Print Page Options
Previous Prev Day Next DayNext

M’Cheyne Bible Reading Plan

The classic M'Cheyne plan--read the Old Testament, New Testament, and Psalms or Gospels every day.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
Error: 'उत्पत्ति 21 ' not found for the version: Saral Hindi Bible
मत्तियाह 20

विभिन्न समयों पर लगाए गए मज़दूरों का दृष्टान्त

20 “स्वर्ग-राज्य दाख की बारी के उस स्वामी के समान है, जो सवेरे अपने उद्यान के लिए मज़दूर लाने निकला. जब वह मज़दूरों से एक दीनार रोज़ की मज़दूरी पर सहमत हो गया, उसने उन्हें दाख की बारी में काम करने भेज दिया.

“दिन के तीसरे घण्टे जब वह दोबारा नगर-चौक से जा रहा था, उसने वहाँ कुछ मज़दूरों को बेकार खड़े पाया. उसने उनसे कहा, ‘तुम भी जा कर मेरे दाख की बारी में काम करो. जो कुछ सही होगा, मैं तुम्हें दूँगा.’ इसलिए वे चले गए. वह दोबारा छठे तथा नवें घण्टे नगर-चौक में गया और ऐसा ही किया. लगभग ग्यारहवें घण्टे वह दोबारा वहाँ गया और कुछ अन्यों को वहाँ खड़े पाया. उसने उनसे प्रश्न किया, ‘तुम सारे दिन यहाँ बेकार क्यों खड़े रहे?’

“‘उन्होंने उसे उत्तर दिया’, ‘इसलिए कि किसी ने हमें काम नहीं दिया’.

“उसने उनसे कहा, ‘तुम भी मेरे दाख की बारी में चले जाओ.’

“साँझ होने पर दाख की बारी के स्वामी ने प्रबन्धक को आज्ञा दी, ‘अन्त में आए मज़दूरों से प्रारम्भ करते हुए सबसे पहले काम पर लगाए गए मज़दूरों को उनकी मज़दूरी दे दो.’

“उन मज़दूरों को, जो ग्यारहवें घण्टे काम पर लगाए गए थे, एक-एक दीनार मिला. 10 इस प्रकार सबसे पहले आए मज़दूरों ने सोचा कि उन्हें अधिक मज़दूरी प्राप्त होगी किन्तु उन्हें भी एक-एक दीनार ही मिला. 11 इसलिए वे स्वामी पर बड़बड़ाने लगे, 12 ‘अन्त में आए इन मज़दूरों ने मात्र एक ही घण्टा काम किया है और आपने उन्हें हमारे बराबर ला दिया, जबकि हमने दिन की तेज़ धूप में कठोर परिश्रम किया.’

13 “बारी के मालिक ने उन्हें उत्तर दिया, ‘मित्र मैं तुम्हारे साथ कोई अन्याय नहीं कर रहा. क्या हम एक दीनार मज़दूरी पर सहमत न हुए थे? 14 जो कुछ तुम्हारा है उसे स्वीकार कर लो और जाओ. मेरी इच्छा यही है कि अन्त में काम पर आए मज़दूर को उतना ही दूँ जितना तुम्हें. 15 क्या यह न्यायसंगत नहीं कि मैं अपनी सम्पत्ति के साथ वह करूँ जो मैं चाहता हूँ? क्या मेरा उदार होना तुम्हारी आँखों में खटक रहा है?’

16 “इसलिए वे, जो अन्तिम हैं पहिले होंगे तथा जो पहिले हैं, वे अन्तिम.”

दुःखभोग और क्रूस की मृत्यु की तीसरी भविष्यवाणी

(मारक 10:32-34; लूकॉ 18:31-34)

17 जब येशु येरूशालेम नगर जाने पर थे, उन्होंने मात्र अपने बारह शिष्यों को अपने साथ लिया. मार्ग में येशु ने उनसे कहा, 18 “यह समझ लो कि हम येरूशालेम नगर जा रहे हैं, जहाँ मनुष्य के पुत्र को पकड़वाया जाएगा, प्रधान याजकों तथा शास्त्रियों के हाथों में सौंप दिया जाएगा और वे उसे मृत्युदण्ड के योग्य घोषित करेंगे. 19 इसके लिए मनुष्य के पुत्र को अन्यजातियों के हाथों में सौंप दिया जाएगा कि वे उसका ठठ्ठा करें, उसे कोड़े लगवाएं और उसे क्रूस पर चढ़ाएं किन्तु वह तीसरे दिन मरे हुओं में से जीवित किया जाएगा.”

ज़ेबेदियॉस की पत्नी की विनती

20 ज़ेबेदियॉस की पत्नी अपने पुत्रों के साथ येशु के पास आईं तथा येशु के सामने झुक कर उनसे एक विनती करनी चाही.

21 येशु ने उनसे पूछा, “आप क्या चाहती हैं?”

उन्होंने येशु को उत्तर दिया, “यह आज्ञा दे दीजिए कि आपके राज्य में मेरे ये दोनों पुत्र, एक आपके दायें तथा दूसरा आपके बायें बैठे.”

22 येशु ने दोनों भाइयों से उन्मुख हो कहा, “तुम समझ नहीं रहे कि तुम क्या माँग रहे हो! क्या तुममें उस प्याले को पीने की क्षमता है, जिसे मैं पीने पर हूँ?” “हाँ, प्रभु,” उन्होंने उत्तर दिया.

23 इस पर येशु ने उनसे कहा, “सचमुच मेरा प्याला तो तुम पियोगे किन्तु किसी को अपने दायें या बायें बैठाना मेरा अधिकार नहीं है. यह उनके लिए है, जिनके लिए यह मेरे पिता द्वारा तैयार किया गया है.”

अगुवा सेवक बने

(मारक 10:35-45)

24 यह सुन शेष दस शिष्य इन दोनों भाइयों पर क्रोधित हो गए; 25 किन्तु येशु ने उन सभी को अपने पास बुला कर उनसे कहा, “तुम यह तो जानते ही हो कि अन्यजातियों के राजा अपने आधीन रहनेवालों का शोषण करते तथा उनके हाकिम उन पर अपना अधिकार जताते हैं. 26 तुममें ऐसा नहीं है, तुममें जो महान बनने की इच्छा रखता है, वह तुम्हारा सेवक बने 27 तथा तुममें जो कोई श्रेष्ठ होना चाहता है, वह तुम्हारा दास हो. 28 ठीक जैसे मनुष्य का पुत्र यहाँ इसलिए नहीं आया कि अपनी सेवा करवाए परन्तु इसलिए कि सेवा करे और अनेकों की छुडौती के लिए अपना जीवन बलिदान कर दे.”

येरीख़ो नगर में अंधे व्यक्ति

(मारक 10:46-52; लूकॉ 18:35-43)

29 जब वे येरीख़ो नगर से बाहर निकल ही रहे थे, एक बड़ी भीड़ उनके साथ हो ली. 30 वहाँ मार्ग के किनारे दो अंधे व्यक्ति बैठे हुए थे. जब उन्हें यह अहसास हुआ कि येशु वहाँ से जा रहे हैं, वे पुकार-पुकार कर विनती करने लगे, “प्रभु! दाविद की सन्तान! हम पर कृपा कीजिए!”

31 भीड़ ने उन्हें झिड़कते हुए शान्त रहने की आज्ञा दी, किन्तु वे और भी अधिक ऊँचे शब्द में पुकारने लगे, “प्रभु! दाविद की सन्तान! हम पर कृपा कीजिए!”

32 येशु रुक गए, उन्हें पास बुलाया और उनसे प्रश्न किया, “क्या चाहते हो तुम? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?”

33 उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु! हम चाहते हैं कि हम देखने लगें.”

34 तरस खाकर येशु ने उनकी आँखें छुई. तुरन्त ही वे देखने लगे और वे येशु के पीछे हो लिए.

Error: 'नहेमायाह 10 ' not found for the version: Saral Hindi Bible
प्रेरित 20

इफ़ेसॉस नगर से पौलॉस का रवाना होना

20 नगर में कोलाहल शान्त होने पर पौलॉस ने शिष्यों को बुलवाया, उनको प्रोत्साहित किया और उनसे विदा लेकर मकेदोनिया प्रदेश की ओर रवाना हुआ. वह उन सभी क्षेत्रों में से होते हुए, वहाँ शिष्यों का उत्साह बढ़ाते हुए यूनान देश जा पहुँचे. वह वहाँ तीन महीने तक कार्य करते रहे किन्तु जब वह सीरिया प्रदेश की यात्रा प्रारम्भ करने पर थे, उन्हें यह सूचना प्राप्त हुई कि यहूदी उनके विरुद्ध षड्यन्त्र रच रहे हैं, तो उन्होंने मकेदोनिया प्रदेश से होते हुए लौट जाने का निश्चय किया. इस यात्रा में बेरोयावासी पायरूस के पुत्र सोपेतर, थेस्सलोनिकेयुस नगर के आरिस्तारख़ॉस, सेकुन्दुस, दरबे से गायॉस, तिमोथियॉस तथा आसिया प्रदेश से तुख़िकस व त्रोफ़िमस हमारे साथी यात्री थे. ये साथी यात्री हमसे आगे चले गए और त्रोऑस नगर पहुँच कर हमारा इंतज़ार करते रहे किन्तु हमने अख़मीरी रोटी के उत्सव के बाद ही फ़िलिप्पॉय नगर से जलमार्ग द्वारा यात्रा शुरु की. पाँच दिन में हम त्रोऑस नगर पहुँचे और अपने साथियों से मिले. वहाँ हम सात दिन रहे.

त्रोऑस नगर: पौलॉस द्वारा मृतक व्यक्ति का उत्थान

सप्ताह के पहिले दिन हम रोटी तोड़ने के लिए इकट्ठा हुए. पौलॉस ने वहाँ प्रवचन देना प्रारम्भ कर दिया, जो मध्यरात तक चलता गया क्योंकि उनकी योजना अगले दिन यात्रा प्रारम्भ करने की थी. उस ऊपरी कक्ष में, जहाँ सब इकट्ठा हुए थे, अनेक दीपक जल रहे थे. यूतिकुस नामक एक युवक खिड़की पर बैठा हुआ झपकियां ले रहा था. पौलॉस प्रवचन करते चले गए और उसे गहरी नीन्द आ गई. वह तीसरे तल से भूमि पर जा गिरा और उसकी मृत्यु हो गई. 10 पौलॉस नीचे गए, उसके पास जाकर उससे लिपट गए और कहा, “घबराओ मत, यह जीवित है.” 11 तब वह दोबारा ऊपर गए और रोटी तोड़ने की रीति पूरी की. वह उनसे इतनी लम्बी बातचीत करते रहे कि सुबह हो गई. इसके बाद वे वहाँ से चले गए. 12 उस युवक को वहाँ से जीवित ले जाते हुए उन सब के हर्ष की कोई सीमा न थी.

त्रोऑस नगर से मिलेतॉस नगर को

13 हम जलयान पर सवार हो अस्सेस नगर की ओर आगे बढ़े, जहाँ से हमें पौलॉस को साथ लेकर आगे बढ़ना था. पौलॉस वहाँ थल मार्ग से पहुँचे थे क्योंकि यह उन्हीं की पहले से ठहराई योजना थी. 14 अस्सेस नगर में उनसे भेंट होने पर हमने उन्हें जलयान में अपने साथ लिया और मितिलीन नगर जा पहुँचे. 15 दूसरे दिन वहाँ से यात्रा करते हुए हम किऑस नगर के पास से होते हुए सामोस नगर पहुँचे और उसके अगले दिन मिलेतॉस नगर. 16 पौलॉस ने इफ़ेसॉस नगर में न उतर कर आगे बढ़ते जाने का निश्चय किया क्योंकि वह चाहते थे कि आसिया प्रदेश में ठहरने के बजाय यदि सम्भव हो तो शीघ्र ही पेन्तेकॉस्त उत्सव के अवसर पर येरूशालेम पहुँच जाएँ.

इफ़ेसॉस नगर के कलीसिया-पुरनियों से विदाई

17 मिलेतॉस नगर से पौलॉस ने इफ़ेसॉस नगर को समाचार भेज कर कलीसिया के प्राचीनों को बुलवाया. 18 उनके वहाँ पहुँचने पर पौलॉस ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा: “आसिया प्रदेश में मेरे प्रवेश के पहिले दिन से आपको यह मालूम है कि मैं किस प्रकार हमेशा आपके साथ रहा, 19 और किस तरह सारी विनम्रता में आँसू बहाते हुए उन यातनाओं के बीच भी, जो यहूदियों के षड्यन्त्रों के कारण मुझ पर आईं, मैं प्रभु की सेवा करता रहा. 20 घर-घर जाकर तथा सार्वजनिक रूप से वह शिक्षा देने में, जो तुम्हारे लिए लाभदायक है, मैं कभी पीछे नहीं रहा. 21 मैं यहूदियों और यूनानियों से पूरी सच्चाई में पश्चाताप के द्वारा परमेश्वर की ओर मन फिराने तथा हमारे प्रभु मसीह येशु में विश्वास की विनती करता रहा हूँ.”

22 “अब, पवित्रात्मा की प्रेरणा में मैं येरूशालेम जा रहा हूँ. वहाँ मेरे साथ क्या होगा, इससे मैं अनजान हूँ; 23 बजाय इसके कि हर एक नगर में पवित्रात्मा मुझे सावधान करते रहते हैं कि मेरे लिए बेड़ियाँ और यातनाएँ तैयार हैं. 24 अपने जीवन से मुझे कोई मोह नहीं है सिवाय इसके कि मैं अपनी इस दौड़ को पूरा करूँ तथा उस सेवा कार्य को, जो प्रभु मसीह येशु द्वारा मुझे सौंपा गया है—पूरी सच्चाई में परमेश्वर के अनुग्रह के ईश्वरीय सुसमाचार के प्रचार की. 25 अब यह भी सुनो: मैं जानता हूँ कि तुम सभी, जिनके बीच मैंने राज्य का प्रचार किया है, अब मेरा मुख कभी न देख सकोगे. 26 इसलिए आज मैं तुम सब पर यह स्पष्ट कर रहा हूँ कि मैं किसी के भी विनाश का दोषी नहीं हूँ. 27 मैंने किसी पर भी परमेश्वर के सारे उद्देश्य को बताने में आनाकानी नहीं की. 28 तुम लोग अपना ध्यान रखो तथा उस समूह का भी, जिसका रखवाला तुम्हें पवित्रात्मा ने चुना है कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की देखभाल करो जिसे उन्होंने स्वयं अपना लहू देकर मोल लिया है. 29 मैं जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद तुम्हारे बीच फाड़नेवाले भेड़िये आ जाएँगे, जो इस समूह को नहीं छोड़ेंगे. 30 इतना ही नहीं, तुम्हारे बीच से ऐसे व्यक्तियों का उठना होगा, जो गलत शिक्षा देने लगेंगे और तुम्हारे ही झुण्ड़ में से अपने चेले बनाने लगेंगे. 31 इसलिए यह याद रखते हुए सावधान रहो कि तीन वर्ष तक मैंने दिन-रात आँसू बहाते हुए तुम्हें चेतावनी देने में कोई ढील नहीं दी.”

32 “अब मैं तुम्हें प्रभु और उनके अनुग्रह के वचन की देखभाल में सौंप रहा हूँ, जिसमें तुम्हारे विकास करने तथा तुम्हें उन सबके साथ मीरास प्रदान करने की क्षमता है, जो प्रभु के लिए अलग किए गए हैं. 33 मैंने किसी के स्वर्ण, रजत या वस्त्र का लालच नहीं किया. 34 तुम सब स्वयं जानते हो कि अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए तथा उनके लिए भी, जो मेरे साथ रहे, मैंने अपने इन हाथों से मेहनत की है. 35 हर एक परिस्थिति में मैंने तुम्हारे सामने यही आदर्श प्रस्तुत किया है कि यह ज़रूरी है कि हम दुर्बलों की सहायता इसी रीति से कठिन परिश्रम के द्वारा करें. स्वयं प्रभु येशु द्वारा कहे गए ये शब्द याद रखो, ‘लेने के बजाय देना धन्य है.’”

36 जब पौलॉस यह कह चुके, उन्होंने घुटने टेककर उन सबके साथ प्रार्थना की. 37 तब शिष्य रोने लगे और पौलॉस से गले लगकर उन्हें बार-बार चूमने लगे. 38 उनकी पीड़ा का सबसे बड़ा कारण यह था कि पौलॉस ने कह दिया था कि अब वे उन्हें कभी न देख सकेंगे. इसके बाद वे सब पौलॉस के साथ जलयान तक गए.

Saral Hindi Bible (SHB)

New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.