वर की ओर मन फिराने तथा हमारे प्रभु मसीह येशु में विश्वास की विनती करता रहा हूँ.”
22 “अब, पवित्रात्मा की प्रेरणा में मैं येरूशालेम जा रहा हूँ. वहाँ मेरे साथ क्या होगा, इससे मैं अनजान हूँ; 23 बजाय इसके कि हर एक नगर में पवित्रात्मा मुझे सावधान करते रहते हैं कि मेरे लिए बेड़ियाँ और यातनाएँ तैयार हैं. 24 अपने जीवन से मुझे कोई मोह नहीं है सिवाय इसके कि मैं अपनी इस दौड़ को पूरा करूँ तथा उस सेवा कार्य को, जो प्रभु मसीह येशु द्वारा मुझे सौंपा गया है—पूरी सच्चाई में परमेश्वर के अनुग्रह के ईश्वरीय सुसमाचार के प्रचार की. 25 अब यह भी सुनो: मैं जानता हूँ कि तुम सभी, जिनके बीच मैंने राज्य का प्रचार किया है, अब मेरा मुख कभी न देख सकोगे. 26 इसलिए आज मैं तुम सब पर यह स्पष्ट कर रहा हूँ कि मैं किसी के भी विनाश का दोषी नहीं हूँ. 27 मैंने किसी पर भी परमेश्वर के सारे उद्देश्य को बताने में आनाकानी नहीं की. 28 तुम लोग अपना ध्यान रखो तथा उस समूह का भी, जिसका रखवाला तुम्हें पवित्रात्मा ने चुना है कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की देखभाल करो जिसे उन्होंने स्वयं अपना लहू देकर मोल लिया है. 29 मैं जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद तुम्हारे बीच फाड़नेवाले भेड़िये आ जाएँगे, जो इस समूह को नहीं छोड़ेंगे. 30 इतना ही नहीं, तुम्हारे बीच से ऐसे व्यक्तियों का उठना होगा, जो गलत शिक्षा देने लगेंगे और तुम्हारे ही झुण्ड़ में से अपने चेले बनाने लगेंगे. 31 इसलिए यह याद रखते हुए सावधान रहो कि तीन वर्ष तक मैंने दिन-रात आँसू बहाते हुए तुम्हें चेतावनी देने में कोई ढील नहीं दी.”
32 “अब मैं तुम्हें प्रभु और उनके अनुग्रह के वचन की देखभाल में सौंप रहा हूँ, जिसमें तुम्हारे विकास करने तथा तुम्हें उन सबके साथ मीरास प्रदान करने की क्षमता है, जो प्रभु के लिए अलग किए गए हैं. 33 मैंने किसी के स्वर्ण, रजत या वस्त्र का लालच नहीं किया. 34 तुम सब स्वयं जानते हो कि अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए तथा उनके लिए भी, जो मेरे साथ रहे, मैंने अपने इन हाथों से मेहनत की है. 35 हर एक परिस्थिति में मैंने तुम्हारे सामने यही आदर्श प्रस्तुत किया है कि यह ज़रूरी है कि हम दुर्बलों की सहायता इसी रीति से कठिन परिश्रम के द्वारा करें. स्वयं प्रभु येशु द्वारा कहे गए ये शब्द याद रखो, ‘लेने के बजाय देना धन्य है.’”
36 जब पौलॉस यह कह चुके, उन्होंने घुटने टेककर उन सबके साथ प्रार्थना की. 37 तब शिष्य रोने लगे और पौलॉस से गले लगकर उन्हें बार-बार चूमने लगे. 38 उनकी पीड़ा का सबसे बड़ा कारण यह था कि पौलॉस ने कह दिया था कि अब वे उन्हें कभी न देख सकेंगे. इसके बाद वे सब पौलॉस के साथ जलयान तक गए.
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