Old/New Testament
19 सन्ध्या होने पर मसीह येशु तथा उनके शिष्य नगर के बाहर चले जाते थे.
20 प्रातः काल, जब वे वहाँ से आ रहे थे, उन्होंने उस अंजीर के पेड़ को जड़ से सूखा हुआ पाया. 21 पेतरॉस ने याद करते हुए कहा, “रब्बी देखिए! जिस पेड़ को आपने शाप दिया था, वह सूख गया है.”
22 इसके उत्तर में मसीह येशु ने कहा, “परमेश्वर में विश्वास रखो, 23 मैं तुम पर एक अटल सत्य प्रकट कर रहा हूँ: यदि तुम्हें विश्वास हो—सन्देह तनिक भर भी न हो—तो तुम न केवल वह करोगे, जो इस अंजीर के पेड़ के साथ किया गया परन्तु तुम यदि इस पर्वत को भी आज्ञा दोगे, ‘उखड़ जा और समुद्र में जा गिर!’ तो यह भी हो जाएगा. 24 इसलिए तुमसे मुझे यह कहना है: जिन सभी वस्तुओं के लिए तुम प्रार्थना-निवेदन करते हो, उनके लिए यह विश्वास कर लो कि वे तुम्हें प्राप्त हो गई हैं, तो वे तुम्हें प्रदान की जाएँगी. 25 इसी प्रकार, जब तुम प्रार्थना करो और तुम्हारे हृदय में किसी के विरुद्ध कुछ हो, उसे क्षमा कर दो, जिससे तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे पाप क्षमा कर दें 26 किन्तु यदि तुम क्षमा नहीं करते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे पाप क्षमा न करेंगे.”[a]
मसीह येशु के अधिकार को चुनौती
(मत्ति 21:23-27; लूकॉ 20:1-8)
27 इसके बाद वे दोबारा येरूशालेम नगर आए. जब मसीह येशु मन्दिर-परिसर में टहल रहे थे, प्रधान याजक, शास्त्री तथा प्रवर (नेता गण) उनके पास आए 28 और उनसे प्रश्न करने लगे, “किस अधिकार से तुम यह सब कर रहे हो? कौन है वह, जिसने तुम्हें यह सब करने का अधिकार दिया है?”
29 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “आप लोगों से मैं भी एक प्रश्न करूँगा. जब आप मुझे उसका उत्तर देंगे तब मैं भी आपके इस प्रश्न का उत्तर दूँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूँ. 30 यह बताइए कि योहन का बपतिस्मा परमेश्वर की ओर से था या मनुष्यों की ओर से?”
31 वे आपस में विचार विमर्श करने लगे, “यदि हम यह कहते हैं कि वह परमेश्वर की ओर से था तो यह कहेगा, ‘तब आप लोगों ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया?’ 32 और यदि हम यह कहें, ‘मनुष्यों की ओर से’” वस्तुत: यह कहने में उन्हें जनसाधारण का भय था क्योंकि जनसाधारण योहन को भविष्यद्वक्ता मानता था.
33 उन्होंने मसीह येशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते.” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “ठीक है, मैं भी तुम्हें यह नहीं बताता कि मैं ये सब किस अधिकार से कर रहा हूँ.”
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