Chronological
मसीह येशु पिलातॉस के सामने
(मत्ति 27:11-14; मारक 15:2-5; योहन 18:28-37)
23 पिलातॉस के सामने वे यह कहते हुए मसीह येशु पर दोष लगाने लगे, 2 “हमने यह पाया है कि यह व्यक्ति हमारे राष्ट्र को भरमा रहा है. यह कयसर को कर देने का विरोध करता तथा यह दावा करता है कि वह स्वयं ही मसीह, राजा है.”
3 इसलिए पिलातॉस ने मसीह येशु से प्रश्न किया, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”
“सच वही है, जो आपने कहा है.” मसीह येशु ने उत्तर दिया.
4 इस पर पिलातॉस ने प्रधान पुरोहितों और भीड़ को सम्बोधित करते हुए घोषणा की, “मुझे इस व्यक्ति में ऐसा कोई दोष नहीं मिला कि इस पर मुकद्दमा चलाया जाए.”
5 किन्तु वे दृढ़तापूर्वक कहते रहे, “यह सारे यहूदिया प्रदेश में लोगों को अपनी शिक्षाओं द्वारा भड़का रहा है. यह सब इसने गलील प्रदेश में प्रारम्भ किया और अब यहाँ भी आ पहुँचा है.”
6 यह सुनते ही पिलातॉस ने प्रश्न किया, “क्या यह व्यक्ति गलीलवासी है?” 7 यह मालूम होने पर कि मसीह येशु हेरोदेस के अधिकार क्षेत्र के हैं, उसने उन्हें हेरोदेस के पास भेज दिया, जो इस समय येरूशालेम नगर में ही था.
हेरोदेस के सामने मसीह येशु
8 मसीह येशु को देख कर हेरोदेस अत्यन्त प्रसन्न हुआ क्योंकि बहुत दिनों से उसे मसीह येशु को देखने की इच्छा थी. उसने मसीह येशु के विषय में बहुत कुछ सुन रखा था. उसे आशा थी कि वह मसीह येशु द्वारा किया गया कोई चमत्कार देख सकेगा. 9 उसने मसीह येशु से अनेक प्रश्न किए किन्तु मसीह येशु ने कोई भी उत्तर न दिया. 10 प्रधान याजक और शास्त्री वहीं खड़े हुए थे और पूरे ज़ोर शोर से मसीह येशु पर दोष लगा रहे थे. 11 हेरोदेस और उसके सैनिकों ने अपमान करके मसीह येशु का मज़ाक उड़ाया और उन पर भड़कीला वस्त्र डाल कर वापस पिलातॉस के पास भेज दिया. 12 उसी दिन से हेरोदेस और पिलातॉस में मित्रता हो गई—इसके पहले वे एक-दूसरे के शत्रु थे.
13 पिलातॉस ने प्रधान पुरोहितों, नायकों और लोगों को पास बुलाया 14 और उनसे कहा, “तुम इस व्यक्ति को यह कहते हुए मेरे पास लाए हो कि यह लोगों को विद्रोह के लिए उकसा रहा है. तुम्हारी ही उपस्थिति में मैंने उससे पूछताछ की और मुझे उसमें तुम्हारे द्वारा लगाए आरोप के लिए कोई भी आधार नहीं मिला—न ही हेरोदेस को उसमें कोई दोष मिला है. 15 उसने उसे हमारे पास ही भेज दिया है. तुम देख ही रहे हो कि उसने मृत्युदण्ड के योग्य कोई अपराध नहीं किया है. 16 इसलिए मैं उसे कोड़े लगवा कर छोड़ देता हूँ.” 17 उत्सव के अवसर पर एक बन्दी को मुक्त कर देने की प्रथा थी.
18 भीड़ एक शब्द में चिल्ला उठी, “उसे मृत्युदण्ड दीजिए और हमारे लिए बार-अब्बा को मुक्त कर दीजिए!” 19 बार-अब्बा को नगर में विद्रोह भड़काने और हत्या के आरोप में बन्दी बनाया गया था.
20 मसीह येशु को मुक्त करने की इच्छा से पिलातॉस ने उनसे एक बार फिर विनती की 21 किन्तु वे चिल्लाते रहे, “क्रूस पर चढ़ाओ! क्रूस पर चढ़ाओ!”
22 पिलातॉस ने तीसरी बार उनसे प्रश्न किया, “क्यों? क्या है उसका अपराध? मुझे तो उसमें मृत्युदण्ड देने योग्य कोई दोष नहीं मिला. मैं उसे कोड़े लगवा कर छोड़ देता हूँ.”
23 किन्तु वे हठ करते हुए ऊँचे शब्द में चिल्लाते रहे, “क्रूस पर चढ़ाओ उसे!” तब हार कर उसे उनके आगे झुकना ही पड़ा. 24 पिलातॉस ने अनुमति दे दी कि उनकी माँग पूरी की जाए 25 और उसने उस व्यक्ति को मुक्त कर दिया, जिसे विद्रोह तथा हत्या के अपराधों में बन्दी बनाया गया था, जिसे छोड़ देने की उन्होंने माँग की थी और उसने मसीह येशु को भीड़ की इच्छानुसार उन्हें ही सौंप दिया.
क्रूस-मार्ग पर मसीह येशु
(मत्ति 27:32-34; मारक 15:21-24; योहन 19:17)
26 जब सैनिक मसीह येशु को ले कर जा रहे थे, उन्होंने सायरीनवासी शिमोन को पकड़ा, जो अपने गाँव से आ रहा था. उन्होंने मसीह येशु के लिए निर्धारित क्रूस उस पर लाद दिया कि वह उसे ले कर मसीह येशु के पीछे-पीछे जाए. 27 बड़ी संख्या में लोग उनके पीछे चल रहे थे. उनमें अनेक स्त्रियाँ भी थीं, जो मसीह येशु के लिए विलाप कर रही थीं. 28 मुड़ कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “येरूशालेम की पुत्रियो! मेरे लिए रोना छोड़ कर स्वयं अपने लिए तथा अपनी सन्तान के लिए रोओ. 29 क्योंकि वे दिन आ रहे हैं जब लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे स्त्रियाँ, जो बाँझ हैं, वे गर्भ, जिन्होंने सन्तान उत्पन्न नहीं किए और वे स्तन, जिन्होंने दूध नहीं पिलाया!’ 30 तब
“‘वे पर्वतों को सम्बोधित करके कहेंगे, “हम पर आ गिरो!”
और पहाड़ियों से, “हमको ढाँप लो!” ’
31 क्योंकि जब वे एक हरे पेड़ के साथ इस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं तब क्या होगी सूखे पेड़ की दशा?”
32 अन्य दो भी, जो राजद्रोह के अपराधी थे, मसीह येशु के साथ मृत्युदण्ड के लिए ले जाए जा रहे थे. 33 जब वे कपाल नामक स्थल पर पहुँचे उन्होंने मसीह येशु तथा उन दोनों राजद्रोहियों को भी क्रूसित कर दिया—एक को मसीह येशु की दायीं ओर दूसरे को उनकी बायीं ओर. 34 मसीह येशु ने प्रार्थना की, “पिता, इनको क्षमा कर दीजिए क्योंकि इन्हें यह पता ही नहीं कि ये क्या कर रहे हैं.” उन्होंने पासा फेंक कर मसीह येशु के वस्त्र आपस में बांट लिए.
35 भीड़ खड़ी हुई यह सब देख रही थी. यहूदी राजा यह कहते हुए मसीह येशु का ठठ्ठा कर रहे थे, “इसने अन्य लोगों की रक्षा की है. यदि यह परमेश्वर का मसीह, उनका चुना हुआ है, तो अब अपनी रक्षा स्वयं कर ले.”
36 सैनिक भी उनका ठठ्ठा कर रहे थे. वे मसीह येशु के पास आ कर उन्हें घटिया दाखरस प्रस्तुत करके कह रहे थे, 37 “यदि यहूदियों के राजा हो तो स्वयं को बचा लो.”
38 क्रूस पर उनके सिर के ऊपर सूचना पत्र के रूप में यह लिखा था: यही वह यहूदियों का राजा है.
39 वहाँ लटकाए गए राजद्रोहियों में से एक ने मसीह येशु पर अपशब्दों की बौछार करते हुए कहा: “अरे! क्या तुम मसीह नहीं हो? स्वयं अपने आपको बचाओ और हमको भी!”
40 किन्तु दूसरे राजद्रोही ने डपटते हुए उससे कहा, “क्या तुझे परमेश्वर का थोड़ा भी भय नहीं है? तुझे भी तो वही दण्ड दिया जा रहा है! 41 हमारे लिए तो यह दण्ड सही ही है क्योंकि हमें वही मिल रहा है, जो हमारे बुरे कामों के लिए सही है किन्तु इन्होंने तो कुछ भी गलत नहीं किया.”
42 तब मसीह येशु की ओर देखकर उसने उनसे विनती की, “आदरणीय येशु! अपने राज्य में मुझ पर दया कीजिएगा.”
43 मसीह येशु ने उसे आश्वासन दिया, “मैं तुम पर यह सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: आज ही तुम मेरे साथ स्वर्गलोक में होगे.”
मसीह येशु की मृत्यु
(मत्ति 27:45-56; मारक 15:33-41; योहन 19:28-37)
44 यह दिन का छठा घण्टा था. सारे क्षेत्र पर अन्धकार छा गया और यह नवें घण्टे तक छाया रहा. 45 सूर्य अंधियारा हो गया, मन्दिर का परदा फट कर दो भागों में बांट दिया गया. 46 मसीह येशु ने ऊँचे शब्द में पुकारते हुए कहा, “पिता! मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में सौंपता हूँ.” यह कहते हुए उन्होंने प्राण त्याग दिए.
47 वह सेनापति, जो यह सब देख रहा था, यह कहते हुए परमेश्वर की वन्दना करने लगा, “सचमुच यह व्यक्ति निर्दोष था.” 48 इस घटना को देखने के लिए इकट्ठा भीड़ यह सब देख विलाप करती हुई घर लौट गयी. 49 मसीह येशु के परिचित और गलील प्रदेश से मसीह येशु के साथ आई स्त्रियाँ कुछ दूर खड़ी हुई ये सब देख रही थीं.
मसीह येशु को क़ब्र में रखा जाना
(मत्ति 27:57-61; मारक 15:42-47; योहन 19:28-42)
50 योसेफ़ नामक एक व्यक्ति थे. वह महासभा के सदस्य, सज्जन तथा धर्मी थे. 51 वह न तो यहूदी अगुवों की योजना से और न ही उसके कामों से सहमत थे. योसेफ़ यहूदियों के एक नगर अरिमथिया के निवासी थे और वह परमेश्वर के राज्य की प्रतीक्षा कर रहे थे. 52 योसेफ़ ने पिलातॉस के पास जा कर विनती की कि मसीह येशु का शव उन्हें दे दिया जाए. 53 उन्होंने शव को क्रूस से उतार कर मलमल के वस्त्र में लपेटा और चट्टान में खोद कर बनाई गई एक क़ब्र की गुफ़ा में रख दिया. इस क़ब्र में अब तक कोई भी शव रखा नहीं गया था. 54 यह शब्बाथ की तैयारी का दिन था. शब्बाथ प्रारम्भ होने पर ही था.
55 गलील प्रदेश से आई हुई स्त्रियाँ भी उनके साथ वहाँ गईं. उन्होंने उस क़ब्र को देखा तथा यह भी कि शव को वहाँ कैसे रखा गया था. 56 तब वे सब घर लौट गए और उन्होंने अंत्येष्टि के लिए उबटन-लेप तैयार किए. व्यवस्था के अनुसार उन्होंने शब्बाथ पर विश्राम किया; किन्तु सप्ताह के पहिले दिन पौ फटते ही वे तैयार किए गए उबटन-लेपों को ले कर क़ब्र की गुफ़ा पर आईं.
मसीह येशु का बन्दी बनाया जाना
(मत्ति 26:47-56; मारक 14:43-52; लूकॉ 22:47-53)
18 इन बातों के कहने के बाद मसीह येशु अपने शिष्यों के साथ किद्रोन घाटी पार कर एक बगीचे में गए.
2 यहूदाह, जो उनके साथ धोखा कर रहा था, उस स्थान को जानता था क्योंकि मसीह येशु वहाँ अक्सर अपने शिष्यों से भेंट किया करते थे. 3 तब यहूदाह रोमी सैनिकों का दल, प्रधान पुरोहितों तथा फ़रीसियों के सेवकों के साथ वहाँ आ पहुँचा. उनके पास लालटेनें, मशालें और शस्त्र थे.
4 मसीह येशु ने यह जानते हुए कि उनके साथ क्या-क्या होने पर है, आगे बढ़कर उनसे पूछा, “तुम किसे खोज रहे हो?”
5 “नाज़रेथवासी येशु को,” उन्होंने उत्तर दिया.
मसीह येशु ने कहा, “मैं वही हूँ.” विश्वासघाती यहूदाह भी उनके साथ था. 6 जैसे ही मसीह येशु ने कहा “मैं वही हूँ,” वे पीछे हटे और गिर पड़े.
7 मसीह येशु ने दोबारा पूछा, “तुम किसे खोज रहे हो?” वे बोले, “नाज़रेथवासी येशु को.”
8 मसीह येशु ने कहा, “मैं तुमसे कह चुका हूँ कि मैं वही हूँ. इसलिए यदि तुम मुझे ही खोज रहे हो तो इन्हें जाने दो.” 9 यह इसलिए कि स्वयं उनके द्वारा कहा गया यह वचन पूरा हो “आपके द्वारा सौंपे हुओं में से मैंने किसी एक को भी न खोया.”
10 शिमोन पेतरॉस ने, जिनके पास तलवार थी, उसे म्यान से खींच कर महायाजक के एक सेवक पर वार कर दिया जिससे उसका दाहिना कान कट गया. उस सेवक का नाम मालखॉस था.
11 यह देख मसीह येशु ने पेतरॉस को आज्ञा दी, “तलवार म्यान में रखो! क्या मैं वह प्याला न पिऊँ जो पिता ने मुझे दिया है?”
हन्ना के सामने मसीह येशु
12 तब सैनिकों के दल, सेनानायक और यहूदियों के अधिकारियों ने मसीह येशु को बन्दी बना लिया. 13 पहले वे उन्हें हन्ना के पास ले गए, जो उस वर्ष के महायाजक कायाफ़स का ससुर था. 14 कायाफ़स ने ही यहूदियों को विचार दिया था कि राष्ट्र के हित में एक व्यक्ति का प्राण त्याग करना सही है.
पेतरॉस का पहिला नकारना
15 शिमोन पेतरॉस और एक अन्य शिष्य मसीह येशु के पीछे-पीछे गए. यह शिष्य महायाजक की जान पहचान का था. इसलिए वह भी मसीह येशु के साथ महायाजक के घर के परिसर में चला गया 16 परन्तु पेतरॉस द्वार पर बाहर ही खड़े रहे. तब वह शिष्य, जो महायाजक की जान पहचान का था, बाहर आया और द्वार पर नियुक्त दासी से कह कर पेतरॉस को भीतर ले गया.
17 द्वार पर निधर्मी उस दासी ने पेतरॉस से पूछा, “कहीं तुम भी तो इस व्यक्ति के शिष्यों में से नहीं हो?”
“नहीं, नहीं,” उन्होंने उत्तर दिया.
18 ठण्ड के कारण सेवकों और सैनिकों ने आग जला रखी थी और खड़े हुए आग ताप रहे थे. पेतरॉस भी उनके साथ खड़े हुए आग ताप रहे थे.
महायाजक के सामने मसीह येशु
19 महायाजक ने मसीह येशु से उनके शिष्यों और उनके द्वारा दी जा रही शिक्षा के विषय में पूछताछ की.
20 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैंने संसार से स्पष्टत: बातें की हैं. मैंने हमेशा सभागृहों और मन्दिर में शिक्षा दी है, जहाँ सभी यहूदी इकट्ठा होते हैं. गुप्त में मैंने कभी भी कुछ नहीं कहा. 21 आप मुझसे प्रश्न क्यों कर रहे हैं? प्रश्न उनसे कीजिए जिन्होंने मेरे प्रवचन सुने हैं. वे जानते हैं कि मैंने क्या-क्या कहा है.”
22 यह सुनते ही वहाँ खड़े एक अधिकारी ने मसीह येशु पर वार करते हुए कहा, “क्या महायाजक को उत्तर देने का यही ढंग है तुम्हारा?”
23 मसीह येशु ने कहा, “यदि मेरा कहना गलत है तो साबित करो मगर यदि मैंने जो कहा है वह सही है तो फिर तुम मुझे क्यों मार रहे हो?” 24 इसलिए मसीह येशु को, जो अभी भी बँधे हुए ही थे, हन्ना ने महायाजक कायाफ़स के पास भेज दिया.
पेतरॉस द्वारा मसीह येशु का दूसरी तथा तीसरी बार नकारना
(मत्ति 26:69-75; मारक 14:66-72; लूकॉ 22:54-65)
25 इसी बीच लोगों ने शिमोन पेतरॉस से, जो वहाँ खड़े हुए आग ताप रहे थे, पूछा, “कहीं तुम भी तो इसके शिष्यों में से नहीं हो?” पेतरॉस ने नकारते हुए कहा, “मैं नहीं हूँ.”
26 तब महायाजक के सेवकों में से एक ने, जो उस व्यक्ति का सम्बन्धी था, जिसका कान पेतरॉस ने काट डाला था, उनसे पूछा, “क्या तुम वही नहीं, जिसे मैंने उसके साथ उपवन में देखा था?” 27 पेतरॉस ने फिर अस्वीकार किया और तत्काल मुर्गे ने बाँग दी.
मसीह येशु पिलातॉस के सामने
(मत्ति 27:11-14; मारक 15:2-5; लूकॉ 23:2-5)
28 पौ फटते ही वे मसीह येशु को कायाफ़स के पास से राजभवन ले गए; किन्तु उन्होंने स्वयं भवन में प्रवेश नहीं किया कि कहीं वे फ़सह भोज के पूर्व सांस्कारिक रूप से अशुद्ध न हो जाएँ. 29 इसलिए पिलातॉस ने बाहर आ कर उनसे प्रश्न किया, “क्या आरोप है तुम्हारा इस व्यक्ति पर?”
30 उन्होंने उत्तर दिया, “यदि यह व्यक्ति अपराधी न होता तो हम इसे आपके पास क्यों लाते?”
31 पिलातॉस ने उनसे कहा, “तो इसे ले जाओ और अपने ही नियम के अनुसार स्वयं इसका न्याय करो.” इस पर यहूदियों ने कहा, “किसी के प्राण लेना हमारे अधिकार में नही है.” 32 ऐसा इसलिए हुआ कि मसीह येशु के वे वचन पूरे हों, जिनके द्वारा उन्होंने संकेत दिया था कि उनकी मृत्यु किस प्रकार की होगी.
33 इसलिए भवन में लौट कर पिलातॉस ने मसीह येशु को बुलवाया और प्रश्न किया, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”
34 इस पर मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “यह आपका अपना विचार है या अन्य लोगों ने मेरे विषय में आपको ऐसा बताया है?”
35 पिलातॉस ने उत्तर दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारे अपने ही लोगों और प्रधान पुरोहितों ने तुम्हें मेरे हाथ सौंपा है. बताओ, ऐसा क्या किया है तुमने?”
36 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस संसार का नहीं है. यदि इस संसार का होता तो मेरे सेवक मुझे यहूदियों के हाथ सौंपे जाने के विरुद्ध लड़ते; किन्तु सच्चाई तो यह है कि मेरा राज्य यहाँ का है ही नहीं.”
37 इस पर पिलातॉस ने उनसे कहा, “तो तुम राजा हो?”
मसीह येशु ने उत्तर दिया, “आप ठीक कहते हैं कि मैं राजा हूँ. मेरा जन्म ही इसलिए हुआ है. संसार में मेरे आने का उद्देश्य यही है कि मैं सच की गवाही दूँ. हर एक व्यक्ति, जो सच्चा है, मेरी सुनता है.” 38 “क्या है सच?” पिलातॉस ने प्रश्न किया.
पिलातॉस का मसीह येशु को मुक्त करने का विफल प्रयास
तब पिलातॉस ने दोबारा बाहर जा कर यहूदियों को सूचित किया, “मुझे उसमें कोई दोष नहीं मिला 39 किन्तु तुम्हारी एक परम्परा है कि फ़सह के अवसर पर मैं तुम्हारे लिए किसी एक को रिहा करूँ. इसलिए क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए यहूदियों का राजा रिहा कर दूँ?”
40 इस पर वे चिल्ला कर बोले, “इसे नहीं! बार-अब्बा को!”—जबकि बार-अब्बा विद्रोही था.
मसीह येशु का क्रूस मृत्युदण्ड
19 इसलिए पिलातॉस ने मसीह येशु को भीतर ले जा कर उन्हें कोड़े लगवाए. 2 सैनिकों ने काँटों का एक मुकुट गूँथ कर उनके सिर पर रखा और उनके ऊपर एक बैंगनी वस्त्र डाल दिया 3 और वे एक-एक कर उनके सामने आ कर उनके मुख पर प्रहार करते हुए कहने लगे, “यहूदियों के राजा की जय!”
4 पिलातॉस ने दोबारा आ कर भीड़ से कहा, “देखो, मैं उसे तुम्हारे लिए बाहर ला रहा हूँ कि तुम जान लो कि मुझे उसमें कोई दोष नहीं मिला.” 5 तब काँटों का मुकुट व बैंगनी वस्त्र धारण किए हुए मसीह येशु को बाहर लाया गया और पिलातॉस ने लोगों से कहा, “देखो, इसे!”
6 जब प्रधान पुरोहितों और सेवकों ने मसीह येशु को देखा तो चिल्ला कर कहने लगे, “क्रूसदण्ड़! क्रूसदण्ड़!” पिलातॉस ने उनसे कहा, “इसे ले जाओ और तुम ही दो इसे मृत्युदण्ड क्योंकि मुझे तो इसमें कोई दोष नहीं मिला.” 7 यहूदियों ने उत्तर दिया, “हमारा एक नियम है. उस नियम के अनुसार इस व्यक्ति को मृत्युदण्ड ही मिलना चाहिए क्योंकि यह स्वयं को परमेश्वर का पुत्र बताता है.”
8 जब पिलातॉस ने यह सुना तो वह और अधिक भयभीत हो गया. 9 तब उसने दोबारा राजभवन में जाकर मसीह येशु से पूछा, “तुम कहाँ के हो?” किन्तु मसीह येशु ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया. 10 इसलिए पिलातॉस ने उनसे कहा, “तुम बोलते क्यों नहीं? क्या तुम नहीं जानते कि मुझे यह अधिकार है कि मैं तुम्हें मुक्त कर दूँ और यह भी कि तुम्हें मृत्युदण्ड दूँ?”
11 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “आपका मुझ पर कोई अधिकार न होता यदि वह आपको ऊपर से न दिया गया होता. अत्यंत नीच है उसका पाप, जिसने मुझे आपके हाथ सौंपा है.” 12 परिणामस्वरूप पिलातॉस ने उन्हें मुक्त करने के यत्न किए किन्तु यहूदियों ने चिल्ला-चिल्ला कर कहा, “यदि आपने इस व्यक्ति को मुक्त किया तो आप कयसर के मित्र नहीं हैं. हर एक, जो स्वयं को राजा दर्शाता है, वह कयसर का विरोधी है.”
13 ये सब सुन कर पिलातॉस मसीह येशु को बाहर लाया और न्याय आसन पर बैठ गया, जो उस स्थान पर था, जिसे इब्री भाषा में गब्बथा अर्थात् चबूतरा कहा जाता है. 14 यह फ़सह की तैयारी के दिन का छठा घण्टा था. पिलातॉस ने यहूदियों से कहा.
“यह लो, तुम्हारा राजा.”
15 इस पर वे चिल्लाने लगे, “इसे यहाँ से ले जाओ! ले जाओ इसे यहाँ से और मृत्युदण्ड दो!”
पिलातॉस ने उनसे पूछा, “क्या मैं तुम्हारे राजा को मृत्युदण्ड दूँ?”
प्रधान पुरोहितों ने कहा, “कयसर के अतिरिक्त हमारा कोई राजा नहीं है.”
16 तब पिलातॉस ने क्रूस-मृत्युदण्ड के लिए मसीह येशु को उनके हाथ सौंप दिया.
क्रूस-मार्ग पर मसीह येशु
(मत्ति 27:32-37; मारक 15:21-24; लूकॉ 23:26-31)
17 वे मसीह येशु को उस स्थान को ले गए, जो इब्री भाषा में गोलगोथा कहलाता है, जिसका अर्थ है खोपड़ी का स्थान. मसीह येशु अपना क्रूस स्वयं उठाए हुए थे.
मसीह येशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना
(मत्ति 27:35-44; मारक 15:25-32; लूकॉ 23:32-43)
18 वहाँ उन्होंने मसीह येशु को अन्य दो व्यक्तियों के साथ उनके मध्य क्रूस पर चढ़ाया.
19 पिलातॉस ने एक पटल पर नाज़रेथ का येशु, यहूदियों का राजा लिख कर क्रूस पर लगवा दिया 20 यह अनेक यहूदियों ने पढ़ा क्योंकि मसीह येशु को क्रूस पर चढ़ाए जाने का स्थान नगर के समीप ही था. यह इब्री, लातीनी और यूनानी भाषाओं में लिखा था. 21 इस पर यहूदियों के प्रधान पुरोहितों ने पिलातॉस से कहा, “यहूदियों का राजा मत लिखिए परन्तु वह लिखिए, जो उसने कहा था: ‘मैं यहूदियों का राजा हूँ’.”
22 पिलातॉस ने उत्तर दिया, “अब मैंने जो लिख दिया, वह लिख दिया.”
23 सैनिकों ने मसीह येशु को क्रूसित करने के बाद उनके बाहरी कपड़े ले कर चार भाग किए और आपस में बांट लिए. उनके अंदर का वस्त्र जोड़ रहित ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था.
24 इसलिए सैनिकों ने विचार किया, “इसे फाड़ें नहीं परन्तु इस पर पासा फेंक कर निर्णय कर लें कि यह किसको मिलेगा.”
सैनिकों ने ठीक वही किया जैसा पवित्रशास्त्र में लिखा है:
उन्होंने मेरा बाहरी कपड़ा आपस में बांट लिया,
और मेरे अंदर के वस्त्र के लिए पासा फेंका.
25 मसीह येशु के क्रूस के समीप उनकी माता, उनकी माता की बहन, क्लोपस की पत्नी मरियम और मगदालावासी मरियम खड़ी हुई थीं. 26 जब मसीह येशु ने अपनी माता और उस शिष्य को, जो उनका प्रियजन था, वहाँ खड़े देखा तो अपनी माता से बोले, “हे स्त्री! यह आपका पुत्र है.” 27 और उस शिष्य से बोले, “यह तुम्हारी माता है.” उस दिन से वह शिष्य मरियम का रखवाला बन गया.
मसीह येशु की मृत्यु
(मत्ति 27:45-56; मारक 15:33-41; लूकॉ 23:44-49)
28 इसके बाद मसीह येशु ने यह जानते हुए कि अब सब कुछ पूरा हो चुका है, पवित्रशास्त्र का लेख पूरा करने के लिए कहा, “मैं प्यासा हूँ.” 29 वहाँ दाखरस के सिरके से भरा एक बर्तन रखा था. लोगों ने उसमें स्पंज भिगो जूफ़ा पौधे की टहनी पर रखकर उनके मुख तक पहुँचाया. 30 उसे चख कर मसीह येशु ने कहा, “अब सब पूरा हो गया” और सिर झुका कर प्राण त्याग दिए.
31 वह फ़सह की तैयारी का दिन था. इसलिए यहूदियों ने पिलातॉस से निवेदन किया कि उन लोगों की टाँगें तोड़ कर उन्हें क्रूस से उतार लिया जाए जिससे वे शब्बाथ पर क्रूस पर न रहें क्योंकि वह एक विशेष महत्व का शब्बाथ था. 32 इसलिए सैनिकों ने मसीह येशु के संग क्रूस पर चढ़ाए गए एक व्यक्ति की टाँगें पहले तोड़ीं और तब दूसरे की. 33 जब वे मसीह येशु के पास आए तो उन्हें मालूम हुआ कि उनके प्राण पहले ही निकल चुके थे. इसलिए उन्होंने उनकी टाँगें नहीं तोड़ीं 34 किन्तु एक सैनिक ने उनकी पसली को भाले से बेधा और वहाँ से तुरन्त लहू व जल बह निकले. 35 वह, जिसने यह देखा, उसने गवाही दी है और उसकी गवाही सच्ची है—वह जानता है कि वह सच ही कह रहा है, कि तुम भी विश्वास कर सको. 36 यह इसलिए हुआ कि पवित्रशास्त्र का यह लेख पूरा हो: उसकी एक भी हड्डी तोड़ी न जाएगी. 37 पवित्रशास्त्र का एक अन्य लेख भी इस प्रकार है: वे उसकी ओर देखेंगे, जिसे उन्होंने बेधा है.
मसीह येशु को क़ब्र में रखा जाना
(मत्ति 27:57-61; मारक 15:42-47; लूकॉ 23:46-50)
38 अरिमथियावासी योसेफ़ यहूदियों के भय के कारण मसीह येशु का गुप्त शिष्य था. उसने पिलातॉस से मसीह येशु का शव ले जाने की अनुमति चाही. पिलातॉस ने स्वीकृति दे दी और वह आकर मसीह येशु का शव ले गया. 39 तब निकोदेमॉस भी, जो पहले मसीह येशु से भेंट करने रात के समय आए थे, लगभग तैंतीस किलो गन्धरस और अगरू का मिश्रण ले कर आए. 40 इन लोगों ने मसीह येशु का शव लिया और यहूदियों की अंतिम संस्कार की रीति के अनुसार उस पर यह मिश्रण लगा कर कपड़े की पट्टियों में लपेट दिया. 41 मसीह येशु को क्रूसित किए जाने के स्थान के पास एक उपवन था, जिसमें एक नई क़ब्र की गुफ़ा थी. उसमें अब तक कोई शव नहीं रखा गया था. 42 इसलिए उन्होंने मसीह येशु के शव को उसी क़ब्र की गुफ़ा में रख दिया क्योंकि वह पास थी और वह यहूदियों के शब्बाथ की तैयारी का दिन भी था.
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