Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
मसीह, परमेश्वर का सामर्थ्य और ज्ञान
18 क्रूस का सन्देश उनके लिए, जो नाश होने पर हैं, मूर्खता है किन्तु हमारे लिए, जो उद्धार के मार्ग पर हैं, परमेश्वर का सामर्थ्य है, 19 जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है:
मैं ज्ञानियों का ज्ञान नाश कर दूँगा
तथा समझदारों की समझ को शून्य.
20 कहाँ है ज्ञानी, कहाँ है शास्त्री और कहाँ है इस युग का विवादी? क्या परमेश्वर के सामने संसार का सारा ज्ञान मूर्खता नहीं है? 21 अपने ज्ञान के अनुसार परमेश्वर ने यह असम्भव बना दिया कि मानव अपने ज्ञान के द्वारा उन्हें जान सके, इसलिए परमेश्वर को यह अच्छा लगा कि मनुष्यों के अनुसार मूर्खता के इस सन्देश के प्रचार का उपयोग उन सबके उद्धार के लिए करें, जो विश्वास करते हैं. 22 सबूत के लिए यहूदी चमत्कार-चिह्नों की माँग करते हैं और यूनानी ज्ञान के खोजी हैं 23 किन्तु हम प्रचार करते हैं क्रूसित मसीह का, जो यहूदियों के लिए ठोकर का कारण हैं तथा अन्यजातियों के लिए मूर्खता, 24 किन्तु बुलाए हुओं—यहूदी या यूनानी दोनों ही के लिए यही मसीह परमेश्वर का सामर्थ्य तथा परमेश्वर का ज्ञान हैं 25 क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों की बुद्धि से कहीं अधिक बुद्धिमान तथा परमेश्वर की दुर्बलता मनुष्यों के बल से कहीं अधिक बलवान है.
26 प्रियजन, याद करो कि जब तुम्हें बुलाया गया, उस समय अनेकों में न तो शरीर के अनुसार ज्ञान था, न ही बल और न ही कुलीनता 27 ज्ञानवानों को लज्जित करने के लिए परमेश्वर ने उनको चुना, जो संसार की दृष्टि में मूर्खता है तथा शक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उसको, जो संसार की दृष्टि में दुर्बलता है. 28 परमेश्वर ने उनको चुना, जो संसार की दृष्टि में नीचा है, तुच्छ है और जो है ही नहीं कि उसे व्यर्थ कर दें, जो महत्वपूर्ण समझी जाती है; 29 कि कोई भी मनुष्य परमेश्वर के सामने घमण्ड़ न करे. 30 परमेश्वर के द्वारा किए गए काम के फलस्वरूप तुम मसीह येशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारा ज्ञान, धार्मिकता, पवित्रता तथा छुड़ौती बन गए; 31 पवित्रशास्त्र का लेख है: जो गर्व करता है, वह परमेश्वर में गर्व करे.
मसीह येशु द्वारा अपनी मृत्यु का प्रकाशन
20 पर्व की आराधना में सम्मिलित होने आए लोगों में कुछ यूनानी भी थे. 21 उन्होंने गलील प्रदेश के बैथसैदावासी फ़िलिप्पॉस से विनती की, “श्रीमान! हम मसीह येशु से भेंट करना चाहते हैं.” 22 फ़िलिप्पॉस ने आन्द्रेयास को यह सूचना दी और उन दोनों ने जा कर मसीह येशु को. 23 यह सुन कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “मनुष्य के पुत्र के महिमित होने का समय आ गया है. 24 मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जब तक बीज भूमि में पड़ कर मर न जाए, अकेला ही रहता है परन्तु यदि वह मर जाए तो बहुत फलता है. 25 जो अपने जीवन से प्रेम रखता है, उसे खो देता है परन्तु जो इस संसार में अपने जीवन से प्रेम नहीं रखता, उसे अनन्त जीवन के लिए सुरक्षित रखेगा. 26 यदि कोई मेरी सेवा करता है, वह मेरे पीछे चले. मेरा सेवक वहीं होगा जहाँ मैं हूँ. जो मेरी सेवा करता है, उसका पिता परमेश्वर आदर करेंगे.
27 “इस समय मेरी आत्मा व्याकुल है. मैं क्या कहूँ? ‘पिता, मुझे इस स्थिति से बचा लीजिए’? किन्तु इसी कारण से तो मैं यहाँ तक आया हूँ. 28 पिता, अपने नाम को महिमित कीजिए.”
इस पर स्वर्ग से निकल कर यह आवाज़ सुनाई दी, “मैंने तुम्हें महिमित किया है और दोबारा महिमित करूँगा.” 29 भीड़ ने जब यह सुना तो कुछ ने कहा, “देखो, बादल गरजा!” अन्य कुछ ने कहा, “किसी स्वर्गदूत ने उनसे कुछ कहा है.” 30 इस पर मसीह येशु ने उनसे कहा, “यह आवाज़ मेरे नहीं, तुम्हारे लिए है. 31 इस संसार के न्याय का समय आ गया है और अब इस संसार के हाकिम को निकाल दिया जाएगा. 32 जब मैं पृथ्वी से ऊँचे पर उठाया जाऊँगा तो सब लोगों को अपनी ओर खींच लूँगा.” 33 इसके द्वारा मसीह येशु ने यह संकेत दिया कि उनकी मृत्यु किस प्रकार की होगी.
34 भीड़ ने उनसे प्रश्न किया, “हमने व्यवस्था में से सुना है कि मसीह का अस्तित्व सर्वदा रहेगा. आप यह कैसे कहते हैं कि मनुष्य के पुत्र का ऊँचे पर उठाया जाना ज़रूरी है? कौन है यह मनुष्य का पुत्र?”
35 तब मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “ज्योति तुम्हारे मध्य कुछ ही समय तक है. जब तक ज्योति है, चलते रहो, ऐसा न हो कि अन्धकार तुम्हें आ घेरे क्योंकि जो अन्धकार में चलता है, वह नहीं जानता कि किस ओर जा रहा है. 36 जब तक तुम्हारे पास ज्योति है, ज्योति में विश्वास करो कि तुम ज्योति की सन्तान बन सको.” यह कह कर मसीह येशु वहाँ से चले गए और उनसे छिपे रहे.
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