Book of Common Prayer
मसीह के प्रेरित
4 सही तो यह होगा कि हमें मसीह येशु का भण्ड़ारी मात्र समझा जाए, जिन्हें परमेश्वर के भेदों की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. 2 भण्ड़ारी को विश्वासयोग्य होना ज़रूरी है. 3 यह मेरी दृष्टि में महत्वहीन है कि मेरी परख तुम्हारे द्वारा की जाए या किसी न्यायालय द्वारा. बल्कि मैं स्वयं अपनी परख नहीं करता. 4 मेरी अन्तरात्मा मुझ में कोई दोष नहीं पाती फिर भी इससे मैं निर्दोष साबित नहीं हो जाता. प्रभु ही हैं, जो मेरी परख करते हैं. 5 इसलिए समय से पहले अर्थात् प्रभु के आगमन तक कोई किसी की परख न करे. प्रभु ही अन्धकार में छिपे सच प्रकाशित करेंगे तथा वही मनुष्य के हृदय के उद्धेश्य भी प्रकट करेंगे. तब परमेश्वर की ओर से हर एक व्यक्ति को प्रशंसा प्राप्त होगी.
6 प्रियजन, मैंने तुम्हारे ही हित में अपना तथा अपोल्लॉस का उदाहरण प्रस्तुत किया है कि इसके द्वारा तुम इस बात से सम्बन्धित शिक्षा ले सको: पवित्र अभिलेख की मर्यादा का उल्लंघन न करना कि तुम एक का पक्ष ले दूसरे का तिरस्कार न करने लगो. 7 कौन कहता है कि तुम अन्यों से श्रेष्ठ हो? क्या है तुम्हारे पास, जो तुम्हें किसी के द्वारा दिया नहीं गया? जब यह तुम्हें किसी के द्वारा ही दिया गया है तो तुम घमण्ड़ ऐसे क्यों भरते हो मानो यह तुम्हें किसी के द्वारा नहीं दिया गया? 8 तुम तो यह सोच कर ही सन्तुष्ट हो गए कि तुम्हारी सारी ज़रूरतों की पूर्ति हो चुकी—तुम सम्पन्न हो गए हो, हमारे सहयोग के बिना ही तुम राजा बन गए हो! उत्तम तो यही होता कि तुम वास्तव में राजा बन जाते और हम भी तुम्हारे साथ शासन करते. 9 मुझे ऐसा लग रहा है कि परमेश्वर ने हम प्रेरितों को विजय-यात्रा में मृत्युदण्ड प्राप्त व्यक्तियों के समान सबसे अन्तिम स्थान पर रखा है. हम सारी सृष्टि, स्वर्गदूतों तथा मनुष्यों के सामने तमाशा बन गए हैं. 10 हम मसीह के लिए मूर्ख हैं, किन्तु तुम मसीह में एक होकर बुद्धिमान हो! हम दुर्बल हैं और तुम बलवान! तुम आदर पाते हो और हम तिरस्कार! 11 इस समय भी हम भूखे-प्यासे और अपर्याप्त वस्त्रों में हैं, सताए जाते तथा मारे-मारे फिरते हैं. 12 हम मेहनत करते हैं तथा अपने हाथों से काम करते हैं. जब हमारी बुराई की जाती है, हम आशीर्वाद देते हैं. हम सताए जाते हैं किन्तु धीरज से सहते हैं. 13 जब हमारी निन्दा की जाती है तो हम विनम्रता से उत्तर देते हैं. हम तो मानो इस संसार का मैल तथा सबके लिए कूड़ा-कर्कट बन गए हैं.
एक विनती
14 यह सब मैं तुम्हें लज्जित करने के उद्धेश्य से नहीं लिख रहा परन्तु अपनी प्रिय सन्तान के रूप में तुम्हें सावधान कर रहा हूँ. 15 मसीह में तुम्हारे दस हज़ार शिक्षक तो हो सकते हैं किन्तु इतने पिता नहीं. मसीह में ईश्वरीय सुसमाचार के कारण मैं तुम्हारा पिता बन गया हूँ. 16 मेरी तुमसे विनती है कि तुम मेरे जैसी चाल चलो.
पहिले शिष्य
35 अगले दिन जब योहन अपने दो शिष्यों के साथ खड़े हुए थे, 36 उन्होंने मसीह येशु को जाते हुए देख कर कहा, “वह देखो! परमेश्वर का मेमना!”
37 यह सुनकर दोनों शिष्य मसीह येशु की ओर बढ़ने लगे. 38 मसीह येशु ने उन्हें अपने पीछे आते देख उनसे पूछा, “तुम क्या चाहते हो?” उन्होंने कहा, “गुरुवर, आप कहाँ रहते हैं?”
39 मसीह येशु ने उनसे कहा, “आओ और देख लो.”
इसलिए उन्होंने जा कर मसीह येशु का घर देखा और उस दिन उन्हीं के साथ रहे. यह दिन का लगभग दसवां घण्टा था. 40 योहन की गवाही सुन कर मसीह येशु के पीछे आ रहे दो शिष्यों में एक शिमोन पेतरॉस के भाई आन्द्रेयास थे. 41 उन्होंने सबसे पहले अपने भाई शिमोन को खोजा और उन्हें सूचित किया, “हमें मसीह—परमेश्वर के अभिषिक्त—मिल गए हैं.” 42 तब आन्द्रेयास उन्हें मसीह येशु के पास लाए.
मसीह येशु ने शिमोन की ओर देख कर कहा, “तुम योहन के पुत्र शिमोन हो, तुम कैफ़स अर्थात् पेतरॉस कहलाओगे.”
New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.