Chronological
पिलातॉस के न्यायालय में येशु
(मारक 15:1; लूकॉ 22:66-71)
27 प्रातःकाल सभी प्रधान पुरोहितों तथा पुरनियों ने आपस में येशु को मृत्युदण्ड देने की सहमति की. 2 येशु को बेड़ियों से बान्ध कर वे उन्हें राज्यपाल पिलातॉस के यहाँ ले गए.
3 इसी समय, जब येशु पर दण्ड की आज्ञा सुनाई गई, यहूदाह, जिसने येशु के साथ धोखा किया था, दुःख और पश्चाताप से भर उठा. उसने प्रधान पुरोहितों और पुरनियों के पास जा कर चांदी के वे तीस सिक्के यह कहते हुए लौटा दिए, 4 “एक निर्दोष के साथ धोखा करके मैंने पाप किया है.”
“हमें इससे क्या?” वे बोले, “यह तुम्हारी समस्या है!”
5 वे सिक्के मन्दिर में फेंक यहूदाह चला गया और जा कर फाँसी लगा ली.
6 उन सिक्कों को इकट्ठा करते हुए उन्होंने विचार किया, “इस राशि को मन्दिर के कोष में डालना उचित नहीं है क्योंकि यह लहू का दाम है.” 7 तब उन्होंने इस विषय में विचार-विमर्श कर उस राशि से परदेशियों के अंतिम संस्कार के लिए कुम्हार का एक खेत मोल लिया. 8 यही कारण है कि आज तक उस खेत को लहू-खेत नाम से जाना जाता है. 9 इससे भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह द्वारा की गई यह भविष्यवाणी पूरी हो गई: उन्होंने चांदी के तीस सिक्के लिए—यह उसका दाम है, जिसका दाम इस्राएल वंश के द्वारा निर्धारित किया गया था 10 और उन्होंने वे सिक्के कुम्हार के खेत के लिए दे दिए, जैसा निर्देश प्रभु ने मुझे दिया था.
येशु दोबारा पिलातॉस के सामने
(मारक 15:2-5; लूकॉ 23:1-5; योहन 18:28-38)
11 येशु राज्यपाल के सामने लाए गए और राज्यपाल ने उनसे प्रश्न करने प्रारम्भ किए, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”
येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह आप स्वयं ही कह रहे हैं.”
12 जब येशु पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों द्वारा आरोप पर आरोप लगाए जा रहे थे, येशु मौन बने रहे. 13 इस पर पिलातॉस ने येशु से कहा, “क्या तुम सुन नहीं रहे ये लोग तुम पर कितने आरोप लगा रहे हैं?” 14 येशु ने पिलातॉस को किसी भी आरोप का कोई उत्तर न दिया. राज्यपाल के लिए यह अत्यन्त आश्चर्यजनक था.
15 फ़सह उत्सव पर परम्परा के अनुसार राज्यपाल की ओर से उस बन्दी को, जिसे लोग चाहते थे, छोड़ दिया जाता था. 16 उस समय बन्दीगृह में बार-अब्बास नामक एक कुख्यात अपराधी बन्दी था. 17 इसलिए जब लोग इकट्ठा हुए पिलातॉस ने उनसे प्रश्न किया, “मैं तुम्हारे लिए किसे छोड़ दूँ, बार-अब्बास को या येशु को, जो मसीह कहलाता है? क्या चाहते हो तुम?” 18 पिलातॉस को यह मालूम हो चुका था कि मात्र जलन के कारण ही उन्होंने येशु को उनके हाथों में सौंपा था.
19 जब पिलातॉस न्यायासन पर बैठा था, उसकी पत्नी ने उसे यह सन्देश भेजा, “उस धर्मी व्यक्ति को कुछ न करना क्योंकि पिछली रात मुझे स्वप्न में उसके कारण घोर पीड़ा हुई है.”
20 इस पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों ने भीड़ को उकसाया कि वे बार-अब्बास की मुक्ति की और येशु के मृत्युदण्ड की माँग करें.
21 राज्यपाल ने उनसे पूछा, “क्या चाहते हो, दोनों में से मैं किसे छोड़ दूँ?” भीड़ का उत्तर था.
“बार-अब्बास को.”
22 इस पर पिलातॉस ने उनसे पूछा, “तब मैं येशु का, जो मसीह कहलाता है, क्या करूँ?”
उन सभी ने एक साथ कहा.
“उसे क्रूस पर चढ़ाया जाए!”
23 पिलातॉस ने पूछा, “क्यों? क्या अपराध है उसका?”
किन्तु वे और अधिक चिल्लाने लगे, “क्रूस पर चढ़ाया जाए उसे!”
24 जब पिलातॉस ने देखा कि वह कुछ भी नहीं कर पा रहा परन्तु हुल्लड़ की सम्भावना है तो उसने भीड़ के सामने अपने हाथ धोते हुए यह घोषणा कर दी, “मैं इस व्यक्ति के लहू का दोषी नहीं हूँ. तुम ही इसके लिए उत्तरदायी हो.”
25 लोगों ने उत्तर दिया, “इसकी हत्या का दोष हम पर तथा हमारी सन्तान पर हो!”
26 तब पिलातॉस ने उनके लिए बार-अब्बास को मुक्त कर दिया किन्तु येशु को कोड़े लगवा कर क्रूसित करने के लिए भीड़ के हाथों में सौंप दिया.
येशु के सिर पर काँटों का मुकुट
(मारक 15:16-20)
27 तब पिलातॉस के सैनिक येशु को प्राइतोरियम (किले में) ले गए और सारे सैनिकों ने उन्हें घेर लिया. 28 जो वस्त्र येशु पहने हुए थे, उतार कर उन्होंने उन्हें एक चमकीला लाल वस्त्र पहना दिया. 29 उन्होंने एक कँटीली लता को गूँथ कर उसका मुकुट बना उनके सिर पर रख दिया और उनके दायें हाथ में एक नरकुल की एक छड़ी थमा दी. तब वे उनके सामने घुटने टेक कर यह कहते हुए उनका मज़ाक करने लगे, “यहूदियों के राजा की जय!” 30 उन्होंने येशु पर थूका भी और फिर उनके हाथ से उस नरकुल छड़ी को ले कर उसी से उनके सिर पर प्रहार करने लगे. 31 इस प्रकार जब वे येशु का उपहास कर चुके, उन्होंने वह लाल वस्त्र उतार कर उन्हीं के वस्त्र उन्हें पहना दिए और उन्हें उस स्थल पर ले जाने लगे जहाँ उन्हें क्रूस पर चढ़ाया जाना था.
क्रूस-मार्ग पर येशु
(मारक 15:21-24; लूकॉ 23:26-31; योहन 19:17)
32 जब वे बाहर निकले, उन्हें शिमोन नामक एक व्यक्ति, जो कुरैनवासी था, दिखाई दिया. उन्होंने उसे येशु का क्रूस उठा कर चलने के लिए मजबूर किया. 33 जब वे सब गोलगोथा नामक स्थल पर पहुँचे, जिसका अर्थ है खोपड़ी का स्थान, 34 उन्होंने येशु को पीने के लिए दाखरस तथा कड़वे रस का मिश्रण दिया किन्तु उन्होंने मात्र चख कर उसे पीना अस्वीकार कर दिया.
35 येशु को क्रूसित करने के बाद उन्होंने उनके वस्त्रों को आपस में बांट लेने के लिए पासा फेंका 36 और वहीं बैठ कर उनकी चौकसी करने लगे. 37 उन्होंने उनके सिर के ऊपर दोषपत्र लगा दिया था, जिस पर लिखा था: “यह येशु है—यहूदियों का राजा.”
38 उसी समय दो अपराधियों को भी उनके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक को उनकी दायीं ओर, दूसरे को उनकी बायीं ओर.
39 जो भी उस रास्ते से निकलता था, निन्दा करता हुआ निकलता था. वे सिर हिला-हिला कर कहते जाते थे, 40 “अरे तू! तू तो कहता था कि मन्दिर को ढाह दो और मैं इसे तीन दिन में खड़ा कर दूँगा, अब स्वयं को तो बचा कर दिखा! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो उतर आ क्रूस से!” 41 इसी प्रकार प्रधान याजक भी शास्त्रियों और पुरनियों के साथ मिल कर उनका उपहास करते हुए कह रहे थे, 42 “दूसरों को तो बचाता फिरा है, स्वयं को नहीं बचा सकता! इस्राएल का राजा है! क्रूस से नीचे आकर दिखाए तो हम इसका विश्वास कर लेंगे. 43 यह परमेश्वर में विश्वास करता है क्योंकि इसने दावा किया था, ‘मैं ही परमेश्वर-पुत्र हूँ,’ तब परमेश्वर इसे अभी छुड़ा दें—यदि वह इससे प्रेम करते हैं.” 44 उनके साथ क्रूस पर चढ़ाये गए राजद्रोही भी इसी प्रकार उनकी उल्लाहना कर रहे थे.
येशु की मृत्यु
(मारक 15:33-41; लूकॉ 23:44-49; योहन 19:28-37)
45 छठे घण्टे से ले कर नवें घण्टे तक उस सारे प्रदेश पर अन्धकार छाया रहा. 46 नवें घण्टे के लगभग येशु ने ऊँची आवाज़ में पुकार कर कहा, “एली, एली, लमा सबख़थानी?” जिसका अर्थ है, “मेरे परमेश्वर! मेरे परमेश्वर! आपने मुझे क्यों छोड़ दिया?”
47 उनमें से कुछ ने, जो वहाँ खड़े थे, यह सुन कर कहा, “अरे! सुनो-सुनो! एलियाह को पुकार रहा है!”
48 उनमें से एक ने तुरन्त दौड़ कर एक स्पंज सिरके में भिगोया और एक नरकुल की एक छड़ी पर रख कर येशु के ओंठों तक बढ़ा दिया. 49 किन्तु औरों ने कहा, “ठहरो, ठहरो, देखें एलियाह उसे बचाने आते भी हैं या नहीं.”
50 येशु ने एक बार फिर ऊँची आवाज़ में पुकारा और अपने प्राण त्याग दिए.
51-53 उसी क्षण मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक दो भागों में विभाजित कर दिया गया, पृथ्वी कांप उठी, चट्टानें फट गईं और क़ब्रें खुल गईं. येशु के पुनरुत्थान के बाद उन अनेक पवित्र लोगों के शरीर जीवित कर दिए गये, जो बड़ी नींद में सो चुके थे. क़ब्रों से बाहर आ कर उन्होंने पवित्र नगर में प्रवेश किया तथा अनेकों को दिखाई दिए.
54 सेनापति और वे, जो उसके साथ येशु की चौकसी कर रहे थे, उस भूकम्प तथा अन्य घटनाओं को देख कर अत्यन्त भयभीत हो गए और कहने लगे, “सचमुच यह परमेश्वर के पुत्र थे!”
55 अनेक स्त्रियाँ दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं. वे गलील प्रदेश से येशु की सेवा करती हुई उनके पीछे-पीछे आ गई थीं. 56 उनमें थीं मगदालावासी मिरियम, याक़ोब और योसेफ़ की माता मिरियम तथा ज़ेबेदियॉस की पत्नी.
येशु को क़ब्र में रखा जाना
(मारक 15:42-47; लूकॉ 23:50-56; योहन 19:38-42)
57 जब सन्ध्या हुई तब अरिमथिया नामक नगर के एक सम्पन्न व्यक्ति, जिनका नाम योसेफ़ था, वहाँ आए. वह स्वयं येशु के चेले बन गए थे. 58 उन्होंने पिलातॉस के पास जा कर येशु के शव को ले जाने की आज्ञा माँगी. पिलातॉस ने उन्हें शव ले जाने की आज्ञा दे दी. 59 योसेफ़ ने शव को एक स्वच्छ चादर में लपेटा 60 और उसे नई कन्दरा-क़ब्र में रख दिया, जो योसेफ़ ने स्वयं अपने लिए चट्टान में खुदवाई थी. उन्होंने क़ब्र के द्वार पर एक विशाल पत्थर लुढ़का दिया और तब वह अपने घर चले गए. 61 मगदालावासी मरियम तथा अन्य मरियम, दोनों ही कन्दरा-क़ब्र के सामने बैठी रहीं.
येशु की क़ब्र पर प्रहरियों की नियुक्ति
62 दूसरे दिन, जो तैयारी के दिन के बाद का दिन था, प्रधान याजक तथा फ़रीसी पिलातॉस के यहाँ इकट्ठा हुए और पिलातॉस को सूचित किया, 63 “महोदय, हमको यह याद है कि जब यह छली जीवित था, उसने कहा था, ‘तीन दिन बाद मैं जीवित हो जाऊँगा’; 64 इसलिए तीसरे दिन तक के लिए कन्दरा-क़ब्र पर कड़ी सुरक्षा की आज्ञा दे दीजिए, अन्यथा सम्भव है उसके शिष्य आ कर शव चुरा ले जाएँ और लोगों में यह प्रचार कर दें, ‘वह मरे हुओं में से जीवित हो गया है’; तब तो यह छल पहले से कहीं अधिक हानिकर सिद्ध होगा.”
65 पिलातॉस ने उनसे कहा, “प्रहरी तो आपके पास हैं न! आप जैसा उचित समझें करें.” 66 अतः उन्होंने जा कर प्रहरी नियुक्त कर तथा पत्थर पर मोहर लगा कर क़ब्र को पूरी तरह सुरक्षित बना दिया.
मसीह येशु पिलातॉस के न्यायालय में
(मत्ति 27:1-2; लूकॉ 22:66-71)
15 भोर होते ही प्रधान पुरोहितों, नेतागण तथा शास्त्रियों ने सारी महासभा का सत्र बुला कर विचार किया और मसीह येशु को, जो अभी भी बँधे हुए थे, ले जा कर पिलातॉस को सौंप दिया.
2 पिलातॉस ने मसीह येशु से पूछा, “क्या यहूदियों के राजा तुम हो?”
मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “सच्चाई वही है जो आपने कहा है.”
3 प्रधान याजक मसीह येशु पर अनेक आरोप लगाते रहे. 4 इस पर पिलातॉस ने मसीह येशु से पूछा, “कोई उत्तर नहीं दोगे? देखो, ये लोग तुम पर आरोप पर आरोप लगाते चले जा रहे हैं!”
5 किन्तु मसीह येशु ने कोई उत्तर न दिया. यह पिलातॉस के लिए आश्चर्य का विषय था.
6 उत्सव के अवसर पर वह किसी एक बन्दी को, लोगों की विनती के अनुसार, छोड़ दिया करता था. 7 कारागार में बार-अब्बास नामक एक बन्दी था. वह अन्य विद्रोहियों के साथ विद्रोह में हत्या के आरोप में बन्दी बनाया गया था. 8 भीड़ ने पिलातॉस के पास जा कर उनकी प्रथापूर्ति की विनती की.
9 इस पर पिलातॉस ने उनसे पूछा, “अच्छा, तो तुम यह चाह रहे हो कि मैं तुम्हारे लिए यहूदियों के राजा को छोड़ दूँ?” 10 अब तक पिलातॉस को यह मालूम हो चुका था कि प्रधान पुरोहितों ने मसीह येशु को जलनवश पकड़वाया था. 11 किन्तु प्रधान पुरोहितों ने भीड़ को उकसाया कि वे मसीह येशु के स्थान पर बार-अब्बास को छोड़ देने की विनती करें.
12 इस पर पिलातॉस ने उनसे पूछा, “तो फिर मैं इसका क्या करूँ, जिसे तुम यहूदियों का राजा कहते हो?”
13 उन्होंने चिल्लाते हुए उत्तर दिया, “मृत्युदण्ड!”
14 “क्यों,” पिलातॉस ने उनसे पूछा, “क्या अपराध किया है इसने?” इस पर वे उग्र हो बलपूर्वक चिल्लाते हुए बोले, “मृत्युदण्ड!”
15 भीड़ को सन्तुष्ट करने के उद्देश्य से पिलातॉस ने उनके लिए बार-अब्बास को विमुक्त कर दिया तथा मसीह येशु को कोड़े लगवाकर क्रूस-मृत्युदण्ड के लिए उनके हाथों में सौंप दिया.
मसीह येशु के सिर पर काँटों का मुकुट
(मत्ति 27:27-31)
16 मसीह येशु को सैनिक प्राइतोरियम अर्थात् किले के भीतर आंगण में ले गए और वहाँ उन्होंने सारी रोमी सैनिक टुकड़ी इकट्ठा कर ली. 17 उन्होंने मसीह येशु को वहाँ ले जा कर बैंगनी रंग का वस्त्र पहना दिया तथा काँटों को गूँथ कर मुकुट का रूप दे उसे उनके ऊपर रख दिया 18 और उन्हें प्रणाम करके कहने लगे, “यहूदियों के राजा, आपकी जय!” 19 वे मसीह येशु के सिर पर सरकण्डा मारते जा रहे थे. इसके अतिरिक्त वे उन पर थूक रहे थे और उपहास में उनके सामने घुटने टेक कर झुक रहे थे. 20 जब वे उपहास कर चुके, उन्होंने वह बैंगनी वस्त्र उतार लिया और उनके वस्त्र उन्हें दोबारा पहना दिए और उन्हें क्रूस पर चढ़ाने के लिए ले जाने लगे.
क्रूस-मार्ग पर मसीह येशु
(मत्ति 27:32-34; लूकॉ 23:26-31; योहन 19:17)
21 मार्ग में उन्हें कुरेनायॉस नगरवासी शिमोन नामक व्यक्ति मिला, जो अलेक्ज़ान्द्रॉस तथा रूफ़ॉस का पिता था, जिसे उन्होंने मसीह येशु का क्रूस उठा कर ले चलने के लिए विवश किया.
22 वे मसीह येशु को ले कर गोलगोथा नामक स्थल पर आए, जिसका अर्थ है खोपड़ी का स्थान. 23 उन्होंने मसीह येशु को गन्धरस मिला हुआ दाखरस देना चाहा किन्तु मसीह येशु ने उसे स्वीकार न किया. 24 तब उन्होंने मसीह येशु को क्रूस पर चढ़ा दिया. उन्होंने मसीह येशु के वस्त्र बाँटने के लिए पासा फेंका कि वस्त्र किसे मिलें.
25 यह दिन का तीसरा घण्टा था जब उन्होंने मसीह येशु को क्रूस पर चढ़ाया था. 26 उनके दोषपत्र पर लिखा था: यहूदियों का राजा. 27 मसीह येशु के साथ दो राजद्रोहियों को भी क्रूस पर चढ़ाया गया था—एक उनकी दायीं ओर, दूसरा बायीं ओर. 28 यह होने पर पवित्रशास्त्र का यह लेख पूरा हो गया: उसकी गिनती अपराधियों के साथ की गई.
29 आते-जाते यात्री उपहास-मुद्रा में सिर हिला-हिला कर मज़ाक उड़ा रहे थे, “अरे ओ मन्दिर को नाश कर तीन दिन में उसको दुबारा बनानेवाले! 30 बचा ले अपने आपको—उतर आ क्रूस से!”
31 इसी प्रकार प्रधान याजक भी शास्त्रियों के साथ मिल कर आपस में उनका उपहास कर रहे थे, “अन्यों को तो बचाता रहा, स्वयं को नहीं बचा सकता! 32 यह मसीह—यह इस्राएल का राजा, अभी क्रूस से नीचे उतरे, तो हम उस में विश्वास कर लेंगे!” मसीह येशु के साथ क्रूस पर चढ़ाए गए राजद्रोही भी उनकी ऐसी ही निन्दा कर रहे थे.
मसीह येशु की मृत्यु
(मत्ति 27:45-56; लूकॉ 23:44-49; योहन 19:28-37)
33 छठे घण्टे सारे क्षेत्र पर अन्धकार छा गया, जो नवें घण्टे तक छाया रहा. 34 नवें घण्टे मसीह येशु ने ऊँचे शब्द में पुकारते हुए कहा, “एलोई, एलोई लमा सबख़थानी?” अर्थात् मेरे परमेश्वर! मेरे परमेश्वर! आपने मुझे क्यों छोड़ दिया है!
35 पास खड़े व्यक्तियों ने यह सुन कर कहा, “सुनो! सुनो! वह एलियाह को पुकार रहा है!”
36 यह सुन एक व्यक्ति ने दौड़ कर एक स्पंज को दाख के सिरके में डुबा कर उसे सरकण्डे पर रख यह कहते हुए मसीह येशु को पीने के लिए दिया, “चलो देखें, क्या एलियाह इसे क्रूस से नीचे उतारने आते हैं या नहीं.”
37 ऊँचे शब्द में पुकारने के साथ मसीह येशु ने अपने प्राण त्याग दिए.
38 मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो भागों में बांट दिया गया. 39 क्रूस के सामने खड़े रोमी सैन्य अधिकारी ने मसीह येशु को इस रीति से प्राण त्यागते देख कहा, “इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह व्यक्ति परमेश्वर का पुत्र था.”
40 कुछ महिलाएं दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं. इनमें मगदालावासी मरियम, कनिष्ठ याक़ोब और योसेस की माता मरियम तथा शालोमे थीं. 41 मसीह येशु के गलील प्रवास के समय ये ही उनके पीछे चलते हुए उनकी सेवा करती रही थीं. अन्य अनेक स्त्रियाँ भी थीं, जो मसीह येशु के साथ येरूशालेम आई हुई थीं.
मसीह येशु को क़ब्र में रखा जाना
(मत्ति 27:57-61; लूकॉ 23:50-56; योहन 19:38-42)
42 यह शब्बाथ के पहले का तैयारी का दिन था. शाम हो गई थी. 43 अरिमथिया नगरवासी योसेफ़ ने, जो महासभा के प्रतिष्ठित सदस्य थे और स्वयं परमेश्वर के राज्य की प्रतीक्षा कर रहे थे, साहसपूर्वक पिलातॉस से मसीह येशु का शव ले जाने की अनुमति माँगी. 44 पिलातॉस को विश्वास नहीं हो रहा था कि मसीह येशु के प्राण निकल चुके हैं इसलिए उसने सैन्य अधिकारी को बुलाकर उससे प्रश्न किया कि क्या मसीह येशु की मृत्यु हो चुकी है? 45 सैन्य अधिकारी से आश्वस्त हो कर पिलातॉस ने योसेफ़ को मसीह येशु का शव ले जाने की अनुमति दे दी. 46 योसेफ़ ने एक कफ़न मोल लिया, मसीह येशु का शव उतारा, उसे कफ़न में लपेटा और चट्टान में खोदी गई एक कन्दरा-क़ब्र में रख कर क़ब्र द्वार पर एक बड़ा पत्थर लुढ़का दिया. 47 मगदालावासी मरियम तथा योसेस की माता मरियम यह देख रही थीं कि मसीह येशु के शव को कहाँ रखा गया था.
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