M’Cheyne Bible Reading Plan
कनानियों से युद्ध
21 अराद का कनानी राजा नेगेव मरुभूमि में रहता था। उस ने सुना कि इस्राएल के लोग अथारीम को जाने वाली सड़क से आ रहे हैं। इसलिए राजा बाहर निकला और उसने इस्राएल के लोगों पर आक्रमण कर दिया। उसने उनमें से कुछ को पकड़ लिया और उन्हें बन्दी बनाया। 2 तब इस्राएल के लोगों ने यहोवा को यह वचन दियाः “हे यहोवा, इन लोगों को पराजित करने में हमारी मदद करो। उन्हें हमारे अधीन कर दो। यदि तु ऐसा करेगा, तो हम लोग उनके नगरों को पूरी तरह नष्ट कर देंगे।”
3 यहोवा ने इस्राएल के लोगों की प्रार्थना सुनी ओर यहोवा ने इस्राएल के लोगों से कनानी लोगों को हरवा दिया। इस्राएल के लोगों ने कनानी लोगों तथा उनके नगरों को पूरी तरह नष्ट कर दिया। इसलिए उस स्थान का नाम होर्मा पड़ा।
काँसे का साँप
4 इस्राएल के लोगों ने होर पर्वत को छोड़ा और लाल सागर के किनारे—किनारे चले। उन्होंने ऐसा इसलिए किया जिससे वे एदोम कहे जाने वाले स्थान के चारों ओर जा सकें। किन्तु लोगों को धीरज नहीं था। जिस समय वे चल रहे थे उसी समय उन्होनें लम्बी यात्रा के विरुद्ध शिकायत करनी आरम्भ की। 5 लोगों ने परमेश्वर और मूसा के विरुद्ध बातें की। लोगों ने कहा, “तुम हमें मिस्र से बाहर क्यों लाए हो? हम लोग यहाँ मरुभूमि में मर जाएंगे! यहाँ रोटी नहीं मिलती! यहाँ पानी नहीं है और हम लोग इस खराब भोजन से घृणा करते हैं।”
6 इसलिए यहोवा ने लोगों के बीच जहरीले साँप भेजे। साँपों ने उन लोगों को डसा और बहुत से लोग मर गए। 7 लोग मूसा के पास आए और उससे कहा, “हम जानते हैं कि जब हमने यहोवा और तुम्हारे विरुद्ध शिकायत की तो हमने पाप किया। यहोवा से प्रार्थना करो। उनसे कहो कि इन साँपों को दूर करे।” इसलिए मूसा ने लोगों के लिए प्रार्थना की।
8 यहोवा ने मूसा से कहा, “एक काँसे का साँप बनाओ और उसे एक ऊँचे डंडे पर रखो। यदि किसी व्यक्ति को साँप काटे, तो उस व्यक्ति को डंडे के ऊपर काँसे[a] के साँप को देखना चाहिए। तब वह व्यक्ति मरेगा नहीं।” 9 इसलिए मूसा ने यहोवा की आज्ञा मानी और एक काँसे का साँप बनाया तथा उसे एक डंडे के ऊपर रखा। तब जब किसी व्यक्ति को साँप काटता था तो वह डंडे के ऊपर के साँप को देखता था और जीवित रहता था।
होर पर्वत से मोआब घाटी को
10 इस्राएल के लोग यात्रा करते रहे। उन्होंने ओबोत नामक स्थान पर डेरा डाला। 11 तब लोगों ने ओबोत से ईय्ये अबीराम तक की यात्रा की और वहाँ डेरा डाला। यह मोआब के पूर्व में मरुभूमि में था। 12 तब लोगों ने उस स्थान को छोड़ा और जेरेद की यात्रा की। उन्होंने वहाँ डेरा डाला। 13 तब लोगों ने अर्नोन घाटी की यात्रा की। उन्होंने उस क्षेत्र के समीप डेरा डाला। यह एमोरियों के प्रदेश के पास मरुभूमि में था। अर्नोन घाटी मोआब और एमोरी लोगों के बीच की सीमा है। 14 यही कारण है कि यहोवा के युद्धों की पुस्तक में निम्न विवरण प्राप्त हैः
“और सूपा में वाहेब, अर्नोन की घाटी 15 और आर की बस्ती तक पहुँचाने वाली घाटी के किनारे की पहाड़ियाँ। ये स्थान मोआब की सीमा पर हैं।”
16 इस्राएल के लोगों ने उस स्थान को छोड़ा और उन्होंने बैर की यात्रा की। इस स्थान पर एक कुँआ था। यहोवा ने मूसा से कहा, “यहाँ सभी लोगों को इकट्ठा करो और मैं उन्हें पानी दूँगा।” 17 तब इस्राएल के लोगों ने यह गीत गायाः
“कुएँ! पानी से उमड़ बहो!
इसका गीत गाओ!
18 महापुरुषों ने इस कुएँ को खोदा।
महान नेताओं ने इस कुएँ को खोदा।
अपनी छड़ों और डण्डों से इसे खोदा।
यह मरुभूमि में एक भेंट[b] है।”
लोग “मत्ताना” नाम के कुएँ पर थे।
19 तब लोगों ने मत्ताना से नहलीएल की यात्रा की। तब उन्होंने नहलीएल से बामोत की यात्रा की। 20 लोगों ने बामोत घाटी की यात्रा की। इस स्थान पर पिसगा पर्वत की चोटी मरुभूमि के ऊपर दिखाई पड़ती है।
सीहोन और ओग
21 इस्राएल के लोगों ने कुछ व्यक्तियों को एमोरी लोगों के राजा सीहोन के पास भेजा। इन लोगों ने राजा से कहा,
22 “अपने देश से होकर हमें यात्रा करने दो। हम लोग किसी खेत या अंगूर के बाग से होकर नहीं जाएंगे। हम तुम्हारे किसी कुएँ से पानी नहीं पीएंगे। हम लोग केवल राजपथ से यात्रा करेंगे। हम लोग तब तक उस सड़क पर ही ठहरेंगे जब तक हम लोग तुम्हारे देश से होकर यात्रा पूरी नहीं कर लेते।”
23 किन्तु राजा सीहोन इस्राएल के लोगों को अपने देश से होकर यात्रा करने की अनुमति नहीं दी। राजा ने अपनी सेना इकट्ठी की और मरुभूमि की ओर चल पड़ा। वह इस्राएल के लोगों के विरुद्ध आक्रमण कर रहा था। यहस नाम के एक स्थान पर राजा की सेना ने इस्राएल के लोगों के साथ युद्ध किया।
24 किन्तु इस्राएल के लोगों ने राजा को मार डाला। तब उन्होंने अर्नोन घाटी से लेकर यब्बोक क्षेत्र तक के उसके प्रदेश पर अधिकार कर लिया। इस्राएल के लोगों ने अम्मोनी लोगों की सीमा तक के प्रदेश पर अधिकार किया। उन्होंने और अधिक क्षेत्र पर अधिकार नहीं जमाया क्योंकि वह सीमा अम्मोनी लोगों दूारा दृढ़ता से सुरक्षित थी। 25 किन्तु इस्रएल ने अम्मोनी लोगों के सभी नगरों पर कब्जा कर लिया। उन्होंने हेशबोन नगर तक को और उसके चारों ओर के छोटे नगरों को भी हराया। 26 हेशबोन वह नगर था जिसमें राजा सीहोन रहता था। इसके पहले सीहोन ने मोआब के राजा को हराया था और सीहोन से अर्नोन घाटी तक के सारे प्रदेश पर अधिकार कर लिया था। 27 यही कारण है कि गायक यह गीत गाते हैं:
“आओ हेशबोन को, इसे फिर से बसाना है।
सीहोन के नगर को फिर से बनने दो।
28 हेशबोन में आग लग गई थी।
वह आग सीहोन के नगर में लगी थी।
आग ने आर (मोआब) को नष्ट किया
इसने ऊपरी अर्नोन की पहाड़ियों को जलाया।
29 ऐ मोआब! यह तुम्हारे लिए बुरा है,
कमोश के लोग नष्ट कर दिए गए हैं।
उसके पुत्र भाग खड़े हुए।
उसकी पुत्रियाँ बन्दी बनीं एमोरी लोगों के राजा सीहोन द्वारा।
30 किन्तु हमने उन एमोरियों को हराया,
हमने उनके हेशबोन से दीबोन तक नगरों को मिटाया मेदबा के निकट नशिम से नोपह तक।”
31 इसलिए इस्राएल के लोगों ने एमोरियों के देश में अपना डेरा लगाया।
32 मूसा ने गुप्तचरों को याजेर नगर पर निगरानी के लिए भेजा। मूसा के ऐसा करने के बाद, इस्राएल के लोगों ने उस नगर पर अधिकार कर लिया। उन्होंने उसके चारों ओर के छोटे नगर पर भी अधिकार जमाया। इस्राएल के लोगों ने उस स्थान पर रहने वाले एमोरियों को वह स्थान छोड़ने को विवश किया।
33 तब इस्राएल के लोगों ने बाशान की ओर जाने वाली सड़क पर यात्रा की। बाशान के राजा ओग ने अपनी सेना ली और इस्राएल के लोगों का सामना करने निकला। वह एद्रेई नाम के क्षेत्र में उनके विरुद्ध लड़ा।
34 किन्तु यहोवा ने मूसा से कहा, “उस राजा से मत डरो। मैं तुम्हें उसको हराने दूँगा। तुम उसके पूरी सेना और प्रदेश को प्राप्त करोगे। तुम उसके साथ वही करो जो तुमने एमोरी लोगों के राजा सीहोन के साथ किया।”
35 अतः इस्राएल के लोगों ने ओग और उसकी सारी सेना को हराया। उन्होने उसे, उसके पुत्रों और उसकी सारी सेना को हराया। तब इस्राएल के लोगों ने उसके पूरे देश पर अधिकार कर लिया।
संगीत निर्देशक के लिये “वाचा की कुमुदिनी धुन” पर उस समय का दाऊद का एक उपदेश गीत जब दाऊद ने अरमहरैन और अरमसोबा से युद्ध किया तथा जब योआब लौटा और उसने नमक की घाटी में बारह हजार स्वामी सैनिकों को मार डाला।
1 हे परमेश्वर, तूने हमको बिसरा दिया।
तूने हमको विनष्ट कर दिया। तू हम पर कुपित हुआ।
तू कृपा करके वापस आ।
2 तूने धरती कँपाई और उसे फाड़ दिया।
हमारा जगत बिखर रहा,
कृपया तू इसे जोड़।
3 तूने अपने लोगों को बहुत यातनाएँ दी है।
हम दाखमधु पिये जन जैसे लड़खड़ा रहे और गिर रहे हैं।
4 तूने उन लोगों को ऐसे चिताया, जो तुझको पूजते हैं।
वे अब अपने शत्रु से बच निकल सकते हैं।
5 तू अपने महाशक्ति का प्रयोग करके हमको बचा ले!
मेरी प्रार्थना का उतर दे और उस जन को बचा जो तुझको प्यारा है!
6 परमेश्वर ने अपने मन्दिर में कहा:
“मेरी विजय होगी और मैं विजय पर हर्षित होऊँगा।
मैं इस धरती को अपने लोगों के बीच बाँटूंगा।
मैं शकेम और सुक्कोत
घाटी का बँटवारा करूँगा।
7 गिलाद और मनश्शे मेरे बनेंगे।
एप्रेम मेरे सिर का कवच बनेगा।
यहूदा मेरा राजदण्ड बनेगा।
8 मैं मोआब को ऐसा बनाऊँगा, जैसा कोई मेरे चरण धोने का पात्र।
एदोम एक दास सा जो मेरी जूतियाँ उठता है।
मैं पलिश्ती लोगों को पराजित करूँगा और विजय का उद्धोष करूँगा।”
9-10 कौन मुझे उसके विरूद्ध युद्ध करने को सुरक्षित दृढ़ नगर में ले जायेगा मुझे कौन एदोम तक ले जायेगा
हे परमेश्वर, बस तू ही यह करने में मेरी सहायता कर सकता है।
किन्तु तूने तो हमको बिसरा दिया! परमेश्वर हमारे साथ में नहीं जायेगा!
और वह हमारी सेना के साथ नहीं जायेगा।
11 हे परमेश्वर, तू ही हमको इस संकट की भूमि से उबार सकता है!
मनुष्य हमारी रक्षा नहीं कर सकते!
12 किन्तु हमें परमेश्वर ही मजबूत बना सकता है।
परमेश्वर हमारे शत्रुओं को परजित कर सकता है!
तार के वाद्यों के संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक पद।
1 हे परमेश्वर, मेरा प्रार्थना गीत सुन।
मेरी विनती सुन।
2 जहाँ भी मैं कितनी ही निर्बलता में होऊँ,
मैं सहायता पाने को तुझको पुकारूँगा!
जब मेरा मन भारी हो और बहुत दु:खी हो,
तू मुझको बहुत ऊँचे सुरक्षित स्थान पर ले चल।
3 तू ही मेरा शरणस्थल है!
तू ही मेरा सुदृढ़ गढ़ है, जो मुझे मेरे शत्रुओं से बचाता है।
4 तेरे डेरे में, मैं सदा सदा के लिए निवास करूँगा।
मैं वहाँ छिपूँगा जहाँ तू मुझे बचा सके।
5 हे परमेश्वर, तूने मेरी वह मन्नत सुनी है, जिसे तुझ पर चढ़ाऊँगा,
किन्तु तेरे भक्तों के पास हर वस्तु उन्हें तुझसे ही मिली है।
6 राजा को लम्बी आयु दे।
उसको चिरकाल तक जीने दे!
7 उसको सदा परमेश्वर के साथ में बना रहने दे!
तू उसकी रक्षा निज सच्चे प्रेम से कर।
8 मैं तेरे नाम का गुण सदा गाऊँगा।
उन बातों को करूँगा जिनके करने का वचन मैंने दिया है।
5 परमेश्वर कहेगा, “मैं एक छड़ी के रुप में अश्शूर का प्रयोग करुँगा। मैं क्रोध में भर कर इस्राएल को दण्ड देने के लिए अश्शूर का प्रयोग करुँगा। 6 ऐसे लोगों के विरुद्ध जो पाप कर्म करते हैं युद्ध करने के लिये मैं अश्शूर को भेजूँगा। मैं उन लोगों से कुपित हूँ और उन लोगों से युद्ध करने के लिये मैं अश्शूर को आदेश दूँगा। अश्शूर उन लोगों को हरा देगा और फिर उनसे उनकी कीमती वस्तुएँ छीन लेगा। अश्शूर के लिए इस्राएल गलियों में पड़ी उस धूल जैसा होगा जिसे वह अपने पैरों तले रौंदेगा।
7 “किन्तु अश्शूर यह नहीं समझता है कि मैं उसका प्रयोग करुँगा। वह यह नहीं सोचता कि वह मेरा एक साधन है। अश्शूर तो बस दूसरे लोगों को नष्ट करना चाहता है। अश्शूर की तो मात्र यह योजना है कि वह बहुत सी जातियों को नष्ट कर दे। 8 अश्शूर अपने मन में कहता है, ‘मेरे सभी व्यक्ति राजाओं के समान हैं। 9 कलनो नगरी कर्कमीश के जैसी है और हमात नगर अर्पद नगर के जैसा है। शोमरोन की नगरी दमिश्क नगर के जैसी है। 10 मैंने इन सभी बुरे राज्यों को पराजित कर दिया है और अब इन पर मेरा अधिकार है। जिन मूर्तियों की वे लोग पूजा करते हैं, वे यरूशलेम और शोमरोन की मूर्तियों से अधिक हैं। 11 मैंने शोमरोन और उसकी मूर्तियों को पराजित कर दिया। मैं यरूशलेम और उसकी मूर्तियों को भी जिन्हें उसके लोगों ने बनाया है पराजित कर दूँगा।’”
12 मेरा स्वामी जब यरूशलेम और सिय्योन पर्वत के लिये, जो उसकी योजना है, उसकी बातों को करना समाप्त कर देगा, तो यहोवा अश्शूर को दण्ड देगा। अश्शूर का राजा बहुत अभिमानी है। उसके अभिमान ने उससे बहुत से बुरे काम करवाये हैं। सो परमेश्वर उसे दण्ड देगा।
13 अश्शूर का राजा कहा करता है, “मैं बहुत बुद्धिमान हूँ। मैंने स्वयं अपनी बुद्धि और शक्ति से अनेक महान कार्य किये हैं। मैंने बहुत सी जातियों को हराया है। मैंने उनका धन छीन लिया है और उनके लोगों को दास बना लिया है। मैं एक बहुत शक्तिशाली व्यक्ति हूँ। 14 मैंने स्वयं अपने हाथों से उन सब लोगों की धन दौलत ऐसे ले ली है जैसे कोई व्यक्ति चिड़ियाँ के घोंसले से अण्डे उठा लेता है। चिड़ियाँ जो प्राय: अपने घोंसले और अण्डों को छोड जाती है और उस घोंसले की रखवाली करने के लिये कोई भी नहीं रह जाता। वहाँ अपने पंखों और अपनी चोंच से शोर मचाने और लड़ाई करने के लिये कोई पक्षी नहीं होता। इसीलिए लोग अण्डों को उठा लेते हैं। इसी प्रकार धरती के सभी लोगों को उठा ले जाने से रोकने के लिए कोई भी व्यक्ति वहाँ नहीं था।”
15 कुल्हाड़ा उस व्यक्ति से अच्छा नहीं होता, जो कुल्हाड़े को चलाता है। कोई आरा उस व्यक्ति से अच्छा नहीं होता, जो उस आरे से काटता है। किन्तु अश्शूर का विचार है कि वह परमेश्वर से भी अधिक महत्वपर्ण और बलशाली है। उसका यह विचार ऐसा ही है जैसे किसी छड़ी का यह सोचना कि वह उस व्यक्ति से अधिक बली और महत्वपूर्ण है जो उसे उठाता है और किसी को दण्ड देने के लिए उसका प्रयोग करता है। 16 अश्शूर का विचार है कि वह महान है किन्तु सर्वशक्तिमान यहोवा अश्शूर को दुर्बल कर डालने वाली महामारी भेजेगा और अश्शूर अपने धन और अपनी शक्ति को वैसे ही खो बैठेगा जैसे कोई बीमार व्यक्ति अपनी शक्ति गवाँ बैठता है। फिर अश्शूर का वैभव नष्ट हो जायेगा। यह उस अग्नि के समान होगा जो उस समय तक जलती रहती है जब तक सब कुछ समाप्त नहीं हो जाता। 17 इस्राएल का प्रकाश (परमेश्वर) एक अग्नि के समान होगा। वह पवित्रतम लपट के जैसा प्रकाशमान होगा। वह उस अग्नि के समान होगा जो खरपतवार और काँटों को तत्काल जला डालती है 18 और फिर बढ़कर बड़े बड़े पेड़ों और अँगूर के बगीचों को जला देती है और अंत में सब कुछ नष्ट हो जाता है यहाँ तक कि लोग भी। ऐसा उस समय होगा जब परमेश्वर अश्शूर को नष्ट करेगा। अश्शूर सड़ते—गलते लट्ठे के जैसा हो जायेगा। 19 जंगल में हो सकता है थोड़े से पेड़ खड़े रह जायें। पर वे इतने थोंड़े से होंगे कि उन्हें कोई बच्चा तक गिन सकेगा।
20 उस समय, वे लोग जो इस्राएल में जीवित बचेंगे, यानी याकूब के वंश के ये लोग उस व्यक्ति पर निर्भर नहीं करते रहेंगे जो उन्हें मारता पीटता है। वे सचमुच उस यहोवा पर निर्भर करना सीख जायेंगे जो इस्राएल का पवित्र (परमेश्वर) है।
21 याकूब के वंश के वे बाकी बचे लोग शक्तिशाली परमेश्वर का फिर अनुसरण करने लगेंगे। 22 तुम्हारे व्यक्ति असंख्य हैं। वे सागर के रेत कणों के समान हैं; किन्तु उनमें से कुछ ही यहोवा की ओर फिर वापस मुड़ आने के लिये बचे रहेंगे। वे लोग परमेश्वर की ओर मुड़ेंगे किन्तु उससे पहले तुम्हारे देश का विनाश हो जायेगा। परमेश्वर ने घोषणा कर दी है कि वह उस धरती का विनाश करेगा और उसके बाद उस धरती पर नेकी का आगमन इस प्रकार होगा जैसे कोई भरपूर नदी बहती है। 23 मेरा स्वामी सर्वशक्तिमान यहोवा, इस प्रदेश को निश्चय ही नष्ट करेगा।
24 मेरा स्वामी सर्वशक्तिशाली यहोवा कहता है, “हे! सिय्योन में रहने वाले मेरे लोगों, अश्शूर से मत डरो! वह भविष्य में तुम्हें अपनी छड़ी से इस तरह पीटेगा जैसे पहले मिस्र ने तुम्हें पीटा था। यह ऐसा होगा जैसे मानो तुम्हें हानि पहुँचाने के लिये अश्शूर किसी लाठी का प्रयोग कर रहा हो। 25 किन्तु थोड़े ही समय बाद मेरा क्रोध शांत हो जायेगा, मुझे संतोष हो जायेगा कि अश्शूर ने तुम्हें काफी दण्ड दे दिया है।”
26 इसके बाद सर्वशक्तिमान यहोवा अश्शूर को कोड़ो से मारेगा। जैसा पहले यहोवा ने जब ओरेब की चट्टान पर मिद्यानियों को पराजित किया था, तब हुआ था। वैसा ही उस समय होगा जब यहोवा अश्शूर पर आक्रमण करेगा। पहले यहोवा ने मिस्र को दण्ड दिया था। उसने सागर के ऊपर छड़ी उठायी थी[a] और मिस्र से अपने लोगों को ले गया था। यहोवा जब अश्शूर से अपने लोगों की रक्षा करेगा, तब भी ऐसा ही होगा।
27 अश्शूर तुम पर विपत्तियाँ लायेगा। वे विपत्तियाँ ऐसे बोझों के समान होंगी, जिन्हें तुम्हें अपने ऊपर एक जुए के रूप में उठाना ही होगा। किन्तु फिर तुम्हारी गर्दन पर से उस जुए को उतार फेंका जायेगा। वह जुआ तुम्हारी शक्ति (परमेश्वर) द्वारा तोड़ दिया जायेगा।
इस्राएल पर अश्शूर की सेना का आक्रमण
28 (अय्यात) के निकट सेनाओं का प्रवेश होगा। मिग्रोन यानी “खलिहानो” को सेनाएँ रौंद डालेंगी। सेनाएँ इसके खाने की सामग्री को “कोठियारों” (मिकमाश) में रख देंगी। 29 “पार करने के स्थान” (माबरा) से सेनाएँ नदी पार करेंगी। वे सेनाएँ जेबा में रात बिताएंगी। रामा डर जायेगा। शाऊल के गिबा के लोग निकल भागेंगे।
30 हे गल्लीम की पुत्री चिल्ला! हे लैशा सुन! हे, अनातोत मुझे उत्तर दे! 31 मदमेना के लोग भाग रहे हैं। गेबीम के लोग छिपे हुए हैं। 32 आज सेना नोब में टिकेगी और यरूशलेम के पर्वत सिय्योन पर चढ़ाई करने की तैयारी करेंगी।
33 देखो! हमारा स्वामी सर्वशक्तिमान यहोवा विशाल वृक्ष (अश्शूर) को काट गिरायेगा। यहोवा अपनी महान शक्ति से ऐसा करेगा। बड़े और महत्वपूर्ण लोग काट गिराये जायेंगे। वे महत्वहीन हो जायेंगे। 34 यहोवा अपने कुल्हाड़े से वन को काट डालेगा और लबानोन के विशाल वृक्ष (मुखिया लोग) गिर पड़ेंगे।
परमेश्वर को समर्पित हो जाओ
4 तुम्हारे बीच लड़ाई-झगड़े क्यों होते हैं? क्या उनका कारण तुम्हारे अपने ही भीतर नहीं है? तुम्हारी वे भोग-विलासपूर्ण इच्छाएँ ही जो तुम्हारे भीतर निरन्तर द्वन्द्व करती रहती हैं, क्या उन्हीं से ये पैदा नहीं होते? 2 तुम लोग चाहते तो हो किन्तु तुम्हें मिल नहीं पाता। तुम में ईर्ष्या है और तुम दूसरों की हत्या करते हो, फिर भी जो चाहते हो, प्राप्त नहीं कर पाते। और इसलिए लड़ते झगड़ते हो। अपनी इच्छित वस्तुओं को तुम प्राप्त नहीं कर पाते क्योंकि तुम उन्हें परमेश्वर से नहीं माँगते। 3 और जब माँगते भी हो तो तुम्हारा उद्देश्य अच्छा नहीं होता। क्योंकि तुम उन्हें अपने भोग-विलास में ही उड़ाने को माँगते हो।
4 ओ, विश्वास विहीन लोगो! क्या तुम नहीं जानते कि संसार से प्रेम करना परमेश्वर से घृणा करने जैसा ही है? जो कोई इस दुनिया से दोस्ती रखना चाहता है, वह अपने आपको परमेश्वर का शत्रु बनाता है। 5 अथवा क्या तुम ऐसा सोचते हो कि शास्त्र ऐसा व्यर्थ में ही कहता है कि, “परमेश्वर ने हमारे भीतर जो आत्मा दी है, वह ईर्ष्या पूर्ण इच्छाओं से भरी रहती है।” 6 किन्तु परमेश्वर ने हम पर अत्यधिक अनुग्रह दर्शाया है, इसलिए शास्त्र में कहा गया है, “परमेश्वर अभिमानियों का विरोधी है, जबकि दीन जनों पर अपनी अनुग्रह दर्शाता है।”(A)
7 इसलिए अपने आपको परमेश्वर के अधीन कर दो। शैतान का विरोध करो, वह तुम्हारे सामने से भाग खड़ा होगा। 8 परमेश्वर के पास आओ, वह भी तुम्हारे पास आएगा। अरे पापियों! अपने हाथ शुद्ध करो और अरे सन्देह करने वालों, अपने हृदयों को पवित्र करो। 9 शोक करो, विलाप करो और दुःखी होओ। हो सकता है तुम्हारे ये अट्टहास शोक में बदल जाए और तुम्हारी यह प्रसन्नता विषाद में बदल जाए। 10 प्रभु के सामने दीन बनो। वह तुम्हें ऊँचा उठाएगा।
न्यायकर्ता तुम नहीं हो
11 हे भाईयों, एक दूसरे के विरोध में बोलना बंद करो। जो अपने ही भाई के विरोध में बोलता है, अथवा उसे दोषी ठहराता है, वह व्यवस्था के ही विरोध में बोलता है और व्यवस्था को दोषी ठहराता है। और यदि तुम व्यवस्था पर दोष लगाते हो तो व्यवस्था के विधान का पालन करने वाले नहीं रहते वरन् उसके न्यायकर्त्ता बन जाते हो। 12 व्यवस्था के विधान को देने वाला और उसका न्याय करने वाला तो बस एक ही है। और वही रक्षा कर सकता है और वही नष्ट करता है। तो फिर अपने साथी का न्याय करने वाले तुम कौन होते हो?
अपना जीवन परमेश्वर को चलाने दो
13 ऐसा कहने वालो सुनो, “आज या कल हम इस या उस नगर में जाकर साल-एक भर वहाँ व्यापार में धन लगा बहुत सा पैसा बना लेंगे।” 14 किन्तु तुम तो इतना भी नहीं जानते कि कल तुम्हारे जीवन का क्या बनेगा! देखो, तुम तो उस धुंध के समान हो जो थोड़ी सी देर को उठती है और फिर खो जाती है। 15 सो इसके स्थान पर तुम्हें तो सदा यही कहना चाहिए, “यदि प्रभु ने चाहा तो हम जीयेंगे और यह या वह करेंगे।” 16 किन्तु स्थिति तो यह है कि तुम तो अपने आडम्बरों के लिए स्वयं पर गर्व करते हो। ऐसे सभी गर्व बुरे हैं। 17 तो फिर यह जानते हुए भी कि यह उचित है, उसे नहीं करना पाप है।
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