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Read the Gospels in 40 Days

Read through the four Gospels--Matthew, Mark, Luke, and John--in 40 days.
Duration: 40 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
योहन 5-6

बैथज़ादा जलाशय पर अपंग को स्वास्थ्यदान

इन बातों के पश्चात मसीह येशु यहूदियों के एक पर्व में येरूशालेम गए. येरूशालेम में भेड़-फाटक के पास एक जलाशय है, जो इब्री भाषा में बैथज़ादा कहलाता है और जिसके पाँच ओसारे हैं, उसके किनारे अंधे, अपंग और लकवे के अनेक रोगी पड़े रहते थे, जो जल के हिलने की प्रतीक्षा किया करते थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि परमेश्वर का स्वर्गदूत यदा-कदा वहाँ आ कर जल हिलाया करता था. जल हिलते ही, जो व्यक्ति उसमें सबसे पहिले उतरता था, स्वस्थ हो जाता था. इनमें एक व्यक्ति ऐसा था, जो अड़तीस वर्ष से रोगी था. मसीह येशु ने उसे वहाँ पड़े हुए देख और यह मालूम होने पर कि वह वहाँ बहुत समय से पड़ा हुआ है, उसके पास जा कर पूछा, “क्या तुम स्वस्थ होना चाहते हो?”

रोगी ने उत्तर दिया, “श्रीमन, ऐसा कोई नहीं, जो जल के हिलने पर मुझे जलाशय में उतारे—मेरे प्रयास के पूर्व ही कोई अन्य व्यक्ति उसमें उतर जाता है.”

मसीह येशु ने उससे कहा, “उठो, अपना बिछौना उठाओ और चलने-फिरने लगो.” तुरन्त वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया और अपना बिछौना उठा कर चला गया.

वह शब्बाथ था. 10 अतः यहूदियों ने स्वस्थ हुए व्यक्ति से कहा, “आज शब्बाथ है. अतः तुम्हारा बिछौना उठाना उचित नहीं है.”

11 उसने कहा, “जिन्होंने मुझे स्वस्थ किया है, उन्हीं ने मुझे आज्ञा दी, ‘अपना बिछौना उठाओ और चलने-फिरने लगो.’”

12 उन्होंने उससे पूछा, “कौन है वह, जिसने तुमसे कहा है कि अपना बिछौना उठाओ और चलने-फिरने लगो?”

13 स्वस्थ हुआ व्यक्ति नहीं जानता था कि उसका स्वस्थ करनेवाला कौन था क्योंकि उस समय मसीह येशु भीड़ में गुम हो गए थे.

14 कुछ समय बाद मसीह येशु ने उस व्यक्ति को मन्दिर में देख उससे कहा, “देखो, तुम स्वस्थ हो गए हो, अब पाप न करना. ऐसा न हो कि तुम्हारा हाल इससे ज़्यादा बुरा हो जाए.”

मसीह येशु का परमेश्वर-पुत्र होने का दावा

15 तब उस व्यक्ति ने आ कर यहूदियों को सूचित किया कि जिन्होंने उसे स्वस्थ किया है, वह येशु हैं. 16 शब्बाथ पर मसीह येशु द्वारा यह काम किए जाने के कारण यहूदी उनको सताने लगे. 17 मसीह येशु ने स्पष्ट किया, “मेरे पिता अब तक कार्य कर रहे हैं इसलिए मैं भी काम कर रहा हूँ.” 18 परिणामस्वरूप यहूदी मसीह येशु की हत्या के लिए और भी अधिक ठन गए क्योंकि उनके अनुसार मसीह येशु शब्बाथ की विधि को तोड़ ही नहीं रहे थे बल्कि परमेश्वर को अपना पिता कह कर स्वयं को परमेश्वर के तुल्य भी दर्शा रहे थे.

19 मसीह येशु ने कहा: “मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ; पुत्र स्वयं कुछ नहीं कर सकता. वह वही कर सकता है, जो वह पिता को करते हुए देखता है क्योंकि जो कुछ पिता करते हैं, पुत्र भी वही करता है. 20 पिता पुत्र से प्रेम करते हैं और वह पुत्र को अपनी हर एक योजना से परिचित रखते हैं. वह इनसे भी बड़े-बड़े काम दिखाएंगे, जिन्हें देख तुम चकित हो जाओगे. 21 जिस प्रकार पिता मरे हुओं को जीवित करके जीवन प्रदान करते हैं, उसी प्रकार पुत्र भी जिसे चाहता है, जीवन प्रदान करता है. 22 पिता किसी का न्याय नहीं करते, न्याय करने का सारा अधिकार उन्होंने पुत्र को सौंप दिया है. 23 जिससे सब लोग पुत्र का वैसा ही आदर करें जैसा पिता का करते हैं. वह व्यक्ति, जो पुत्र का आदर नहीं करता, पिता का आदर भी नहीं करता, जिन्होंने पुत्र को भेजा है.

24 “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जो मेरा वचन सुनता और मेरे भेजनेवाले में विश्वास करता है, अनन्त काल का जीवन उसी का है; उसे दोषी नहीं ठहराया जाता, परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है. 25 मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: वह समय आ रहा है परन्तु आ ही गया है, जब सारे मृतक परमेश्वर के पुत्र की आवाज़ सुनेंगे और हर एक सुननेवाला जीवन प्राप्त करेगा. 26 जिस प्रकार पिता अपने आप में जीवन रखता है, उसी प्रकार पुत्र में बसा हुआ जीवन पिता के द्वारा दिया गया जीवन है. 27 मनुष्य का पुत्र होने के कारण उसे न्याय करने का अधिकार भी दिया गया है.

28 “यह सब सुनकर चकित न हो क्योंकि वह समय आ रहा है, जब सभी मरे हुए लोग पुत्र की आवाज़ को सुनेंगे और वे जीवित हो जाएँगे. 29 सुकर्मी जीवन के पुनरुत्थान के लिए और कुकर्मी दण्ड के पुनरुत्थान के लिए. 30 मैं स्वयं अपनी ओर से कुछ नहीं कर सकता. मैं उनसे जैसे निर्देश प्राप्त करता हूँ, वैसा ही निर्णय देता हूँ. मेरा निर्णय सच्चा होता है क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं परन्तु अपने भेजने वाले की इच्छा पूरी करने के लिए समर्पित हूँ.

मसीह येशु के गवाह

31 “यदि मैं स्वयं अपने ही विषय में गवाही दूँ तो मेरी गवाही मान्य नहीं होगी. 32 एक और हैं, जो मेरे गवाह हैं और मैं जानता हूँ कि मेरे विषय में उनकी गवाही अटल है.

33 “तुमने योहन के पास अपने लोग भेजे और योहन ने भी सच की ही गवाही दी. 34 परन्तु मुझे तो अपने विषय में किसी मनुष्य की गवाही की ज़रूरत है ही नहीं—यह सब मैं तुम्हारे उद्धार के लिए कह रहा हूँ. 35 योहन वह जलता हुआ और चमकता हुआ दीपक थे, जिनके उजाले में तुम्हें कुछ समय तक आनन्द मनाना सुखकर लगा.

36 “मेरी गवाही योहन की गवाही से अधिक बड़ी है क्योंकि पिता द्वारा मुझे सौंपे गए काम को पूरा करना ही इस सच्चाई का सबूत है कि पिता ने मुझे भेजा है. 37 इसके अतिरिक्त पिता अर्थात् स्वयं मेरे भेजने वाले ने भी मेरे विषय में गवाही दी है. तुमने न तो कभी उनकी आवाज़ सुनी है, न उनका रूप देखा है 38 और न ही उनका वचन तुम्हारे हृदय में स्थिर रह सका है क्योंकि जिसे उन्होंने भेजा है, तुम उसमें विश्वास नहीं करते. 39 तुम शास्त्रों का मनन इस विश्वास में करते हो कि उनमें अनन्त काल का जीवन बसा है. ये सभी शास्त्र मेरे ही विषय में गवाही देते हैं. 40 यह सब होने पर भी जीवन पाने के लिए तुम मेरे पास आना नहीं चाहते.

41 “मनुष्य की प्रशंसा मुझे स्वीकार नहीं 42 क्योंकि मैं तुम्हें जानता हूँ और मुझे यह भी मालूम है कि परमेश्वर का प्रेम तुम्हारे मन में है ही नहीं. 43 तुम मुझे ग्रहण नहीं करते जबकि मैं अपने पिता के नाम में आया हूँ किन्तु यदि कोई अपने ही नाम में आए तो तुम उसे ग्रहण कर लोगे. 44 तुम मुझमें विश्वास कैसे कर सकते हो यदि तुम एक दूसरे से प्रशंसा की आशा करते हो और उस प्रशंसा के लिए कोई प्रयास नहीं करते, जो एकमात्र परमेश्वर से प्राप्त होती है?

45 “यह विचार अपने मन से निकाल दो कि पिता के सामने मैं तुम पर आरोप लगाऊँगा; तुम पर दोषारोपण तो मोशेह करेंगे—मोशेह, जिन पर तुमने आशा लगा रखी है. 46 यदि तुम वास्तव में मोशेह में विश्वास करते तो मुझ में भी करते क्योंकि उन्होंने मेरे ही विषय में लिखा है. 47 जब तुम उनके लेखों का ही विश्वास नहीं करते तो मेरी बातों का विश्वास कैसे करोगे?”

पाँच हज़ार को भोजन

(मत्ति 14:13-21; मारक 6:30-44; लूकॉ 9:10-17)

इन बातों के बाद मसीह येशु गलील अर्थात् तिबेरियॉस झील के उस पार चले गए. उनके द्वारा रोगियों को स्वास्थ्यदान के अद्भुत चिह्नों से प्रभावित एक बड़ी भीड़ उनके साथ हो ली. मसीह येशु पर्वत पर जा कर वहाँ अपने शिष्यों के साथ बैठ गए. यहूदियों का फ़सह उत्सव पास था.

जब मसीह येशु ने बड़ी भीड़ को अपनी ओर आते देखा तो फ़िलिप्पॉस से पूछा, “इन सबको खिलाने के लिए हम भोजन कहाँ से मोल लेंगे?” मसीह येशु ने यह प्रश्न उन्हें परखने के लिए किया था क्योंकि वह जानते थे कि वह क्या करने पर थे.

फ़िलिप्पॉस ने उत्तर दिया, “दो सौ दीनार की रोटियां भी उनके लिए पर्याप्त नहीं होंगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल पाए.”

मसीह येशु के शिष्य शिमोन पेतरॉस के भाई आन्द्रेयास ने उन्हें सूचित किया, “यहाँ एक लड़का है, जिसके पास जौ की पाँच रोटियां और दो मछलियां हैं किन्तु उनसे इतने लोगों का क्या होगा?”

10 मसीह येशु ने कहा, “लोगों को बैठा दो” और वे सब, जिनमें पुरुषों की ही संख्या पाँच हज़ार थी, घनी घास पर बैठ गए. 11 तब मसीह येशु ने रोटियां लेकर धन्यवाद दिया और उनकी ज़रूरत के अनुसार बांट दीं और उसी प्रकार मछलियां भी.

12 जब वे सब तृप्त हो गए तो मसीह येशु ने अपने शिष्यों को आज्ञा दी, “शेष टुकड़ों को इकट्ठा कर लो कि कुछ भी नाश न हो,” 13 उन्होंने जौ की उन पाँच रोटियों के शेष टुकड़े इकट्ठा किए, जिनसे बारह टोकरे भर गए. 14 लोगों ने इस अद्भुत चिह्न को देख कर कहा, “निस्सन्देह यह वही भविष्यद्वक्ता हैं, संसार जिनकी प्रतीक्षा कर रहा है.” 15 जब मसीह येशु को यह मालूम हुआ कि लोग उन्हें जबरदस्ती राजा बनाने के उद्धेश्य से ले जाना चाहते हैं तो वह फिर से पर्वत पर अकेले चले गए.

मसीह येशु का जल सतह पर चलना

(मत्ति 14:22-33; मारक 6:45-52)

16 जब सन्ध्या हुई तो मसीह येशु के शिष्य झील के तट पर उतर गए. 17 अन्धेरा हो चुका था और मसीह येशु अब तक उनके पास नहीं पहुँचे थे. उन्होंने नाव पर सवार हो कर गलील झील के दूसरी ओर कफ़रनहूम नगर के लिए प्रस्थान किया. 18 उसी समय तेज़ हवा के कारण झील में लहरें बढ़ने लगीं. 19 नाव को लगभग पाँच किलोमीटर खेने के बाद शिष्यों ने मसीह येशु को जल सतह पर चलते और नाव की ओर आते देखा. यह देख कर वे भयभीत हो गए. 20 मसीह येशु ने उनसे कहा, “भयभीत मत हो, मैं हूँ.” 21 यह सुन शिष्य मसीह येशु को नाव में चढ़ाने को तैयार हो गए. इसके बाद नाव उस स्थान पर पहुँच गई जहाँ उन्हें जाना था.

मसीह येशु—जीवन-रोटी

22 अगले दिन झील के उस पार रह गई भीड़ को मालूम हुआ कि वहाँ केवल एक छोटी नाव थी और मसीह येशु शिष्यों के साथ उसमें नहीं गए थे—केवल शिष्य ही उसमें दूसरे पार गए थे. 23 तब तिबेरियास नगर से अन्य नावें उस स्थान पर आईं, जहाँ प्रभु ने बड़ी भीड़ को भोजन कराया था. 24 जब भीड़ ने देखा कि न तो मसीह येशु वहाँ हैं और न ही उनके शिष्य, तो वे मसीह येशु को खोजते हुए नावों द्वारा कफ़रनहूम नगर पहुँच गए.

25 झील के इस पार मसीह येशु को पा कर उन्होंने उनसे पूछा, “रब्बी, आप यहाँ कब पहुँचे?”

26 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: तुम मुझे इसलिए नहीं खोज रहे कि तुमने अद्भुत चिह्न देखे हैं परन्तु इसलिए कि तुम रोटियां खा कर तृप्त हुए हो. 27 उस भोजन के लिए मेहनत मत करो, जो नाशमान है परन्तु उसके लिए, जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जो मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा क्योंकि पिता अर्थात् परमेश्वर ने समर्थन के साथ मात्र उसी को यह अधिकार सौंपा है.”

28 इस पर उन्होंने मसीह येशु से पूछा, “हम से परमेश्वर की इच्छा क्या है?”

29 “यह कि तुम परमेश्वर के भेजे हुए पर विश्वास करो,” मसीह येशु ने उत्तर दिया.

30 इस पर उन्होंने मसीह येशु से दोबारा पूछा, “आप ऐसा कौन सा अद्भुत चिह्न दिखा सकते हैं कि हम आप में विश्वास करें? क्या है वह काम? 31 हमारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया; पवित्रशास्त्र के अनुसार: भोजन के लिए परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग से रोटी दी.”

32 इस पर मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: स्वर्ग से वह रोटी तुम्हें मोशेह ने नहीं दी; मेरे पिता ही हैं, जो तुम्हें स्वर्ग से वास्तविक रोटी देते हैं. 33 क्योंकि परमेश्वर की रोटी वह है, जो स्वर्ग से आती है, और संसार को जीवन प्रदान करती है.”

34 यह सुन कर उन्होंने विनती की, “प्रभु, अब से हमें यही रोटी दें.”

35 इस पर मसीह येशु ने घोषणा की, “मैं ही हूँ वह जीवन की रोटी. जो मेरे पास आएगा, वह भूखा न रहेगा और जो मुझ में विश्वास करेगा, कभी प्यासा न रहेगा. 36 मैं तुमसे पहले भी कह चुका हूँ कि तुम मुझे देख कर भी मुझ में विश्वास नहीं करते. 37 वे सभी, जो पिता ने मुझे दिए हैं, मेरे पास आएंगे और हर एक, जो मेरे पास आता है, मैं उसको कभी भी न छोड़ूँगा. 38 मैं स्वर्ग से अपनी इच्छा पूरी करने नहीं, अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिए आया हूँ. 39 मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उन्होंने मुझे सौंपा है, उसमें से मैं कुछ भी न खोऊँ परन्तु अन्तिम दिन में उसे फिर से जीवित करूँ. 40 क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है कि हर एक, जो पुत्र को अपनाकर उस में विश्वास करे, वह अनन्त काल का जीवन प्राप्त करे तथा मैं उसे अन्तिम दिन में फिर से जीवित करूँ.”

41 मसीह येशु का यह दावा सुन कर: “स्वर्ग से उतरी रोटी मैं ही हूँ,” यहूदी कुड़कुड़ाने लगे 42 और आपस में मन्त्रणा करने लगे, “क्या यह योसेफ़ का पुत्र येशु नहीं, जिसके माता-पिता को हम जानते हैं? तो अब यह कैसे कह रहा है कि यह स्वर्ग से आया है?”

43 यह जान कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “कुड़कुड़ाओ मत,” 44 “कोई भी मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक मेरे भेजने वाले—पिता—उसे अपनी ओर खींच न लें. मैं उसे अन्तिम दिन में फिर से जीवित करूँगा. 45 भविष्यद्वक्ताओं के अभिलेख में यह लिखा हुआ है: वे सब परमेश्वर द्वारा सिखाए हुए होंगे, अतः हर एक, जिसने पिता परमेश्वर को सुना और उनसे सीखा है, मेरे पास आता है. 46 किसी ने पिता परमेश्वर को नहीं देखा सिवाय उसके, जो पिता परमेश्वर से है, केवल उसी ने उन्हें देखा है. 47 मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: अनन्त काल का जीवन उसी का है, जो विश्वास करता है. 48 मैं ही हूँ जीवन की रोटी. 49 जंगल में तुम्हारे पूर्वजों ने मन्ना खाया फिर भी उनकी मृत्यु हो गई. 50 मैं ही स्वर्ग से उतरी रोटी हूँ कि जो कोई इसे खाए, उसकी मृत्यु न हो. 51 मैं ही स्वर्ग से उतरी जीवन की रोटी हूँ. जो कोई यह रोटी खाता है, वह हमेशा जीवित रहेगा. जो रोटी मैं दूँगा, वह संसार के जीवन के लिए भेंट मेरा शरीर है.”

52 यह सुन कर यहूदी आपस में विवाद करने लगे, “यह व्यक्ति कैसे हमें अपना शरीर खाने के लिए दे सकता है?”

53 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का शरीर न खाओ और उसका लहू न पियो, तुम में जीवन नही. 54 अनन्त काल का जीवन उसी का है, जो मेरा शरीर खाता और मेरा लहू पीता है; अन्तिम दिन मैं उसे फिर से जीवित करूँगा. 55 मेरा शरीर ही वास्तविक भोजन और मेरा लहू ही वास्तविक पेय है. 56 जो मेरा शरीर खाता और मेरा लहू पीता है, वही है, जो मुझमें बना रहता है और मैं उसमें. 57 जैसे जीवन्त पिता परमेश्वर ने मुझे भेजा है और मैं पिता के कारण जीवित हूँ, वैसे ही वह भी, जो मुझे ग्रहण करता है, मेरे कारण जीवित रहेगा. 58 यह वह रोटी है, जो स्वर्ग से उतरी हुई है; वैसी नहीं, जो पूर्वजों ने खाई और फिर भी उनकी मृत्यु हो गई; परन्तु वह, जो यह रोटी खाता है, हमेशा जीवित रहेगा.” 59 मसीह येशु ने ये बातें कफ़रनहूम नगर के यहूदी सभागृह में शिक्षा देते हुए बताईं.

अनेक शिष्यों द्वारा मसीह येशु का त्याग

60 यह बातें सुन कर उनके अनेक शिष्यों ने कहा, “बहुत कठोर है यह शिक्षा. कौन इसे स्वीकार कर सकता है?”

61 अपने चेलों की बड़बड़ाहट का अहसास होने पर मसीह येशु ने कहा, “क्या यह तुम्हारे लिए ठोकर का कारण है? 62 तुम तब क्या करोगे जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊपर स्वर्ग में जाते देखोगे, जहाँ वह पहले था? 63 आत्मा ही हैं, जो शरीर को जीवन देती है. केवल शरीर का कुछ महत्व नहीं. जो शब्द मैंने तुमसे कहे हैं, वे आत्मा हैं और जीवन भी. 64 फिर भी तुम में कुछ हैं, जो मुझमें विश्वास नहीं करते.” मसीह येशु प्रारम्भ से जानते थे कि कौन हैं, जो उनमें विश्वास नहीं करेंगे और कौन है वह, जो उनके साथ धोखा करेगा. 65 तब मसीह येशु ने आगे कहा, “इसीलिए मैंने तुमसे यह कहा कि कोई भी मेरे पास तब तक नहीं आ सकता जब तक पिता उसे मेरे पास न आने दें.”

66 इसके परिणामस्वरूप मसीह येशु के अनेक चेले पीछे हट गए और उनके पीछे चलना छोड़ दिया.

पेतरॉस द्वारा अपने विश्वासमत का प्रकाशन

67 यह देख मसीह येशु ने अपने बारह शिष्यों से अभिमुख हो उनसे पूछा, “कहीं तुम भी तो लौट जाना नहीं चाहते?”

68 शिमोन पेतरॉस ने उत्तर दिया, “प्रभु, हम किसके पास जाएँ? अनन्त काल के जीवन की बातें तो आप ही के पास हैं. 69 हमने विश्वास किया और जान लिया है कि आप ही परमेश्वर के पवित्र जन हैं.”

70 मसीह येशु ने उनसे कहा, “क्या स्वयं मैंने तुम बारहों को नहीं चुना? यह होने पर भी तुम में से एक इबलीस है.” 71 उनका इशारा शिमोन के पुत्र कारियोतवासी यहूदाह की ओर था क्योंकि उन बारह शिष्यों में से वही मसीह येशु के साथ धोखा करने पर था.

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