Old/New Testament
22 किन्तु उन अधिकारियों ने प्रेरितों को वहाँ नहीं पाया. उन्होंने लौटकर उन्हें यह समाचार दिया, 23 “वहाँ जाकर हमने देखा कि कारागार के द्वार पर ताला वैसा ही लगा हुआ है और वहाँ प्रहरी भी खड़े हुए थे, किन्तु द्वार खोलने पर हमें कक्ष में कोई भी नहीं मिला.” 24 इस समाचार ने मन्दिर के प्रधान रक्षक तथा प्रधान पुरोहितों को घबरा दिया. वे विचार करने लगे कि इस परिस्थिति का परिणाम क्या होगा.
25 जब वे इसी उधेड़-बुन में थे, किसी ने आकर उन्हें बताया कि जिन्हें कारागार में बन्द किया गया था, वे तो मन्दिर में लोगों को शिक्षा दे रहे हैं. 26 यह सुन मन्दिर का प्रधान रक्षक अपने अधिकारियों के साथ वहाँ जाकर प्रेरितों को महासभा के सामने ले आया. जनता द्वारा पथराव किए जाने के भय से अधिकारियों ने उनके साथ कोई बल प्रयोग नहीं किया.
27 उनके वहाँ उपस्थित किए जाने पर महायाजक ने उनसे पूछताछ शुरु की, 28 “हमने तुम्हें कड़ी आज्ञा दी थी कि इस नाम में अब कोई शिक्षा मत देना, पर देखो, तुमने तो येरूशालेम को अपनी शिक्षा से भर दिया है, और तुम इस व्यक्ति की हत्या का दोष हम पर मढ़ने के लिए निश्चय कर चुके हो.”
29 पेतरॉस तथा प्रेरितों ने इसका उत्तर दिया, “हम तो मनुष्यों की बजाय परमेश्वर के ही आज्ञाकारी रहेंगे. 30 हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने मसीह येशु को मरे हुओं में से जीवित कर दिया, जिनकी आप लोगों ने काठ पर लटका कर हत्या कर दी, 31 जिन्हें परमेश्वर ने अपनी दायीं ओर सृष्टिकर्ता और उद्धारकर्ता के पद पर बैठाया कि वह इस्राएल को पश्चाताप और पाप-क्षमा प्रदान करें. 32 हम इन घटनाओं के गवाह हैं—तथा पवित्रात्मा भी, जिन्हें परमेश्वर ने अपनी आज्ञा मानने वालों को दिया है.” 33 यह सुन वे तिलमिला उठे और उनकी हत्या की कामना करने लगे.
गमालिएल द्वारा हस्तक्षेप
34 किन्तु गमालिएल नामक फ़रीसी ने, जो व्यवस्था के शिक्षक और जनसाधारण में सम्मानित थे, महासभा में खड़े होकर आज्ञा दी कि प्रेरितों को सभाकक्ष से कुछ देर के लिए बाहर भेज दिया जाए. 35 तब गमालिएल ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा, “इस्राएली बन्धुओं, भली-भांति विचार कर लीजिए कि आप इनके साथ क्या करना चाहते हैं. 36 कुछ ही समय पूर्व थद्देयॉस ने कुछ होने का दावा किया था और चार सौ व्यक्ति उसके साथ हो लिए. उसकी हत्या कर दी गई और उसके अनुयायी तितर-बितर होकर नाश हो गए. 37 इसके बाद गलीलवासी यहूदाह ने जनगणना के अवसर पर सिर उठाया और लोगों को भरमा दिया. वह भी मारा गया और उसके अनुयायी भी तितर-बितर हो गए. 38 इसलिए इनके विषय में मेरी सलाह यह है कि आप इन्हें छोड़ दें और इनसे दूर ही रहें क्योंकि यदि इनके कार्य की उपज और योजना मनुष्य की ओर से है तो यह अपने आप ही विफल हो जाएगी; 39 मगर यदि यह सब परमेश्वर की ओर से है तो आप उन्हें नाश नहीं कर पाएँगे—ऐसा न हो कि इस सिलसिले में आप स्वयं को परमेश्वर का ही विरोध करता हुआ पाएँ.”
40 महासभा ने गमालिएल का विचार स्वीकार कर लिया. उन्होंने प्रेरितों को कक्ष में बुलवाकर कोड़े लगवाए, और उन्हें यह आज्ञा दी कि वे अब से येशु के नाम में कुछ न कहें और फिर उन्हें मुक्त कर दिया.
41 प्रेरित महासभा से आनन्द मनाते हुए चले गए कि उन्हें मसीह येशु के कारण अपमान-योग्य तो समझा गया. 42 वे प्रतिदिन नियमित रूप से मन्दिर प्रांगण में तथा घर-घर जाकर यह प्रचार कर ते तथा यह शिक्षा देते रहे कि येशु ही वह मसीह हैं.
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