The Daily Audio Bible
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21 तब यहोशापात मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफनाया गया। उसे दाऊद के नगर में दफनाया गया। यहोराम यहोशापात के स्थान पर नया राजा हुआ। यहोराम यहोशापात का पुत्र था। 2 यहोराम के भाई अजर्याह, यहीएल, जकर्याह, अजर्याह, मीकाएल और शपत्याह थे। वे लोग यहोशापात के पुत्र थे। यहोशापात यहूदा का राजा था। 3 यहोशापात ने अपने पुत्रों को चाँदी, सोना और कीमती चीज़ें भेंट में दीं। उसने उन्हें यहूदा में शक्तिशाली किले भी दिये। किन्तु यहोशापात ने राज्य यहोराम को दिया क्योंकि यहोराम सबसे बड़ा पुत्र था।
यहूदा का राजा यहोराम
4 यहोराम ने अपने पिता का राज्य प्राप्त किया और अपने को शक्तिशाली बनाया। तब उसने तलवार का उपयोग अपने सभी भाईयों को मारने के लिये किया। उसने इस्राएल के कुछ प्रमुखों को भी मार डाला। 5 यहोराम ने जब शासन आरम्भ किया तो वह बत्तीस वर्ष का था। उसने यरूशलेम में आठ वर्ष तक शासन किया। 6 वह उसी तरह रहा जैसे इस्राएल के राजा रहते थे। वह उसी प्रकार रहा जिस प्रकार अहाब का परिवार रहता था। यह इसलिये हुआ कि यहोराम ने अहाब की पुत्री से विवाह किया और यहोराम ने यहोवा की दृष्टि में बुरा किया। 7 किन्तु यहोवा दाऊद के परिवार को नष्ट नहीं करना चाहता था क्योंकि उसने दाऊद के साथ वाचा की थी। यहोवा ने वचन दिया था कि दाऊद और उसकी सन्तान का एक वंश सदैव चलता रहेगा।
8 यहोराम के समय में, एदोम यहूदा के अधिकार क्षेत्र से बाहर निकल गया। एदोम के लोगों ने अपना राजा चुन लिया। 9 इसलिये यहोराम अपने सभी सेनापतियों और रथों के साथ एदोम गया। एदोमी सेना ने यहोराम और उसके रथ के रथपतियों को घेर लिया। किन्तु यहोराम ने रात में युद्ध करके अपने निकलने का रास्ता ढूँढ लिया। 10 उस समय से अब तक एदोम का देश यहूदा के विरुद्ध विद्रोही रहा है। लिब्ना नगर के लोग भी यहोराम के विरुद्ध हो गए। यह इसलिए हुआ कि यहोराम ने पूर्वजों के, यहोवा परमेश्वर को छोड़ दिया। 11 यहोराम ने उच्च स्थान भी यहूदा के पहाड़ियों पर बनाए। यहोराम ने यरूशलेम के लोगों को, परमेश्वर जो चाहता है उसे करने से मना किया वह यहूदा के लोगों को यहोवा से दूर ले गया।
12 एलिय्याह नबी से यहोराम को एक सन्देश मिला। सन्देश में यह कहा गया था:
“यह वह है जो परमेश्वर यहोवा कहता है। यही वह परमेश्वर है जिसका अनुसरण तुम्हारा पूर्वज दाऊद करता था। यहोवा कहता है, ‘यहोराम, तुम उस प्रकार नहीं रहे जिस प्रकार तुम्हारा पिता यहोशापात रहा। तुम उस प्रकार नहीं रहे जिस प्रकार यहूदा का राजा आसा रहा। 13 किन्तु तुम उस प्रकार रहे जिस प्रकार इस्राएल के राजा रहे। तुमने यहूदा और यरूशलेम के लोगों को वह काम करने से रोका है जो यहोवा चाहता है। यही अहाब और उसके परिवार ने किया। वे यहोवा के प्रति विश्वासयोग्य न रहे। तुमने अपने भाईयों को मार डाला। तुम्हारे भाई तुमसे अच्छे थे। 14 अत: अब यहोवा शीघ्र ही तुम्हारे लोगों को बहुत अधिक दण्ड देगा। यहोवा तुम्हारे बच्चों, पत्नियों और तुम्हारी सारी सम्पत्ति को दण्ड देगा। 15 तुम्हें आँतों की भयंकर बीमारी होगी। यह प्रतिदिन अधिक बिगड़ती जायेगी। तब तुम्हारी भंयकर बीमारी के कारण तुम्हारी आँतें बाहर निकल आएंगी।’”
16 यहोवा ने पलिश्तियों और कूशी लोगों के पास रहने वाले अरब लोगों को यहोराम से रूष्ट किया। 17 उन लोगों ने यहूदा देश पर आक्रमण कर दिया। वे राजमहल की सारी सम्पत्ति और यहोराम के पुत्रों और पत्नियों को ले गए। केवल यहोराम का सबसे छोटा पुत्र छोड़ दिया गया। यहोराम के सबसे छोटे पुत्र का नाम यहोआहाज था।
18 उन चीज़ों के होने के बाद यहोवा ने यहोराम की आँतों में ऐसा रोग उत्पन्न किया जिसका उपचार न हो सका। 19 तब यहोराम की आँतें, दो वर्ष बाद, उसकी बीमारी के कारण, बाहर आ गईं। वह बहुत बुरी पीड़ा में मरा। यहोराम के सम्मान में लोगों ने आग की महाज्वाला नहीं जलाई जैसा उन्होंने उसके पिता के लिये किया था। 20 यहोराम उस समय बत्तीस वर्ष का था जब वह राजा हुआ था। उसने यरुश्लेम में आठ वर्ष शासन किया। जब यहोराम मरा तो कोई व्यक्ति दु:खी नहीं हुआ। लोगों ने यहोराम को दाऊद के नगर में दफनाया किन्तु उन कब्रों में नहीं जहाँ राजा दफनाये जाते हैं।
यहूदा का राजा अहज्याह
22 यरूशलेम के लोगों ने अहज्याह को यहोराम के स्थान पर नया राजा होने के लिये चुना। अहज्याह यहोराम का सबसे छोटा पुत्र था। अरब लोगों के साथ जो लोग यहोराम के डेरों पर आक्रमण करने आए थे उन्होंने यहोराम के अन्य पुत्रों को मार डाला था। अत: यहूदा में अहज्याह ने शासन करना आरम्भ किया। 2 अहज्याह ने जब शासन करना आरम्भ किया तब वह बाईस वर्ष का था।[a] अहज्याह ने यरूशलेम में एक वर्ष शासन किया। उसकी माँ का नाम अतल्याह था। अतल्याह के पिता का नाम ओम्री था। 3 अहज्याह भी वैसे ही रहा जैसे अहाब का परिवार रहता था। वह उस प्रकार रहा क्योंकि उसकी माँ ने उसे गलत काम करने के लिये प्रोत्साहित किया। 4 अहज्याह ने यहोवा की दृष्टि में बुरे काम किये। यही अहाब के परिवार ने किया था। अहाब के परिवार ने अहज्याह को उसके पिता के मरने के बाद सलाह दी। उन्होंने अहज्याह को बुरी सलाह दी। उस बुरी सलाह ने उसे मृत्यु तक पहुँचा दिया। 5 अहज्याह ने उसी सलाह का अनुसरण किया जो अहाब के परिवार ने उसे दी। अहज्याह राजा योराम के साथ अराम के राजा हज़ाएल के विरुद्ध गिलाद के रामोत नगर में गया। योराम के पिता का नाम अहाब था जो इस्राएल का राजा था। किन्तु अर्मिया के लोगों ने योराम को युद्ध में घायल कर दिया। 6 योराम लौटकर यिज्रेल नगर को स्वस्थ होने के लिये गया। वह तब घायल हुआ था जब वह अराम के राजा हजाएल के विरुद्ध रामोत में युद्ध कर रहा था। तब अहज्याह योराम से मिलने यिज्रेल नगर को गया। अहज्याह के पिता का नाम यहोराम था। वह यहूदा का राजा था। योराम के पिता का नाम अहाब था। योराम यिज्रेल नगर में था क्योंकि वह घायल था।
7 परमेश्वर ने अहज्याह की मृत्यु तब करवा दी जब वह योराम से मिलने गया। अहज्याह पहुँचा और योराम के साथ येहू से मिलने गया। येहू के पिता का नाम निमशी था। यहोवा ने येहू को अहाब के परिवार को नष्ट करने के लिये चुना। 8 येहू अहाब के परिवार को दण्ड दे रहा था। येहू ने यहूदा के प्रमुखों और अहज्याह के उन सम्बन्धियों का पता लगाया जो अहज्याह की सेवा करते थे। येहू ने यहूदा के उन प्रमुखों और अहज्याह के सम्बन्धियों को मार डाला। 9 तब येहू अहज्याह की खोज में था। येहू के लोगों ने उसे उस समय पकड़ लिया जब वह शोमरोन नगर में छिपने का प्रयत्न कर रहा था। वे अहज्याह को येहू के पास लाए। उन्होंने अहज्याह को मार दिया और उसे दफना दिया। उन्होंने कहा, “अहज्याह यहोशापात का वंशज है। यहोशापात ने पूरे हृदय से यहोवा का अनुसरण किया था।” अहज्याह के परिवार में वह शक्ति नहीं थी कि यहूदा के राज्य को अखण्ड रख सके।
रानी अतल्याह
10 अतल्याह अहज्याह की माँ थी। जब उसने देखा कि उसका पुत्र मर गया तो उसने यहूदा में राजा के सभी पुत्रों को मार डाला। 11 किन्तु यहोशावत ने अहज्याह के पुत्र योआश को लिया और उसे छिपा दिया। यहोशावत ने योआश और उसकी धाय को अपने शयनकक्ष के भीतर रखा। यहोशावत राजा यहोराम की पुत्री थी। वह यहोयादा की पत्नी भी थी। यहोयादा एक याजक था और यहोशावत अहज्याह की बहन थी। अतल्याह ने योआश को नहीं मारा क्योंकि यहोशावत ने उसे छिपा दिया था। 12 योआश याजक के साथ परमेश्वर के मन्दिर में छ: वर्ष तक छिपा रहा। उस काल में अतल्याह ने रानी के रूप में देश पर शासन किया।
याजक यहोयादा और राजा योआश
23 छ: वर्ष, बाद यहोयादा ने अपनी शक्ति दिखाई। उसने नायकों के साथ सन्धि की। वे नायक: यरोहाम का पुत्र अजर्याह, यहोहानान का पुत्र इश्माएल, ओबेद का पुत्र अजर्याह, अदायाह का पुत्र मासेयाह और जिक्री का पुत्र एलीशापात थे। 2 वे यहूदा के चारों ओर गए और यहूदा के सभी नगरों से उन्होंने लेवीवंशियों को इकट्ठा किया। उन्होंने इस्राएल के परिवारों के प्रमुखों को भी इकट्ठा किया। तब वे यरूशलेम गए। 3 सभी लोगों ने एक साथ मिलकर राजा के साथ परमेश्वर के मन्दिर में एक सन्धि की।
यहोयादा ने इन लोगों से कहा, “राजा का पुत्र शासन करेगा। यही वह वचन है जो यहोवा ने दाऊद के वंशजों को दिया था। 4 अब, तुम्हें यह अवश्य करना चाहिए: याजकों औऱ लेवीयों सब्त के दिन तुममें से जो काम पर जाते हैं उनका एक तिहाई द्वार की रक्षा करेगा। 5 तुम्हारा एक तिहाई राजमहल पर रहेगा और तुम्हारा एक तिहाई प्रारम्भिक फाटक पर रहेगा। किन्तु अन्य सभी लोग यहोवा के मन्दिर के आँगन में रहेंगे। 6 किसी भी व्यक्ति को यहोवा के मन्दिर में न आने दो। केवल सेवा करने वाले याजकों और लेवीवंशियों को पवित्र होने के कारण, यहोवा के मन्दिर में आने की स्वीकृति है। किन्तु अन्य लोग वह कार्य करेंगे जो यहोवा ने दे रखा है। 7 लेवीवंशी राजा के साथ रहेंगे। हर एक व्यक्ति अपनी तलवार अपने साथ रखेगा। यदि कोई व्यक्ति मन्दिर में प्रवेश करने की कोशिश करता है तो उस व्यक्ति को मार डालो। तुम्हें राजा के साथ रहना है, वह जहाँ कहीं भी जाये।”
8 लेवीवंशी और यहूदा के सभी लोगों ने याजक यहोयादा ने जो आदेश दिया, उसका पालन किया। याजक यहोयादा ने याजकों के समूह में से किसी को छूट न दी। इस प्रकार हर एक नायक और उसके सभी लोग सब्त के दिन उनके साथ अन्दर आए जो सब्त के दिन बाहर गए थे। 9 याजक यहोयादा ने वे भाले तथा बड़ी और छोटी ढालें अधिकारियों को दीं जो राजा दाऊद की थीं। वे हथियार परमेश्वर के मन्दिर में रखे थे। 10 तब यहोयादा ने लोगों को बताया कि उन्हें कहाँ खड़ा होना है। हर एक व्यक्ति अपने हथियार अपने हाथ में लिये था। पुरुष मन्दिर की दांयी ओर से बांयी ओर तक लगातार खड़े थे। वे वेदी, मन्दिर और राजा के निकट खड़े थे। 11 वे राजा के पुत्र को बाहर लाए और उसे मुकुट पहना दिया। उन्होंने उसे व्यवस्था के पुस्तक की एक प्रति दी।[b] तब उन्होंने योआश को राजा बनाया। यहोयादा औऱ उसके पुत्रों ने योआश का अभिषेक किया। उन्होंने कहा, “राजा दीर्घायु हो!”
12 अतल्याह ने मन्दिर की ओर दौड़ते हुए और राजा की प्रशंसा करते हुए लोगों का शोर सुना। वह यहोवा के मन्दिर पर लोगों के पास आई। 13 उसने नजर दौड़ाई और राजा को देखा। राजा राज स्तम्भ के साथ सामने वाले द्वार पर खड़ा था। अधिकारी और लोग जो तुरही बजाते थे, राजा के पास थे। देश के लोग प्रसन्न थे और तुरही बजा रहे थे। गायक संगीत वाद्यों को बजा रहे थे। गायक प्रशंसा के गायन में लोगों का नेतृत्व कर रहे थे। तब अतल्याह ने अपने वस्त्रों को फाड़ डाला, और उसने कहा, “षड़यन्त्र!”
14 याजक यहोयादा सेना के नायकों को बाहर लाया। उसने उनसे कहा, “अतल्याह को, सेना से, बाहर ले आओ। अपनी तलवार का उपयोग उस व्यक्ति को मार डालने के लिये करो जो उसके साथ जाता है।” तब याजक ने सैनिकों को चेतावनी दी, “अतल्याह को यहोवा के मन्दिर में मत मारो।” 15 तब उन लोगों ने अतल्याह को वश में कर लिया जब वह राजमहल के अश्व द्वार पर आई। तब उन्होंने उसी स्थान पर उसे मार डाला।
16 तब यहोयादा ने राजा औऱ सभी लोगों के साथ एक सन्धि की। सभी ने स्वीकार किया कि वे यहोवा के लोग रहेंगे। 17 सभी लोग बाल की मूर्ति के मन्दिर में गए और उसे उखाड़ डाला। उन्होंने बाल के मन्दिर की वेदियों और मूर्तियों को तोड़ डाला। उन्होंने बाल की वेदी के सामने बाल के याजक मत्तान को मार डाला।
18 तब यहोयादा ने यहोवा के मन्दिर के लिये उत्तरदायी याजकों को चुना। वे याजक लेवीशंशी थे और दाऊद ने उन्हें यहोवा के मन्दिर के प्रति उत्तरदायी होने का कार्य सौंपा था। उन याजकों को होमबलि मूसा के आदेश के अनुसार यहोवा को चढ़ानी थी। वे अति प्रसन्नता से दाऊद के आदेश के अनुसार गाते हुए बलि चढ़ाते थे। 19 यहोयादा ने यहोवा के मन्दिर के द्वार पर द्वारपाल रखे जिससे कोई व्यक्ति जो किसी दृष्टि से शुद्ध नहीं था मन्दिर में नहीं जा सकता था।
20 यहोयादा ने सेना के नायकों, प्रमुखों, लोगों के प्रशासकों और देश के सभी लोगों को अपने साथ लिया। तब यहोयादा ने राजा को यहोवा के मन्दिर से बाहर निकाला और वे ऊपरी द्वार से राजमहल में गए। उस स्थान पर उन्होंने राजा को गद्दी पर बिठाया। 21 यहूदा के सभी लोग बहुत प्रसन्न थे और यरूशलेम नगर में शान्ति रही क्योंकि अतल्याह तलवार से मार दी गई थी।
13 यह अब मैं तुमसे कह रहा हूँ, जो यहूदी नहीं हो, क्योंकि मैं विशेष रूप से ग़ैर यहूदियों के लिये प्रेरित हूँ, मैं अपने काम के प्रति पूरा प्रयत्नशील हूँ। 14 इस आशा से कि मैं अपने लोगों में भी स्पर्धा जगा सकूँ और उनमें से कुछ का उद्धार करूँ। 15 क्योंकि यदि परमेश्वर के द्वारा उनके नकार दिये जाने से जगत में परमेश्वर के साथ मेलपिलाप पैदा होता है तो फिर उनका अपनाया जाना क्या मरे हुओं में से जिलाया जाना नहीं होगा? 16 यदि हमारी भेंट का एक भाग पवित्र है तो क्या वह समूचा ही पवित्र नहीं है? यदि पेड़ की जड़ पवित्र है तो उसकी शाखाएँ भी पवित्र हैं।
17 किन्तु यदि कुछ शाखाएँ तोड़ कर फेंक दी गयीं और तू जो एक जँगली जैतून की टहनी है उस पर पेबंद चढ़ा दिया जाये और वह जैतून के अच्छे पेड़ की जड़ों की शक्ति का हिस्सा बटाने लगे, 18 तो तुझे उन टहनियों के आगे, जो तोड़ कर फेंक दी गयी, अभिमान नहीं करना चाहिये। और यदि तू अभिमान करता है तो याद रख यह तू नहीं हैं जो जड़ों को पाल रहा हैं, बल्कि यह तो वह जड़ ही है जो तुझे पाल रही है। 19 अब तू कहेगा, “हाँ, किन्तु शाखाएँ इसलिए तोड़ीगयीं कि मेरा पेबंद चढ़े।” 20 यह सत्य है, वे अपने अविश्वास के कारण तोड़ फेंकी गयीं किन्तु तुम अपने विश्वास के बल पर अपनी जगह टिके रहे। इसलिए इसका गर्व मत कर बल्कि डरता रह। 21 यदि परमेश्वर ने प्राकृतिक डालियाँ नहीं रहने दीं तो वह तुझे भी नहीं रहने देगा।
22 इसलिए तू परमेश्वर की कोमलता को देख और उसकी कठोरता पर ध्यान दे। यह कठोरता उनके लिए है जो गिर गये किन्तु उसकी करुणा तेरे लिए है यदि तू अपने पर उसका अनुग्रह बना रहने दे। नहीं तो पेड़ से तू भी काट फेंका जायेगा। 23 और यदि वे अपने अविश्वास में न रहे तो उन्हें भी फिर पेड़ से जोड़ लिया जायेगा क्योंकि परमेश्वर समर्थ है कि उन्हें फिर से जोड़ दे। 24 जब तुझे प्राकृतिक रूप से जंगली जैतून के पेड़ से एक शाखा की तरह काट कर प्रकृति के विरुद्ध एक उत्तम जैतून के पेड़ से जोड़ दिया गया, तो ये जो उस पेड़ की अपनी डालियाँ हैं, अपने ही पेड़ में आसानी से, फिर से क्यों नहीं जोड़ दी जायेंगे।
25 हे भाईयों! मैं तुम्हें इस छिपे हुए सत्य से अंजान नहीं रखना चाहता, कि तुम अपने आप को बुद्धिमान समझने लगो कि इस्राएल के कुछ लोग ऐसे ही कठोर बना दिए गए हैं और ऐसे ही कठोर बने रहेंगे जब तक कि काफी ग़ैर यहूदी परमेश्वर के परिवार के अंग नहीं बन जाते। 26 और इस तरह समूचे इस्राएल का उद्धार होगा। जैसा कि शास्त्र कहता है:
“उद्धार करने वाला सिय्योन से आयेगा;
वह याकूब के परिवार से सभी बुराइयाँ दूर करेगा।
27 मेरा यह वाचा उनके साथ
तब होगा जब मैं उनके पापों को हर लूँगा।”(A)
28 जहाँ तक सुसमाचार का सम्बन्ध है, वे तुम्हारे हित में परमेश्वर के शत्रु हैं किन्तु जहाँ तक परमेश्वर द्वारा उनके चुने जाने का सम्बन्ध है, वे उनके पुरखों को दिये वचन के अनुसार परमेश्वर के प्यारे हैं। 29 क्योंकि परमेश्वर जिसे बुलाता है और जिसे वह देता है, उसकी तरफ़ से अपना मन कभी नहीं बदलता। 30 क्योंकि जैसे तुम लोग पहले कभी परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानते थे किन्तु अब तुम्हें उसकी अवज्ञाके कारण परमेश्वर की दया प्राप्त है। 31 वैसेही अब वे उसकी आज्ञा नहीं मानते क्योंकि परमेश्वर की दया तुम पर है। ताकि अब उन्हें भी परमेश्वर की दया मिले। 32 क्योंकि परमेश्वर ने सब लोगों को अवज्ञा के कारागार में इसलिए डाल रखा है कि वह उन पर दया कर सके।
परमेश्वर धन्य है
33 परमेश्वर की करुणा, बुद्धि और ज्ञान कितने अपरम्पार हैं। उसके न्याय कितने गहन हैं; उसके रास्ते कितने गूढ़ है। 34 शास्त्र कहता है:
“प्रभु के मन को कौन जानता है?
और उसे सलाह देने वाला कौन हो सकता हैं?”(B)
35 “परमेश्वर को किसी ने क्या दिया है?
कि वह किसी को उसके बदले कुछ दे।”(C)
36 क्योंकि सब का रचने वाला वही है। उसी से सब स्थिर है और वह उसी के लिए है। उसकी सदा महिमा हो! आमीन।
प्रभात की हरिणी नामक राग पर संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक भजन।
1 हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर!
तूने मुझे क्यों त्याग दिया है? मुझे बचाने के लिये तू क्यों बहुत दूर है?
मेरी सहायता की पुकार को सुनने के लिये तू बहुत दूर है।
2 हे मेरे परमेश्वर, मैंने तुझे दिन में पुकारा
किन्तु तूने उत्तर नहीं दिया,
और मैं रात भर तुझे पुकाराता रहा।
3 हे परमेश्वर, तू पवित्र है।
तू राजा के जैसे विराजमान है। इस्राएल की स्तुतियाँ तेरा सिंहासन हैं।
4 हमारे पूर्वजों ने तुझ पर विश्वस किया।
हाँ! हे परमेश्वर, वे तेरे भरोसे थे! और तूने उनको बचाया।
5 हे परमेश्वर, हमारे पूर्वजों ने तुझे सहायता को पुकारा और वे अपने शत्रुओं से बच निकले।
उन्होंने तुझ पर विश्वास किया और वे निराश नहीं हुए।
6 तो क्या मैं सचमुच ही कोई कीड़ा हूँ,
जो लोग मुझसे लज्जित हुआ करते हैं और मुझसे घृणा करते हैं
7 जो भी मुझे देखता है मेरी हँसी उड़ाता है,
वे अपना सिर हिलाते और अपने होठ बिचकाते हैं।
8 वे मुझसे कहते हैं कि, “अपनी रक्षा के लिये तू यहोवा को पुकार ही सकता है।
वह तुझ को बचा लोगा।
यदि तू उसको इतना भाता है तो निश्चय ही वह तुझ को बचा लोगा।”
9 हे परमेश्वर, सच तो यह है कि केवल तू ही है जिसके भरोसा मैं हूँ। तूने मुझे उस दिन से ही सम्भाला है, जब से मेरा जन्म हुआ।
तूने मुझे आश्वस्त किया और चैन दिया, जब मैं अभी अपनी माता का दूध पीता था।
10 ठीक उसी दिन से जब से मैं जन्मा हूँ, तू मेरा परमेश्वर रहा है।
जैसे ही मैं अपनी माता की कोख से बाहर आया था, मुझे तेरी देखभाल में रख दिया गया था।
11 सो हे, परमेश्वर! मुझको मत बिसरा,
संकट निकट है, और कोई भी व्यक्ति मेरी सहायता को नहीं है।
12 मैं उन लोगों से घिरा हूँ,
जो शक्तिशाली साँड़ों जैसे मुझे घेरे हुए हैं।
13 वे उन सिंहो जैसे हैं, जो किसी जन्तु को चीर रहे हों
और दहाड़ते हो और उनके मुख विकराल खुले हुए हो।
14 मेरी शक्ति
धरती पर बिखरे जल सी लुप्त हो गई।
मेरी हड्डियाँ अलग हो गई हैं।
मेरा साहस खत्म हो चुका है।
15 मेरा मुख सूखे ठीकर सा है।
मेरी जीभ मेरे अपने ही तालू से चिपक रही है।
तूने मुझे मृत्यु की धूल में मिला दिया है।
16 मैं चारों तरफ कुतों से घिर हूँ,
दुष्ट जनों के उस समूह ने मुझे फँसाया है।
उन्होंने मेरे मेरे हाथों और पैरों को सिंह के समान भेदा है।
17 मुझको अपनी हड्डियाँ दिखाई देती हैं।
ये लोग मुझे घूर रहे हैं।
ये मुझको हानि पहुँचाने को ताकते रहते हैं।
18 वे मेरे कपड़े आपस में बाँट रहे हैं।
मेरे वस्त्रों के लिये वे पासे फेंक रहे हैं।
7 धर्मी जन निष्कलंक जीवन जीता है उसका बाद आनेवाली संतानें धन्य हैं।
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