M’Cheyne Bible Reading Plan
सूखे हाथ के व्यक्ति को स्वास्थ्यदान
(मत्ति 12:9-14; लूकॉ 6:6-11)
3 मसीह येशु एक यहूदी सभागृह में थे, जहाँ एक व्यक्ति था, जिसका हाथ सूख गया था. 2 कुछ व्यक्ति इस अवसर की ताक में थे कि शब्बाथ पर मसीह येशु उस व्यक्ति को स्वस्थ करें और वे उन पर दोष लगा सकें. 3 मसीह येशु ने उस व्यक्ति को, जिसका हाथ सूख गया था, आज्ञा दी, “उठो! सबके सामने खड़े हो जाओ!”
4 तब अन्यों को सम्बोधित करते हुए मसीह येशु ने पूछा, “शब्बाथ पर क्या करना व्यवस्था के अनुसार है—भला या बुरा? जीवन की रक्षा या विनाश?” वे सब मौन बने रहे.
5 तब उन सब पर गुस्से से भरी दृष्टि डालते हुए उनके मन की कठोरता पर व्यथित हो कर मसीह येशु ने उस व्यक्ति से कहा, “अपना हाथ आगे बढ़ाओ.” उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया—उसका हाथ पुनस्वस्थ हो गया था. 6 फ़रीसियों ने तुरन्त जा कर राजा हेरोदेस के समर्थकों से मसीह येशु के विरुद्ध विचार किया कि उन्हें किसी भी प्रकार नाश करें.
मसीह येशु में विशाल भीड़ की रुचि
(मत्ति 12:15-17)
7 मसीह येशु अपने शिष्यों के साथ झील के पास चले गए. एक विशाल भीड़, जो गलील तथा यहूदिया प्रदेश से आ कर इकठ्ठी हुई थी, उनके पीछे-पीछे चल रही थी. 8 मसीह येशु के बड़े-बड़े कामों का वर्णन सुन कर येरूशालेम नगर, इदूमिया प्रदेश, यरदन नदी के पार के क्षेत्र तथा त्सोर और त्सीदोन से भी अनेकों-अनेक इस भीड़ में सम्मिलित हो गए थे. 9 इस विशाल भीड़ के दबाव से बचने के उद्धेश्य से मसीह येशु ने शिष्यों को एक नाव तैयार रखने की आज्ञा दी. 10 मसीह येशु ने अनेकों को स्वास्थ्यदान दिया था इसलिए वे सभी, जो रोगी थे, मात्र उन्हें छू लेने के उद्धेश्य से उन पर गिरे पड़ रहे थे. 11 जब कभी दुष्टात्मा उनके सामने आती थी, वे उनके सामने गिर कर चिल्ला-चिल्ला कर कहती थी, “आप परमेश्वर-पुत्र हैं!” 12 किन्तु मसीह येशु ने उन्हें चेतावनी दी कि वे यह किसी से न कहें.
बारह शिष्यों का चयन
(लूकॉ 6:12-16)
13 इसके बाद मसीह येशु पर्वत पर चले गए. वहाँ उन्होंने उन्हें अपने पास बुलाया, जिन्हें उन्होंने सही समझा और वे उनके पास आए. 14 मसीह येशु ने बारह को चुना कि वे उनके साथ रहें, वह उन्हें प्रचार के लिए निकाल सकें 15 और उन्हें दुष्टात्मा निकालने का अधिकार हो. 16 मसीह येशु द्वारा चुने हुए बारह के नाम इस प्रकार हैं: शिमोन—जिन्हें उन्होंने पेतरॉस नाम दिया; 17 ज़ेबेदियॉस के पुत्र याक़ोब तथा उनके भाई योहन, जिनको उन्होंने उपनाम दिया था, बोएनेरगेस, जिसका अर्थ होता है गर्जन के पुत्र; 18 आन्द्रेयास, फ़िलिप्पॉस, बारथोलोमेयॉस, मत्तियाह, थोमॉस, हलफ़ेयॉस के पुत्र याक़ोब, थद्देइयॉस, शिमोन कनानी तथा 19 कारियोतवासी यहूदाह, जिसने मसीह येशु के साथ धोखा किया.
मसीह येशु पर शैतान का दूत होने का आरोप
(मत्ति 12:22-37; लूकॉ 11:14-28)
20 जब मसीह येशु किसी के घर में थे तो दोबारा एक बड़ी भीड़ वहाँ इकठ्ठी हो गयी—यहाँ तक कि उनके लिए भोजन करना भी असम्भव हो गया. 21 जब मसीह येशु के परिवार जनों को इसका समाचार मिला तो वे मसीह येशु को अपने संरक्षण में अपने साथ ले जाने के लिए वहाँ आ गए—उनका विचार था कि मसीह येशु अपना मानसिक सन्तुलन खो चुके हैं.
22 येरूशालेम नगर से वहाँ आए हुए शास्त्रियों का मत था कि मसीह येशु में शैतान समाया हुआ है तथा वह दुष्टात्मा के प्रधान की सहायता से दुष्टात्मा निकाला करते हैं.
23 इस पर मसीह येशु ने उन्हें अपने पास बुला कर उनसे दृष्टान्तों में कहना प्रारम्भ किया, “भला शैतान ही शैतान को कैसे निकाल सकता है? 24 यदि किसी राज्य में फूट पड़ चुकी है तो उसका अस्तित्व बना नहीं रह सकता. 25 वैसे ही यदि किसी परिवार में फूट पड़ जाए तो वह स्थायी नहीं रह सकता. 26 यदि शैतान अपने ही विरुद्ध उठ खड़ा हुआ है और वह बंट चुका है तो उसका अस्तित्व बना रहना असम्भव है—वह तो नाश हो चुका है! 27 कोई भी किसी बलवान व्यक्ति के यहाँ जबरदस्ती प्रवेश कर उसकी सम्पत्ति उस समय तक लूट नहीं सकता जब तक वह उस बलवान व्यक्ति को बान्ध न ले. तभी उसके लिए उस बलवान व्यक्ति की सम्पत्ति लूटना सम्भव होगा.
28 “मैं तुम पर एक अटूट सच प्रकट कर रहा हूँ: मनुष्य द्वारा किए गए सभी पाप और परमेश्वर की निन्दाएँ क्षमा योग्य हैं 29 किन्तु पवित्रात्मा के विरुद्ध की गई निन्दा किसी भी प्रकार क्षमा योग्य नहीं है. वह व्यक्ति अनन्त पाप का दोषी है.”
30 मसीह येशु ने यह सब इसलिए कहा था कि शास्त्रियों ने उन पर दोष लगाया था कि मसीह येशु में प्रेत समाया हुआ है.
31 तभी मसीह येशु की माता और उनके भाई वहाँ आ गए. वे बाहर ही खड़े रहे. उन्होंने सन्देश भेज कर उन्हें बाहर बुलवाया. 32 भीड़ उन्हें घेरे हुए बैठी थी. उन्होंने मसीह येशु को बताया, “वह देखिए! आपकी माता तथा आपके भाई बाहर खड़े हैं.”
33 “कौन हैं मेरी माता और कौन हैं मेरे भाई?” मसीह येशु ने पूछा.
34 तब अपनी दृष्टि अपने आस-पास बैठे भीड़ पर डालते हुए उन्होंने कहा, “ये हैं मेरी माता तथा मेरे भाई! 35 जो कोई परमेश्वर की इच्छा को पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन तथा मेरी माता.”
परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ तथा यहूदी
3 तब भला यहूदी होने का क्या लाभ या ख़तना से क्या उपलब्धि? 2 हर एक नज़रिए से बहुत कुछ! सबसे पहले तो यह कि यहूदियों को ही परमेश्वर के ईश्वरीय वचन सौंपे गए. 3 इससे क्या अन्तर पड़ता है कि कुछ ने विश्वास नहीं किया. क्या उनका अविश्वास परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को समाप्त कर देता है? नहीं! बिलकुल नहीं! 4 संसार का हरेक व्यक्ति झूठा साबित हो सकता है किन्तु परमेश्वर ही हैं, जो अपने वचन का पालन करते रहेंगे, जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है:
आप अपनी बातों में धर्मी साबित हों
तथा न्याय होने पर जय पाएँ.
5 किन्तु यदि हमारे अधर्म परमेश्वर की धार्मिकता दिखाते हैं तो हम क्या कहें? क्या परमेश्वर के क्रोधित होने पर उन्हें अधर्मी कहा जाएगा?—मैं यह सब मानवीय नज़रिए से कह रहा हूँ— 6 नहीं! बिलकुल नहीं! यह हो ही नहीं सकता! अन्यथा परमेश्वर संसार का न्याय कैसे करेंगे? 7 यदि मेरे झूठ के कारण परमेश्वर का सच उनकी महिमा के लिए अधिक करके प्रकट होता है तो अब भी मुझे पापी घोषित क्यों किया जा रहा है? 8 तब यह कहने में क्या नुकसान है—जैसा कि हमारे लिए निन्दा से भरे शब्दों में कहा ही जा रहा है तथा जैसा कुछ का यह दावा भी है कि यह हमारा ही कहना है: चलो कुकाम करें कि इससे ही कुछ भला हो जाए? न्याय के अनुसार उन पर घोषित दण्ड सही है.
हर एक पापी है
9 तब? क्या हम उनसे उत्तम हैं? बिलकुल नहीं! हम पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि यहूदी तथा यूनानी सभी पाप के अधीन हैं. 10 पवित्रशास्त्र का लेख भी यही है:
कोई भी धर्मी नहीं—एक भी नहीं.
कोई भी नहीं, जिसमें सोचने की शक्ति है;
11 कोई भी नहीं, जो परमेश्वर को खोजता है!
12 सभी परमेश्वर से दूर हो गए.
वे सब निकम्मे हो गए.
कोई भी भलाई करने वाला नहीं—एक भी नहीं.
13 उनके गले खुली क़ब्र
तथा उनकी जीभ छल-कपट का साधन हैं.
उनके होठों से घातक साँपों का विष छलकता है.
14 उनके मुँह शाप तथा कड़वाहट से भरे हुए हैं.
15 उनके पांव लहू बहाने के लिए फुर्तीले हैं;
16 विनाश तथा क्लेश उनके मार्ग में बिछे हैं,
17 शान्ति के मार्ग से वे हमेशा अनजान हैं.
18 उनमें परमेश्वर का भय है ही नहीं.
19 अब हमें यह तो मालूम हो गया कि व्यवस्था के निर्देश उन्हीं से कहते हैं, जो व्यवस्था के अधीन हैं कि हर एक मुँह बन्द हो जाए और पूरा विश्व परमेश्वर के सामने हिसाब देने वाला हो जाए 20 क्योंकि सिर्फ व्यवस्था के पालन करने के द्वारा कोई भी व्यक्ति परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी घोषित नहीं होगा. व्यवस्था के द्वारा सिर्फ यह अहसास होता है कि पाप क्या है.
परमेश्वर की न्यायसंगतता [a]का प्रकाशन
21 किन्तु अब स्थिति यह है कि व्यवस्था के बिना ही परमेश्वर की धार्मिकता प्रकट हो गई है, जिसका वर्णन पवित्रशास्त्र तथा भविष्यद्वक्ता करते रहे थे 22 अर्थात् मसीह येशु में विश्वास द्वारा उपलब्ध परमेश्वर की धार्मिकता, जो उन सब के लिए है, जो मसीह येशु में विश्वास करते हैं, क्योंकि कोई भेद नहीं 23 क्योंकि पाप सभी ने किया है और सभी परमेश्वर की महिमा से दूर हो गए है 24 किन्तु परमेश्वर के अनुग्रह से पाप के छुटकारे द्वारा, हरेक उस सेंत-मेंत छुटकारे में धर्मी घोषित किया जाता है, जो मसीह येशु में है. 25 मसीह येशु, जिन्हें परमेश्वर ने उनके लहू में विश्वास द्वारा प्रायश्चित-बलि के रूप में सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया. इसमें उनका विश्वास था अपनी ही धार्मिकता का सबूत देना क्योंकि वह अपनी सहनशीलता के कारण पूर्व युगों में किए गए पाप-दण्ड को इसलिए टालते रहे 26 कि वह इस वर्तमान युग में अपनी धार्मिकता प्रकट करें कि वह स्वयं को तथा उसे धर्मी घोषित करें, जिसका विश्वास मसीह येशु में है.
विश्वास का परिणाम
27 तब हमारे घमण्ड़ का क्या हुआ? उसका बहिष्कार कर दिया गया है. किस सिद्धान्त के द्वारा? कामों के सिद्धान्त के द्वारा? नहीं! यह हुआ है विश्वास की व्यवस्था द्वारा. 28 हमारी मान्यता यह है: मनुष्य व्यवस्था का सिर्फ पालन करने के द्वारा नहीं परन्तु अपने विश्वास द्वारा धर्मी घोषित किया जाता है. 29 क्या कही परमेश्वर सिर्फ यहूदियों ही के परमेश्वर हैं? क्या वह अन्यजातियों के परमेश्वर नहीं? निःसन्देह, वह उनके भी परमेश्वर हैं; 30 क्योंकि परमेश्वर एक हैं. वही ख़तना किये हुओं तथा ख़तना रहित दोनों को उनके विश्वास के द्वारा धर्मी घोषित करेंगे. 31 तो क्या हमारा विश्वास व्यवस्था को व्यर्थ ठहराता है? नहीं! बिलकुल नहीं! इसके विपरीत अपने विश्वास के द्वारा हम व्यवस्था को स्थिर करते हैं.
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