Book of Common Prayer
51 सुनो! मैं तुम पर एक भेद प्रकट करता हूँ: हम सभी सो नहीं जाएँगे परन्तु हम सभी का रूप बदल 52 जाएगा—क्षण भर में, पलक झपकते ही, आखिरी तुरही के स्वर पर. ज्यों ही आखिरी तुरही का स्वर होगा, मरे हुए अविनाशी दशा में जीवित किए जाएँगे और हमारा रूप बदल जाएगा. 53 यह ज़रूरी है कि नाशमान अविनाशी को धारण करे तथा मरणहार अमरता को.
विजयघोष गान. समापन
54 किन्तु जब यह नाशमान अविनाशी को तथा मरणहार अमरता को धारण कर लेगा तब पवित्रशास्त्र का यह वचन पूरा हो जाएगा:
मृत्यु विजय का निवाला बन गई.
55 मृत्यु! कहाँ है तेरी विजय?
मृत्यु! कहाँ है तेरा ड़ंक?
56 मृत्यु का ड़ंक है पाप और पाप का बल है व्यवस्था. 57 किन्तु हम धन्यवाद करते हैं परमेश्वर का, जो हमें हमारे प्रभु मसीह येशु द्वारा विजय प्रदान करते हैं.
58 इसलिए मेरे प्रियजन, इस सच्चाई के प्रकाश में कि प्रभु में तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ नहीं है, तुम प्रभु के काम में उन्नत होते हुए हमेशा दृढ़ तथा स्थिर रहो.
शिष्यों का शब्बाथ पर बालें तोड़ना
(मारक 2:23-28; लूकॉ 6:1-5)
12 शब्बाथ पर येशु और उनके शिष्य अन्न के खेतों में से हो कर जा रहे थे. उनके शिष्यों को भूख लग गई और वे बालें तोड़ कर खाने लगे. 2 यह देख फ़रीसियों ने आपत्ति उठाई, “देख लो, तुम्हारे शिष्य वह कर रहे हैं जो शब्बाथ सम्बन्धित व्यवस्था के अनुसार गलत है.”
3 इस पर येशु ने उन्हें उत्तर दिया.
“क्या आप लोगों ने उस घटना के विषय में नहीं पढ़ा जिसमें भूख लगने पर दाविद और उनके साथियों ने क्या किया था? 4 कैसे उन्होंने परमेश्वर के भवन में प्रवेश किया और दाविद और उनके साथियों ने भेंट की वह रोटी खाई, जिसे पुरोहितों के अलावा किसी का भी खाना व्यवस्था के अनुसार न था? 5 या क्या आप लोगों ने व्यवस्था में यह नहीं पढ़ा कि मन्दिर में सेवारत याजक शब्बाथ की व्यवस्था का उल्लंघन करने पर भी निर्दोष ही रहते हैं? 6 किन्तु मैं तुम्हें बता रहा हूँ कि यहाँ वह है, जो मन्दिर से बढ़कर है. 7 वस्तुतः तुमने यदि इस बात का अर्थ समझा होता: ‘मैं बलि की नहीं परन्तु दया की कामना करता हूँ’, तो तुमने इन निर्दोषों पर आरोप न लगाया होता. 8 क्योंकि मानव-पुत्र शब्बाथ का स्वामी है.”
9 वहाँ से चल कर येशु यहूदी-सभागृह में गए. 10 वहाँ एक व्यक्ति था, जिसका हाथ सूख चुका था. उन्होंने येशु से प्रश्न किया, “क्या शब्बाथ पर किसी को स्वस्थ करना व्यवस्था के अनुसार है?” उन्होंने यह प्रश्न इसलिए किया कि वे येशु पर आरोप लगा सकें. 11 येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुममें कौन ऐसा व्यक्ति है जिसके पास एक भेड़ है और यदि वह भेड़ शब्बाथ पर गड्ढे में गिर जाए तो वह उसे हाथ बढ़ा कर बाहर न निकाले? 12 एक भेड़ की तुलना में मनुष्य कितना अधिक कीमती है! इसलिए शब्बाथ पर किया गया भला काम व्यवस्था के अनुसार होता है.” 13 तब येशु ने उस व्यक्ति को आज्ञा दी, “अपना हाथ आगे बढ़ाओ!” उसने हाथ आगे बढ़ाया—वह हाथ दूसरे हाथ के जैसा स्वस्थ हो गया था. 14 इसलिए फ़रीसी बाहर चले गए तथा येशु की हत्या का षड्यन्त्र रचने लगे.
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