M’Cheyne Bible Reading Plan
दृष्टान्त में कहे गए प्रवचन
13 यह घटना उस दिन की है जब येशु घर से बाहर झील के किनारे पर बैठे हुए थे. 2 एक बड़ी भीड़ उनके चारों ओर इकट्ठा हो गयी. इसलिए वह एक नाव में जा बैठे और भीड़ झील के तट पर रह गयी. 3 उन्होंने भीड़ से दृष्टान्तों में अनेक विषयों पर चर्चा की. येशु ने कहा.
“एक किसान बीज बोने के लिए निकला. 4 बीज बोने में कुछ बीज तो मार्ग के किनारे गिरे, जिन्हें पक्षियों ने आ कर चुग लिया. 5 कुछ अन्य बीज पथरीली भूमि पर भी जा गिरे, जहाँ पर्याप्त मिट्टी नहीं थी. पर्याप्त मिट्टी न होने के कारण वे जल्दी ही अंकुरित भी हो गए 6 किन्तु जब सूर्योदय हुआ, वे झुलस गए और इसलिए कि उन्होंने जड़ें ही नहीं पकड़ी थीं, वे मुरझा गए. 7 कुछ अन्य बीज कँटीली झाड़ियों में जा गिरे और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा दिया. 8 कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे और फल लाए. यह उपज सौ गुणी, साठ गुणी, तीस गुणी थी. 9 जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले.”
10 येशु के शिष्यों ने उनके पास आ कर उनसे प्रश्न किया, “गुरुवर, आप लोगों को दृष्टान्तों में ही शिक्षा क्यों देते हैं?” 11 उसके उत्तर में येशु ने कहा, “स्वर्ग-राज्य के रहस्य जानने की क्षमता तुम्हें तो प्रदान की गई है, उन्हें नहीं. 12 क्योंकि जिस किसी के पास है उसे और अधिक प्रदान किया जाएगा और वह सम्पन्न हो जाएगा किन्तु जिसके पास नहीं है उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है. 13 यही कारण है कि मैं लोगों को दृष्टान्तों में शिक्षा देता हूँ:
“क्योंकि वे देखते हुए भी कुछ नहीं देखते तथा
सुनते हुए भी कुछ नहीं सुनते और
न उन्हें इसका अर्थ ही समझ आता है.
14 उनकी इसी स्थिति के विषय में भविष्यद्वक्ता यशायाह की यह भविष्यवाणी पूरी हो रही है:
“‘तुम सुनते तो रहोगे किन्तु समझोगे नहीं;
तुम देखते तो रहोगे किन्तु तुम्हें कोई ज्ञान न होगा;
15 क्योंकि इन लोगों का मन-मस्तिष्क मन्द पड़ चुका है.
वे अपने कानों से ऊँचा ही सुना करते हैं. उन्होंने अपनी आँखें मूंद रखी हैं
कि कहीं वे अपनी आँखों से देखने न लगें,
कानों से सुनने न लगें तथा
अपने हृदय से समझने न लगें और मेरी ओर फिर जाएँ कि मैं उन्हें स्वस्थ कर दूँ.’
16 धन्य हैं तुम्हारी आँखें क्योंकि वे देखती हैं और तुम्हारे कान क्योंकि वे सुनते हैं. 17 मैं तुम पर एक सच प्रकट कर रहा हूँ: अनेक भविष्यद्वक्ता और धर्मी व्यक्ति वह देखने की कामना करते रहे, जो तुम देख रहे हो किन्तु वे देख न सके तथा वे वह सुनने की कामना करते रहे, जो तुम सुन रहे हो किन्तु सुन न सके.
18 “अब तुम किसान का दृष्टान्त सुनो: 19 जब कोई व्यक्ति राज्य के विषय में सुनता है किन्तु उसे समझा नहीं करता, शैतान आता है और वह, जो उसके हृदय में रोपा गया है, झपट कर ले जाता है. यह वह है जो मार्ग के किनारे गिर गया था. 20 पथरीली भूमि वह व्यक्ति है, जो सन्देश को सुनता है तथा तुरन्त ही उसे खुशी से अपना लेता है 21 किन्तु इसलिए कि उसकी जड़ है ही नहीं, वह थोड़े दिन के लिए ही उसमें टिक पाता है. जब सन्देश के कारण यातनाएँ और सताहट प्रारम्भ होते हैं, उसका पतन हो जाता है. 22 वह भूमि, जहाँ बीज कँटीली झाड़ियों के बीच गिरा, वह व्यक्ति है जो सन्देश को सुनता तो है किन्तु संसार की चिन्ताएँ तथा सम्पन्नता का छलावा सन्देश को दबा देते हैं और वह बिना फल के रह जाता है. 23 वह उत्तम भूमि, जिस पर बीज रोपा गया, वह व्यक्ति है, जो सन्देश को सुनता है, उसे समझता है तथा वास्तव में फल लाता है. यह उपज सौ गुणी, साठ गुणी, तीस गुणी होती है.”
जंगली बीज का दृष्टान्त
24 येशु ने उनके सामने एक अन्य दृष्टान्त प्रस्तुत किया: “स्वर्ग-राज्य की तुलना उस व्यक्ति से की जा सकती है, जिसने अपने खेत में उत्तम बीज का रोपण किया. 25 जब उसके सेवक सो रहे थे, उसका शत्रु आया और गेहूं के बीज के मध्य जंगली बीज रोप कर चला गया. 26 जब गेहूं के अंकुर फूटे और बालें आईं तब जंगली बीज के पौधे भी दिखाई दिए. 27 इस पर सेवकों ने आ कर अपने स्वामी से पूछा, ‘स्वामी, आपने तो अपने खेत में उत्तम बीज रोपे थे! तो फिर ये जंगली पौधे कहाँ से आ गए?’
28 “स्वामी ने उत्तर दिया, ‘यह काम शत्रु का है.’
“तब सेवकों ने उससे पूछा, ‘क्या आप चाहते हैं कि हम इन्हें उखाड़ फेंकें?’
29 “उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘नहीं, ऐसा न हो कि जंगली पौधे उखाड़ते हुए तुम गेहूं भी उखाड़ डालो. 30 गेहूं तथा जंगली पौधों को कटनी तक साथ-साथ बढ़ने दो. उस समय मैं मज़दूरों को आज्ञा दूँगा, जंगली पौधे इकट्ठा कर उनकी पूलियाँ बान्ध दो कि उन्हें जला दिया जाए किन्तु गेहूं मेरे खलिहान में इकट्ठा कर दो.’”
राई के बीज का दृष्टान्त
(मारक 4:30-34)
31 येशु ने उनके सामने एक अन्य दृष्टान्त प्रस्तुत किया: “स्वर्ग-राज्य एक राई के बीज के समान है, जिसे एक व्यक्ति ने अपने खेत में रोप दिया. 32 यह अन्य सभी बीजों की तुलना में छोटा होता है किन्तु जब यह पूरा विकसित हुआ तब खेत के सभी पौधों से अधिक बड़ा हो गया और फिर वह बढ़कर एक पेड़ में बदल गया कि पक्षी आ कर उसकी डालिओं में बसेरा करने लगे.”
33 येशु ने उनके सामने एक और दृष्टान्त प्रस्तुत किया: “स्वर्ग-राज्य ख़मीर के समान है, जिसे एक स्त्री ने ले कर तीन माप आटे में मिला दिया और होते-होते सारा आटा ख़मीर बन गया, यद्यपि आटा बड़ी मात्रा में था.”
34 येशु ने ये पूरी शिक्षाएं भीड़ को दृष्टान्तों में दीं. कोई भी शिक्षा ऐसी न थी, जो दृष्टान्त में न दी गई 35 कि भविष्यद्वक्ता द्वारा की गई यह भविष्यवाणी पूरी हो जाए:
मैं दृष्टान्तों में वार्तालाप करूँगा,
मैं वह सब कहूँगा, जो सृष्टि के आरम्भ से गुप्त है.
जंगली बीज के दृष्टान्त की व्याख्या
36 जब येशु भीड़ को छोड़ कर घर के भीतर चले गए, उनके शिष्यों ने उनके पास आ कर उनसे विनती की, “गुरुवर, हमें खेत के जंगली बीज का दृष्टान्त समझा दीजिए.”
37 येशु ने दृष्टान्त की व्याख्या इस प्रकार की “अच्छे बीज बोनेवाला मनुष्य का पुत्र है. 38 खेत यह संसार है. अच्छा बीज राज्य की सन्तान हैं तथा जंगली बीज शैतान की. 39 शत्रु, जिसने उनको बोया है, शैतान है. कटनी इस युग का अन्त तथा काटने के लिए निर्धारित मज़दूर स्वर्गदूत हैं.
40 “इसलिए ठीक जिस प्रकार जंगली पौधे कटने के बाद आग में स्वाहा कर दिए जाते हैं, युग के अन्त में ऐसा ही होगा. 41 मानव-पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उस के राज्य में पतन के सभी कारणों तथा कुकर्मियों को इकट्ठा करेंगे और 42 उन्हें आग कुण्ड में झोंक देंगे, जहाँ लगातार रोना तथा दाँतों का पीसना होता रहेगा. 43 तब धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य के समान चमकेंगे. जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले.”
छुपे हुए खज़ाने का दृष्टान्त
44 “स्वर्ग-राज्य खेत में छिपाए गए उस खज़ाने के समान है, जिसे एक व्यक्ति ने पाया और दोबारा छिपा दिया. आनन्द में उसने अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर उस खेत को मोल ले लिया.
45 “स्वर्ग-राज्य उस व्यापारी के समान है, जो अच्छे मोतियों की खोज में था. 46 एक कीमती मोती मिल जाने पर उसने अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर उस मोती को मोल ले लिया.
मछली के विशाल जाल का दृष्टान्त
47 “स्वर्ग-राज्य समुद्र में डाले गए उस जाल के समान है, जिसमें सभी प्रजातियों की मछलियां आ जाती हैं. 48 जब वह जाल भर गया और खींच कर तट पर लाया गया, उन्होंने बैठ कर अच्छी मछलियों को टोकरी में इकट्ठा कर लिया तथा निकम्मी को फेंक दिया. 49 युग के अन्त में ऐसा ही होगा. स्वर्गदूत आएंगे और दुष्टों को धर्मियों के मध्य से निकाल कर अलग करेंगे 50 तथा उन्हें आग के कुण्ड में झोंक देंगे, जहाँ रोना तथा दाँतों का पीसना होता रहेगा.
51 “क्या तुम्हें अब यह सब समझ आया?” उन्होंने उत्तर दिया.
“जी हाँ, प्रभु.”
52 येशु ने उनसे कहा, “यही कारण है कि व्यवस्था का हर एक शिक्षक, जो स्वर्ग-राज्य के विषय में प्रशिक्षित किया जा चुका है, परिवार के प्रधान के समान है, जो अपने भण्डार से नई और पुरानी हर एक वस्तु को निकाल लाता है.”
नाज़रेथवासियों द्वारा विश्वास करने में विरोध
(मारक 6:1-6)
53 दृष्टान्तों में अपनी शिक्षा दे चुकने पर येशु उस स्थान से चले गए.
54 तब येशु अपने गृहनगर में आए और वहाँ वह यहूदी-सभागृह में लोगों को शिक्षा देने लगे. इस पर वे चकित हो कर आपस में कहने लगे, “इस व्यक्ति को यह ज्ञान तथा इन अद्भुत कामों का सामर्थ्य कैसे प्राप्त हो गया? 55 क्या यह उस बढ़ई का पुत्र नहीं? और क्या इसकी माता का नाम मरियम नहीं और क्या याक़ोब, योसेफ़, शिमोन और यहूदाह इसके भाई नहीं? 56 और क्या इसकी बहनें हमारे बीच नहीं? तब इसे ये सब कैसे प्राप्त हो गया?” 57 वे येशु के प्रति क्रोध से भर गए.
इस पर येशु ने उनसे कहा, “अपने गृहनगर और परिवार के अलावा भविष्यद्वक्ता कहीं भी अपमानित नहीं होता.”
58 लोगों के अविश्वास के कारण येशु ने उस नगर में अधिक अद्भुत काम नहीं किए.
बारनबास तथा पौलॉस की सेवा का उद्देश्य
येरूशालेम महासभा. सेवा कार्य के लिए भेजा जाना
13 अन्तियोख़ नगर की कलीसिया में अनेक भविष्यद्वक्ता और शिक्षक थे: बारनबास, सिमियॉन, जिनका उपनाम निगेर भी था, कुरेनी लुकियॉस, मनाहेन, जिसका पालन-पोषण राज्य के चौथाई भाग के राजा हेरोदेस के साथ हुआ था तथा शाऊल. 2 जब ये लोग प्रभु की आराधना और उपवास कर रहे थे, पवित्रात्मा ने उनसे कहा, “बारनबास तथा शाऊल को उस सेवा के लिए समर्पित करो, जिसके लिए मैंने उनको बुलाया है.” 3 इसलिए जब वे उपवास और प्रार्थना कर चुके, उन्होंने बारनबास तथा शाऊल पर हाथ रखे और उन्हें इस सेवा के लिए भेज दिया.
कुभॉस: एलिमॉस टोनहा
4 पवित्रात्मा द्वारा भेजे गए वे सेल्युकिया नगर गए तथा वहाँ से जलमार्ग से कुप्रास नगर गए. 5 वहाँ से सालामिस नगर पहुँच कर उन्होंने यहूदियों के सभागृह में परमेश्वर के सन्देश का प्रचार किया. सहायक के रूप में योहन भी उनके साथ थे.
6 जब वे सारे द्वीप को घूम कर पाफ़ॉस नगर पहुँचे, जहाँ उनकी भेंट बार-येशु नामक एक यहूदी व्यक्ति से हुई, जो जादूगर तथा झूठा भविष्यद्वक्ता था. 7 वह राज्यपाल सेरगियॉस पौलॉस का सहयोगी था. सेरगियॉस पौलॉस बुद्धिमान व्यक्ति था. उसने बारनबास तथा शाऊल को बुलवा कर उनसे परमेश्वर के वचन को सुनने की अभिलाषा व्यक्त की 8 किन्तु जादूगर एलिमॉस—जिसके नाम का ही अर्थ है जादूगर—उनका विरोध करता रहा. उसका प्रयास था राज्यपाल को परमेश्वर के वचन में विश्वास करने से रोकना, 9 किन्तु शाऊल ने, जिन्हें पौलॉस नाम से भी जाना जाता है, पवित्रात्मा से भरकर उसे एकटक देखते हुए कहा, 10 “ओ सारे छल और कपट से ओत-प्रोत शैतान के कपूत! सारे धर्म के बैरी! क्या तू प्रभु की सच्चाई को भ्रष्ट करने के प्रयासों को नहीं छोड़ेगा? 11 देख ले, तुझ पर प्रभु का प्रहार हुआ है. तू अंधा हो जाएगा और कुछ समय के लिए सूर्य की रोशनी न देख सकेगा.” उसी क्षण उस पर धुन्धलापन और अन्धकार छा गया. वह यहाँ-वहाँ टटोलने लगा कि कोई हाथ पकड़ कर उसकी सहायता करे. 12 इस घटना को देख राज्यपाल ने प्रभु में विश्वास किया. प्रभु की शिक्षाओं ने उसे चकित कर दिया था.
पिसिदिया प्रदेश के अन्तियोख़ में पौलॉस
13 पौलॉस और उनके साथियों ने पाफ़ॉस नगर से समुद्री यात्रा शुरु की और वे पम्फ़ूलिया प्रदेश के पेरगे नगर में जा पहुँचे. योहन उन्हें वहीं छोड़कर येरूशालेम लौट गए. 14 तब वे पेरगे से होते हुए पिसिदिया प्रदेश के अन्तियोख़ नगर पहुँचे और शब्बाथ पर यहूदी सभागृह में जाकर बैठ गए. 15 जब व्यवस्था तथा भविष्यद्वक्ताओं के ग्रंथों का पढ़ना समाप्त हो चुका, सभागृह के अधिकारियों ने उनसे कहा, “प्रियजन, यदि आप में से किसी के पास लोगों के प्रोत्साहन के लिए कोई वचन है तो कृपा कर वह उसे यहाँ प्रस्तुत करे.”
यहूदियों के सामने पौलॉस द्वारा भाषण
16 इस पर पौलॉस ने हाथ से संकेत करते हुए खड़े होकर कहा. “इस्राएलवासियो तथा परमेश्वर के श्रद्धालुओ, सुनो! 17 इस्राएल के परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को चुना तथा मिस्र देश में उनके घर की अवधि में उन्हें एक फलवन्त राष्ट्र बनाया और प्रभु ही अपने बाहुबल से उन्हें उस देश से बाहर निकाल लाए; 18 इसके बाद जंगल में वह लगभग चालीस वर्ष तक उनके प्रति सहनशील बने रहे 19 और उन्होंने कनान देश की सात जातियों को नाश कर उनकी भूमि अपने लोगों को मीरास में दे दी. 20 इस सारी प्रक्रिया में लगभग चार सौ पचास वर्ष लगे.
“इसके बाद परमेश्वर उनके लिए भविष्यद्वक्ता शमुएल के आने तक न्यायाधीश ठहराते रहे. 21 फिर इस्राएल ने अपने लिए राजा की विनती की. इसलिए परमेश्वर ने उन्हें बिन्यामीन के वंश से कीश का पुत्र शाऊल दे दिया, जो चालीस वर्ष तक उनका राजा रहा. 22 परमेश्वर ने शाऊल को पद से हटा कर उसके स्थान पर दाविद को राजा बनाया जिनके विषय में उन्होंने स्वयं कहा था कि यिशै का पुत्र दाविद मेरे मन के अनुसार व्यक्ति है. वही मेरी सारी इच्छा पूरी करेगा.
23 “उन्हीं के वंश से, अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार, परमेश्वर ने इस्राएल के लिए एक उद्धारकर्ता मसीह येशु की उत्पत्ति की. 24 मसीह येशु के आने के पहले योहन ने सारी इस्राएली प्रजा में पश्चाताप के बपतिस्मे का प्रचार किया. 25 अपनी तय की हुई सेवा का कार्य पूरा करते हुए योहन घोषणा करते रहे, ‘क्या है मेरे विषय में आपका विश्वास? मैं वह नहीं हूँ. यह समझ लीजिए: मेरे बाद एक आ रहे हैं. मैं जिनकी जूती का बन्ध खोलने योग्य तक नहीं हूँ.’
26 “अब्राहाम की सन्तान, मेरे प्रियजन तथा आप के बीच, जो परमेश्वर के श्रद्धालु हैं, सुनें कि यही उद्धार का सन्देश हमारे लिए भेजा गया है. 27 येरूशालेमवासियों तथा उनके शासकों ने न तो मसीह येशु को पहचाना और न ही भविष्यद्वक्ताओं की आवाज़ को, जिनका पढ़ना हर एक शब्बाथ पर किया जाता है और जिनकी पूर्ति उन्होंने मसीह को दण्ड देकर की, 28 हालांकि उन्हें मार डालने का उनके सामने कोई भी आधार नहीं था—उन्होंने पिलातॉस से उनके मृत्युदण्ड की माँग की. 29 जब उनके विषय में की गई सारी भविष्यद्वाणियों को वे लोग पूरा कर चुके, उन्हें क्रूस से उतार कर क़ब्र की गुफ़ा में रख दिया गया 30 किन्तु परमेश्वर ने उन्हें मरे हुओं में से दोबारा जीवित कर दिया. 31 अनेक दिन तक वह स्वयं को उनके सामने साक्षात प्रकट करते रहे, जो उनके साथ गलील प्रदेश से येरूशालेम आए हुए थे और जो आज तक इन लोगों के सामने उनके गवाह हैं.
32 “हम आपके सामने हमारे पूर्वजों से की गई प्रतिज्ञा का ईश्वरीय सुसमाचार ला रहे हैं 33 कि परमेश्वर ने हमारी सन्तान के लिए मसीह येशु को मरे हुओं में से जीवित कर अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा कर दिया है—जैसा कि भजन संहिता दो में लिखा है:
“‘तुम मेरे पुत्र हो;
आज मैंने तुम्हें जन्म दिया है.’
34 परमेश्वर ने उन्हें कभी न सड़ने के लिए मरे हुओं में से जीवित किया. यह सच्चाई इन शब्दों में बयान की गई है,
“‘मैं तुम्हें दाविद की पवित्र तथा अटल आशीषें प्रदान करूँगा.’
35 एक अन्य भजन में कहा गया है:
“‘आप अपने पवित्र जन को सड़ने न देंगे.’
36 “दाविद अपने जीवनकाल में परमेश्वर के उद्धेश्य को पूरा करके हमेशा के लिए सो गए और अपने पूर्वजों में मिल गए और उनका शरीर सड़ भी गया. 37 किन्तु वह, जिन्हें परमेश्वर ने मरे हुओं में से जीवित किया, सड़ने नहीं पाया.
38 “इसलिए प्रियजन, सही यह है कि आप यह समझ लें कि आपके लिए इन्हीं के द्वारा पाप-क्षमा की घोषणा की जाती है. 39 इन पापों से मुक्त करने में मोशेह की व्यवस्था हमेशा असफल रही है. हर एक, जो विश्वास करता है, वह सभी पापों से मुक्त किया जाता है. 40 इसलिए इस विषय में सावधान रहो कि कहीं भविष्यद्वक्ताओं का यह कथन तुम पर लागू न हो जाए:
41 “‘अरे ओ निन्दा करनेवालों!
देखो, चकित हो और मर मिटो!
क्योंकि मैं तुम्हारे सामने कुछ ऐसा करने पर हूँ
जिस पर तुम कभी विश्वास न करोगे,
हाँ, किसी के द्वारा स्पष्ट करने पर भी नहीं.’”
42 जब पौलॉस और बारनबास यहूदी सभागृह से बाहर निकल रहे थे, लोगों ने उनसे विनती की कि वे आनेवाले शब्बाथ पर भी इसी विषय पर आगे प्रवचन दें. 43 जब सभा समाप्त हुई अनेक यहूदी और यहूदीमत में से आए हुए नए विश्वासी पौलॉस तथा बारनबास के साथ हो लिए. पौलॉस तथा बारनबास ने उनसे परमेश्वर के अनुग्रह में स्थिर रहने की विनती की.
पौलॉस और बारनबास का अन्यजातियों के लिए भाषण
44 अगले शब्बाथ पर लगभग सारा नगर परमेश्वर का वचन सुनने के लिए उमड़ पड़ा. 45 उस बड़ी भीड़ को देख यहूदी जलन से भर गए तथा पौलॉस द्वारा पेश किए गए विचारों का विरोध करते हुए उनकी घोर निन्दा करने लगे. 46 किन्तु पौलॉस तथा बारनबास ने निडरता से कहा: “यह ज़रूरी था कि परमेश्वर का वचन सबसे पहिले आपके सामने स्पष्ट किया जाता. अब, जबकि आप लोगों ने इसे नकार दिया है और यह करते हुए स्वयं को अनन्त जीवन के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है, हम अपना ध्यान अब अन्यजातियों की ओर केन्द्रित करेंगे, 47 क्योंकि हमारे लिए परमेश्वर की आज्ञा है:
“‘मैंने तुमको अन्यजातियों के लिए एक ज्योति के रूप में चुना है,
कि तुम्हारे द्वारा सारी पृथ्वी पर उद्धार लाया जाए.’”
48 यह सुन कर अन्यजाति आनन्द में प्रभु के वचन की प्रशंसा करने लगे तथा अनन्त जीवन के लिए पहले से ठहराए गए सुननेवालों ने इस पर विश्वास किया.
49 सारे क्षेत्र में प्रभु का वचन-सन्देश फैलता चला गया. 50 किन्तु यहूदियों ने नगर की भली, श्रद्धालु स्त्रियों तथा ऊँचे पद पर बैठे व्यक्तियों को भड़का दिया और पौलॉस और बारनबास के विरुद्ध उपद्रव करवा कर उन्हें अपने क्षेत्र की सीमा से निकाल दिया. 51 पौलॉस और बारनबास उनके प्रति विरोध प्रकट करते हुए अपने पैरों की धूलि झाड़ते हुए इकोनियॉन नगर की ओर चले गए. 52 प्रभु के शिष्य आनन्द और पवित्रात्मा से भरते चले गए.
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