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Read the Gospels in 40 Days

Read through the four Gospels--Matthew, Mark, Luke, and John--in 40 days.
Duration: 40 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
योहन 3-4

निकोदेमॉस और नया जन्म

निकोदेमॉस नामक एक फ़रीसी, जो यहूदियों के प्रधानों में से एक थे, रात के समय मसीह येशु के पास आए और उनसे कहा, “रब्बी, हम जानते हैं कि आप परमेश्वर की ओर से भेजे गए गुरु हैं क्योंकि कोई भी ये अद्भुत काम, जो आप करते हैं, नहीं कर सकता यदि परमेश्वर उसके साथ न हों.”

इस पर मसीह येशु ने कहा, “मैं आप पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: बिना नया जन्म प्राप्त किए परमेश्वर के राज्य का अनुभव असम्भव है.”

निकोदेमॉस ने उनसे पूछा, “वृद्ध मनुष्य का दोबारा जन्म लेना कैसे सम्भव है, क्या वह नया जन्म लेने के लिए पुनः अपनी माता के गर्भ में प्रवेश करे?”

मसीह येशु ने स्पष्ट किया, “मैं आप पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जब तक किसी का जन्म जल और आत्मा से नहीं होता, परमेश्वर के राज्य में उसका प्रवेश असम्भव है, क्योंकि मानव शरीर में जन्म मात्र शारीरिक जन्म है, जबकि आत्मा से जन्म नया जन्म है. चकित न हों कि मैंने आप से यह कहा कि मनुष्य का नया जन्म होना ज़रूरी है. जिस प्रकार वायु जिस ओर चाहती है, उस ओर बहती है. आप उसकी ध्वनि तो सुनते हैं किन्तु यह नहीं बता सकते कि वह किस ओर से आती और किस ओर जाती है. आत्मा से उत्पन्न व्यक्ति भी ऐसा ही है.”

निकोदेमॉस ने पूछा, “यह सब कैसे सम्भव है?”

10 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “इस्राएल के शिक्षक,” होकर भी आप इन बातों को नहीं समझते! 11 मैं आप पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: हम वही कहते हैं, जो हम जानते हैं और हम उसी की गवाही देते हैं, जिसे हमने देखा है, किन्तु आप हमारी गवाही ग्रहण नहीं करते. 12 जब मैं आप से सांसारिक विषयों की बातें करता हूँ, आप मेरा विश्वास नहीं करते तो यदि मैं स्वर्गीय विषयों की बातें करूँ तो विश्वास कैसे करेंगे?

13 मनुष्य के पुत्र के अलावा और कोई स्वर्ग नहीं गया क्योंकि वही पहले स्वर्ग से उतरा है. 14 जिस प्रकार मोशेह ने जंगल में साँप को ऊँचा उठाया, उसी प्रकार ज़रूरी है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचा उठाया जाए. 15 कि हर एक मनुष्य उसमें विश्वास करे और अनन्त जीवन प्राप्त करे.

16 परमेश्वर ने संसार से अपने अपार प्रेम के कारण अपना एकलौता पुत्र बलिदान कर दिया कि हर एक ऐसे व्यक्ति का, जो पुत्र में विश्वास करता है, उसका विनाश न हो परन्तु वह अनन्त जीवन प्राप्त करे. 17 क्योंकि परमेश्वर ने अपने पुत्र को संसार पर दोष लगाने के लिए नहीं परन्तु संसार के उद्धार के लिए भेजा. 18 हर एक उस व्यक्ति पर, जो उनमें विश्वास करता है, उस पर कभी दोष नहीं लगाया जाता; जो विश्वास नहीं करता वह दोषी घोषित किया जा चुका है क्योंकि उसने परमेश्वर के एकलौते पुत्र में विश्वास नहीं किया. 19 अन्तिम निर्णय का आधार यह है: ज्योति के संसार में आ जाने पर भी मनुष्यों ने ज्योति की तुलना में अन्धकार को प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे. 20 कुकर्मों में लीन व्यक्ति ज्योति से घृणा करता और ज्योति में आने से कतराता है कि कहीं उसके काम प्रकट न हो जाएँ; 21 किन्तु सच्चा व्यक्ति ज्योति के पास आता है, जिससे यह प्रकट हो जाए कि उसके काम परमेश्वर की ओर से किए गए काम हैं.

बपतिस्मा देने वाले योहन द्वारा मसीह येशु की महिमा

22 इसके बाद मसीह येशु और उनके शिष्य यहूदिया प्रदेश में आए, जहाँ वे उनके साथ रहकर बपतिस्मा देते रहे. 23 योहन भी यरदन नदी में शालीम नगर के पास एनोन नामक स्थान में बपतिस्मा देते थे क्योंकि वहाँ जल बहुत मात्रा में था. 24 इस समय तक योहन बन्दीगृह में नहीं डाले गए थे. 25 एक यहूदी ने योहन के शिष्यों से जल द्वारा शुद्धिकरण की विधि के विषय में स्पष्टीकरण चाहा. 26 शिष्यों ने योहन के पास जाकर उनसे कहा, “रब्बी, देखिए, यरदन पार वह व्यक्ति, जो आपके साथ थे और आप जिनकी गवाही देते रहे हैं, सब लोग उन्हीं के पास जा रहे हैं और वह उन्हें बपतिस्मा भी दे रहे हैं.”

27 इस पर योहन ने कहा, “कोई भी तब तक कुछ प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक उसे स्वर्ग से न दिया जाए. 28 तुम स्वयं मेरे गवाह हो कि मैंने कहा था, ‘मैं मसीह नहीं किन्तु उनके लिए पहले भेजा गया दूत हूँ’ 29 वर वही है जिसके साथ वधू है किन्तु वर के साथ उसका मित्र उसका शब्द सुन आनन्द से अत्यन्त प्रफुल्लित होता है. यही है मेरा आनन्द, जो अब पूरा हुआ है. 30 यह निश्चित है कि वह बढ़ते जाएँ और मैं घटता जाऊँ.”

31 जिनका आगमन स्वर्ग से हुआ है वही सबसे बड़ा हैं, जो पृथ्वी से है, वह पृथ्वी का है और पृथ्वी ही से सम्बन्धित विषयों की बातें करता है. वह, जो परमेश्वर से आए हैं, वह सबसे ऊपर हैं. 32 जो उन्होंने देखा और सुना है वह उसी की गवाही देते हैं, फिर भी कोई उनकी गवाही ग्रहण नहीं करता. 33 जिन्होंने उनकी गवाही ग्रहण की है, उन्होंने यह साबित किया है कि परमेश्वर सच्चा है. 34 वह, जिन्हें परमेश्वर ने भेजा है परमेश्वर के वचनों का प्रचार करते हैं, क्योंकि परमेश्वर उन्हें बिना किसी माप के आत्मा देते हैं. 35 पिता को पुत्र से प्रेम है और उन्होंने सब कुछ उसके हाथ में सौंप दिया है. 36 वह, जो पुत्र में विश्वास करता है, अनन्त काल के जीवन में प्रवेश कर चुका है किन्तु जो पुत्र को नहीं मानता है, वह अनन्त काल का जीवन प्राप्त नहीं करेगा परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर बना रहेगा.

शोमरोनी स्त्री और मसीह येशु

जब मसीह येशु को यह मालूम हुआ कि फ़रीसियों के मध्य उनके विषय में चर्चा हो रही है कि वह योहन से अधिक शिष्य बनाते और बपतिस्मा देते हैं; यद्यपि स्वयं मसीह येशु नहीं परन्तु उनके शिष्य बपतिस्मा देते थे, तब वह यहूदिया प्रदेश छोड़ कर पुनः गलील प्रदेश को लौटे और उन्हें शोमरोन प्रदेश में से हो कर जाना पड़ा. वह शोमरोन प्रदेश के सूख़ार नामक नगर पहुँचे. यह नगर उस भूमि के पास है, जो याक़ोब ने अपने पुत्र योसेफ़ को दी थी. याक़ोब का कुआँ भी वहीं था. यात्रा से थके मसीह येशु कुएँ के पास बैठ गए. यह लगभग छठे घण्टे का समय था.

उसी समय शोमरोनवासी एक स्त्री उस कुएँ से जल भरने आई. मसीह येशु ने उससे कहा, “मुझे पीने के लिए जल दो.” उस समय मसीह येशु के शिष्य नगर में भोजन लेने गए हुए थे.

इस पर आश्चर्य करते हुए उस शोमरोनी स्त्री ने मसीह येशु से पूछा, “आप यहूदी हो कर मुझ शोमरोनी से जल कैसे माँग रहे हैं!”—यहूदी शोमरोनवासियों से किसी प्रकार का संबंध नहीं रखते थे.

10 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “यदि तुम परमेश्वर के वरदान को जानतीं और यह पहचानतीं कि वह कौन है, जो तुमसे कह रहा है, ‘मुझे पीने के लिए जल दो’, तो तुम उससे मांगतीं और वह तुम्हें जीवन का जल देता.”

11 स्त्री ने कहा, “किन्तु श्रीमन, आपके पास तो जल निकालने के लिए कुछ भी नहीं है और कुआँ बहुत गहरा है; जीवन का जल आपके पास कहाँ से आया! 12 आप हमारे कुलपिता याक़ोब से बढ़कर तो हैं नहीं, जिन्होंने हमें यह कुआँ दिया, जिसमें से स्वयं उन्होंने, उनकी सन्तान ने और उनके पशुओं ने भी पिया.” 13 मसीह येशु ने कहा, “कुएँ का जल पी कर हर एक व्यक्ति फिर प्यासा होगा किन्तु जो व्यक्ति मेरा दिया हुआ जल पिएगा वह आजीवन किसी भी प्रकार से प्यासा न होगा. 14 और वह जल जो मैं उसे दूँगा, उसमें से अनन्त काल के जीवन का सोता बन कर फूट निकलेगा.”

15 यह सुनकर स्त्री ने उनसे कहा, “श्रीमन, आप मुझे भी वह जल दीजिए कि मुझे न प्यास लगे और न ही मुझे यहाँ तक जल भरने आते रहना पड़े.”

16 मसीह येशु ने उससे कहा, “जाओ, अपने पति को यहाँ ले कर आओ.”

17 स्त्री ने उत्तर दिया, “मेरे पति नहीं है.” मसीह येशु ने उससे कहा, “तुमने सच कहा कि तुम्हारा पति नहीं है. 18 सच यह है कि पाँच पति पहले ही तुम्हारे साथ रह चुके हैं और अब भी जो तुम्हारे साथ रह रहा है, तुम्हारा पति नहीं है.”

19 यह सुन स्त्री ने उनसे कहा, “श्रीमन, ऐसा लगता है कि आप भविष्यद्वक्ता हैं. 20 हमारे पूर्वज इस पर्वत पर आराधना करते थे किन्तु आप यहूदी लोग कहते हैं कि येरूशालेम ही वह स्थान है, जहाँ आराधना करना सही है.”

21 मसीह येशु ने उससे कहा, “मेरा विश्वास करो कि वह समय आ रहा है जब तुम न तो इस पर्वत पर पिता की आराधना करोगे और न येरूशालेम में. 22 तुम लोग तो उसकी आराधना करते हो जिसे तुम जानते नहीं. हम उनकी आराधना करते हैं जिन्हें हम जानते हैं 23 क्योंकि अन्ततः: उद्धार यहूदियों में से ही है. वह समय आ रहा है बल्कि आ ही गया है जब सच्चे भक्त पिता की आराधना अपनी अन्तरात्मा और सच्चाई में करेंगे क्योंकि पिता अपने लिए ऐसे ही भक्तों की खोज में हैं. 24 परमेश्वर आत्मा हैं इसलिए आवश्यक है कि उनके भक्त अपनी आत्मा और सच्चाई में उनकी आराधना करें.”

25 स्त्री ने उनसे कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह, जिन्हें ख्रिस्त कहा जाता है, आ रहे हैं. जब वह आएंगे तो सब कुछ साफ़ कर देंगे.”

26 मसीह येशु ने उससे कहा, “मैं, जो तुमसे बातें कर रहा हूँ, वही हूँ.”

आत्मिक उपज के विषय में प्रकाशन

27 तभी उनके शिष्य आ गए और मसीह येशु को एक स्त्री से बातें करते देख दंग रह गए, फिर भी किसी ने उनसे यह पूछने का साहस नहीं किया कि वह एक स्त्री से बातें क्यों कर रहे थे या उससे क्या जानना चाहते थे.

28 अपना घड़ा वहीं छोड़ वह स्त्री नगर में जा कर लोगों को बताने लगी, 29 “आओ, एक व्यक्ति को देखो, जिन्होंने मेरे जीवन की सारी बातें सुना दी हैं. कहीं यही तो मसीह नहीं!” 30 तब नगरवासी मसीह येशु को देखने वहाँ आने लगे.

31 इसी बीच शिष्यों ने मसीह येशु से विनती की, “रब्बी, कुछ खा लीजिए.”

32 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मेरे पास खाने के लिए ऐसा भोजन है, जिसके विषय में तुम कुछ नहीं जानते.”

33 इस पर शिष्य आपस में पूछताछ करने लगे, “कहीं कोई गुरु के लिए भोजन तो नहीं लाया?” 34 मसीह येशु ने उनसे कहा, “अपने भेजनेवाले,” “की इच्छा पूरी करना तथा उनका काम समाप्त करना ही मेरा भोजन है. 35 क्या तुम यह नहीं कहते कि कटनी में चार महिने बचे हैं? किन्तु मैं तुम से कहता हूँ कि खेतों पर दृष्टि डालो. वे कब से कटनी के लिए पक चुके हैं. 36 इकट्ठा करने वाला अपनी मज़दूरी प्राप्त कर अनन्त काल के जीवन के लिए फसल इकट्ठी कर रहा है कि किसान और इकट्ठा करनेवाला दोनों मिल कर आनन्द मनाएँ. 37 यहाँ यह कहावत ठीक बैठती है: ‘एक बोए दूसरा काटे’. 38 जिस उपज के लिए तुमने कोई परिश्रम नहीं किया, उसी को काटने मैंने तुम्हें भेजा है. परिश्रम अन्य लोगों ने किया और तुम उनके प्रतिफल में शामिल हो गए.”

शोमरोनवासियों का मसीह येशु में विश्वास करना

39 अनेक नगरवासियों ने उस स्त्री की इस गवाही के कारण मसीह येशु में विश्वास किया: “आओ, एक व्यक्ति को देखो, जिन्होंने मेरे जीवन की सारी बातें सुना दी हैं.” 40 तब शोमरोनवासियों की विनती पर मसीह येशु दो दिन तक उनके मध्य रहे 41 और उनका प्रवचन सुन कर अनेकों ने उनमें विश्वास किया.

42 उन्होंने उस स्त्री से कहा, “अब हम मात्र तुम्हारे कहने से ही इनमें विश्वास नहीं करते, हमने अब इन्हें स्वयं सुना है और जान गए हैं कि यही वास्तव में संसार के उद्धारकर्ता हैं.”

प्रचार का प्रारम्भ गलील प्रदेश से

(मत्ति 4:12-17; मारक 1:14-15; लूकॉ 4:14, 15)

43 दो दिन बाद मसीह येशु ने गलील प्रदेश की ओर प्रस्थान किया. 44 यद्यपि मसीह येशु स्वयं स्पष्ट कर चुके थे कि भविष्यद्वक्ता को अपने ही देश में सम्मान नहीं मिलता, 45 गलील प्रदेश पहुँचने पर गलीलवासियों ने उनका स्वागत किया क्योंकि वे फ़सह उत्सव के समय येरूशालेम में मसीह येशु द्वारा किए गए काम देख चुके थे.

46 मसीह येशु दोबारा गलील प्रदेश के काना नगर में आए, जहाँ उन्होंने जल को दाखरस में बदला था. कफ़रनहूम नगर में एक राजकर्मचारी था, जिसका पुत्र अस्वस्थ था. 47 यह सुन कर कि मसीह येशु यहूदिया प्रदेश से गलील में आए हुए हैं, उसने आ कर मसीह येशु से विनती की कि वह चल कर उसके पुत्र को स्वस्थ कर दें, जो मृत्यु-शय्या पर है.

48 इस पर मसीह येशु ने उसे झिड़की देते हुए कहा, “तुम लोग तो चिह्न और चमत्कार देखे बिना विश्वास ही नहीं करते!”

49 राजकर्मचारी ने उनसे दोबारा विनती की, “श्रीमन, इससे पूर्व कि मेरे बालक की मृत्यु हो, कृपया मेरे साथ चलें.”

50 मसीह येशु ने उससे कहा, “जाओ, तुम्हारा पुत्र जीवित रहेगा.” उस व्यक्ति ने मसीह येशु के वचन पर विश्वास किया और घर लौट गया. 51 जब वह मार्ग में ही था, उसके दास उसे मिल गए और उन्होंने उसे सूचना दी, “स्वामी, आपका पुत्र स्वस्थ हो गया है.” 52 “वह किस समय से स्वस्थ होने लगा था?” उसने उनसे पूछा. उन्होंने कहा, “कल लगभग सातवें घण्टे उसका ज्वर उतर गया.”

53 पिता समझ गया कि यह ठीक उसी समय हुआ जब मसीह येशु ने कहा था, “तुम्हारा पुत्र जीवित रहेगा.” इस पर उसने और उसके सारे परिवार ने मसीह येशु में विश्वास किया.

54 यह दूसरा अद्भुत चिह्न था, जो मसीह येशु ने यहूदिया प्रदेश से लौट कर गलील प्रदेश में किया.

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