Old/New Testament
22 किन्तु शाऊल सामर्थी होते चले गए और दमिश्क के यहूदियों के सामने यह प्रमाणित करते हुए कि येशु ही मसीह हैं, उन्हें निरुत्तर करते रहे.
23 कुछ समय बीतने के बाद यहूदियों ने उनकी हत्या की योजना की 24 किन्तु शाऊल को उनकी इस योजना के बारे में मालूम हो गया. शाऊल की हत्या के उद्देश्य से उन्होंने नगर-द्वार पर रात-दिन चौकसी कड़ी कर दी 25 किन्तु रात में शिष्यों ने उन्हें टोकरे में बैठा कर नगर की शहरपनाह से नीचे उतार दिया.
शाऊल का येरूशालेम प्रवास
26 येरूशालेम पहुँच कर शाऊल ने मसीह येशु के शिष्यों में शामिल होने का प्रयास किया किन्तु वे सब उनसे भयभीत थे क्योंकि वे विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि शाऊल भी अब वास्तव में मसीह येशु के शिष्य हो गए हैं 27 परन्तु बारनबास उन्हें प्रेरितों के पास ले गए और उन्हें स्पष्ट बताया कि मार्ग में किस प्रकार शाऊल को प्रभु का दर्शन प्राप्त हुआ और प्रभु ने उनसे बातचीत की तथा कैसे उन्होंने दमिश्क नगर में मसीह येशु के नाम का प्रचार निडरता से किया है.
28 इसलिए शाऊल येरूशालेम में प्रेरितों के साथ निधड़क होकर रहने लगे तथा मसीह येशु के नाम का प्रचार निडरता से करने लगे. 29 वह यूनानी भाषा के यहूदियों से बातचीत और वाद-विवाद करते थे जबकि वे भी उनकी हत्या की कोशिश कर रहे थे. 30 जब अन्य शिष्यों को इसके विषय में मालूम हुआ, वे उन्हें कयसरिया नगर ले गए जहाँ से उन्होंने उन्हें तारस्यॉस नगर भेज दिया.
31 सारे यहूदिया प्रदेश, गलील प्रदेश और शोमरोन प्रदेश में प्रभु में श्रद्धा के कारण कलीसिया में शान्ति का विकास-विस्तार हो रहा था. पवित्रात्मा के प्रोत्साहन के कारण उनकी संख्या बढ़ती जा रही थी.
पेतरॉस द्वारा लकवे के पीड़ित को चंगाई
32 पेतरॉस इन सभी क्षेत्रों में यात्रा करते हुए लुद्दा नामक स्थान के संतों के बीच पहुँचे. 33 वहाँ उनकी भेंट ऐनियास नाम के व्यक्ति से हुई, जो आठ वर्ष से लकवे से पीड़ित था. 34 पेतरॉस ने उससे कहा, “ऐनियास, मसीह येशु के नाम में चंगे हो जाओ, उठो और अपना बिछौना सम्भालो.” वह तुरन्त उठ खड़ा हुआ. 35 उसे चंगा हुआ देखकर सभी लुद्दा नगर तथा शारोन नगरवासियों ने प्रभु में विश्वास किया.
36 योप्पा नगर में तबीथा नामक एक शिष्या थी. तबीथा नाम का यूनानी अनुवाद है दोरकस. वह बहुत ही भली, कृपालु तथा परोपकारी स्त्री थी और उदारतापूर्वक दान दिया करती थी. 37 किसी रोग से उसकी मृत्यु हो गई. स्नान के बाद उसे ऊपरी कमरे में लिटा दिया गया था. 38 लुद्दा नगर योप्पा नगर के पास है. शिष्यों ने पेतरॉस के विषय में सुन रखा था, इसलिए लोगों ने दो व्यक्तियों को इस विनती के साथ पेतरॉस के पास भेजा, “कृपया बिना देर किए यहाँ आने का कष्ट करें.”
39 पेतरॉस उठकर उनके साथ चल दिए. उन्हें उस ऊपरी कक्ष में ले जाया गया. वहाँ सभी विधवाएँ उन्हें घेर कर रोने लगी. उन्होंने पेतरॉस को वे सब वस्त्र दिखाए, जो दोरकस ने अपने जीवनकाल में बनाए थे 40 मगर पेतरॉस ने उन सभी को कक्ष से बाहर भेज दिया. तब उन्होंने घुटने टेककर प्रार्थना की और फिर शव की ओर मुँह कर के आज्ञा दी, “तबीथा! उठो!” उस स्त्री ने अपनी आँखें खोल दीं और पेतरॉस को देख वह उठ बैठी. 41 पेतरॉस ने हाथ बढ़ाकर उसे उठाया और शिष्यों और विधवाओं को वहाँ बुलाकर जीवित दोरकस उनके सामने प्रस्तुत कर दी. 42 सारे योप्पा में यह घटना सबको मालूम हो गई. अनेकों ने प्रभु में विश्वास किया. 43 पेतरॉस वहाँ अनेक दिन शिमोन नामक व्यक्ति के यहाँ ठहरे रहे, जो व्यवसाय से चमड़े का काम करता था.
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