Book of Common Prayer
12 छठे स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा महानद यूफ़्रातेस पर उण्डेला तो उसका जल सूख गया कि पूर्व दिशा के राजाओं के लिए मार्ग तैयार हो जाए. 13 तब मैंने तीन अशुद्ध आत्माओं को जो मेंढक के समान थीं; उस परों वाले साँप के मुख से, उस हिंसक पशु के मुख से तथा झूठे भविष्यद्वक्ता के मुख से निकलते हुए देखा. 14 ये वे दुष्टात्मायें है, जो चमत्कार चिह्न दिखाते हुए पृथ्वी के सभी राजाओं को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस न्याय दिवस पर युद्ध करने के लिए इकट्ठा करती हैं.
15 “याद रहे: मैं चोर के समान आऊँगा! धन्य वह है, जो जागता है और अपने वस्त्रों की रक्षा करता है कि उसे लोगों के सामने नग्न होकर लज्जित न होना पड़े.”
16 उन आत्माओं ने राजाओं को उस स्थान पर इकट्ठा किया, जो इब्री भाषा में हरमागेद्दौन कहलाता है.
17 सातवें स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा वायु पर उण्डेला, और मन्दिर के सिंहासन से एक ऊँचा शब्द सुनाई दिया, “पूरा हो गया!” 18 तुरन्त ही बिजली की कौन्ध, गड़गड़ाहट तथा बादलों की गर्जन होने लगी और एक भयन्कर भूकम्प आया. यह भूकम्प इतना शक्तिशाली था कि पृथ्वी पर ऐसा भयन्कर भूकम्प मनुष्य की उत्पत्ति से लेकर अब तक नहीं आया था—इतना शक्तिशाली था यह भूकम्प 19 कि महानगर फट कर तीन भागों में बंट गया. सभी राष्ट्रों के नगर धराशायी हो गए. परमेश्वर ने बड़े नगर बाबेल को याद किया कि उसे अपने क्रोध की जलजलाहट का दाखरस का प्याला पिलाएं. 20 हर एक द्वीप विलीन हो गया और सभी पर्वत लुप्त हो गए. 21 आकाश से मनुष्यों पर विशालकाय ओले बरसने लगे और एक-एक ओला लगभग 45 किलो का था. ओलों की इस विपत्ति के कारण लोग परमेश्वर को शाप देने लगे क्योंकि यह विपत्ति बहुत असहनीय थी.
परमेश्वर के राज्य की शिक्षा
18 इसलिए मसीह येशु ने उनसे कहना प्रारम्भ किया, “परमेश्वर का राज्य कैसा होगा? मैं इसकी तुलना किससे करूँ? 19 परमेश्वर का राज्य राई के बीज के समान है, जिसे किसी व्यक्ति ने अपनी वाटिका में बोया, और उसने विकसित होते हुए पेड़ का रूप ले लिया—यहाँ तक कि पक्षी भी आ कर उसकी शाखाओं पर बसेरा करने लगे.”
20 मसीह येशु ने दोबारा कहा, “परमेश्वर के राज्य की तुलना मैं किससे करूँ? 21 परमेश्वर का राज्य ख़मीर के समान है, जिसे एक स्त्री ने तीन माप आटे में मिलाया और सारा आटा ही खमीर युक्त हो गया.”
स्वर्ग-राज्य में प्रवेश के विषय में शिक्षा
22 नगर-नगर और गाँव-गाँव होते हुए और मार्ग में शिक्षा देते हुए मसीह येशु येरूशालेम नगर की ओर बढ़ रहे थे. 23 किसी ने उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, क्या मात्र कुछ ही लोग उद्धार प्राप्त कर सकेंगे?” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, 24 “तुम्हारी कोशिश यह हो कि तुम संकरे द्वार से प्रवेश करो क्योंकि मैं तुम्हें बता रहा हूँ कि अनेक इसमें प्रवेश तो चाहेंगे किन्तु प्रवेश करने में असमर्थ रहेंगे. 25 एक बार जब घर का स्वामी द्वार बन्द कर दे तो तुम बाहर खड़े, द्वार खटखटाते हुए विनती करते रह जाओगे: ‘महोदय, कृपया हमारे लिए द्वार खोल दें.’
“किन्तु वह उत्तर देगा, ‘तुम कौन हो और कहां से आये हो मैं नहीं जानता.’
26 “तब तुम कहोगे, ‘हम आपके साथ खाया-पिया करते थे और आप हमारी गलियों में शिक्षा दिया करते थे.’
27 “परन्तु उसका उत्तर होगा, ‘मैं तुमसे कह चुका हूँ तुम कौन हो, मैं नहीं जानता. चले जाओ यहाँ से! तुम सब कुकर्मी हो!’
28 “जब तुम परमेश्वर के राज्य में अब्राहाम, इसहाक, याक़ोब तथा सभी भविष्यद्वक्ताओं को देखोगे और स्वयं तुम्हें बाहर फेंक दिया जाएगा, वहाँ रोना और दाँतों का पीसना ही होगा. 29 चारों दिशाओं से लोग आ कर परमेश्वर के राज्य के उत्सव में शामिल होंगे 30 और सच्चाई यह है कि जो अन्तिम हैं वे पहिले होंगे तथा जो पहिले वे अन्तिम.”
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