Book of Common Prayer
पृथ्वी पर उपज तथा दाख इकट्ठा करना
14 इसके बाद मैंने एक उज्ज्वल बादल देखा. उस पर मनुष्य के पुत्र समान कोई बैठा था, जिसके सिर पर सोने का मुकुट तथा हाथ में पैनी हसिया थी. 15 एक दूसरा स्वर्गदूत मन्दिर से बाहर निकला और उससे, जो बादल पर बैठा था, ऊँचे शब्द में कहने लगा. “अपना हसिया चला कर फसल काटिए, कटनी का समय आ पहुँचा है क्योंकि पृथ्वी की फसल पक चुकी है.” 16 तब उसने, जो बादल पर बैठा था, अपना हसिया पृथ्वी के ऊपर घुमाया तो पृथ्वी की फसल की कटनी पूरी हो गई.
17 तब एक और स्वर्गदूत उस मन्दिर से, जो स्वर्ग में है, बाहर निकला. उसके हाथ में भी पैना हँसिया था. 18 तब एक अन्य स्वर्गदूत, जिसे आग पर अधिकार था, वेदी से बाहर निकला तथा उस स्वर्गदूत से, जिसके हाथ में पैना हसिया था, ऊँचे शब्द में कहने लगा. “अपना हसिया चला कर पृथ्वी की पूरी दाख की फसल के गुच्छे इकट्ठा करो क्योंकि दाख पक चुकी है.” 19 तब उस स्वर्गदूत ने अपना हसिया पृथ्वी की ओर घुमाया और पृथ्वी की सारी दाख इकट्ठा कर परमेश्वर के क्रोध के विशाल दाख के कुण्ड में फेंक दी. 20 तब नगर के बाहर दाख रसकुण्ड में दाख को रौंदा गया. उस रसकुण्ड में से जो लहू बहा, उसकी लम्बाई 300 किलोमीटर तथा ऊँचाई घोड़े की लगाम जितनी थी.
मोशेह तथा मेमने का गीत
15 तब मैंने स्वर्ग में एक अद्भुत और आश्चर्यजनक दृश्य देखा: सात स्वर्गदूत सात अन्तिम विपत्तियाँ लिए हुए थे—अन्तिम इसलिए कि इनके साथ परमेश्वर के क्रोध का अन्त हो जाता है. 2 तब मुझे ऐसा अहसास हुआ मानो मैं एक काँच की झील को देख रहा हूँ, जिसमें आग मिला दी गई हो. मैंने इस झील के तट पर उन्हें खड़े हुए देखा, जिन्होंने उस हिंसक पशु, उसकी मूर्ति तथा उसके नाम की संख्या पर विजय प्राप्त की थी. इनके हाथों में परमेश्वर द्वारा दी हुई वीणा थीं. 3 वे परमेश्वर के दास मोशेह तथा मेमने का गीत गा रहे थे:
“अद्भुत और असाधारण काम हैं आपके,
याहवेह सर्वशक्तिमान परमेश्वर!
धर्मी और सच्चे हैं उद्धेश्य आपके,
राष्ट्रों के राजन!
4 कौन है,
प्रभु, जिसमें आपके प्रति श्रद्धा न होगी,
कौन है, जो आपकी महिमा न करेगा?
मात्र आप ही हैं पवित्र.
सभी राष्ट्र आकर आपका धन्यवाद करेंगे क्योंकि आपके न्याय के कार्य प्रकट हो चुके हैं.”
सात विपत्तियां लिए हुए सात स्वर्गदूत.
5 इसके बाद मैंने देखा कि स्वर्ग में मन्दिर, जो साक्ष्यों का तम्बू है, खोल दिया गया. 6 मन्दिर में से वे सातों स्वर्गदूत, जो सात विपत्तियाँ लिए हुए थे, बाहर निकले. वे मलमल के स्वच्छ-उज्ज्वल वस्त्र धारण किए हुए थे तथा उनकी छाती पर सोने की कमरबन्द थी. 7 तब चार जीवित प्राणियों में से एक ने उन सात स्वर्गदूतों को सनातन परमेश्वर के क्रोध से भरे सात सोने के कटोरे दे दिए. 8 मन्दिर परमेश्वर की आभा तथा सामर्थ्य के धुएँ से भर गया और उस समय तक मन्दिर में कोई भी प्रवेश न कर सका, जब तक उन सातों स्वर्गदूतों द्वारा उण्डेली गई सातों विपत्तियाँ समाप्त न हो गईं.
पश्चाताप की विनती
13 उसी समय वहाँ उपस्थित कुछ लोगों ने मसीह येशु को उन गलीलवासियों की याद दिलायी, जिनका लहू पिलातॉस ने उन्हीं के बलिदानों में मिला दिया था. 2 मसीह येशु ने उनसे पूछा, “क्या तुम्हारे विचार से ये गलीली अन्य गलीलवासियों की तुलना में अधिक पापी थे कि उनकी यह स्थिति हुई? 3 नहीं! मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि तुम मन न फिराओ तो तुम सब भी इसी प्रकार नाश हो जाओगे. 4 या वे अठारह व्यक्ति, जिन पर सीलोअम का खम्भा गिरा, जिससे उनकी मृत्यु हो गई, येरूशालेमवासियों की अपेक्षा अधिक दोषी थे? 5 नहीं! मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि तुम मन न फिराओ तो तुम सब भी इसी प्रकार नाश हो जाओगे.”
6 तब मसीह येशु ने उन्हें इस दृष्टान्त के द्वारा समझाना प्रारम्भ किया, “एक व्यक्ति ने अपने बगीचे में एक अंजीर का पेड़ लगाया. वह फल की आशा में उसके पास आया. 7 उसने माली से कहा, ‘देखो, मैं तीन वर्ष से इस पेड़ में फल की आशा लिए आ रहा हूँ और मुझे अब तक कोई फल प्राप्त नहीं हुआ. काट डालो इसे! भला क्यों इसके कारण भूमि व्यर्थ ही घिरी रहे?’
8 “किन्तु माली ने स्वामी से कहा, ‘स्वामी, इसे इस वर्ष और रहने दीजिए. मैं इसके आस-पास की भूमि खोदकर इसमें खाद डाल देता हूँ. 9 यदि अगले वर्ष यह फल लाए तो अच्छा नहीं तो इसे कटवा दीजिएगा.’”
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