Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
16 मैं उनके साथ यह वाचा बांधूंगा—यह प्रभु का कथन है—उन दिनों के बाद
मैं अपना नियम उनके हृदय में लिखूँगा
और उनके मस्तिष्क पर अंकित कर दूँगा.
17 वह आगे कहते हैं:
उनके पाप और उनके अधर्म के कामों को
मैं इसके बाद याद न रखूंगा.
18 जहाँ इन विषयों के लिए पाप की क्षमा है, वहाँ पाप के लिए किसी भी बलि की ज़रूरत नहीं रह जाती.
निरन्तर प्रयास की बुलाहट
19-21 इसलिए, प्रियजन, कि परमेश्वर के परिवार में हमारे लिए एक सबसे उत्तम याजक निर्धारित हैं तथा इसलिए कि मसीह येशु के लहू के द्वारा एक नए तथा जीवित मार्ग से, जिसे उन्होंने उस पर्दे—अपने शरीर—में से हमारे लिए अभिषेक किया है, हमें अति पवित्र स्थान में जाने के लिए साहस प्राप्त हुआ है, 22 हम अपने अशुद्ध विवेक से शुद्ध होने के लिए अपने हृदय को सींच कर, निर्मल जल से अपने शरीर को शुद्ध कर, विश्वास के पूरे आश्वासन के साथ, निष्कपट हृदय से परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करें. 23 अब हम बिना किसी शक के अपनी उस आशा में अटल रहें, जिसे हमने स्वीकार किया है क्योंकि जिन्होंने प्रतिज्ञा की है, वह विश्वासयोग्य हैं. 24 हम यह भी विशेष ध्यान रखें कि हम आपस में प्रेम और भले कामों में एक दूसरे को किस प्रकार प्रेरित करें 25 तथा हम आराधना सभाओं में लगातार इकट्ठा होने में सुस्त न हो जाएँ, जैसे कि कुछ हो ही चुके हैं. एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो और इस विषय में और भी अधिक नियमित हो जाओ, जैसा कि तुम देख ही रहे हो कि वह दिन पास आता जा रहा है.
14 इसलिए कि वह, जो आकाशमण्डल में से होकर पहुँच गए, जब वह महायाजक—परमेश्वर-पुत्र, मसीह येशु—हमारी ओर हैं; हम अपने विश्वास में स्थिर बने रहें. 15 वह ऐसे महायाजक नहीं हैं, जो हमारी दुर्बलताओं में सहानुभूति न रख सकें परन्तु वह ऐसे महायाजक हैं, जो हरेक पक्ष में हमारे समान ही परखे गए फिर भी निष्पाप ही रहे; 16 इसलिए हम अनुग्रह के सिंहासन के सामने निड़र होकर जाएँ कि हमें ज़रूरत के अवसर पर कृपा तथा अनुग्रह प्राप्त हो.
7 अपने देह में रहने के समय में उन्होंने ऊँचे शब्द में रोते हुए, आँसुओं के साथ उनके सामने प्रार्थनाएँ और विनती कीं, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकते थे. उनकी परमेश्वर में भक्ति के कारण उनकी प्रार्थनाएँ स्वीकार की गईं. 8 पुत्र होने पर भी उन्होंने अपने दुःख उठाने से आज्ञा मानने की शिक्षा ली. 9 फिर सिद्ध घोषित किए जाने के बाद वह स्वयं उन सबके लिए, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, अनन्त काल उद्धार का कारण बन गए;
मसीह येशु का बन्दी बनाया जाना
(मत्ति 26:47-56; मारक 14:43-52; लूकॉ 22:47-53)
18 इन बातों के कहने के बाद मसीह येशु अपने शिष्यों के साथ किद्रोन घाटी पार कर एक बगीचे में गए.
2 यहूदाह, जो उनके साथ धोखा कर रहा था, उस स्थान को जानता था क्योंकि मसीह येशु वहाँ अक्सर अपने शिष्यों से भेंट किया करते थे. 3 तब यहूदाह रोमी सैनिकों का दल, प्रधान पुरोहितों तथा फ़रीसियों के सेवकों के साथ वहाँ आ पहुँचा. उनके पास लालटेनें, मशालें और शस्त्र थे.
4 मसीह येशु ने यह जानते हुए कि उनके साथ क्या-क्या होने पर है, आगे बढ़कर उनसे पूछा, “तुम किसे खोज रहे हो?”
5 “नाज़रेथवासी येशु को,” उन्होंने उत्तर दिया.
मसीह येशु ने कहा, “मैं वही हूँ.” विश्वासघाती यहूदाह भी उनके साथ था. 6 जैसे ही मसीह येशु ने कहा “मैं वही हूँ,” वे पीछे हटे और गिर पड़े.
7 मसीह येशु ने दोबारा पूछा, “तुम किसे खोज रहे हो?” वे बोले, “नाज़रेथवासी येशु को.”
8 मसीह येशु ने कहा, “मैं तुमसे कह चुका हूँ कि मैं वही हूँ. इसलिए यदि तुम मुझे ही खोज रहे हो तो इन्हें जाने दो.” 9 यह इसलिए कि स्वयं उनके द्वारा कहा गया यह वचन पूरा हो “आपके द्वारा सौंपे हुओं में से मैंने किसी एक को भी न खोया.”
10 शिमोन पेतरॉस ने, जिनके पास तलवार थी, उसे म्यान से खींच कर महायाजक के एक सेवक पर वार कर दिया जिससे उसका दाहिना कान कट गया. उस सेवक का नाम मालखॉस था.
11 यह देख मसीह येशु ने पेतरॉस को आज्ञा दी, “तलवार म्यान में रखो! क्या मैं वह प्याला न पिऊँ जो पिता ने मुझे दिया है?”
हन्ना के सामने मसीह येशु
12 तब सैनिकों के दल, सेनानायक और यहूदियों के अधिकारियों ने मसीह येशु को बन्दी बना लिया. 13 पहले वे उन्हें हन्ना के पास ले गए, जो उस वर्ष के महायाजक कायाफ़स का ससुर था. 14 कायाफ़स ने ही यहूदियों को विचार दिया था कि राष्ट्र के हित में एक व्यक्ति का प्राण त्याग करना सही है.
पेतरॉस का पहिला नकारना
15 शिमोन पेतरॉस और एक अन्य शिष्य मसीह येशु के पीछे-पीछे गए. यह शिष्य महायाजक की जान पहचान का था. इसलिए वह भी मसीह येशु के साथ महायाजक के घर के परिसर में चला गया 16 परन्तु पेतरॉस द्वार पर बाहर ही खड़े रहे. तब वह शिष्य, जो महायाजक की जान पहचान का था, बाहर आया और द्वार पर नियुक्त दासी से कह कर पेतरॉस को भीतर ले गया.
17 द्वार पर निधर्मी उस दासी ने पेतरॉस से पूछा, “कहीं तुम भी तो इस व्यक्ति के शिष्यों में से नहीं हो?”
“नहीं, नहीं,” उन्होंने उत्तर दिया.
18 ठण्ड के कारण सेवकों और सैनिकों ने आग जला रखी थी और खड़े हुए आग ताप रहे थे. पेतरॉस भी उनके साथ खड़े हुए आग ताप रहे थे.
महायाजक के सामने मसीह येशु
19 महायाजक ने मसीह येशु से उनके शिष्यों और उनके द्वारा दी जा रही शिक्षा के विषय में पूछताछ की.
20 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैंने संसार से स्पष्टत: बातें की हैं. मैंने हमेशा सभागृहों और मन्दिर में शिक्षा दी है, जहाँ सभी यहूदी इकट्ठा होते हैं. गुप्त में मैंने कभी भी कुछ नहीं कहा. 21 आप मुझसे प्रश्न क्यों कर रहे हैं? प्रश्न उनसे कीजिए जिन्होंने मेरे प्रवचन सुने हैं. वे जानते हैं कि मैंने क्या-क्या कहा है.”
22 यह सुनते ही वहाँ खड़े एक अधिकारी ने मसीह येशु पर वार करते हुए कहा, “क्या महायाजक को उत्तर देने का यही ढंग है तुम्हारा?”
23 मसीह येशु ने कहा, “यदि मेरा कहना गलत है तो साबित करो मगर यदि मैंने जो कहा है वह सही है तो फिर तुम मुझे क्यों मार रहे हो?” 24 इसलिए मसीह येशु को, जो अभी भी बँधे हुए ही थे, हन्ना ने महायाजक कायाफ़स के पास भेज दिया.
पेतरॉस द्वारा मसीह येशु का दूसरी तथा तीसरी बार नकारना
(मत्ति 26:69-75; मारक 14:66-72; लूकॉ 22:54-65)
25 इसी बीच लोगों ने शिमोन पेतरॉस से, जो वहाँ खड़े हुए आग ताप रहे थे, पूछा, “कहीं तुम भी तो इसके शिष्यों में से नहीं हो?” पेतरॉस ने नकारते हुए कहा, “मैं नहीं हूँ.”
26 तब महायाजक के सेवकों में से एक ने, जो उस व्यक्ति का सम्बन्धी था, जिसका कान पेतरॉस ने काट डाला था, उनसे पूछा, “क्या तुम वही नहीं, जिसे मैंने उसके साथ उपवन में देखा था?” 27 पेतरॉस ने फिर अस्वीकार किया और तत्काल मुर्गे ने बाँग दी.
मसीह येशु पिलातॉस के सामने
(मत्ति 27:11-14; मारक 15:2-5; लूकॉ 23:2-5)
28 पौ फटते ही वे मसीह येशु को कायाफ़स के पास से राजभवन ले गए; किन्तु उन्होंने स्वयं भवन में प्रवेश नहीं किया कि कहीं वे फ़सह भोज के पूर्व सांस्कारिक रूप से अशुद्ध न हो जाएँ. 29 इसलिए पिलातॉस ने बाहर आ कर उनसे प्रश्न किया, “क्या आरोप है तुम्हारा इस व्यक्ति पर?”
30 उन्होंने उत्तर दिया, “यदि यह व्यक्ति अपराधी न होता तो हम इसे आपके पास क्यों लाते?”
31 पिलातॉस ने उनसे कहा, “तो इसे ले जाओ और अपने ही नियम के अनुसार स्वयं इसका न्याय करो.” इस पर यहूदियों ने कहा, “किसी के प्राण लेना हमारे अधिकार में नही है.” 32 ऐसा इसलिए हुआ कि मसीह येशु के वे वचन पूरे हों, जिनके द्वारा उन्होंने संकेत दिया था कि उनकी मृत्यु किस प्रकार की होगी.
33 इसलिए भवन में लौट कर पिलातॉस ने मसीह येशु को बुलवाया और प्रश्न किया, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”
34 इस पर मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “यह आपका अपना विचार है या अन्य लोगों ने मेरे विषय में आपको ऐसा बताया है?”
35 पिलातॉस ने उत्तर दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारे अपने ही लोगों और प्रधान पुरोहितों ने तुम्हें मेरे हाथ सौंपा है. बताओ, ऐसा क्या किया है तुमने?”
36 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस संसार का नहीं है. यदि इस संसार का होता तो मेरे सेवक मुझे यहूदियों के हाथ सौंपे जाने के विरुद्ध लड़ते; किन्तु सच्चाई तो यह है कि मेरा राज्य यहाँ का है ही नहीं.”
37 इस पर पिलातॉस ने उनसे कहा, “तो तुम राजा हो?”
मसीह येशु ने उत्तर दिया, “आप ठीक कहते हैं कि मैं राजा हूँ. मेरा जन्म ही इसलिए हुआ है. संसार में मेरे आने का उद्देश्य यही है कि मैं सच की गवाही दूँ. हर एक व्यक्ति, जो सच्चा है, मेरी सुनता है.” 38 “क्या है सच?” पिलातॉस ने प्रश्न किया.
पिलातॉस का मसीह येशु को मुक्त करने का विफल प्रयास
तब पिलातॉस ने दोबारा बाहर जा कर यहूदियों को सूचित किया, “मुझे उसमें कोई दोष नहीं मिला 39 किन्तु तुम्हारी एक परम्परा है कि फ़सह के अवसर पर मैं तुम्हारे लिए किसी एक को रिहा करूँ. इसलिए क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए यहूदियों का राजा रिहा कर दूँ?”
40 इस पर वे चिल्ला कर बोले, “इसे नहीं! बार-अब्बा को!”—जबकि बार-अब्बा विद्रोही था.
मसीह येशु का क्रूस मृत्युदण्ड
19 इसलिए पिलातॉस ने मसीह येशु को भीतर ले जा कर उन्हें कोड़े लगवाए. 2 सैनिकों ने काँटों का एक मुकुट गूँथ कर उनके सिर पर रखा और उनके ऊपर एक बैंगनी वस्त्र डाल दिया 3 और वे एक-एक कर उनके सामने आ कर उनके मुख पर प्रहार करते हुए कहने लगे, “यहूदियों के राजा की जय!”
4 पिलातॉस ने दोबारा आ कर भीड़ से कहा, “देखो, मैं उसे तुम्हारे लिए बाहर ला रहा हूँ कि तुम जान लो कि मुझे उसमें कोई दोष नहीं मिला.” 5 तब काँटों का मुकुट व बैंगनी वस्त्र धारण किए हुए मसीह येशु को बाहर लाया गया और पिलातॉस ने लोगों से कहा, “देखो, इसे!”
6 जब प्रधान पुरोहितों और सेवकों ने मसीह येशु को देखा तो चिल्ला कर कहने लगे, “क्रूसदण्ड़! क्रूसदण्ड़!” पिलातॉस ने उनसे कहा, “इसे ले जाओ और तुम ही दो इसे मृत्युदण्ड क्योंकि मुझे तो इसमें कोई दोष नहीं मिला.” 7 यहूदियों ने उत्तर दिया, “हमारा एक नियम है. उस नियम के अनुसार इस व्यक्ति को मृत्युदण्ड ही मिलना चाहिए क्योंकि यह स्वयं को परमेश्वर का पुत्र बताता है.”
8 जब पिलातॉस ने यह सुना तो वह और अधिक भयभीत हो गया. 9 तब उसने दोबारा राजभवन में जाकर मसीह येशु से पूछा, “तुम कहाँ के हो?” किन्तु मसीह येशु ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया. 10 इसलिए पिलातॉस ने उनसे कहा, “तुम बोलते क्यों नहीं? क्या तुम नहीं जानते कि मुझे यह अधिकार है कि मैं तुम्हें मुक्त कर दूँ और यह भी कि तुम्हें मृत्युदण्ड दूँ?”
11 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “आपका मुझ पर कोई अधिकार न होता यदि वह आपको ऊपर से न दिया गया होता. अत्यंत नीच है उसका पाप, जिसने मुझे आपके हाथ सौंपा है.” 12 परिणामस्वरूप पिलातॉस ने उन्हें मुक्त करने के यत्न किए किन्तु यहूदियों ने चिल्ला-चिल्ला कर कहा, “यदि आपने इस व्यक्ति को मुक्त किया तो आप कयसर के मित्र नहीं हैं. हर एक, जो स्वयं को राजा दर्शाता है, वह कयसर का विरोधी है.”
13 ये सब सुन कर पिलातॉस मसीह येशु को बाहर लाया और न्याय आसन पर बैठ गया, जो उस स्थान पर था, जिसे इब्री भाषा में गब्बथा अर्थात् चबूतरा कहा जाता है. 14 यह फ़सह की तैयारी के दिन का छठा घण्टा था. पिलातॉस ने यहूदियों से कहा.
“यह लो, तुम्हारा राजा.”
15 इस पर वे चिल्लाने लगे, “इसे यहाँ से ले जाओ! ले जाओ इसे यहाँ से और मृत्युदण्ड दो!”
पिलातॉस ने उनसे पूछा, “क्या मैं तुम्हारे राजा को मृत्युदण्ड दूँ?”
प्रधान पुरोहितों ने कहा, “कयसर के अतिरिक्त हमारा कोई राजा नहीं है.”
16 तब पिलातॉस ने क्रूस-मृत्युदण्ड के लिए मसीह येशु को उनके हाथ सौंप दिया.
क्रूस-मार्ग पर मसीह येशु
(मत्ति 27:32-37; मारक 15:21-24; लूकॉ 23:26-31)
17 वे मसीह येशु को उस स्थान को ले गए, जो इब्री भाषा में गोलगोथा कहलाता है, जिसका अर्थ है खोपड़ी का स्थान. मसीह येशु अपना क्रूस स्वयं उठाए हुए थे.
मसीह येशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना
(मत्ति 27:35-44; मारक 15:25-32; लूकॉ 23:32-43)
18 वहाँ उन्होंने मसीह येशु को अन्य दो व्यक्तियों के साथ उनके मध्य क्रूस पर चढ़ाया.
19 पिलातॉस ने एक पटल पर नाज़रेथ का येशु, यहूदियों का राजा लिख कर क्रूस पर लगवा दिया 20 यह अनेक यहूदियों ने पढ़ा क्योंकि मसीह येशु को क्रूस पर चढ़ाए जाने का स्थान नगर के समीप ही था. यह इब्री, लातीनी और यूनानी भाषाओं में लिखा था. 21 इस पर यहूदियों के प्रधान पुरोहितों ने पिलातॉस से कहा, “यहूदियों का राजा मत लिखिए परन्तु वह लिखिए, जो उसने कहा था: ‘मैं यहूदियों का राजा हूँ’.”
22 पिलातॉस ने उत्तर दिया, “अब मैंने जो लिख दिया, वह लिख दिया.”
23 सैनिकों ने मसीह येशु को क्रूसित करने के बाद उनके बाहरी कपड़े ले कर चार भाग किए और आपस में बांट लिए. उनके अंदर का वस्त्र जोड़ रहित ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था.
24 इसलिए सैनिकों ने विचार किया, “इसे फाड़ें नहीं परन्तु इस पर पासा फेंक कर निर्णय कर लें कि यह किसको मिलेगा.”
सैनिकों ने ठीक वही किया जैसा पवित्रशास्त्र में लिखा है:
उन्होंने मेरा बाहरी कपड़ा आपस में बांट लिया,
और मेरे अंदर के वस्त्र के लिए पासा फेंका.
25 मसीह येशु के क्रूस के समीप उनकी माता, उनकी माता की बहन, क्लोपस की पत्नी मरियम और मगदालावासी मरियम खड़ी हुई थीं. 26 जब मसीह येशु ने अपनी माता और उस शिष्य को, जो उनका प्रियजन था, वहाँ खड़े देखा तो अपनी माता से बोले, “हे स्त्री! यह आपका पुत्र है.” 27 और उस शिष्य से बोले, “यह तुम्हारी माता है.” उस दिन से वह शिष्य मरियम का रखवाला बन गया.
मसीह येशु की मृत्यु
(मत्ति 27:45-56; मारक 15:33-41; लूकॉ 23:44-49)
28 इसके बाद मसीह येशु ने यह जानते हुए कि अब सब कुछ पूरा हो चुका है, पवित्रशास्त्र का लेख पूरा करने के लिए कहा, “मैं प्यासा हूँ.” 29 वहाँ दाखरस के सिरके से भरा एक बर्तन रखा था. लोगों ने उसमें स्पंज भिगो जूफ़ा पौधे की टहनी पर रखकर उनके मुख तक पहुँचाया. 30 उसे चख कर मसीह येशु ने कहा, “अब सब पूरा हो गया” और सिर झुका कर प्राण त्याग दिए.
31 वह फ़सह की तैयारी का दिन था. इसलिए यहूदियों ने पिलातॉस से निवेदन किया कि उन लोगों की टाँगें तोड़ कर उन्हें क्रूस से उतार लिया जाए जिससे वे शब्बाथ पर क्रूस पर न रहें क्योंकि वह एक विशेष महत्व का शब्बाथ था. 32 इसलिए सैनिकों ने मसीह येशु के संग क्रूस पर चढ़ाए गए एक व्यक्ति की टाँगें पहले तोड़ीं और तब दूसरे की. 33 जब वे मसीह येशु के पास आए तो उन्हें मालूम हुआ कि उनके प्राण पहले ही निकल चुके थे. इसलिए उन्होंने उनकी टाँगें नहीं तोड़ीं 34 किन्तु एक सैनिक ने उनकी पसली को भाले से बेधा और वहाँ से तुरन्त लहू व जल बह निकले. 35 वह, जिसने यह देखा, उसने गवाही दी है और उसकी गवाही सच्ची है—वह जानता है कि वह सच ही कह रहा है, कि तुम भी विश्वास कर सको. 36 यह इसलिए हुआ कि पवित्रशास्त्र का यह लेख पूरा हो: उसकी एक भी हड्डी तोड़ी न जाएगी. 37 पवित्रशास्त्र का एक अन्य लेख भी इस प्रकार है: वे उसकी ओर देखेंगे, जिसे उन्होंने बेधा है.
मसीह येशु को क़ब्र में रखा जाना
(मत्ति 27:57-61; मारक 15:42-47; लूकॉ 23:46-50)
38 अरिमथियावासी योसेफ़ यहूदियों के भय के कारण मसीह येशु का गुप्त शिष्य था. उसने पिलातॉस से मसीह येशु का शव ले जाने की अनुमति चाही. पिलातॉस ने स्वीकृति दे दी और वह आकर मसीह येशु का शव ले गया. 39 तब निकोदेमॉस भी, जो पहले मसीह येशु से भेंट करने रात के समय आए थे, लगभग तैंतीस किलो गन्धरस और अगरू का मिश्रण ले कर आए. 40 इन लोगों ने मसीह येशु का शव लिया और यहूदियों की अंतिम संस्कार की रीति के अनुसार उस पर यह मिश्रण लगा कर कपड़े की पट्टियों में लपेट दिया. 41 मसीह येशु को क्रूसित किए जाने के स्थान के पास एक उपवन था, जिसमें एक नई क़ब्र की गुफ़ा थी. उसमें अब तक कोई शव नहीं रखा गया था. 42 इसलिए उन्होंने मसीह येशु के शव को उसी क़ब्र की गुफ़ा में रख दिया क्योंकि वह पास थी और वह यहूदियों के शब्बाथ की तैयारी का दिन भी था.
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