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19 मनश्शे के परिवार समूह के कुछ लोग भी दाऊद के साथ हो गये। वे दाऊद के साथ तब हुए जब वह पलिश्तियों के साथ शाऊल से युद्ध करने गया। किन्तु दाऊद और उसके लोगों ने वास्तव में पलिश्तियों की सहायता नहीं की। पलिश्तियों के प्रमुख दाऊद के विषय में सहायक के रूप में बातें करते रहे, किन्तु तब उन्होंने उसे भेज देने का निर्णय लिया। उन शासकों ने कहा, “यदि दाऊद अपने स्वामी शाऊल के पास जाएगा, तो हमारे सिर काट डाले जाएंगे!” 20 ये मनश्शे के लोग थे जो दाऊद के साथ उस समय मिले जब वह सिकलगः अदना, योजाबाद, यदीएल, मीकाएल, योजाबाद, एलीहू और सिल्लतै नगरों को गया। वे सभी मनेश्शे के परिवार समूह के सेनाध्यक्ष थे। 21 वे दाऊद की सहायता बुरे लोगों से युद्ध करने में करते थे। वे बुरे लोग पूरे देश में घूमते थे और लोगों की चीजें चुराते थे। मनश्शे के ये सभी वीर योद्धा थे। वे दाऊद की सेना में प्रमुख हुए।
22 दाऊद की सहायता के लिये प्रतिदिन अधिकाधिक व्यक्ति आते रहे। इस प्रकार दाऊद के पास विशाल और शक्तिशाली सेना हो गई।
हेब्रोन में अन्य लोग दाऊद के साथ आते हैं
23 हेब्रोन नगर में जो लोग दाऊद के पास आए, उनकी संख्या यह है। ये व्यक्ति युद्ध के लिये तैयार थे। वे शाऊल के राज्य को, दाऊद को देने आए। यही वह बात थी जिसे यहोवा ने कहा था कि होगा। यह उसकी संख्या हैः
24 यहूदा के परिवार समूह से छः हजार आठ सौ व्यक्ति युद्ध के लिये तैयार थे। वे भाले और ढाल रखते थे।
25 शिमोन के परिवार समूह से सात हजार एक सौ व्यक्ति थे। वे युद्ध के लिये तैयार वीर सैनिक थे।
26 लेवी के परिवार समूह से चार हजार छः सौ पुरुष थे। 27 यहोयादा उस समूह में था। वह हारून के परिवार से प्रमुख था। यहोयादा के साथ तीन हजार सात सौ पुरुष थे। 28 सादोक भी उस समूह में था। वह वीर युवा सैनिक था। वह अपने परिवार से बाईस अधिकारियों के साथ आया।
29 बिन्यामीन के परिवार समूह से तीन हजार पुरुष थे। वे शाऊल के सम्बन्धी थे। उस समय तक उनके अधिकांश व्यक्ति शाऊल परिवार के भक्त रहे।
30 एप्रैम के परिवार समूह से बीस हजार आठ सौ पुरुष थे। वे वीर योद्धा थे। वे अपने परिवार के प्रसिद्ध पुरुष थे।
31 मनश्शे के आधे परिवार समूह से अट्ठारह हजार पुरुष थे। उनको नाम लेकर आने को बुलाया गया और दाऊद को राजा बनाने को कहा गया।
32 इस्साकार के परिवार से दो सौ बुद्धिमान प्रमुख थे। वे इस्राएल के लिये उचित समय पर ठीक काम करना जानते थे। उनके सम्बन्धी उनके साथ थे और उनके आदेश के पालक थे।
33 जबूलून के परिवार समूह से पचास हजार पुरुष थे। वे प्रशिक्षित सैनिक थे। वे हर प्रकार के अस्त्र शस्त्र से युद्ध के लिये तैयार थे। वे दाऊद के बहुत भक्त थे।
34 नप्ताली के परिवार समूह से एक हजार अधिकारी थे। उनके साथ सैंतीस हजार व्यक्ति थे। वे व्यक्ति भाले और ढाल लेकर चलते थे।
35 दान के परिवार समूह से युद्ध के लिये तैयार अट्ठाइस हजार छः सौ पुरुष थे।
36 आशेर के परिवार समूह से युद्ध के लिये तैयार चालीस हजार प्रशिक्षित सैनिक थे।
37 यरदन नदी के पूर्व से रूबेन, गादी और मनश्शे के आधे परिवारों से एक लाख बीस हजार पुरुष थे। उन लोगों के पास हर एक प्रकार के अस्त्र शस्त्र थे।
38 वे सभी पुरुष वीर योद्धा थे। वे हेब्रोन नगर से दाऊद को सारे इस्राएल का राजा बनाने की पूरी सलाह करके आए थे। इस्राएल के अन्य लोगो ने भी सल्लाह की कि दाऊद राजा होगा। 39 उन लोगों ने दाऊद के साथ हेब्रोन में तीन दिन बिताए। उन्होंने खाया और पिया, क्योंकि उनके सम्बन्धियों ने उनके लिये भोजन बनाया था। 40 जहाँ इस्सकार, जबूलून, और नप्ताली के समूह रहते थे, उस क्षेत्र से भी उनके पड़ोसी गधे, ऊँट, खच्चर, और गायों पर भोजन लेकर आये। वे बहुत सा आटा, अंजीर—पूड़े, रेशिन, दाखमधु, तेल, गाय बैल और भेड़ें लाए। इस्राएल में लोग बहुत खुश थे।
साक्षीपत्र के सन्दूक को वापास लाना
13 दाऊद ने अपनी सेना के सभी अधिकारियों से बात की। 2 तब दाऊद ने इस्राएल के सभी लोगों को एक साथ बुलाया। उसने उनसे कहाः “यदि तुम लोग इसे अच्छा विचार समझते हो और यदि यह वही है जिसे यहोवा चाहता है, तो हम लोग अपने भाईयों को इस्राएल के सभी क्षेत्रों में सन्देश भेजें। हम लोग उन याजकों और लेवीवंशियों को भी सनेदश भेंजें। जो हम लोगों के भाईयों के साथ नगरों और उनके निकट के खेतों में रहते हैं। सन्देश में उनसे आने और हमारा साथ देने को कहा जाये। 3 हम लोग साक्षीपत्र के सन्दूक को यरूशलेम में अपने पास वापस लायें। हम लोगों ने साक्षीपत्र के सन्दूक की देखभाल शाऊल के शासनकाल में नहीं की।” 4 अतः इस्राएल के सभी लोगों ने दाऊद की सलाह स्वीकार की। उन सभी ने यही विचार किया कि यही करना ठीक है।
5 अतः दाऊद ने मिस्र की शीहोर नदी से हमात के प्रवेश द्वार तक के सभी इस्राएल के लोगों को इकट्ठा किया। वे किर्यत्यारीम नगर से साक्षीपत्र के सन्दूक को वापस ले जाने के लिये एक साथ आये। 6 दाऊद और इस्राएल के सभी लोग उसके साथ यहूदा के बाला को गये। (बाल किर्यत्यारीम का दूसरा नाम है।) वे वहाँ साक्षीपत्र के सन्दूक को लाने के लिये गए। वह साक्षीपत्र का सन्दूक यहोवा परमेश्वर का सन्दूक है। वह करूब (स्वर्गदूत) के ऊपर बैठता है। यही सन्दूक है जो यहोवा के नाम से पुकारी जाती है।
7 लोगों ने साक्षीपत्र के सन्दूक को अबीनादाब के घर से हटाया। उन्होंने उसे एक नयी गाड़ी में रखा। उज्जा और अह्यो गाड़ी को चला रहे थे।
8 दाऊद और इस्राएल के सभी लोग परमेश्वर के सम्मुख उत्सव मना रहे थे। वे परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे तथा गीत गा रहे थे। वे वीणा तम्बूरा, ढोल, मंजीरा और तुरही बजा रहे थे।
9 वे कीदोन की खलिहान में आए। गाड़ी खींचने वाले बैलों को ठोकर लगी और साक्षीपत्र का सन्दूक लगभग गिर गया। उज्जा ने सन्दूक को पकड़ने के लिये अपने हाथ आगे बढ़ाये। 10 यहोवा उज्जा पर बहुत अधिक क्रोधित हुआ। यहोवा ने उज्जा को मार डाला क्योंकि उसने सन्दुक को छू लिया। इस तरह उज्जा परमेश्वर के सामने वहाँ मरा। 11 परमेश्वर ने अपना क्रोध उज्जा पर दिखाया और इससे दाऊद क्रोधित हुआ। उस समय से अब तक वह स्थान “पेरेसुज्जा” कहा जाता है।
12 उस दिन दाऊद परमेश्वर से डर गया। दाऊद ने कहा, “मैं साक्षीपत्र के सन्दूक को यहाँ अपने पास नहीं ला सकता।” 13 इसलिए दाउद साक्षीपत्र के सन्दूक को आपने साथ दाऊद नगर में नहीं ले गया। उसने साक्षीपत्र के सन्दूक को ओबेदेदोम के घर पर छोड़ा। ओबेदेदोम गत नगर से था। 14 साक्षीपत्र का सन्दूक ओबेदेदोम के परिवार में उसके घर में तीन महीने रहा। यहोवा ने ओबेदेदोम के परिवार और उसके यहाँ जो कुछ था, को आशीर्वाद दिया।
दाऊद का राज्य—विस्तार
14 हीराम सोर नगर का राजा था। हीराम ने दाऊद को सन्देश वाहक भेजा। हीराम ने देवदारु के लट्ठे, संगतराश और बढ़ई भी दाऊद के पास भेजे। हीराम ने उन्हें दाऊद के लिये एक महल बनाने के लिये भेजा। 2 तब दाऊद समझ सका कि यहोवा ने उसे सच ही इस्राएल का राजा बनाया है। यहोवा ने दाऊद के राज्य को बहुत विस्तृत और शक्तिशाली बनाया। परमेश्वर ने यह इसलिये किया कि वह दाऊद और इस्राएल के लोगों से प्रेम करता था।
3 दाऊद ने यरूशलेम में बहुत सी स्त्रियों के साथ विवाह किया और उसके बहुत से पुत्र और पुत्रियाँ हुईं। 4 यरूशलेम में उत्पन्न हुईं दाऊद की संतानों के नाम ये हैं: शम्मू, शोबाब, नातान, सुलैमान, 5 यिभार, एलीशू, एलपेलेत, 6 नोगह, नेपेग, यापी, 7 एलीशामा, बेल्यादा, और एलीपेलेद।
दाऊद पलिश्तियों को पराजित करता है
8 पलिश्ती लोगों ने सुना कि दाऊद का अभिषेक इस्राएल के राजा के रूप में हुआ है। अतः सभी पलिश्ती लोग दाऊद की खोज में गए। दाऊद ने इसके बारे में सुना। तब वह पलिश्ती लोगों से लड़ने गया। 9 पलिश्तियों ने रपाईम की घाटी में रहने वाले लोगों पर आक्रमण किया और उनकी चीजें चुराईं। 10 दाऊद ने परमेश्वर से पूछा, “क्या मुझे जाना चाहिये और पलिश्ती लोगों से युद्ध करना चाहिये क्या तू मुझे उनको परास्त करने देगा?”
यहोवा ने दाऊद को उत्तर दिया, “जाओ। मैं तुम्हें पलिश्ती लोगों को हराने दूँगा।”
11 तब दाऊद और उसके लोग बालपरासीम नगर तक गए। वहाँ दाऊद और उसके लोगों ने पलिश्ती लोगों को हराया। दाऊद ने कहा, “टूटे बाँध से पानी फूट पड़ता है। उसी प्रकार, परमेश्वर मेरे शत्रुओं पर फूट पड़ा है! परमेश्वर ने यह मेरे माध्यम से किया है।” यही कारण है कि उस स्थान का नाम “बालपरासीम है।” 12 पलिश्ती लोगों ने अपनी मूर्तियों को बालपरासीम में छोड़ दिया। दाऊद ने उन मूर्तियों को जला देने का आदेश दिया।
पलिश्ती लोगों पर अन्य विज्य
13 पलिश्तियों ने रपाईम घाटी में रहने वाले लोगों पर फिर आक्रमण किया। 14 दाऊद ने फिर परमेश्वर से प्रार्थना की। परमेश्वर ने दाऊद की प्रार्थना का उत्तर दिया। परमेश्वर ने कहा, “दाऊद, जब तुम आक्रमण करो तो पलिश्ती लोगों के पीछे पहाड़ी पर मत जाओ। इसके बदले, उनके चारों ओर जाओ। वहाँ छिपो, जहाँ मोखा के पेड़ हैं। 15 एक प्रहरी को पेड़ की चोटी पर चढ़ने को कहो। जैसे ही वह पेड़ों की चोटी से उनकी चढ़ाई करने की आवाज को सुनेगा, उसी समय पलिश्तियों पर आक्रमण करो। मैं (परमेश्वर) तुम्हारे सामने आऊँगा और पलिश्ती सेना को हराऊँगा!” 16 दाऊद ने वही किया जो परमेश्वर ने करने को कहा। इसलिये दाऊद और उसकी सेना ने पलिश्ती सेना को हराया। उन्होंने पलिश्ती सैनिकों को लगातार गिबोन नगर से गेजर नगर तक मारा। 17 इस प्रकार दाऊद सभी देशों में प्रसिद्ध हो गया। यहोवा ने सभी राष्ट्रों के हृदय में उसका डर बैठा दिया।
1 पौलुस जो यीशु मसीह का दास है,
जिसे परमेश्वर ने प्रेरित होने के लिये बुलाया, जिसे परमेश्वर के उस सुसमाचार के प्रचार के लिए चुना गया 2 जिसकी पहले ही नबियों द्वारा पवित्र शास्त्रों में घोषणा कर दी गयी 3 जिसका सम्बन्ध पुत्र से है, जो शरीर से दाऊद का वंशज है 4 किन्तु पवित्र आत्मा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाए जाने के कारण जिसे सामर्थ्य के साथ परमेश्वर का पुत्र दर्शाया गया है, यही यीशु मसीह हमारा प्रभु है।
5 इसी के द्वारा मुझे अनुग्रह और प्रेरिताई मिली, ताकि सभी ग़ैर यहूदियों में, उसके नाम में वह आस्था जो विश्वास से जन्म लेती है, पैदा की जा सके। 6 उनमें परमेश्वर के द्वारा यीशु मसीह का होने के लिये तुम लोग भी बुलाये गये हो।
7 वह मैं, तुम सब के लिए, जो रोम में हो और परमेश्वर के प्यारे हो, जो परमेश्वर के पवित्र जन होने के लिए बुलाये गये हो, यह पत्र लिख रहा हूँ।
हमारे परम पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें उसका अनुग्रह और शांति मिले।
धन्यवाद की प्रार्थना
8 सबसे पहले मैं यीशु मसीह के द्वारा तुम सब के लिये अपने परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहता हूँ। क्योंकि तुम्हारे विश्वास की चर्चा संसार में सब कहीं हो रही है। 9 प्रभु जिसकी सेवा उसके पुत्र के सुसमाचार का उपदेश देते हुए मैं अपने हृदय से करता हूँ, प्रभु मेरा साक्षी है, कि मैं तुम्हें लगातार याद करता रहता हूँ। 10 अपनी प्रार्थनाओं में मैं सदा ही विनती करता रहता हूँ कि परमेश्वर की इच्छा से तुम्हारे पास आने की मेरी यात्रा किसी तरह पूरी हो। 11 मैं बहुत इच्छा रखता हूँ क्योंकि मैं तुमसे मिल कर कुछ आत्मिक उपहार देना चाहता हूँ, जिससे तुम शक्तिशाली बन सको। 12 या मुझे कहना चाहिये कि मैं जब तुम्हारे बीच होऊँ, तब एक दूसरे के विश्वास से हम परस्पर प्रोत्साहित हों।
13 भाईयों, मैं चाहता हूँ, कि तुम्हें पता हो कि मैंने तुम्हारे पास आना बार-बार चाहा है ताकि जैसा फल मैंने ग़ैर यहूदियों में पाया है, वैसा ही तुमसे भी पा सकूँ, किन्तु अब तक बाधा आती ही रही।
14 मुझ पर यूनानियों और ग़ैर यूनानियों, बुद्धिमानों और मूर्खो सभी का क़र्ज़ है। 15 इसीलिये मैं तुम रोमवासियों को भी सुसमाचार का उपदेश देने को तैयार हूँ।
16 मैं सुसमाचार के लिए शर्मिन्दा नहीं हूँ क्योंकि उसमें पहले यहूदी और फिर ग़ैर यहूदी जो भी उसमें विश्वास रखता है—उसके उद्धार के लिये परमेश्वर की सामर्थ्य है। 17 क्योंकि सुसमाचार में यह दर्शाया गया है, परमेश्वर मनुष्य को अपने प्रति सही कैसे बनाता है। यह आदि से अंत तक विश्वास पर टिका है जैसा कि शास्त्र में लिखा है, “धर्मी मनुष्य विश्वास से जीवित रहेगा।”
13 यहोवा की स्तुति मैंने गायी है: “हे यहोवा, मुझ पर दया कर।
देख, किस प्रकार मेरे शत्रु मुझे दु:ख देते हैं।
‘मृत्यु के द्वार’ से तू मुझको बचा ले।
14 जिससे यहोवा यरूशलेम के फाटक पर मैं तेरी स्तुति गीत गा सकूँ।
मैं अति प्रसन्न होऊँगा क्योंकि तूने मुझको बचा लिया।”
15 अन्य जातियों ने गड्ढे खोदे ताकि लोग उनमें गिर जायें,
किन्तु वे अपने ही खोदे गड्ढे में स्वयं समा जायेंगे।
दुष्ट जन ने जाल छिपा छिपा कर बिछाया, ताकि वे उसमें दूसरे लोगों को फँसा ले।
किन्तु उनमें उनके ही पाँव फँस गये।
16 यहोवा ने जो न्याय किया वह उससे जाना गया कि जो बुरे कर्म करते हैं,
वे अपने ही हाथों के किये हुए कामों से जाल में फँस गये।
17 वे दुर्जन होते हैं, जो परमेश्वर को भूलते हैं।
ऐसे मनुष्य मृत्यु के देश को जायेंगे।
18 कभी—कभी लगता है जैसे परमेश्वर दुखियों को पीड़ा में भूल जाता है।
यह ऐसा लगता जैसे दीन जन आशाहीन हैं।
किन्तु परमेश्वर दीनों को सदा—सर्वदा के लिये कभी नहीं भूलता।
19 हे यहोवा, उठ और राष्ट्रों का न्याय कर।
कहीं वे न सोच बैठें वे प्रबल शक्तिशाली हैं।
20 लोगों को पाठ सिखा दे,
ताकि वे जान जायें कि वे बस मानव मात्र है।
4 धन से बहुत सारे मित्र बन जाते हैं, किन्तु गरीब जन को उसका मित्र भी छोड़ जाता है।
5 झूठा गवाह बिना दण्ड पाये नहीं बचेगा और जो झूठ उगलता रहता है, छूटने नहीं पायेगा।
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