Print Page Options
Previous Prev Day Next DayNext

Read the Gospels in 40 Days

Read through the four Gospels--Matthew, Mark, Luke, and John--in 40 days.
Duration: 40 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
लूकॉ 13-14

पश्चाताप की विनती

13 उसी समय वहाँ उपस्थित कुछ लोगों ने मसीह येशु को उन गलीलवासियों की याद दिलायी, जिनका लहू पिलातॉस ने उन्हीं के बलिदानों में मिला दिया था. मसीह येशु ने उनसे पूछा, “क्या तुम्हारे विचार से ये गलीली अन्य गलीलवासियों की तुलना में अधिक पापी थे कि उनकी यह स्थिति हुई? नहीं! मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि तुम मन न फिराओ तो तुम सब भी इसी प्रकार नाश हो जाओगे. या वे अठारह व्यक्ति, जिन पर सीलोअम का खम्भा गिरा, जिससे उनकी मृत्यु हो गई, येरूशालेमवासियों की अपेक्षा अधिक दोषी थे? नहीं! मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि तुम मन न फिराओ तो तुम सब भी इसी प्रकार नाश हो जाओगे.”

तब मसीह येशु ने उन्हें इस दृष्टान्त के द्वारा समझाना प्रारम्भ किया, “एक व्यक्ति ने अपने बगीचे में एक अंजीर का पेड़ लगाया. वह फल की आशा में उसके पास आया. उसने माली से कहा, ‘देखो, मैं तीन वर्ष से इस पेड़ में फल की आशा लिए आ रहा हूँ और मुझे अब तक कोई फल प्राप्त नहीं हुआ. काट डालो इसे! भला क्यों इसके कारण भूमि व्यर्थ ही घिरी रहे?’

“किन्तु माली ने स्वामी से कहा, ‘स्वामी, इसे इस वर्ष और रहने दीजिए. मैं इसके आस-पास की भूमि खोदकर इसमें खाद डाल देता हूँ. यदि अगले वर्ष यह फल लाए तो अच्छा नहीं तो इसे कटवा दीजिएगा.’”

अपंग स्त्री को चंगाई

10 शब्बाथ पर मसीह येशु यहूदी सभागृह में शिक्षा दे रहे थे. 11 वहाँ एक ऐसी स्त्री थी, जिसे एक प्रेत ने अठारह वर्ष से अपंग किया हुआ था. जिसके कारण उसका शरीर झुक कर दोहरा हो गया था और उसके लिए सीधा खड़ा होना असम्भव हो गया था. 12 जब मसीह येशु की दृष्टि उस पर पड़ी, उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और उससे कहा, “हे नारी, तुम अपने इस रोग से मुक्त हो गई हो,” 13 यह कहते हुए मसीह येशु ने उस पर अपने हाथ रखे और उसी क्षण वह सीधी खड़ी हो गई और परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी.

14 किन्तु यहूदी सभागृह प्रधान इस पर अत्यन्त रुष्ट हो गया क्योंकि मसीह येशु ने उसे शब्बाथ पर स्वस्थ किया था. सभागृह प्रधान ने वहाँ इकट्ठा लोगों से कहा, “काम करने के लिए छः दिन निर्धारित किए गए हैं इसलिए इन छः दिनों में आ कर अपना स्वास्थ्य प्राप्त करो, न कि शब्बाथ पर.”

15 किन्तु प्रभु ने इसके उत्तर में कहा, “पाखण्डियो! क्या शब्बाथ पर तुम में से हर एक अपने बैल या गधे को पशुशाला से खोल कर पानी पिलाने नहीं ले जाता? 16 और क्या इस स्त्री को, जो अब्राहाम ही की सन्तान है, जिसे शैतान ने अठारह वर्ष से बान्ध रखा था, शब्बाथ पर इस बन्धन से मुक्त किया जाना उचित न था?”

17 मसीह येशु के ये शब्द सुन उनके सभी विरोधी लज्जित हो गए. सारी भीड़ मसीह येशु द्वारा किए जा रहे इन महान कामों को देख आनन्दित थी.

परमेश्वर के राज्य की शिक्षा

18 इसलिए मसीह येशु ने उनसे कहना प्रारम्भ किया, “परमेश्वर का राज्य कैसा होगा? मैं इसकी तुलना किससे करूँ? 19 परमेश्वर का राज्य राई के बीज के समान है, जिसे किसी व्यक्ति ने अपनी वाटिका में बोया, और उसने विकसित होते हुए पेड़ का रूप ले लिया—यहाँ तक कि पक्षी भी आ कर उसकी शाखाओं पर बसेरा करने लगे.”

20 मसीह येशु ने दोबारा कहा, “परमेश्वर के राज्य की तुलना मैं किससे करूँ? 21 परमेश्वर का राज्य ख़मीर के समान है, जिसे एक स्त्री ने तीन माप आटे में मिलाया और सारा आटा ही खमीर युक्त हो गया.”

स्वर्ग-राज्य में प्रवेश के विषय में शिक्षा

22 नगर-नगर और गाँव-गाँव होते हुए और मार्ग में शिक्षा देते हुए मसीह येशु येरूशालेम नगर की ओर बढ़ रहे थे. 23 किसी ने उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, क्या मात्र कुछ ही लोग उद्धार प्राप्त कर सकेंगे?” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, 24 “तुम्हारी कोशिश यह हो कि तुम संकरे द्वार से प्रवेश करो क्योंकि मैं तुम्हें बता रहा हूँ कि अनेक इसमें प्रवेश तो चाहेंगे किन्तु प्रवेश करने में असमर्थ रहेंगे. 25 एक बार जब घर का स्वामी द्वार बन्द कर दे तो तुम बाहर खड़े, द्वार खटखटाते हुए विनती करते रह जाओगे: ‘महोदय, कृपया हमारे लिए द्वार खोल दें.’

“किन्तु वह उत्तर देगा, ‘तुम कौन हो और कहां से आये हो मैं नहीं जानता.’

26 “तब तुम कहोगे, ‘हम आपके साथ खाया-पिया करते थे और आप हमारी गलियों में शिक्षा दिया करते थे.’

27 “परन्तु उसका उत्तर होगा, ‘मैं तुमसे कह चुका हूँ तुम कौन हो, मैं नहीं जानता. चले जाओ यहाँ से! तुम सब कुकर्मी हो!’

28 “जब तुम परमेश्वर के राज्य में अब्राहाम, इसहाक, याक़ोब तथा सभी भविष्यद्वक्ताओं को देखोगे और स्वयं तुम्हें बाहर फेंक दिया जाएगा, वहाँ रोना और दाँतों का पीसना ही होगा. 29 चारों दिशाओं से लोग आ कर परमेश्वर के राज्य के उत्सव में शामिल होंगे 30 और सच्चाई यह है कि जो अन्तिम हैं वे पहिले होंगे तथा जो पहिले वे अन्तिम.”

येरूशालेम नगर पर विलाप

31 उसी समय कुछ फ़रीसियों ने उनके पास आ कर उनसे कहा, “यहाँ से चले जाओ क्योंकि हेरोदेस तुम्हारी हत्या कर देना चाहता है.”

32 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “जा कर उस लोमड़ी से कहो, ‘मैं आज और कल प्रेतों को निकालूंगा और लोगों को चँगा करूँगा और तीसरे दिन मैं अपने लक्ष्य पर पहुँच जाऊँगा.’ 33 फिर भी यह ज़रूरी है कि मैं आज, कल और परसों यात्रा करूँ क्योंकि यह हो ही नहीं सकता कि किसी भविष्यद्वक्ता की हत्या येरूशालेम नगर के बाहर हो.

34 “येरूशालेम, ओ येरूशालेम! तुम ऐसे नगर हो, जो भविष्यद्वक्ताओं की हत्या कर देता है तथा उनका पथराव करता है, जो इसके लिए भेजे जाते हैं. कितनी ही बार मैंने यह चाहा कि तुम्हारी संतानो को इकट्ठा करूँ—ठीक वैसे ही, जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा कर लेती है, किन्तु तुम ही ने न चाहा! 35 इसलिए तुम्हारा घर तुम्हारे लिए उजाड़ छोड़ा जा रहा है. जो मैं तुमसे कह रहा हूँ उसे सुनो: तुम मुझे तब तक न देखोगे जब तक वह समय न आए जब तुम यह कहोगे: ‘धन्य है वह, जो प्रभु के नाम में आता है.’”

जलोदर पीड़ित को स्वास्थ्यदान

14 एक अवसर पर जब मसीह येशु शब्बाथ पर फ़रीसियों के नायकों में से एक के घर भोजन करने गए, वे सभी उन्हें उत्सुकतापूर्वक देख रहे थे. वहाँ जलोदर रोग से पीड़ित एक व्यक्ति था. मसीह येशु ने फ़रीसियों और वकीलों से प्रश्न किया, “शब्बाथ पर किसी को स्वस्थ करना व्यवस्था के अनुसार है या नहीं?” किन्तु वे मौन रहे. इसलिए मसीह येशु ने उस रोगी पर हाथ रख उसे स्वस्थ कर दिया तथा उसे विदा किया.

तब मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “यह बताओ, यदि तुममें से किसी का पुत्र या बैल शब्बाथ पर गड्ढे में गिर जाए तो क्या तुम उसे तुरन्त ही बाहर न निकालोगे?” उनके पास इस प्रश्न का कोई उत्तर न था.

जब मसीह येशु ने यह देखा कि आमन्त्रित व्यक्ति अपने लिए किस प्रकार प्रधान आसन चुन लेते हैं, मसीह येशु ने उन्हें यह विचार दिया: “जब भी कोई तुम्हें विवाह के उत्सव में आमन्त्रित करे, तुम अपने लिए आदरयोग्य आसन न चुनना. यह सम्भव है कि उसने तुमसे अधिक किसी आदरयोग्य व्यक्ति को भी आमन्त्रित किया हो. तब वह व्यक्ति, जिसने तुम्हें और उसे दोनों ही को आमन्त्रित किया है, आ कर तुमसे कहे ‘तुम यह आसन इन्हें दे दो,’ तब लज्जित हो तुम्हें वह आसन छोड़ कर सबसे पीछे के आसन पर बैठना पड़े. 10 किन्तु जब तुम्हें कहीं आमन्त्रित किया जाए, जा कर सबसे साधारण आसन पर बैठ जाओ जिससे कि जब जिसने तुम्हें आमन्त्रित किया है तुम्हारे पास आए तो यह कहे, ‘मेरे मित्र, उठो और उस ऊँचे आसन पर बैठो.’ इस पर अन्य सभी आमन्त्रित अतिथियों के सामने तुम आदरयोग्य साबित होगे. 11 हर एक, जो स्वयं को बड़ा बनाता है, छोटा बना दिया जाएगा तथा जो स्वयं को छोटा बना देता है, बड़ा किया जाएगा.”

12 तब फिर मसीह येशु ने अपने न्योता देनेवाले से कहा, “जब तुम दिन या रात के भोजन पर किसी को आमन्त्रित करो तो अपने मित्रों, भाई-बन्धुओं, परिजनों या धनवान पड़ोसियों को आमन्त्रित मत करो; ऐसा न हो कि वे भी तुम्हें आमन्त्रित करें और तुम्हें बदला मिल जाए. 13 किन्तु जब तुम भोज का आयोजन करो तो निर्धनों, अपंगों, लंगड़ों तथा अंधों को आमन्त्रित करो. 14 तब तुम परमेश्वर की कृपा के भागी बनोगे. वे लोग तुम्हारा बदला नहीं चुका सकते. बदला तुम्हें धर्मियों के दोबारा जी उठने के अवसर पर प्राप्त होगा.”

महोत्सव के आमन्त्रण का दृष्टान्त

15 यह सुन वहाँ आमन्त्रितों में से एक ने मसीह येशु से कहा, “धन्य है वह, जो परमेश्वर के राज्य के भोज में सम्मिलित होगा.”

16 यह सुन मसीह येशु ने कहा, “किसी व्यक्ति ने एक बड़ा भोज का आयोजन किया और अनेकों को आमन्त्रित किया. 17 भोज तैयार होने पर उसने अपने सेवकों को इस सूचना के साथ आमन्त्रितों के पास भेजा, ‘आ जाइए, सब कुछ तैयार है.’

18 “किन्तु वे सभी बहाने बनाने लगे. एक ने कहा, ‘मैंने भूमि मोल ली है और आवश्यक है कि मैं जा कर उसका निरीक्षण करूँ. कृपया मुझे क्षमा करें.’

19 “दूसरे ने कहा, ‘मैंने अभी-अभी पाँच जोड़े बैल मोल लिए हैं और मैं उन्हें परखने के लिए बस निकल ही रहा हूँ. कृपया मुझे क्षमा करें.’

20 “एक और अन्य ने कहा, ‘अभी, इसी समय मेरा विवाह हुआ है इसलिए मेरा आना सम्भव नहीं.’

21 “सेवक ने लौट कर अपने स्वामी को यह सूचना दे दी. अत्यन्त गुस्से में घर के स्वामी ने सेवक को आज्ञा दी, ‘तुरन्त नगर की गलियों-चौराहों में जाओ और निर्धनों, अपंगों, लंगड़ों और अंधों को ले आओ.’

22 “सेवक ने लौट कर सूचना दी, ‘स्वामी, आपके आदेशानुसार काम पूरा हो चुका है किन्तु अब भी कुछ जगह खाली है.’

23 “तब घर के स्वामी ने उसे आज्ञा दी, ‘अब नगर के बाहर के मार्गों से लोगों को यहाँ आने के लिए विवश करो कि मेरा भवन भर जाए. 24 यह निश्चित है कि वे, जिन्हें आमन्त्रित किया गया था, उनमें से एक भी मेरे भोज को चख न सकेगा.’”

शिष्यता का दाम

25 एक बड़ी भीड़ मसीह येशु के साथ-साथ चल रही थी. मसीह येशु ने मुड़ कर उनसे कहा, 26 “यदि कोई मेरे पास आता है और अपने माता-पिता, पत्नी, सन्तान तथा भाई-बहनों को, यहाँ तक कि स्वयं अपने जीवन को, मुझसे अधिक महत्व देता है, मेरा चेला नहीं हो सकता. 27 जो कोई अपना क्रूस उठाए बिना मेरे पीछे हो लेता है, वह मेरा चेला हो ही नहीं सकता.

28 “तुममें ऐसा कौन है, जो भवन निर्माण करना चाहे और पहले बैठ कर खर्च का अनुमान न करे कि उसके पास निर्माण काम पूरा करने के लिए पर्याप्त राशि है भी या नहीं? 29 अन्यथा यदि वह नींव डाल ले और काम पूरा न कर पाए तो देखनेवालों के ठठ्ठों का कारण बन जाएगा: 30 ‘देखो-देखो! इसने काम प्रारम्भ तो कर दिया किन्तु अब समाप्त नहीं कर पा रहा!’

31 “या ऐसा कौन राजा होगा, जो दूसरे पर आक्रमण करने के पहले यह विचार न करेगा कि वह अपने दस हज़ार सैनिकों के साथ अपने विरुद्ध बीस हज़ार की सेना से टक्कर लेने में समर्थ है भी या नहीं? 32 यदि नहीं, तो जब शत्रु-सेना दूर ही है, वह अपने दूतों को भेज कर उसके सामने शान्ति-प्रस्ताव रखेगा. 33 इसी प्रकार तुममें से कोई भी मेरा चेला नहीं हो सकता यदि वह अपना सब कुछ त्याग न कर दे.

34 “नमक उत्तम है किन्तु यदि नमक ही स्वादहीन हो जाए तो किस वस्तु से उसका स्वाद लौटाया जा सकेगा? 35 तब वह न तो भूमि के लिए किसी उपयोग का रह जाता है और न खाद के रूप में किसी उपयोग का. उसे फेंक दिया जाता है.

“जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले.”

Saral Hindi Bible (SHB)

New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.