Old/New Testament
22 मिस्र देश की सारी विद्या में मोशेह को प्रशिक्षित किया गया. वह बातचीत और कर्तव्य पालन करने में प्रभावशाली थे.
23 “जब मोशेह लगभग चालीस वर्ष के हुए, उनके मन में अपने इस्राएली बन्धुओं से भेंट करने का विचार आया. 24 वहाँ उन्होंने एक इस्राएली के साथ अन्याय से भरा व्यवहार होते देख उसकी रक्षा की तथा सताए जाने वाले के बदले में मिस्रवासी की हत्या कर दी. 25 उनका विचार यह था कि उनके इस काम के द्वारा इस्राएली यह समझ जाएँगे कि परमेश्वर स्वयं उन्हीं के द्वारा इस्राएलियों को मुक्त करा रहे हैं किन्तु ऐसा हुआ नहीं. 26 दूसरे दिन जब उन्होंने आपस में लड़ते हुए दो इस्राएलियों के मध्य यह कहते हुए मेल-मिलाप का प्रयास किया, ‘तुम भाई-भाई हो, क्यों एक दूसरे को आहत करना चाह रहे हो?’
27 “उस अन्याय करने वाले इस्राएली ने मोशेह को धक्का देते हुए कहा, ‘किसने तुम्हें हम पर राजा और न्यायी ठहराया है? 28 कहीं तुम्हारा मतलब कल उस मिस्री जैसे मेरी भी हत्या का तो नहीं है? बोलो!’ 29 यह सुन मोशेह वहाँ से भाग खड़े हुए और मिद्यान देश में परदेशी होकर रहने लगे. वहाँ उनके दो पुत्र उत्पन्न हुए.
30 “चालीस वर्ष व्यतीत होने पर सीनय पर्वत के जंगल में एक जलती हुई कँटीली झाड़ी की ज्वाला में उन्हें एक स्वर्गदूत दिखाई दिया. 31 इस दृश्य ने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया. जब वह इसे नज़दीकी से देखने के उद्देश्य से झाड़ी के पास गए तो परमेश्वर ने उनसे कहा: 32 ‘मैं तुम्हारे पूर्वजों के पिता अर्थात् अब्राहाम, इसहाक तथा याक़ोब का परमेश्वर हूँ.’ मोशेह भय से कांपने लगे और ऊपर आँख उठाने का साहस न कर सके.
33 “प्रभु ने मोशेह से कहा, ‘अपने पैरों से जूतियाँ उतार दो क्योंकि जिस जगह पर तुम खड़े हो वह पवित्र जगह है. 34 मिस्र देश में मेरी प्रजा पर हो रहा अत्याचार मैंने अच्छी तरह से देखा है. मैंने उनका कराहना भी सुना है. मैं उन्हें मुक्त कराने नीचे उतर आया हूँ. सुनो, मैं तुम्हें मिस्र देश भेजूँगा.’
35 “यह वही मोशेह हैं, जिन्हें इस्राएलियों ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था, ‘किसने तुम्हें हम पर राजा और न्याय करनेवाला ठहराया है?’ परमेश्वर ने उन्हीं को उस स्वर्गदूत द्वारा, जो झाड़ी में उन्हें दिखाई दिया था, राजा तथा छुड़ानेवाला ठहराकर भेज दिया. 36 यह वही मोशेह थे, जिन्होंने उनका नायक होकर उन्हें बाहर निकाला और मिस्र देश, लाल सागर तथा चालीस वर्ष जंगल में अद्भुत चिह्न दिखाते हुए उनका मार्गदर्शन किया.
37 “यही थे वह मोशेह, जिन्होंने इस्राएल की सन्तान के सामने यह घोषणा पहले से ही की थी, ‘तुम्हारे ही बन्धुओं में से परमेश्वर मेरे ही समान एक भविष्यद्वक्ता को उठाएंगे.’ 38 यह वही हैं, जो जंगल में इस्राएली समुदाय में उस स्वर्गदूत के साथ मौजूद थे, जिसने उनसे सीनय पर्वत पर बातें कीं और जो हमारे पूर्वजों के साथ थे तथा मोशेह ने तुम्हें सौंप देने के लिए जिनसे जीवित वचन प्राप्त किए.
39 “हमारे पूर्वज उनके आज्ञापालन के इच्छुक नहीं थे. वे मन ही मन मिस्र देश की कामना करने लगे. 40 वे हारोन से कहते रहे, ‘हमारे आगे-आगे जाने के लिए देवताओं को स्थापित करो. इस मोशेह की, जो हमें मिस्र साम्राज्य से बाहर लेकर आया है, कौन जाने क्या हुआ!’ 41 तब उन्होंने बछड़े की एक मूर्ति बनाई, उसे बलि चढ़ाई तथा अपने हाथों के कामों पर उत्सव मनाने लगे. 42 इससे परमेश्वर ने उनसे मुँह मोड़कर उन्हें नक्षत्रों की उपासना करने के लिए छोड़ दिया, जैसा भविष्यद्वक्ताओं के अभिलेख में लिखा है:
“‘इस्राएलवंशियों क्या तुमने जंगल
में चालीस वर्ष मुझे ही बलि तथा, भेंटें नहीं चढ़ाईं?
43 तुमने देवता मोलेक की वेदी की स्थापना की,
अपने देवता रेफ़ान के तारे को ऊँचा किया
और उन्हीं की मूर्तियों को आराधना के लिए स्थापित किया.
इसलिए मैं तुम्हें बाबेल से दूर’ निकाल ले जाऊँगा.
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