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Chronological

Read the Bible in the chronological order in which its stories and events occurred.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
लूकॉ 18:15-19:48

मसीह येशु तथा बालक

(मत्ति 19:13-15; मारक 10:13-16)

15 लोग अपने बालकों को मसीह येशु के पास ला रहे थे कि मसीह येशु उन्हें स्पर्श मात्र कर दें. शिष्य यह देख उन्हें डाँटने लगे. 16 मसीह येशु ने बालकों को अपने पास बुलाते हुए कहा, “नन्हे बालकों को मेरे पास आने दो. मत रोको उन्हें! क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है. 17 वास्तव में जो परमेश्वर के राज्य को एक नन्हे बालक के भाव में ग्रहण नहीं करता, उसमें कभी प्रवेश न कर पाएगा.”

अनन्त काल के जीवन का अभिलाषी धनी युवक

(मत्ति 19:16-30; मारक 10:17-31)

18 एक प्रधान ने उनसे प्रश्न किया, “उत्तम गुरु! अनन्त काल के जीवन को पाने के लिए मेरे लिए क्या करना सही होगा?”

19 “तुम मुझे उत्तम कह कर क्यों बुला रहे हो?” मसीह येशु ने कहा. “परमेश्वर के अलावा दूसरा कोई भी उत्तम नहीं. 20 आज्ञा तो तुम्हें मालूम ही हैं: व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने माता-पिता का सम्मान करना.”

21 “इन सबका पालन तो मैं बचपन से करता आ रहा हूँ,” उसने उत्तर दिया.

22 यह सुन मसीह येशु ने उससे कहा, “एक कमी फिर भी है तुममें. अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर निर्धनों में बांट दो. धन तुम्हें स्वर्ग में प्राप्त होगा. तब आ कर मेरे पीछे हो लो.” 23 यह सुन वह प्रधान बहुत दुःखी हो गया क्योंकि वह बहुत धनी था.

24 यह देख मसीह येशु ने कहा, “धनवानों का स्वर्ग-राज्य में प्रवेश कैसा कठिन है! 25 एक धनी के स्वर्ग-राज्य में प्रवेश करने की तुलना में सुई के छेद में से ऊँट का पार हो जाना सरल है.”

26 इस पर सुननेवाले पूछने लगे, “तब किसका उद्धार सम्भव है?” 27 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “जो मनुष्य के लिए असम्भव है, वह परमेश्वर के लिए सम्भव है.”

28 पेतरॉस ने मसीह येशु से कहा, “हम तो अपना घरबार छोड़ कर आपके पीछे चल रहे हैं.”

29 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “सच तो यह है कि ऐसा कोई भी नहीं, जिसने परमेश्वर के राज्य के लिए अपनी घर-गृहस्थी, पत्नी, भाई, बहन, माता-पिता या सन्तान का त्याग किया हो 30 और उसे इस समय में कई गुणा अधिक तथा आगामी युग में अनन्त काल का जीवन प्राप्त न हो.”

दुःखभोग और क्रूस की मृत्यु की तीसरी भविष्यवाणी

(मत्ति 20:17-19; मारक 10:32-34)

31 तब मसीह येशु ने बारहों शिष्यों को अलग ले जा कर उन पर प्रकट किया, “हम येरूशालेम नगर जा रहे हैं. भविष्यद्वक्ताओं द्वारा मनुष्य के पुत्र के विषय में जो भी लिखा गया है, वह पूरा होने पर है, 32 उसे अन्यजातियों को सौंप दिया जाएगा. उसका उपहास किया जाएगा, उसे अपमानित किया जाएगा, उस पर थूका जाएगा. 33 उसे कोड़े लगाने के बाद वे उसे मार डालेंगे और वह तीसरे दिन मरे हुओं में से जीवित हो जाएगा.”

34 शिष्यों को कुछ भी समझ में न आया. उनसे इसका अर्थ छिपाकर रखा गया था. इस विषय में मसीह येशु की कही बातें शिष्यों की समझ से परे थीं.

येरीख़ो नगर में अंधे व्यक्ति

(मत्ति 20:29-34; मारक 10:46-52)

35 जब मसीह येशु यरीख़ो नगर के पास पहुँचे, उन्हें एक अंधा मिला, जो मार्ग के किनारे बैठा हुआ भिक्षा माँग रहा था. 36 भीड़ का शोर सुनकर उसने जानना चाहा कि क्या हो रहा है. 37 उन्होंने उसे बताया, “नाज़रेथ के येशु यहाँ से होकर जा निकल रहें हैं.”

38 वह अंधा पुकार उठा, “येशु! दाविद की सन्तान! मुझ पर दया कीजिए!”

39 उन्होंने, जो आगे-आगे चल रहे थे, उसे डाँटा और उसे शान्त रहने की आज्ञा दी. इस पर वह और भी ऊँचे शब्द में पुकारने लगा, “दाविद के पुत्र! मुझ पर कृपा कीजिए!”

40 मसीह येशु रुक गए और उन्हें आज्ञा दी कि वह व्यक्ति उनके पास लाया जाए. जब वह उनके पास लाया गया, मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, 41 “क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?”

“प्रभु मैं देखना चाहता हूँ!” उसने उत्तर दिया.

42 मसीह येशु ने कहा, “रोशनी प्राप्त करो. तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया है.” 43 तत्काल ही वह देखने लगा. परमेश्वर की वन्दना करते हुए वह मसीह येशु के पीछे चलने लगा. यह देख सारी भीड़ भी परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी.

ज़क्ख़ाइयॉस परिवार में उद्धार का आगमन

19 मसीह येशु ने येरीख़ो नगर में प्रवेश किया. वहाँ ज़क्ख़ाइयॉस नामक एक व्यक्ति था, जो प्रधान चुँगी लेने वाला और धनी व्यक्ति था. वह यह देखने का प्रयत्न कर रहा था कि मसीह येशु कौन हैं. भीड़ में वह मसीह येशु को देख नहीं पा रहा था क्योंकि वह नाटा था. इसलिए मसीह येशु को देखने के लिए वह दौड़ कर आगे बढ़ा और गूलर के एक पेड़ पर चढ़ गया क्योंकि मसीह येशु उसी मार्ग से जाने को थे.

जब मसीह येशु वहाँ पहुँचे, उन्होंने ऊपर देखते हुए उससे कहा, “ज़क्ख़ाइयॉस, तुरन्त नीचे आ जाओ. ज़रूरी है कि आज मैं तुम्हारे घर में ठहरूं.” वह तुरन्त नीचे उतरा और खुशी से उन्हें अपने घर ले गया.

यह देख सभी बड़बड़ाने लगे, “वह तो एक ऐसे व्यक्ति के घर गया है, जो अपराधी है.”

किन्तु ज़क्ख़ाइयॉस ने खड़े हो कर प्रभु से कहा, “प्रभुवर! मैं अपनी आधी सम्पत्ति निर्धनों में दान कर दूँगा और यदि मैंने किसी से गलत ढंग से कुछ भी लिया है तो मैं उसे चौगुनी राशि लौटा दूँगा.”

मसीह येशु ने उससे कहा, “आज इस परिवार में उद्धार का आगमन हुआ है—यह व्यक्ति भी अब्राहाम की सन्तान है. 10 मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को खोजने तथा उन्हें उद्धार देने आया है.”

दस सेवक तथा सराहनीय निवेश का दृष्टान्त

11 जब वे इन बातों को सुन रहे थे, मसीह येशु ने एक दृष्टान्त प्रस्तुत किया क्योंकि अब वे येरूशालेम नगर के पास पहुँच रहे थे और लोगों की आशा थी कि परमेश्वर का राज्य तुरन्त ही प्रकट होने पर है. 12 मसीह येशु ने कहना प्रारम्भ किया: “एक कुलीन व्यक्ति राजपद प्राप्त करने के लिए दूर देश की यात्रा पर निकला. 13 यात्रा के पहले उसने अपने दस दासों को बुला कर उन्हें दस सोने के सिक्के देते हुए कहा, ‘मेरे लौटने तक इस राशि से व्यापार करना.’”

14 “लोग उससे घृणा करते थे इसलिए उन्होंने उसके पीछे एक सेवकों की टुकड़ी को इस सन्देश के साथ भेजा, ‘हम नहीं चाहते कि यह व्यक्ति हम पर शासन करे.’”

15 “इस पर भी उसे राजा बना दिया गया. लौटने पर उसने उन दासों को बुलवाया कि वह यह मालूम करे कि उन्होंने उस राशि से व्यापार कर कितना लाभ कमाया है.

16 “पहिले दास ने आ कर बताया, ‘स्वामी, आपके द्वारा दिए गए सोने के सिक्कों से मैंने दस सिक्के और कमाए हैं.’”

17 “‘बहुत बढ़िया, मेरे योग्य दास!’ स्वामी ने उत्तर दिया, ‘इसलिए कि तुम बहुत छोटी ज़िम्मेदारी में भी विश्वासयोग्य पाए गए, तुम दस नगरों की ज़िम्मेदारी सम्भालो.’

18 “दूसरे दास ने आ कर बताया, ‘स्वामी, आपके द्वारा दिए गए सोने के सिक्कों से मैंने पाँच सोने के सिक्के और कमाए हैं.’

19 “स्वामी ने उत्तर दिया, ‘तुम पाँच नगरों की ज़िम्मेदारी सम्भालो.’”

20 “तब एक अन्य दास आया और स्वामी से कहने लगा, ‘स्वामी, यह है आपका दिया हुआ सोने का सिक्का, जिसे मैंने बड़ी ही सावधानी से कपड़े में लपेट, सम्भाल कर रखा है. 21 मुझे आप से भय था क्योंकि आप कठोर व्यक्ति हैं. आपने जिसका निवेश भी नहीं किया, वह आप ले लेते हैं, जो आपने बोया ही नहीं, उसे काटते हैं.’”

22 “स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘अरे ओ दुष्ट! तेरा न्याय तो मैं तेरे ही शब्दों के आधार पर करूँगा. जब तू जानता है कि मैं एक कठोर व्यक्ति हूँ; मैं वह ले लेता हूँ जिसका मैंने निवेश ही नहीं किया और वह काटता हूँ, जो मैंने बोया ही नहीं, तो 23 तूने मेरा धन साहूकारों के पास जमा क्यों नहीं कर दिया कि मैं लौटने पर उसे ब्याज सहित प्राप्त कर सकता?’”

24 “तब उसने अपने पास खड़े दासों को आज्ञा दी, ‘इसकी स्वर्ण मुद्रा ले कर उसे दे दो, जिसके पास अब दस मुद्राएं हैं.’”

25 “उन्होंने आपत्ति करते हुए कहा, ‘स्वामी, उसके पास तो पहले ही दस हैं!’” 26 “स्वामी ने उत्तर दिया, ‘सच्चाई यह है: हर एक, जिसके पास है, उसे और भी दिया जाएगा किन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है. 27 मेरे इन शत्रुओं को, जिन्हें मेरा उन पर शासन करना अच्छा नहीं लग रहा, यहाँ मेरे सामने ला कर प्राणदण्ड दो.’”

विजयोल्लास में येरूशालेम प्रवेश

(मत्ति 21:1-11; मारक 11:1-11; योहन 12:12-19)

28 इसके बाद मसीह येशु उनके आगे-आगे चलते हुए येरूशालेम नगर की ओर बढ़ गए. 29 जब मसीह येशु ज़ैतून नामक पर्वत पर बसे गाँव बैथफ़गे तथा बैथनियाह पहुँचे, उन्होंने अपने दो शिष्यों को इस आज्ञा के साथ आगे भेज दिया, 30 “सामने उस गाँव में जाओ. वहाँ प्रवेश करते ही तुम्हें गधे का एक बच्चा बंधा हुआ मिलेगा, जिसकी अब तक किसी ने सवारी नहीं की है उसे खोल कर यहाँ ले आओ. 31 यदि कोई तुमसे यह प्रश्न करे, ‘क्यों खोल रहे हो इसे?’ तो उसे उत्तर देना, ‘प्रभु को इसकी ज़रूरत है.’”

32 जिन्हें इसके लिए भेजा गया था, उन्होंने ठीक वैसा ही पाया, जैसा उन्हें सूचित किया गया था. 33 जब वे उस बच्चे को खोल ही रहे थे, उसके स्वामियों ने उनसे पूछा, “क्यों खोल रहे हो इसे?”

34 उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु को इसकी ज़रूरत है.”

35 वे उसे प्रभु के पास ले आए और उस पर अपने वस्त्र डाल कर मसीह येशु को उस पर बैठा दिया. 36 जब प्रभु जा रहे थे, लोगों ने अपने बाहरी वस्त्र मार्ग पर बिछा दिए.

37 जब वे उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ ज़ैतून पर्वत का ढाल प्रारम्भ होता है, सारी भीड़ उन सभी अद्भुत कामों को याद करते हुए, जो उन्होंने देखे थे, ऊँचे शब्द में आनन्दपूर्वक परमेश्वर की स्तुति करने लगी:

38 “स्तुति के योग्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम में आ रहा है!
स्वर्ग में शान्ति और सर्वोच्च में महिमा हो!”

39 भीड़ में से कुछ फ़रीसियों ने, आपत्ति उठाते हुए मसीह येशु से कहा, “गुरु, अपने शिष्यों को डांटिए!”

40 “मैं आपको यह बताना चाहता हूँ,” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यदि ये शान्त हो गए तो स्तुति इन पत्थरों से निकलने लगेगी.”

41 जब वह येरूशालेम नगर के पास आए तो नगर को देख वह यह कहते हुए रो पड़े, 42 “यदि तुम, हाँ तुम, आज इतना ही समझ लेते कि शान्ति का मतलब क्या है! किन्तु यह तुमसे छिपाकर रखा गया है. 43 वे दिन आ रहे हैं जब शत्रु सेना तुम्हारे चारों ओर घेराबन्दी करके तुम्हारे निकलने का रास्ता बन्द कर देगी. 44 वे तुम्हें तथा तुम्हारी सन्तानों को धूल में मिला देंगे. वे तुम्हारे घरों का एक भी पत्थर दूसरे पत्थर पर न छोड़ेंगे क्योंकि तुमने तुम्हें दिए गए सुअवसर को नहीं पहचाना.”

दूसरी बार मसीह येशु द्वारा मन्दिर की शुद्धि

(मत्ति 21:12-17; मारक 11:15-19)

45 मन्दिर में प्रवेश करने पर मसीह येशु ने सभी विक्रेताओं को यह कहते हुए वहाँ से बाहर करना प्रारम्भ कर दिया, 46 “लिखा है: मेरा घर प्रार्थना का घर होगा किन्तु तुमने तो इसे डाकुओं की गुफ़ा बना रखी है!”

47 मसीह येशु हर रोज़ मन्दिर में शिक्षा दिया करते थे. प्रधान याजक, शास्त्री तथा जनसाधारण में से प्रधान नागरिक उनकी हत्या की योजना कर रहे थे, 48 किन्तु उनकी कोई भी योजना सफल नहीं हो रही थी क्योंकि लोग मसीह येशु के प्रवचनों से अत्यन्त प्रभावित थे.

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