Book of Common Prayer
16 देखव! मेंह तुमन ला भेड़ियामन के बीच म भेड़मन सहीं पठोवत हवंव। एकरसेति, सांप के सहीं चतुरा अऊ परेवा के सहीं निरदोस बनव। 17 मनखेमन ले सचेत रहव। ओमन ह तुमन ला धरम-सभा ला सऊंप दिहीं अऊ अपन सभा के घर म तुमन ला कोर्रा म मारहीं। 18 मोर कारन, तुमन ला हाकिम अऊ राजामन के आघू म लाने जाही कि तुमन मोर बिसय म ओमन ला अऊ आनजातमन ला गवाही देवव। 19 जब ओमन तुमन ला पकड़थें, त एकर चिंता झन करव कि तुमन ला का कहना हे या कइसने कहना हे, काबरकि ओहीच बखत तुमन ला बताय जाही कि का कहना हे। 20 काबरकि बोलइया तुमन नइं, पर तुम्हर ददा परमेसर के आतमा ह तुमन म होके बोलही।
21 भाई ह अपन भाई ला अऊ ददा ह अपन लइका ला मार डारे बर सऊंप दिहीं। लइकामन ह अपन दाई-ददा के बिरोध म खड़े होहीं अऊ ओमन ला मरवा डारहीं। 22 मोर कारन, जम्मो मनखेमन तुम्हर ले नफरत करहीं, पर जऊन ह आखिरी तक सहत रहिही, ओह उद्धार पाही।
12 एकरसेति, अपन कमजोर हांथ अऊ कमजोर माड़ी मन ला मजबूत करव। 13 अपन गोड़ खातिर डहारमन ला समतल करव, ताकि खोरवा ह अपंग झन होवय, पर ओह चंगा हो जावय।
ओमन के बिरोध म चेतउनी, जऊन मन परमेसर ला इनकार करथें
14 जम्मो मनखेमन संग सांति ले रहे के पूरा कोसिस करव अऊ पबितर बने बर घलो पूरा कोसिस करव, काबरकि बिगर पबितरता के, कोनो परभू ला नइं देख सकय। 15 एकर धियान रखव कि हर एक झन ला परमेसर के अनुग्रह मिलय अऊ ओमन म कोनो किसम के कड़वाहट झन पनपे, जऊन ह समस्या खड़े करथे अऊ बहुंते झन ला असुध करथे। 16 एकर घलो धियान रखव कि कोनो छिनारी झन करय या एसाव के सहीं भक्तिहीन झन होवय, जऊन ह एक बखत के भोजन खातिर अपन पहिलांत के अधिकार ला बेंच दीस। 17 जइसने कि तुमन जानत हव, बाद म, जब ओह ए आसिस ला पाय चाहिस, त ओला नइं मिलिस। हालाकि ओह रो-रोके ओ आसिस ला पाय के कोसिस करिस, पर ओकर करा अपन ददा के मन ला बदले के अऊ कोनो आने उपाय नइं रिहिस।
18 तुमन अब तक ओ जगह म नइं आय हवव अऊ अनुभव नइं करे हवव जइसने इसरायलीमन सीनै पहाड़ म अनुभव करे रिहिन, जिहां आगी बरत रिहिस; अंधियार, धुंधलापन अऊ आंधी-तूफान रिहिस; 19 अऊ जिहां तुरही के अवाज अऊ एक झन के अइसने गोठियाय के अवाज आवत रिहिस, जऊन ला सुनके मनखेमन बिनती करे लगिन कि ओमन ले अऊ कोनो बात झन कहे जावय 20 काबरकि ओमन ओ हुकूम ले घबरा गीन, जेम ए कहे गे रिहिस, “अऊ त अऊ कहूं कोनो पसु घलो पहाड़ ला छुवय, त ओला पत्थरवाह करके मार डारे जावय।”[a] 21 ओ दरसन ह अइसने भयानक रिहिस कि मूसा ह कहिस, “मेंह डर के मारे कांपत हवंव।”
22 पर तुमन सियोन पहाड़, जीयत परमेसर के सहर, स्वरगीय यरूसलेम करा आ गे हवव। तुमन हजारों-हजार स्वरगदूतमन के संग आनंद के सभा, 23 अऊ पहिलांतमन के कलीसिया म आय हवव, जेमन के नांव स्वरग म लिखे गे हवय। तुमन परमेसर करा आय हवव, जऊन ह जम्मो मनखेमन के नियाय करथे, अऊ तुमन ओ धरमीमन के आतमामन करा आ गे हवव, जऊन मन सिद्ध बनाय गे हवंय। 24 तुमन यीसू करा आ गे हवव, जऊन ह एक नवां करार के मध्यस्थ ए अऊ तुमन ओ छिड़काय लहू करा आ गे हवव, जऊन ह हाबिल के लहू ले घलो अऊ उत्तम बात कहिथे।
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