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योआश फिर मन्दिर बनाता है
24 योआश जब राजा बना सात वर्ष का था। उसने यरूशलेम में चालीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माँ का नाम सिब्या था। सिब्या बेर्शेबा नगर की थी। 2 योआश यहोवा के सामने तब तक ठीक काम करता रहा जब तक याजक यहोयादा जीवित रहा। 3 यहोयादा ने योआश के लिये दो पत्नियाँ चुनीं। यहोआश के पुत्र और पुत्रियाँ थीं।
4 तब कुछ समय बाद, योआश ने यहोवा का मन्दिर दुबारा बनाने का निश्चय किया। 5 योआश ने याजकों और लेवीवंशियों को एक साथ बुलाया। उसने उनसे कहा, “यहूदा के नगरों में जाओ और उस धन को इकट्ठा करो जिसका भुगतान इस्राएल के लोग हर वर्ष करते हैं। उस धन का उपयोग परमेश्वर के मन्दिर को दुबारा बनाने में करो। शीघ्रता करो औऱ इसे पूरा कर लो।” किन्तु लेवीवंशियों ने शीघ्रता नहीं की।
6 इसलिये राजा योआश ने प्रमुख याजक यहोयादा को बुलाया। राजा ने कहा, “यहोयादा, तुमने लेवीवंशियों को यहूदा और यरूशलेम से कर का धन लाने को प्रेरित क्यों नहीं किया यहोवा के सेवक मूसा औऱ इस्राएल के लोगों ने पवित्र तम्बू के लिये इस कर के धन का उपयोग किया था।”
7 बीते काल में अतल्याह के पुत्र, परमेश्वर के मन्दिर में बलपूर्वक घुस गए थे। उन्होंने यहोवा के मन्दिर की पवित्र चीज़ों का उपयोग अपने बाल देवताओं की पूजा के लिये किया था। अतल्याह एक दुष्ट स्त्री थी।
8 राजा योआश ने एक सन्दूक बनाने और उसे यहोवा के मन्दिर के द्वार के बाहर रखने का आदेश दिया। 9 तब लेवीवंशियों ने यहूदा और यरूशलेम में यह घोषणा की। उन्होंने लोगों से कर का धन यहोवा के लिये लाने को कहा। यहोवा के सेवक मूसा ने इस्राएल के लोगों से मरुभूमि में रहते समय जो कर के रुप में धन माँगा था उतना ही यह धन है। 10 सभी प्रमुख और सभी लोग प्रसन्न थे। वे धन लेकर आए और उन्होंने उसे सन्दूक में डाला। वे तब तक देते रहे जब तक सन्दूक भर नहीं गया। 11 तब लेवीवंशियों को राजा के अधिकारियों के सामने सन्दूक ले जाना पड़ा। उन्होंने देखा कि सन्दूक धन से भऱ गया है। राजा के सचिव और प्रमुख याजक के अधिकारी आए और उन्होंने धन को सन्दूक से निकाला। तब वे सन्दूक को अपनी जगह पर फिर वापस ले गए। उन्होंने यह बार—बार किया और बहुत धन बटोरा। 12 तब राजा योआश और यहोयादा ने वह धन उन लोगों को दिया जो यहोवा के मन्दिर को बनाने का कार्य कर रहे थे और यहोवा के मन्दिर को बनाने में कार्य करने वालों ने यहोवा के मन्दिर को दुबारा बनाने के लिये कुशल बढ़ई और लकड़ी पर खुदाई का काम करने वालों को मजदूरी पर रखा। उन्होंने यहोवा के मन्दिर को दुबारा बनाने के लिये कांसे और लोहे का काम करने की जानकारी रखने वालों को भी मजदूरी पर रखा।
13 काम की निगरानी रखने वाले व्यक्ति विश्वसनीय थे। यहोवा के मन्दिर को दुबारा बनाने का काम सफल हुआ। उन्होंने परमेश्वर के मन्दिर को जैसा वह पहले था, वैसा ही बनाया और पहले से अधिक मजबूत बनाया। 14 जब कारीगरों ने काम पूरा कर लिया तो वे उस धन को जो बचा था, राजा योआश और यहोयादा के पास ले आए। उसका उपयोग उन्होंने यहोवा के मन्दिर के लिये चीज़ें बनाने के लिये किया। वे चीज़ें मन्दिर के सेवाकार्य में और होमबलि चढ़ाने में काम आती थीं। उन्होंने सोने और चाँदी के कटोरे और अन्य वस्तुएँ बनाईं। याजकों ने यहोवा के मन्दिर में हर एक संध्या को होमबलि तब तक चढ़ाई जब तक यहोयादा जीवित रहा।
15 यहोयादा बूढ़ा हुआ। उसने बहुत लम्बी उम्र बिताई तब वह मरा। यहोयादा जब मरा, वह एक सौ तीस वर्ष का था। 16 लोगों ने यहोयादा को दाऊद के नगर में वहाँ दफनाया जहाँ राजा दफनाए जाते हैं। लोगों ने यहोयादा को वहाँ दफनाया क्योंकि अपने जीवन में उसने परमेश्वर और परमेश्वर के मन्दिर के लिये इस्राएल में बहुत अच्छे कार्य किये।
17 यहोयादा के मरने के बाद यहूदा के प्रमुख आए और वे राजा योआश के सामने झुके। राजा ने इन प्रमुखों की सुनी। 18 राजा औऱ प्रमुखों ने उस यहोवा, परमेश्वर के मन्दिर को अस्वीकार कर दिया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे। उन्होंने अशेरा—स्तम्भ और अन्य मूर्तियों की पूजा आरम्भ की। परमेश्वर यहूदा और यरूशलेम के लोगों पर क्रोधित हुआ क्योंकि राजा औऱ वे प्रमुख अपराधी थे। 19 परमेश्वर ने लोगों के पास नबियों को उन्हें यहोवा की ओर लौटाने के लिये भेजा। नबियों ने लोगों को चेतावनी दी। किन्तु लोगों ने सुनने से इन्कार कर दिया।
20 परमेश्वर की आत्मा जकर्याह पर उतरी। जकर्याह का पिता याजक यहोयादा था। जकर्याह लोगों के सामने खड़ा हुआ और उसने कहा, “जो यहोवा कहता है वह यह है: ‘तुम लोग यहोवा का आदेश पालन करने से क्यों इन्कार करते हो तुम सफल नहीं होगे। तुमने यहोवा को छोड़ा है। इसलिये यहोवा ने भी तुम्हें छोड़ दिया है!’”
21 लेकिन लोगों ने जकर्याह के विरुद्ध योजना बनाई। राजा ने जकर्याह को मार डालने का आदेश दिया, अत: उन्होंने उस पर तब तक पत्थर मारे जब तक वह मर नहीं गया। लोगों ने यह मन्दिर के आँगन में किया। 22 राजा योआश ने अपने ऊपर यहोयादा की दयालुता को भी याद नहीं रखा। यहोयादा जकर्याह का पिता था। किन्तु योआश ने यहोयादा के पुत्र जकर्याह को मार डाला। मरने के पहले जकर्याह ने कहा, “यहोवा उस पर ध्यान दे जो तुम कर रहे हो और तुम्हें दण्ड दे!”
23 वर्ष के अन्त में अराम की सेना योआश के विरुद्ध आई। उन्होंने यहूदा और यरूशलेम पर आक्रमण किया और लोगों के सभी प्रमुखों को मार डाला। उन्होंने सारी कीमती चीज़ें दमिश्क के राजा के पास भेज दीं। 24 अराम की सेना बहुत कम समूहों में आई थी किन्तु यहोवा ने उसे यहूदा की बहुत बड़ी सेना को हराने दिया। यहोवा ने यह इसलिये किया कि यहूदा के लोगों ने यहोवा परमेश्वर को छोड़ दिया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे। इस प्रकार योआश को दण्ड मिला। 25 जब अराम के लोगों ने योआश को छोड़ा, वह बुरी तरह घायल था। योआश के अपने सेवकों ने उसके विरुद्ध योजना बनाई। उन्होंने ऐसा इसलिये किया कि योआश ने याजक यहोयादा के पुत्र जकर्याह को मार डाला था। सेवकों ने योआश को उसकी अपनी शैया पर ही मार डाला। योआश के मरने के बाद लोगों ने उसे दाऊद के नगर में दफनाया। किन्तु लोगों ने उसे उस स्थान पर नहीं दफनाया जहाँ राजा दफनाये जाते हैं।
26 जिन सेवकों ने योआश के विरुद्ध योजना बनाई, वे ये हैं जाबाद और यहोजाबाद। जाबाद की माँ का नाम शिमात था। शिमात अम्मोन की थी। यहोजाबाद की माँ का नाम शिम्रित था। शिम्रित मोआब की थी। 27 योआश के पुत्रों की कथा, उसके विरुद्ध बड़ी भविष्यवाणियाँ और उसने फिर परमेश्वर का मन्दिर कैसे बनाया, राजाओं के व्याख्या नामक पुस्तक में लिखा है। उसके बाद अमस्याह नया राजा हुआ। अमस्याह योआश का पुत्र था।
यहूदा का राजा अमस्याह
25 अमस्याह राजा बनने के समय पच्चीस वर्ष का था। उसने यरूशलेम में उन्त्तीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माँ का नाम यहोअद्दान था। यहोअद्दान यरूशलेम की थी। 2 अमस्याह ने वही किया जो यहोवा उससे करवाना चाहता था। किन्तु उसने उन्हें पूरे हृदय से नहीं किया। 3 अमस्याह के हाथ में राज्यसत्ता सुदृढ़ हो गयी। तब उसने उन अधिकारियों को मार डाला जिन्होंने उसके पिता राजा को मारा था। 4 किन्तु अमस्याह ने उन अधिकारियों के बच्चों को नहीं मारा। क्यों? क्योंकि उसने मूसा के पुस्तक में लिखे नियमों को माना। यहोवा ने आदेश दिया था, “पिताओं को अपने पुत्रों के पाप के लिये नहीं मारना चाहिए। बच्चों को अपने पिता के पापों के लिये नहीं मरना चाहिए। हर एक व्यक्ति को अपने स्वयं के पाप के लिये मरना चाहिए।”
5 अमस्याह ने यहूदा के लोगों को इकट्ठा किया। उसने उनके परिवारों का वर्ग बनाया और उन वर्गों के अधिकारी सेनाध्यक्ष और नायक नियुक्त किये। वे प्रमुख यहूदा और बिन्यामीन के सभी सैनिकों के अधिकारी हुए। सभी लोग जो सैनिक होने के लिये चुने गए, बीस वर्ष के या उससे अधिक के थे। वे सब तीन लाख प्रशिक्षित सैनिक भाले और ढाल के साथ लड़ने वाले थे। 6 अमस्याह ने एक लाख सैनिकों को इस्राएल से किराये पर लिया। उसने पौने चार टन चाँदी का भुगतान उन सैनिकों को किराये पर लेने के लिये किया। 7 किन्तु परमेश्वर का एक व्यक्ति अमस्याह के पास आया। परमेश्वर के व्यक्ति ने कहा, “राजा, अपने साथ इस्राएल की सेना को न जाने दो। परमेश्वर इस्राएल के साथ नहीं है। परमेश्वर एप्रैम के लोगों के साथ नहीं है। 8 सम्भव है तुम अपने को शक्तिशाली बनाओ औऱ युद्ध की तैयारी करो, किन्तु परमेश्वर तुम्हें जिता या हरा सकता है।” 9 अमस्याह ने परमेश्वर के व्यक्ति से कहा, “किन्तु हमारे धन का क्या होगा जो मैंने पहले ही इस्राएल की सेना को दे दिया है” परमेश्वर के व्यक्ति ने उत्तर दिया, “यहोवा के पास बहुत अधिक है। वह उससे भी अधिक तुमको दे सकता है!”
10 इसलिए अमस्याह ने इस्राएल की सेना को वापस घर एप्रैम को भेज दिया। वे लोग राजा और यहूदा के लोगों के विरुद्ध बहुत क्रोधित हुए। वे बहुत अधिक क्रोधित होकर अपने घर लौटे।
11 तब अमस्याह बहुत साहसी हो गया और वह अपनी सेना को एदोम देश में नमक की घाटी में ले गया। उस स्थान पर अमस्याह की सेना ने सेईर के दस हज़ार सैनिकों को मार डाला। 12 यहूदा की सेना ने सेईर से दस हज़ार आदमी पकड़े। वे उन लोगों को सेईर से एक ऊँची चट्टान की चोटी पर ले गए। वे लोग तब तक जीवित थे। तब यहूदा की सेना ने उन व्यक्तियों को उस ऊँची चट्टान की चोटी से नीचे फेंक दिया और उनके शरीर नीचे की चट्टनों पर चूर चूर हो गए।
13 किन्तु उसी समय इस्राएली सेना यहूदा के कुछ नगरों पर आक्रमण कर रही थी। वे शोमरोन से बेथोरोन नगर तक के नगरों पर आक्रमण कर रहे थे। उन्होंने तीन हज़ार लोगों को मार डाला और वे बहुत सी कीमती चीज़ें ले गए। उस सेना के लोग इसलिये क्रोधित थे क्योंकि अमस्याह ने उन्हें युद्ध में अपने साथ सम्मिलित नहीं होने दिया।
14 अमस्याह एदोमी लोगों को हराने के बाद घर लौटा। वह सेईर के लोगों की उन देवमूर्तियों को लाया जिनकी वे पूजा करते थे। अमस्याह ने उन देवमूर्तियों को पूजना आरम्भ किया। उसने उन देवताओं को प्रणाम किया और उनको सुगन्धि भेंट की। 15 यहोवा अमस्याह पर बहुत क्रोधित हुआ। यहोवा ने अमस्याह के पास एक नबी भेजा। नबी ने कहा, “अमस्याह, तुमने उन देवताओं की क्यों पूजा की जिन्हें वे लोग पूजते थे वे देवता तो अपने लोगों की भी तुमसे रक्षा न कर सके!”
16 जब नबी ने यह बोला, अमस्याह ने नबी से कहा, “हम लोगों ने तुम्हें कभी राजा का सलाहकार नहीं बनाया! चुप रहो! यदि तुम चुप नहीं रहे तो मार डाले जाओगे।” नबी चुप हो गया, किन्तु उसने तब कहा, “परमेश्वर ने सचमुच तुमको नष्ट करने का निश्चय कर लिया है। क्योंकि तुम वे बुरी बातें करते हो और मेरी सलाह नहीं सुनते।”
17 यहूदा के राजा अमस्याह ने अपने सलाहकार के साथ सलाह की। तब उसने योआश के पास सन्देश भेजा। अमस्याह ने योआश से कहा, “हम लोग आमने—सामने मिलें।” योआश यहोआहाज का पुत्र था। यहोआहाज येहू का पुत्र था। येहू इस्राएल का राजा था।
18 तब योआश ने अपना उत्तर अमस्याह को भेजा। योआश इस्राएल का राजा था औऱ अमस्याह यहूदा का राजा था। योआश ने यह कथा सुनाई: “लेबानोन की एक छोटी कटीली झाड़ी ने लबानोन के एक विशाल देवदारु के वृक्ष को सन्देश भेजा। छोटी कटीली झाड़ी ने कहा, ‘अपनी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र के साथ कर दो,’ किन्तु एक जंगली जानवर निकला और उसने कटीली झाड़ी को कुचला और उसे नष्ट कर दिया। 19 तुम कहते हो, ‘मैंने एदोम को हराया है!’ तुम्हें उसका घमंड है औऱ उसकी डींग हाँकते हो। किन्तु तुम्हें घर में घुसे रहना चाहिए। तुम्हें खतरा मोल लेने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम मुझसे युद्ध करोगे ते तुम औऱ यहूदा नष्ट हो जाओगे।”
20 किन्तु अमस्याह ने सुनने से इन्कार कर दिया। यह परमेश्वर की ओर से हुआ। परमेश्वर ने यहूदा को इस्राएल द्वारा हराने की योजना बनाई क्योंकि यहूदा के लोग उन देवताओं का अनुसरण कर रहे थे जिनका अनुसरण एदोम के लोग करते थे। 21 इसलिये इस्राएल का राजा योआश बेतशेमेश नगर में यहूदा के राजा अमस्याह से आमने—सामने मिला। बेतशेमेश यहूदा में है। 22 इस्राएल ने यहूदा को हराया। यहूदा का हर एक व्यक्ति अपने घरों को भाग गया। 23 योआश ने अमस्याह को बेतशेमेश में पकड़ा और उसे यरूशलेम ले गया। अमस्याह के पिता का नाम योआश था। योआश के पिता का नाम यहोआहाज था। योआश ने छ: सौ फुट लम्बी यरूशलेम की उस दीवार को जो एप्रैम फाटक से कोने के फाटक तक थी, गिरा दिया। 24 तब योआश ने परमेश्वर के मन्दिर का सोना, चाँदी तथा कई अन्य सामान ले लिये। ओबेदेदोम मन्दिर में उन चीज़ों की सुरक्षा का उत्तरदायी था। किन्तु योआश ने उन सभी चीजों को ले लिया। योआश ने राजमहल से भी कीमती चीज़ों को लिया। तब योआश ने कुछ व्यक्तियों को बन्दी बनाया और शोमरोन लौट गया।
25 अमस्याह योआश के मरने के बाद पन्द्रह वर्ष जीवित रहा। अमस्याह का पिता यहूदा का राजा योआश था। 26 अमस्याह ने आरम्भ से अन्त तक अन्य जो कुछ किया वह सब इस्राएल और यहूदा के राजा के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा है। 27 जब अमस्याह ने यहोवा की आज्ञा का पालन करना छोड़ दिया, यरूशलेम के लोगों ने उसके विरुद्ध एक योजना बनाई। वह लाकीश नगर को भाग गया। किन्तु लोगों ने लाकीश में व्यक्तियों को भेजा और उन्होंने अमस्याह को वहाँ मार डाला। 28 तब वे अमस्याह के शव को घोड़ों पर ले गए और उसे उसके पूर्वजों के साथ यहूदा में दफनाया।
अपने जीवन प्रभु को अर्पण करो
12 इसलिए हे भाइयो परमेश्वर की दया का स्मरण दिलाकर मैं तुमसे आग्रह करता हूँ कि अपने जीवन एक जीवित बलिदान के रूप में परमेश्वर को प्रसन्न करते हुए अर्पित कर दो। यह तुम्हारी आध्यात्मिक उपासना है जिसे तुम्हें उसे चुकाना है। 2 अब और आगे इस दुनिया की रीति पर मत चलो बल्कि अपने मनों को नया करके अपने आप को बदल डालो ताकि तुम्हें पता चल जाये कि परमेश्वर तुम्हारे लिए क्या चाहता है। यानी जो उत्तम है, जो उसे भाता है और जो सम्पूर्ण है।
3 इसलिए उसके अनुग्रह के कारण जो उपहार उसने मुझे दिया है, उसे ध्यान में रखते हुए मैं तुममें से हर एक से कहता हूँ, अपने को यथोचित समझो अर्थात जितना विश्वास उसने तुम्हें दिया है, उसी के अनुसार अपने को समझना चाहिए। 4 क्योंकि जैसे हममें से हर एक के शरीर में बहुत से अंग हैं। चाहे सब अंगों का काम एक जैसा नहीं है। 5 हम अनेक हैं किन्तु मसीह में हम एक देह के रूप में हो जाते हैं। इस प्रकार हर एक अंग हर दूसरे अंग से जुड़ जाता है।
6 तो फिर उसके अनुग्रह के अनुसार हमें जो अलग-अलग उपहार मिले हैं, हम उनका प्रयोग करें। यदि किसी को भविष्यवाणी की क्षमता दी गयी है तो वह उसके पास जितना विश्वास है उसके अनुसार भविष्यवाणी करे। 7 यदि किसी को सेवा करने का उपहार मिला है तो अपने आप को सेवा के लिये अर्पित करे, यदि किसी को उपदेश देने का काम मिला है तो उसे अपने आप को प्रचार में लगाना चाहिए। 8 यदि कोई सलाह देने को है तो उसे सलाह देनी चाहिए। यदि किसी को दान देने का उपहार मिला है तो उसे मुक्त भाव से दान देना चाहिए। यदि किसी को अगुआई करने का उपहार मिलता है तो वह लगन के साथ अगुआई करे, जिसे दया दिखाने को मिली है, वह प्रसन्नता से दया करे।
9 तुम्हारा प्रेम सच्चा हो। बुराई से घृणा करो। नेकी से जुड़ो। 10 भाई चारे के साथ एक दूसरे के प्रति समर्पित रहो। आपस में एक दूसरे को आदर के साथ अपने से अधिक महत्व दो। 11 उत्साही बनो, आलसी नहीं, आत्मा के तेज से चमको। प्रभु की सेवा करो। 12 अपनी आशा में प्रसन्न रहो। विपत्ति में धीरज धरो। निरन्तर प्रार्थना करते रहो। 13 परमेश्वर के लोगों की आवश्यकताओं में हाथ बटाओ। अतिथि सत्कार के अवसर ढूँढते रहो।
14 जो तुम्हें सताते हैं उन्हें आशीर्वाद दो। उन्हें शाप मत दो, आशीर्वाद दो। 15 जो प्रसन्न हैं उनके साथ प्रसन्न रहो। जो दुःखी है, उनके दुःख में दुःखी होओ। 16 मेलमिलाप से रहो। अभिमान मत करो बल्कि दीनों की संगति करो। अपने को बुद्धिमान मत समझो।
17 बुराई का बदला बुराई से किसी को मत दो। सभी लोगों की आँखों में जो अच्छा हो उसे ही करने की सोचो। 18 जहाँ तक बन पड़े सब मनुष्यों के साथ शान्ति से रहो। 19 किसी से अपने आप बदला मत लो। मेरे मित्रों, बल्कि इसे परमेश्वर के क्रोध पर छोड़ दो क्योंकि शास्त्र में लिखा है: “प्रभु ने कहा है बदला लेना मेरा काम है। प्रतिदान मैं दूँगा।”(A) 20 बल्कि तू तो
“यदि तेरा शत्रु भूखा है
तो उसे भोजन करा।
यदि वह प्यासा है
तो उसे पीने को दे।
क्योंकि यदि तू ऐसा करता है तो वह तुझसे शर्मिन्दा होगा।”(B)
21 बुराई से मत हार बल्कि अपनी नेकी से बुराई को हरा दे।
19 हे यहोवा, तू मुझको मत त्याग।
तू मेरा बल हैं, मेरी सहायता कर। अब तू देर मत लगा।
20 हे यहोवा, मेरे प्राण तलवार से बचा ले।
उन कुत्तों से तू मेरे मूल्यवान जीवन की रक्षा कर।
21 मुझे सिंह के मुँह से बचा ले
और साँड़ के सींगो से मेरी रक्षा कर।
22 हे यहोवा, मैं अपने भाईयों में तेरा प्रचार करुँगा।
मैं तेरी प्रशंसा तेरे भक्तों की सभा बीच करुँगा।
23 ओ यहोवा के उपासकों, यहोवा की प्रशंसा करो।
इस्राएल के वंशजों यहोवा का आदर करो।
ओ इस्राएल के सभी लोगों, यहोवा का भय मानों और आदर करो।
24 क्योंकि यहोवा ऐसे मनुष्यों की सहायता करता है जो विपति में होते हैं।
यहोवा उन से घृणा नहीं करता है।
यदि लोग सहायता के लिये यहोवा को पुकारे
तो वह स्वयं को उनसे न छिपायेगा।
25 हे यहोवा, मेरा स्तुति गान महासभा के बीच तुझसे ही आता है।
उन सबके सामने जो तेरी उपासना करते हैं। मैं उन बातों को पूरा करुँगा जिनको करने की मैंने प्रतिज्ञा की है।
26 दीन जन भोजन पायेंगे और सन्तुष्ट होंगे।
तुम लोग जो उसे खोजते हुए आते हो उसकी स्तुति करो।
मन तुम्हारे सदा सदा को आनन्द से भर जायें।
27 काश सभी दूर देशों के लोग यहोवा को याद करें
और उसकी ओर लौट आयें।
काश विदेशों के सब लोग यहोवा की आराधना करें।
28 क्योंकि यहोवा राजा है।
वह प्रत्येक राष्ट्र पर शासन करता है।
29 लोग असहाय घास के तिनकों की भाँति धरती पर बिछे हुए हैं।
हम सभी अपना भोजन खायेंगे और हम सभी कब्रों में लेट जायेंगे।
हम स्वयं को मरने से नहीं रोक सकते हैं। हम सभी भूमि में गाड़ दिये जायेंगे।
हममें से हर किसी को यहोवा के सामने दण्डवत करना चाहिए।
30 और भविष्य में हमारे वंशज यहोवा की सेवा करेंगे।
लोग सदा सर्वदा उस के बारे में बखानेंगे।
31 वे लोग आयेंगे और परमेश्वर की भलाई का प्रचार करेंगे
जिनका अभी जन्म ही नहीं हुआ।
8 जब राजा न्याय को सिंहासन पर विराजता अपनी दृष्टि मात्र से बुराई को फटक छांटता है।
9 कौन कह सकता है “मैंने अपना हृदय पवित्र रखा है, मैं विशुद्ध, और पाप रहित हूँ।”
10 इन दोनों से, खोटे बाटों और खोटी नापों से यहोवा घृणा करता है।
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