Old/New Testament
पेतरॉस द्वारा नकारे जाने की भविष्यवाणी
(मत्ति 26:31-35)
27 उनसे मसीह येशु ने कहा, “तुम सभी मेरा साथ छोड़ कर चले जाओगे. जैसा कि इस सम्बन्ध में पवित्रशास्त्र का लेख है:
“मैं चरवाहे का संहार करूँगा और
झुण्ड की सभी भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी.
28 किन्तु मरे हुओं में से जीवित होने के बाद मैं तुमसे पहले गलील प्रदेश पहुँच जाऊँगा.”
29 पेतरॉस ने मसीह येशु से कहा, “सभी शिष्य आपका साथ छोड़ कर जाएँ तो जाएँ किन्तु मैं आपका साथ कभी न छोड़ूँगा.”
30 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर एक अटल सत्य प्रकट कर रहा हूँ: आज रात में ही, इससे पहले कि मुर्गा बाँग दे, तुम मुझे तीन बार नकार चुके होंगे.”
31 किन्तु पेतरॉस दृढ़तापूर्वक कहते रहे, “यदि मुझे आपके साथ मृत्यु को अपनाना भी पड़े तो भी मैं आपको नहीं नकारूंगा.” अन्य सभी शिष्यों ने भी यही दोहराया.
गेतसेमनी उद्यान में मसीह येशु की अवर्णनीय वेदना
(मत्ति 26:36-46; लूकॉ 22:39-46)
32 वे गेतसेमनी नामक स्थान पर आए. मसीह येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जब तक मैं प्रार्थना कर रहा हूँ, तुम यहीं ठहरो.” 33 उन्होंने अपने साथ पेतरॉस, याक़ोब तथा योहन को ले लिया. वह अत्यन्त अधीर तथा व्याकुल हो रहे थे. 34 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मेरे प्राण इतने व्याकुल हैं मानो मेरी मृत्यु हो रही हो. तुम यहीं ठहरो और जागते रहो.”
35 वह उनसे थोड़ी ही दूर गए और भूमि पर गिर कर यह प्रार्थना करने लगे कि यदि सम्भव हो तो यह क्षण टल जाए. 36 प्रार्थना में उन्होंने कहा, “अब्बा! पिता! आपके लिए तो सभी कुछ सम्भव है. मेरे सामने रखे इस प्याले को हटा दीजिए. फिर भी मेरी नहीं, आपकी इच्छा के अनुरूप हो.”
37 जब मसीह येशु वहाँ लौट कर आए तो शिष्यों को सोता हुआ पाया. उन्होंने पेतरॉस से कहा, “शिमोन! सोए हुए हो! एक घण्टा भी जागे न रह सके! 38 जागते रहो, प्रार्थना करते रहो, ऐसा न हो कि तुम परीक्षा में फँस जाओ. निस्सन्देह आत्मा तो तत्पर है किन्तु शरीर दुर्बल.”
39 तब उन्होंने दोबारा जा कर वही प्रार्थना की. 40 लौट कर आने पर उन्होंने शिष्यों को फिर सोते हुए पाया. उनकी पलकें अत्यन्त बोझिल थीं. उन्हें यह भी नहीं सूझ रहा था कि प्रभु को क्या उत्तर दें.
41 जब मसीह येशु तीसरी बार उनके पास आए तो उन्होंने उनसे कहा, “अभी भी सो रहे हो? सोते रहो और विश्राम करो! बहुत हो गया! वह क्षण आ गया है. देख लो कैसे मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जा कर पापियों के हाथों में सौंपा जा रहा है! 42 चलो, अब हमें चलना चाहिए. वह पकड़वानेवाला आ गया है!”
मसीह येशु का बन्दी बनाया जाना
(मत्ति 26:47-56; लूकॉ 22:47-53; योहन 18:1-11)
43 जब मसीह येशु यह कह ही रहे थे, उसी क्षण यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, आ पहुँचा. उसके साथ तलवार और लाठियाँ लिए हुए एक भीड़ भी थी. ये सब प्रधान पुरोहितों, शास्त्रियों तथा पुरनियों द्वारा भेजे गए थे.
44 पकड़वानेवाले ने उन्हें यह संकेत दिया था: “मैं जिसे चूमूँ, वही होगा वह. उसे पकड़ कर सिपाहियों की सुरक्षा में ले जाना.” 45 वहाँ पहुँचते ही यहूदाह सीधे मसीह येशु के पास गया और उनसे कहा, “रब्बी” और उन्हें चूम लिया. 46 इस पर उन्होंने मसीह येशु को पकड़ कर बान्ध लिया. 47 उनमें से, जो मसीह के साथ थे, एक ने तलवार खींची और महायाजक के दास पर प्रहार कर दिया जिससे उसका एक कान कट गया.
48 मसीह येशु ने भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा, “मुझे पकड़ने के लिए तुम तलवार और लाठियाँ ले कर आए हो मानो मैं कोई डाकू हूँ! 49 मन्दिर में शिक्षा देते हुए मैं प्रतिदिन तुम्हारे साथ ही होता था, तब तो तुमने मुझे नहीं पकड़ा किन्तु अब जो कुछ घटित हो रहा है वह इसीलिए कि पवित्रशास्त्र का लेख पूरा हो.” 50 सभी शिष्य मसीह येशु को छोड़ भाग चुके थे.
51 एक युवक था, जो मसीह येशु के पीछे-पीछे आ रहा था. उसने अपने शरीर पर मात्र एक चादर लपेटी हुई थी. जब उन्होंने उसे पकड़ना चाहा, 52 वह अपनी उस चादर को छोड़ नंगा ही भाग निकला.
मसीह येशु महासभा के सामने
(मत्ति 26:57-68)
53 वे मसीह येशु को महायाजक के सामने ले गए. वहाँ सभी प्रधान याजक, वरिष्ठ नागरिक तथा शास्त्री इकट्ठा थे.
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