M’Cheyne Bible Reading Plan
फ़रीसियों द्वारा अद्भुत चिह्न की माँग
(मारक 8:11-13)
16 तब फ़रीसी और सदूकी येशु के पास आए और उनको परखने के लिए उन्हें कोई अद्भुत चिह्न दिखाने को कहा.
2 येशु ने उनसे कहा,[a] “सायंकाल होने पर तुम कहते हो कि मौसम अनुकूल रहेगा क्योंकि आकाश में लालिमा है. 3 इसी प्रकार प्रातःकाल तुम कहते हो कि आज आँधी आएगी क्योंकि आकाश धूमिल है और आकाश में लालिमा है. तुम आकाश के स्वरूप को तो पहचान लेते हो किन्तु वर्तमान समय के चिह्नों को नहीं! 4 व्यभिचारी और परमेश्वर के प्रति निष्ठाहीन पीढ़ी चिह्न खोजती है किन्तु इसे योनाह के चिह्न के अतिरिक्त और कोई चिह्न नहीं दिया जाएगा.” और येशु उन्हें वहीं छोड़ कर चले गए.
गलत शिक्षा के प्रति चेतावनी
(मारक 8:14-21)
5 झील की दूसरी ओर पहुँचने पर शिष्यों ने पाया कि वे अपने साथ भोजन रखना भूल गए थे. 6 उसी समय येशु ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा, “फ़रीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान रहना.”
7 इस पर शिष्य आपस में विचार-विमर्श करने लगे, “क्या प्रभु ने यह इसलिए कहा है कि हम भोजन साथ लाना भूल गए?”
8 येशु उनकी स्थिति से अवगत थे, इसलिए उन्होंने शिष्यों से कहा, “अरे अल्प विश्वासियो! क्यों इस विवाद में उलझे हुए हो कि तुम्हारे पास भोजन नहीं है? 9 क्या तुम्हें अब भी समझ नहीं आया? क्या तुम्हें पाँच हज़ार के लिए पाँच रोटियां याद नहीं? तुमने वहाँ शेष रोटियों से भरे कितने टोकरे उठाए थे? 10 या चार हज़ार के लिए वे सात रोटियां. तुमने वहाँ शेष रोटियों से भरे कितने टोकरे उठाए थे? 11 भला कैसे यह तुम्हारी समझ से परे है कि यहाँ मैंने भोजन का वर्णन नहीं किया है? परन्तु यह कि मैंने तुम्हें फ़रीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान किया है.” 12 तब उन्हें यह विषय समझ में आया कि येशु रोटी के ख़मीर का नहीं परन्तु फ़रीसियों और सदूकियों की गलत शिक्षा का वर्णन कर रहे थे.
पेतरॉस की विश्वास-स्वीकृति
(मारक 8:27-30; लूकॉ 9:18-20)
13 जब येशु कयसरिया फ़िलिप्पी क्षेत्र में पहुँचे, उन्होंने अपने शिष्यों के सामने यह प्रश्न रखा: “लोगो के मत में मनुष्य के पुत्र कौन है?”
14 शिष्यों ने उत्तर दिया, “कुछ के मतानुसार बपतिस्मा देने वाला योहन, कुछ अन्य के अनुसार एलियाह और कुछ के अनुसार यिर्मयाह या भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक.”
15 तब येशु ने उनसे प्रश्न किया, “किन्तु तुम्हारे मत में मैं कौन हूँ?”
16 शिमोन पेतरॉस ने उत्तर दिया, “आप ही मसीह हैं—जीवन्त परमेश्वर के पुत्र.”
17 इस पर येशु ने उनसे कहा, “योनाह के पुत्र शिमोन, धन्य हो तुम! तुम पर इस सच का प्रकाशन कोई मनुष्य का काम नहीं परन्तु मेरे पिता का है, जो स्वर्ग में हैं. 18 मैं तुम पर एक और सच प्रकट कर रहा हूँ: तुम पेतरॉस हो. अपनी कलीसिया का निर्माण मैं इसी पत्थर पर करूँगा. अधोलोक के फ़ाटक इस पर अधिकार न कर सकेंगे. 19 तुम्हें मैं स्वर्ग-राज्य की कुंजियाँ सौंपूँगा. जो कुछ पृथ्वी पर तुम्हारे द्वारा इकट्ठा किया जाएगा, वह स्वर्ग में भी इकट्ठा होगा और जो कुछ तुम्हारे द्वारा पृथ्वी पर खुलेगा, वह स्वर्ग में भी खुलेगा.”
20 इसके बाद येशु ने शिष्यों को सावधान किया कि वे किसी पर भी यह प्रकट न करें कि वही मसीह हैं.
दुःखभोग और क्रूस की मृत्यु की पहिली भविष्यवाणी
(मत्ति 16:21-28; मारक 8:31; 9:1; लूकॉ 9:21-27)
21 इस समय से येशु ने शिष्यों पर यह स्पष्ट करना प्रारम्भ कर दिया कि उनका येरूशालेम नगर जाना, पुरनियों, प्रधान याजक और शास्त्रियों द्वारा उन्हें यातना दिया जाना, मार डाला जाना तथा तीसरे दिन मरे हुओं में से जीवित किया जाना अवश्य है.
22 यह सुन पेतरॉस येशु को अलग ले गए और उन्हें झिड़की देते हुए कहने लगे, “परमेश्वर ऐसा न करें, प्रभु! आपके साथ ऐसा कभी न होगा.”
23 किन्तु येशु पेतरॉस से उन्मुख हो बोले, “दूर हो जा मेरी दृष्टि से, शैतान! तू मेरे लिए बाधा है! तेरा मन परमेश्वर सम्बन्धित विषयों में नहीं परन्तु मनुष्य सम्बन्धी विषयों में है.”
24 इसके बाद येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपना त्याग कर अपना क्रूस उठाए और मेरे पीछे हो ले. 25 जो कोई अपने जीवन को बचाना चाहता है, वह उसे गँवा देगा तथा जो कोई मेरे लिए अपने प्राणों की हानि उठाता है, उसे सुरक्षित पाएगा. 26 भला इसका क्या लाभ कि कोई व्यक्ति पूरा संसार तो प्राप्त करे किन्तु अपना प्राण खो दे? किस वस्तु से मनुष्य अपने प्राण का बदला कर सकता है? 27 मानव-पुत्र अपने पिता की महिमा में अपने स्वर्गदूतों के साथ आएगा, तब वह हर एक मनुष्य को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल देगा.
28 “सच तो यह है कि यहाँ कुछ हैं, जो मृत्यु का स्वाद तब तक नहीं चखेंगे, जब तक वे मनुष्य के पुत्र का उसके राज्य में प्रवेश न देख लें.”
16 वह दरबे और लुस्त्रा नगर भी गए. वहाँ तिमोथियॉस नामक एक शिष्य थे जिनकी माता यहूदी मसीही शिष्या परन्तु पिता यूनानी थे. 2 तिमोथियॉस इकोनियॉन और लुस्त्रा नगरों के शिष्यों में सम्मानित थे. 3 पौलॉस की इच्छा तिमोथियॉस को अपने साथी के रूप में साथ रखने की थी इसलिए पौलॉस ने उनका ख़तना किया क्योंकि वहाँ के यहूदी यह जानते थे कि तिमोथियॉस के पिता यूनानी हैं. 4 वे नगर-नगर यात्रा करते हुए शिष्यों को वे सभी आज्ञा सौंपते जाते थे, जो येरूशालेम में प्रेरितों और पुरनियों द्वारा ठहराई गयी थी. 5 इसलिए कलीसिया प्रतिदिन विश्वास में स्थिर होती गईं तथा उनकी संख्या में प्रतिदिन बढ़ोतरी होती गई.
आसिया प्रदेश में प्रवेश
6 वे फ़्रिजिया तथा गलातिया क्षेत्रों में से होते हुए आगे बढ़ गए. पवित्रात्मा की आज्ञा थी कि वे आसिया क्षेत्र में परमेश्वर के वचन का प्रचार न करें 7 किन्तु मूसिया नगर पहुँचने पर उन्होंने बिथुनिया नगर जाने का विचार किया किन्तु मसीह येशु के आत्मा ने उन्हें इसकी आज्ञा नहीं दी. 8 इसलिए मूसिया नगर से निकल कर वे त्रोऑस नगर पहुँचे. 9 रात में पौलॉस ने एक दर्शन देखा: एक मकेदोनियावासी उनसे दुःखी शब्द में विनती कर रहा था, “मकेदोनिया क्षेत्र में आकर हमारी सहायता कीजिए!” 10 पौलॉस द्वारा इस दर्शन देखते ही हमने तुरन्त यह जानकर कि परमेश्वर का बुलावा है मकेदोनिया क्षेत्र जाने की योजना बनाई कि हम उनके बीच ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करें.
फ़िलिप्पॉय नगर में पौलॉस
11 त्रोऑस नगर से हम सीधे जलमार्ग द्वारा सामोथ्रेसिया नगर पहुँचे और दूसरे दिन नियापोलिस नगर 12 और वहाँ से फ़िलिप्पॉय नगर, जो मकेदोनिया प्रदेश का एक प्रधान नगर तथा रोमी बस्ती है. हम यहाँ कुछ दिन ठहर गए.
13 शब्बाथ पर हम नगर द्वार से निकल कर प्रार्थना के लिए निर्धारित स्थान की खोज में नदी-तट पर चले गए. हम वहाँ इकट्ठी हुई स्त्रियों से वार्तालाप करते हुए बैठ गए. 14 वहाँ थुआतेइरा नगर निवासी लुदिया नामक एक स्त्री थी, जो परमेश्वर की आराधक थी. वह बैंगनी रंग के वस्त्रों की व्यापारी थी. उसने हमारा वार्तालाप सुना और प्रभु ने पौलॉस द्वारा दी जा रही शिक्षा के प्रति उसका हृदय खोल दिया. 15 जब उसने और उसके रिश्तेदारों ने बपतिस्मा ले लिया तब उसने हमको अपने यहाँ आमन्त्रित करते हुए कहा, “यदि आप यह मानते हैं कि मैं प्रभु के प्रति विश्वासयोग्य हूँ, तो आ कर मेरे घर में रहिए.” उसने हमें विनती स्वीकार करने पर विवश कर दिया.
पौलॉस और सीलास बन्दीगृह में
16 एक दिन प्रार्थना स्थल की ओर जाते हुए मार्ग में हमारी भेंट एक युवा दासी से हुई, जिसमें एक ऐसी दुष्टात्मा थी, जिसकी सहायता से वह भविष्य प्रकट कर देती थी. वह अपने स्वामियों की बहुत आय का साधन बन गई थी. 17 यह दासी पौलॉस और हमारे पीछे-पीछे यह चिल्लाती हुए चलने लगी, “ये लोग परमप्रधान परमेश्वर के दास हैं, जो तुम पर उद्धार का मार्ग प्रकट कर रहे हैं.” 18 अनेक दिनों तक वह यही करती रही. अन्त में झुंझला कर पौलॉस पीछे मुड़े और उसके अंदर समाई दुष्टात्मा से बोले, “मसीह येशु के नाम में मैं तुझे आज्ञा देता हूँ, निकल जा उसमें से!” तुरन्त ही वह दुष्टात्मा उसे छोड़ कर चली गई.
19 जब उसके स्वामियों को यह मालूम हुआ कि उनकी आय की आशा जाती रही, वे पौलॉस और सीलास को पकड़ कर नगर चौक में प्रधान न्यायाधीशों के सामने ले गए 20 और उनसे कहने लगे, “इन यहूदियों ने नगर में उत्पात मचा रखा है. 21 ये लोग ऐसी प्रथाओं का प्रचार कर रहे हैं जिन्हें स्वीकार करना या पालन करना हम रोमी नागरिकों के लिए बिलकुल ठीक नहीं है.” 22 इस पर सारी भीड़ उनके विरुद्ध हो गई और प्रधान हाकिमों ने उनके वस्त्र फाड़ डाले और उन्हें बेंत लगाने की आज्ञा दी. 23 उन पर अनेक कठोर प्रहारों के बाद उन्हें कारागार में डाल दिया गया और कारागार-शासक को उन्हें कठोर सुरक्षा में रखने का निर्देश दिया. 24 इस आदेश पर कारागार-शासक ने उन्हें भीतरी कक्ष में डालकर उनके पैरों को लकड़ी की बेड़ियों में जकड़ दिया.
पौलॉस और सीलास का अद्भुत रीति से मुक्त होना
25 लगभग आधी रात के समय पौलॉस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे तथा परमेश्वर की स्तुति में भजन गा रहे थे. उनके साथी कैदी उनकी सुन रहे थे. 26 अचानक ऐसा बड़ा भूकम्प आया कि कारागार की नींव हिल गई, तुरन्त सभी द्वार खुल गए और सभी बन्दियों की बेड़ियाँ टूट गईं. 27 नींद से जागने पर कारागार-शासक ने सभी द्वार खुले पाए. यह सोच कर कि सारे कैदी भाग चुके हैं, वह तलवार से अपने प्राणों का अन्त करने जा ही रहा था 28 कि पौलॉस ने ऊँचे शब्द में उससे कहा, “स्वयं को कोई हानि न पहुंचाइए, हम सब यहीं हैं!”
29 कारागार-शासक रोशनी का इंतज़ाम करने के लिए आज्ञा देते हुए भीतर दौड़ गया और भय से काँपते हुए पौलॉस और सीलास के चरणों में गिर पड़ा. 30 इसके बाद उन्हें बाहर लाकर उसने उनसे प्रश्न किया, “श्रीमन, मुझे क्या करना चाहिए कि मुझे उद्धार प्राप्त हो?”
31 उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु मसीह येशु में विश्वास कीजिए, आपको उद्धार प्राप्त होगा—आपको तथा आपके परिवार को.” 32 तब उन्होंने कारागार-शासक और उसके सारे परिवार को प्रभु के वचन की शिक्षा दी. 33 कारागार-शासक ने रात में उसी समय उनके घावों को धोया. बिना देर किए उसने और उसके परिवार ने बपतिस्मा लिया. 34 इसके बाद वह उन्हें अपने घर ले आया और उन्हें भोजन कराया. परमेश्वर में सपरिवार विश्वास कर के वे सभी बहुत आनन्दित थे.
35 अगले दिन प्रधान हाकिमों ने अपने अधिकारियों द्वारा यह आज्ञा भेजी, “उन व्यक्तियों को छोड़ दो.” 36 कारागार-शासक ने इस आज्ञा की सूचना पौलॉस को देते हुए कहा, “प्रधान न्यायाधीशों ने आपको छोड़ देने की आज्ञा दी है. इसलिए आप शान्तिपूर्वक यहाँ से विदा हो सकते हैं.”
37 पौलॉस ने उन्हें उत्तर दिया, “उन्होंने हमें बिना किसी मुकद्दमे के सबके सामने पिटवाया, जबकि हम रोमी नागरिक हैं, फिर हमें कारागार में भी डाल दिया और अब वे हमें चुपचाप बाहर भेजना चाह रहे हैं! बिलकुल नहीं! स्वयं उन्हीं को यहाँ आने दीजिए, वे ही हमें यहाँ से बाहर छोड़ देंगे.”
38 उन अधिकारियों ने यह सब प्रधान न्यायाधीशों को जा बताया. यह मालूम होने पर कि पौलॉस तथा सीलास रोमी नागरिक हैं वे बहुत ही डर गए. 39 तब वे स्वयं आकर पौलॉस तथा सीलास को मनाने लगे और उन्हें कारागार से बाहर लाकर उनसे नगर से चले जाने की विनती करते रहे. 40 तब पौलॉस तथा सीलास कारागार से निकल कर लुदिया के घर गए. वहाँ शिष्यों से भेंट कर उन्हें प्रोत्साहित करते हुए वे वहाँ से विदा हो गए.
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