Print Page Options
Previous Prev Day Next DayNext

Chronological

Read the Bible in the chronological order in which its stories and events occurred.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
इब्री 7-10

याजक मेलख़ीत्सेदेक

परमप्रधान परमेश्वर के पुरोहित शालेम नगर के राजा मेलख़ीत्सेदेक ने अब्राहाम से उस समय भेंट की और उन्हें आशीष दी, जब अब्राहाम राजाओं को हरा कर के लौट रहे थे. उन्हें अब्राहाम ने युद्ध में प्राप्त हुई सामग्री का दसवां अंश भेंट किया. मेलख़ीत्सेदेक नाम का प्राथमिक अर्थ है धार्मिकता के राजा तथा दूसरा अर्थ होगा शान्ति के राजा क्योंकि वह शालेम नगर के राजा थे. किसी को भी मेलख़ीत्सेदेक की वंशावली के विषय में कुछ भी मालूम नहीं है जिसका न पिता न माता न वंशावली है, जिसके न दिनों का आदि है और न जीवन का अंत है, परमेश्वर के पुत्र के समान वह अनन्त काल के पुरोहित हैं.

अब विचार करो कि कैसे महान थे यह व्यक्ति, जिन्हें हमारे कुलपिता अब्राहाम ने युद्ध में प्राप्त हुई वस्तुओं का सबसे अच्छा दसवां अंश भेंट किया! मोशेह के द्वारा प्रस्तुत व्यवस्था में लेवी के वंशजों के लिए, जो याजक के पद पर चुने गए हैं, यह आज्ञा है कि वे सब लोगों से दसवां अंश इकट्ठा करें अर्थात् उनसे, जो उनके भाई हैं—अब्राहाम की सन्तान. किन्तु उन्होंने, जिनकी वंशावली किसी को मालूम नहीं, अब्राहाम से दसवां अंश प्राप्त किया तथा उनको आशीष दी, जिनसे प्रतिज्ञाएँ की गईं थीं. यह एक विवाद रहित सच है कि छोटा बड़े से आशीर्वाद प्राप्त करता है. इस विशेष स्थिति में नाशमान मनुष्य दसवां अंश प्राप्त करते हैं किन्तु यहाँ इसको पानेवाले मेलख़ीत्सेदेक के विषय में यह कहा गया है कि वह जीवित हैं. इसलिए यह कहा जा सकता है कि लेवी ने भी, जो दसवां अंश प्राप्त करता है, उस समय दसवां अंश दिया, जब अब्राहाम ने मेलख़ीत्सेदेक को दसवां अंश भेंट किया. 10 जब मेलख़ीत्सेदेक ने अब्राहाम से भेंट की, उस समय तो लेवी का जन्म भी नहीं हुआ था—वह अपने पूर्वज के शरीर में ही थे.

नई याजकता पहिली याजकता से उत्तम

11 अब यदि सिद्धि लैव्य याजकता के माध्यम से प्राप्त हुई—क्योंकि इसी के आधार पर लोगों ने व्यवस्था प्राप्त की थी—तब एक ऐसे याजक की क्या ज़रूरत थी, जिसका आगमन मेलख़ीत्सेदेक की श्रृंखला में हो, न कि हारोन की श्रृंखला में? 12 क्योंकि जब कभी याजक पद बदला जाता है, व्यवस्था में बदलाव भी आवश्यक हो जाता है. 13 यह सब हम उनके विषय में कह रहे हैं, जो एक दूसरे गोत्र के थे. उस गोत्र के किसी भी व्यक्ति ने वेदी पर याजक के रूप में सेवा नहीं की. 14 यह तो प्रकट है कि हमारे प्रभु यहूदाह गोत्र से थे. मोशेह ने इस कुल से याजकों के होने का कहीं कोई वर्णन नहीं किया.

15 मेलख़ीत्सेदेक के समान एक अन्य याजक के आगमन से यह और भी अधिक साफ़ हो जाता है. 16 मेलख़ीत्सेदेक शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति की व्यवस्था के आधार पर नहीं परन्तु एक अविनाशी जीवन की सामर्थ के आधार पर पुरोहित बने थे 17 क्योंकि इस विषय में मसीह येशु से सम्बन्धित यह पुष्टि की गई:

“तुम मेलख़ीत्सेदेक की श्रृंखला में,
    एक अनन्त काल के याजक हो.”

18 एक ओर पहिली आज्ञा का बहिष्कार उसकी दुर्बलता तथा निष्फलता के कारण कर दिया गया. 19 क्योंकि व्यवस्था सिद्धता की स्थिति लाने में असफल रहीं—दूसरी ओर अब एक उत्तम आशा का उदय हो रहा है, जिसके द्वारा हम परमेश्वर की उपस्थिति में पहुँचते हैं.

मसीह का याजक पद न बदलनेवाला और त्रुटिहीन

20 यह सब शपथ लिए बिना नहीं हुआ. वास्तव में पुरोहितों की नियुक्ति बिना किसी शपथ के होती थी 21 किन्तु मसीह की नियुक्ति उनकी शपथ के द्वारा हुई, जिन्होंने उनके विषय में कहा:

“प्रभु ने शपथ ली है और
    वह अपना विचार परिवर्तित नहीं करेंगे:
    ‘तुम अनन्त काल के याजक हो.’”

22 इसका मतलब यह हुआ कि मसीह येशु एक उत्तम वाचा के जामिन बन गए हैं.

23 एक पूर्व में पुरोहितों की संख्या ज़्यादा होती थी क्योंकि हर एक याजक की मृत्यु के साथ उसकी सेवा समाप्त हो जाती थी 24 किन्तु दूसरी ओर मसीह येशु, इसलिए कि वह अनन्त काल के हैं, अपने पद पर स्थायी हैं. 25 इसलिए वह उनके उद्धार के लिए सामर्थी हैं, जो उनके माध्यम से परमेश्वर के पास आते हैं क्योंकि वह अपने विनती करने वालों के पक्ष में पिता के सामने निवेदन प्रस्तुत करने के लिए सदा-सर्वदा जीवित हैं.

26 हमारे पक्ष में सही यह था कि हमारे महायाजक पवित्र, निर्दोष, त्रुटिहीन, पापियों से अलग किए हुए तथा स्वर्ग से भी अधिक ऊँचे हों. 27 इन्हें प्रतिदिन, पहिले तो स्वयं के पापों के लिए, इसके बाद लोगों के पापों के लिए बलि भेंट करने की ज़रूरत ही नहीं थी क्योंकि इसकी पूर्ति उन्होंने एक ही बार अपने आप को बलि के रूप में भेंटकर हमेशा के लिए कर दी. 28 व्यवस्था, महायाजकों के रूप में मनुष्यों को चुनता है, जो मानवीय दुर्बलताओं में सीमित होते हैं किन्तु शपथ के वचन ने, जो व्यवस्था के बाद प्रभावी हुई, एक पुत्र को चुना, जिन्हें अनन्त काल के लिए सिद्ध बना दिया गया.

याजक मसीह द्वारा आराधना

बड़ी सच्चाई यह है: हमारे महायाजक वह हैं, जो स्वर्ग में महामहिम के दायें पक्ष में बैठे हैं, जो वास्तविक मन्दिर में सेवारत हैं, जिसका निर्माण किसी मानव ने नहीं, स्वयं प्रभु ने किया है.

हर एक महायाजक का चुनाव भेंट तथा बलि-अर्पण के लिए किया जाता है. इसलिए आवश्यक हो गया कि इस महायाजक के पास भी अर्पण के लिए कुछ हो. यदि मसीह येशु पृथ्वी पर होते, वह याजक हो ही नहीं सकते थे क्योंकि यहाँ व्यवस्था के अनुसार भेंट चढ़ाने के लिए याजक हैं. ये वे याजक हैं, जो स्वर्गीय वस्तुओं के प्रतिरूप तथा प्रतिबिम्ब मात्र की आराधना करते हैं, क्योंकि मोशेह को, जब वह तम्बू का निर्माण करने पर थे, परमेश्वर के द्वारा यह चेतावनी दी गई थी: यह ध्यान रखना कि तुम तम्बू का निर्माण ठीक-ठीक वैसा ही करो, जैसा तुम्हें पर्वत पर दिखाया गया था, किन्तु अब मसीह येशु ने अन्य याजकों की तुलना में कहीं अधिक अच्छी सेवकाई प्राप्त कर ली है: अब वह एक उत्तम वाचा के मध्यस्थ भी हैं, जिसका आदेश उत्तम प्रतिज्ञाओं पर हुआ है.

यदि वह पहिली वाचा निर्दोष होती तो दूसरी की ज़रूरत ही न होती. स्वयं परमेश्वर ने उस पीढ़ी को दोषी पाकर यह कहा:

“वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस्राएल
    और यहूदाह के गोत्रों के साथ
एक नई वाचा बांधूंगा;
    यह प्रभु का कथन है.
वैसी नहीं, जैसी मैंने उनके पूर्वजों से उस समय की थी,
    जब मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें मिस्र देश से बाहर निकाला था,
क्योंकि वे मेरी वाचा में स्थिर नहीं रहे,
    इसलिए मैं उनसे दूर हो गया,
            यह प्रभु का कहना है.
10 उन दिनों के बाद, इस्राएल के वंश के साथ
    जो वाचा मैं स्थापित करूँगा, वह यह है,
यह प्रभु का कहना है.
    मैं उनके मस्तिष्क में अपनी व्यवस्था भर दूँगा,
इसे मैं उनके हृदय पर लिख दूँगा.
    मैं उनका परमेश्वर होऊँगा और वे सब मेरी प्रजा.
11 वे अपने नागरिकों को शिक्षा नहीं देंगे
    और न अपने भाइयों से कहेंगे,
‘प्रभु को जानो,’ क्योंकि छोटे से लेकर बड़े
    तक सभी मुझे जानेंगे.
12 उनके अपराधों के प्रति मैं दया से भरा रहूँगा तथा
    मैं उनके पाप कभी भी याद न करूँगा.”

13 जब परमेश्वर एक नई वाचा का वर्णन कर रहे थे, तब उन्होंने पहिले को अनुपयोगी घोषित कर दिया. जो कुछ अनुपयोगी तथा जीर्ण हो रहा है, वह नष्ट होने पर है.

पूर्वकालिक और वर्तमान

पहिली वाचा में भी परमेश्वर की आराधना तथा सांसारिक मन्दिर के विषय में नियम थे, क्योंकि एक तम्बू बनाया गया था, जिसके बाहरी कमरे में दीपस्तम्भ, चौकी तथा पवित्र रोटी रखी जाती थी. यह तम्बू पवित्र स्थान कहलाता था. दूसरे पर्दे से आगे जो तम्बू था, वह अति पवित्र स्थान कहलाता था. वहाँ धूप के लिए सोने की वेदी, सोने की पत्रियों से मढ़ी हुई वाचा का सन्दूक, जिसमें मन्ना से भरा सोने का बर्तन, हमेशा कोमल पत्ते लगते रहने वाली हारोन की लाठी तथा वाचा की पटियां रखे हुए थे. इसके अलावा संदूक के ऊपर तेजोमय करूब करुणा आसन को ढांपे हुए थे. परन्तु अब इन सब का विस्तार से वर्णन सम्भव नहीं.

इन सब के ऐसे प्रबन्ध के बाद परमेश्वर की आराधना के लिए याजक हर समय बाहरी तम्बू में प्रवेश किया करते थे. किन्तु दूसरे कमरे में मात्र महायाजक ही लहू लेकर प्रवेश करता था और वह भी वर्ष में सिर्फ एक ही अवसर पर—स्वयं अपने लिए तथा लोगों द्वारा अनजाने में किए गए पापों के लिए—बलि-अर्पण के लिए. पवित्रात्मा यह बात स्पष्ट कर रहे हैं कि जब तक बाहरी कमरा है, अति पवित्र स्थान में प्रवेश-मार्ग खुला नहीं है. यह बाहरी तम्बू वर्तमान काल का प्रतीक है. सच यह है कि भेंटें तथा बलि, जो याजक के द्वारा चढ़ाई जाती हैं, आराधना करनेवालों के विवेक को निर्दोष नहीं बना देतीं. 10 ये सुधार के समय तक ही असरदार रहेंगी क्योंकि इनका सम्बन्ध सिर्फ खान-पान तथा भिन्न-भिन्न शुद्ध करने की विधियों से है—उन विधियों से, जो शरीर से सम्बन्धित हैं.

मसीह का लहू

11 किन्तु जब मसीह आने वाली अच्छी वस्तुओं के महायाजक के रूप में प्रकट हुए, उन्होंने उत्तम और सिद्ध तम्बू में से, जो मनुष्य के हाथ से नहीं बना अर्थात् इस सृष्टि का नहीं था, 12 बकरों और बछड़ों के नहीं परन्तु स्वयं अपने लहू के द्वारा अति पवित्र स्थान में सिर्फ एक ही प्रवेश में अनन्त छुटकारा प्राप्त किया, 13 क्योंकि यदि बकरों और बैलों का लहू तथा कलोर की राख का छिड़काव सांस्कारिक रूप से अशुद्ध हुए मनुष्यों के शरीर को शुद्ध कर सकता था 14 तो मसीह का लहू, जिन्होंने अनन्त आत्मा के माध्यम से स्वयं को परमेश्वर के सामने निर्दोष बलि के रूप में भेंट कर दिया, जीवित परमेश्वर की सेवा के लिए तुम्हारे विवेक को मरे हुए कामों से शुद्ध कैसे न करेगा?

15 इसलिए वह एक नई वाचा के मध्यस्थ हैं कि वे सब, जिनको बुलाया गया है, प्रतिज्ञा किया हुआ अनन्त उत्तराधिकार प्राप्त कर सकें क्योंकि इस मृत्यु के द्वारा उन अपराधों का छुटकारा पूरा हो चुका है, जो उस समय किए गए थे, जब पहिली वाचा प्रभावी थी.

16 जहाँ वाचा है, वहाँ ज़रूरी है कि वाचा बाँधनेवाले की मृत्यु हो 17 क्योंकि वाचा उसके बांधनेवाले की मृत्यु के साबित होने पर ही जायज़ होती है. जब तक वह जीवित रहता है, वाचा प्रभावी हो ही नहीं सकती. 18 यही कारण है कि पहिली वाचा भी बिना लहू के प्रभावी नहीं हुई थी. 19 जब मोशेह अपने मुख से व्यवस्था के अनुसार इस्राएल को सारी आज्ञा दे चुके, उन्होंने बछड़ों और बकरों का लहू लेकर जल, लाल ऊन तथा जूफ़ा झाड़ी की छड़ी के द्वारा व्यवस्था की पुस्तक तथा इस्राएली प्रजा दोनों ही पर यह कहते हुए छिड़क दिया: 20 परमेश्वर ने तुम्हें जिस वाचा के पालन की आज्ञा दी है, यह उसी का लहू है. 21 इसी प्रकार उन्होंने तम्बू और सेवा के लिए इस्तेमाल किए सभी पात्रों पर भी लहू छिड़क दिया. 22 वस्तुत: व्यवस्था के अन्तर्गत प्रायः हर एक वस्तु लहू के छिड़काव द्वारा पवित्र की गई. बलि-लहू के बिना पाप-क्षमा सम्भव नहीं.

23 इसलिए यह ज़रूरी था कि स्वर्गीय वस्तुओं का प्रतिरूप इन्हीं के द्वारा शुद्ध किया जाए किन्तु स्वयं स्वर्गीय वस्तुएं इनकी तुलना में उत्तम बलियों द्वारा. 24 मसीह ने जिस पवित्र स्थान में प्रवेश किया, वह मनुष्य के हाथों से बना नहीं था, जो वास्तविक का प्रतिरूप मात्र हो, परन्तु स्वर्ग ही में, कि अब हमारे लिए परमेश्वर की उपस्थिति में प्रकट हों. 25 स्थिति ऐसी भी नहीं कि वह स्वयं को बलि स्वरूप बार-बार भेंट करेंगे, जैसे महापुरोहित अति पवित्र स्थान में वर्ष-प्रतिवर्ष उस बलि-लहू को लेकर प्रवेश किया करता था, जो उसका अपना लहू नहीं होता था, 26 अन्यथा मसीह को सृष्टि के प्रारम्भ से दुःख सहना आवश्यक हो जाता किन्तु अब युगों की समाप्ति पर वह मात्र एक ही बार स्वयं अपनी ही बलि के द्वारा पाप को मिटा देने के लिए प्रकट हो गए. 27 जिस प्रकार हर एक मनुष्य के लिए यह निर्धारित है कि एक बार उसकी मृत्यु हो इसके बाद न्याय, 28 उसी प्रकार मसीह येशु अनेकों के पापों के उठाने के लिए एक ही बार स्वयं को भेंट करने के बाद अब दोबारा प्रकट होंगे—पाप के उठाने के लिए नहीं परन्तु उनकी छुड़ौती के लिए जो उनके इंतज़ार में हैं.

मसीह की बलि—एक पर्याप्त बलि

10 व्यवस्था में आनेवाली उत्तम वस्तुओं की छाया मात्र है न कि उनका असली रूप; इसलिए वर्ष-प्रतिवर्ष, निरन्तर रूप से बलिदान के द्वारा यह आराधकों को सिद्ध कभी नहीं बना सकता—नहीं तो बलियों का भेंट किया जाना समाप्त न हो जाता? क्योंकि एक बार शुद्ध हो जाने के बाद आराधकों में पाप का अहसास ही न रह जाता वस्तुत: इन बलियों के द्वारा वर्ष-प्रतिवर्ष पाप को याद किया जाता है, क्योंकि यह असम्भव है कि बैलों और बकरों का बलि-लहू पापों को हर ले. इसलिए जब वह संसार में आए, उन्होंने कहा:

“बलि और भेंट की आपने इच्छा नहीं की,
    परन्तु एक शरीर की, जो आपने मेरे लिए तैयार की है.
आप हवन बलि और पाप के लिए भेंट की गई बलियों से
    संतुष्ट नहीं हुए.
तब मैंने कहा, ‘प्रभु परमेश्वर, मैं आ गया हूँ कि आपकी इच्छा पूरी करूँ.
    पवित्रशास्त्र में यह मेरा ही वर्णन है.’”

उपरोक्त कथन के बाद उन्होंने पहले कहा: बलि तथा भेंटें, हवन-बलियों तथा पापबलियों की आपने इच्छा नहीं की और न आप उनसे संतुष्ट हुए. ये व्यवस्था के अनुसार ही भेंट किए जाते हैं. तब उन्होंने कहा: लीजिए, मैं आ गया हूँ कि आपकी इच्छा पूरी करूँ. इस प्रकार वह पहिले को अस्वीकार कर द्वितीय को नियुक्त करते हैं. 10 इसी इच्छा के प्रभाव से हम मसीह येशु की देह-बलि के द्वारा उनके लिए अनन्त काल के लिए पाप से अलग कर दिए गए.

मसीह की बलि की क्षमता

11 हर एक याजक एक ही प्रकार की बलि दिन-प्रतिदिन भेंट किया करता है, जो पाप को हर ही नहीं सकती 12 किन्तु जब मसीह येशु पापों के लिए एक ही बार सदा-सर्वदा के लिए मात्र एक बलि भेंट कर चुके, वह परमेश्वर के दायें पक्ष में बैठ गए. 13 तब वहाँ वह उस समय की प्रतीक्षा करने लगे कि कब उनके शत्रु उनके अधीन बना दिए जाएँगे 14 क्योंकि एक ही बलि के द्वारा उन्होंने उन्हें सर्वदा के लिए सिद्ध बना दिया, जो उनके लिए अलग किए गए हैं.

15 पवित्रात्मा भी, जब वह यह कह चुके, यह गवाही देते हैं:

16 मैं उनके साथ यह वाचा बांधूंगा—यह प्रभु का कथन है—उन दिनों के बाद
    मैं अपना नियम उनके हृदय में लिखूँगा
    और उनके मस्तिष्क पर अंकित कर दूँगा.

17 वह आगे कहते हैं:

उनके पाप और उनके अधर्म के कामों को
    मैं इसके बाद याद न रखूंगा.

18 जहाँ इन विषयों के लिए पाप की क्षमा है, वहाँ पाप के लिए किसी भी बलि की ज़रूरत नहीं रह जाती.

निरन्तर प्रयास की बुलाहट

19-21 इसलिए, प्रियजन, कि परमेश्वर के परिवार में हमारे लिए एक सबसे उत्तम याजक निर्धारित हैं तथा इसलिए कि मसीह येशु के लहू के द्वारा एक नए तथा जीवित मार्ग से, जिसे उन्होंने उस पर्दे—अपने शरीर—में से हमारे लिए अभिषेक किया है, हमें अति पवित्र स्थान में जाने के लिए साहस प्राप्त हुआ है, 22 हम अपने अशुद्ध विवेक से शुद्ध होने के लिए अपने हृदय को सींच कर, निर्मल जल से अपने शरीर को शुद्ध कर, विश्वास के पूरे आश्वासन के साथ, निष्कपट हृदय से परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करें. 23 अब हम बिना किसी शक के अपनी उस आशा में अटल रहें, जिसे हमने स्वीकार किया है क्योंकि जिन्होंने प्रतिज्ञा की है, वह विश्वासयोग्य हैं. 24 हम यह भी विशेष ध्यान रखें कि हम आपस में प्रेम और भले कामों में एक दूसरे को किस प्रकार प्रेरित करें 25 तथा हम आराधना सभाओं में लगातार इकट्ठा होने में सुस्त न हो जाएँ, जैसे कि कुछ हो ही चुके हैं. एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो और इस विषय में और भी अधिक नियमित हो जाओ, जैसा कि तुम देख ही रहे हो कि वह दिन पास आता जा रहा है.

विश्वास की शिक्षा को त्यागने के दुष्परिणाम

26 यदि सत्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद भी हम जानबूझकर पाप करते जाएँ तो पाप के लिए कोई भी बलि बाकी नहीं रह जाती; 27 सिवाय न्याय-दण्ड की भयावह प्रतीक्षा तथा आग के क्रोध के, जो सभी विरोधियों को चट कर जाएगा.

28 जो कोई मोशेह की व्यवस्था की अवहेलना करता है, उसे दो या तीन प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के आधार पर, बिना किसी कृपा के, मृत्युदण्ड दे दिया जाता है. 29 उस व्यक्ति के दण्ड की कठोरता के विषय में विचार करो, जिसने परमेश्वर के पुत्र को अपने पैरों से रौंदा तथा वाचा के लहू को अशुद्ध किया, जिसके द्वारा वह स्वयं अलग किया गया था तथा जिसने अनुग्रह के आत्मा का अपमान किया. 30 हम तो उन्हें जानते हैं, जिन्होंने यह धीरज दिया: बदला मैं लूँगा, यह ज़िम्मेदारी मेरी ही है तब यह भी: प्रभु ही अपनी प्रजा का न्याय करेंगे. 31 भयानक होती है जीवित परमेश्वर के हाथों में पड़ने की स्थिति!

लगातार प्रयास करने के उद्देश्य

32 उन प्रारम्भिक दिनों की स्थिति को याद न करो जब ज्ञानप्राप्त करने के बाद तुम कष्टों की स्थिति में संघर्ष करते रहे 33 कुछ तो सार्वजनिक रूप से उपहास पात्र बनाए जाकर निन्दा तथा कष्टों के द्वारा और कुछ इसी प्रकार के व्यवहार को सह रहे अन्य विश्वासियों का साथ देने के कारण. 34 तुमने उन पर सहानुभूति व्यक्त की, जो बन्दी बनाए गए थे तथा तुमने सम्पत्ति के छिन जाने को भी इसलिए सहर्ष स्वीकार कर लिया कि तुम्हें यह मालूम था कि निश्चित ही उत्तम और स्थायी है तुम्हारी सम्पदा.

35 इसलिए अपने दृढ़ विश्वास से दूर न हो जाओ जिसका प्रतिफल बड़ा है. 36 इस समय ज़रूरत है धीरज की कि जब तुम परमेश्वर की इच्छा पूरी कर चुको, तुम्हें वह प्राप्त हो जाए जिसकी प्रतिज्ञा की गई थी: 37 क्योंकि जल्द ही वह,

जो आनेवाला है, आ जाएगा. वह देर नहीं करेगा;
38     किन्तु जीवित वही रहेगा,
जिसने अपने विश्वास के द्वारा धार्मिकता प्राप्त की है
    किन्तु यदि वह भयभीत हो पीछे हट जाए
    तो उसमें मेरी प्रसन्नता न रह जाएगी.

39 हम उनमें से नहीं हैं, जो पीछे हट कर नाश हो जाते हैं परन्तु हम उनमें से हैं, जिनमें वह आत्मा का रक्षक विश्वास छिपा है.

Saral Hindi Bible (SHB)

New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.