Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
13 विश्वास के उसी भाव में, जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: मैंने विश्वास किया, इसलिए मैं चुप न रहा. हम भी यह सब इसीलिए कहते हैं कि हमने भी विश्वास किया है 14 यह जानते हुए कि जिन्होंने प्रभु येशु को मरे हुओं में से जीवित किया, वही हमें भी मसीह येशु के साथ जीवित करेंगे तथा तुम्हारे साथ हमें भी अपनी उपस्थिति में ले जाएँगे. 15 यह सब तुम्हारे हित में है कि अनुग्रह, जो अधिक से अधिक मनुष्यों में व्याप्त होता जा रहा है, परमेश्वर की महिमा के लिए अधिक से अधिक धन्यवाद का कारण बने.
16 इसलिए हम हतोत्साहित नहीं होते. हमारा बाहरी मनुष्यत्व तो कमज़ोर होता जा रहा है किन्तु भीतरी मनुष्यत्व दिन-प्रतिदिन नया होता जा रहा है. 17 हमारा यह छोटा सा क्षण भर का कष्ट हमारे लिए ऐसी अनन्त और अत्याधिक महिमा को उत्पन्न कर रहा है, जिसकी तुलना नहीं कर सकते 18 क्योंकि हमने अपना ध्यान उस पर केन्द्रित नहीं किया, जो दिखाई देता है परन्तु उस पर, जो दिखाई नहीं देता है. जो कुछ दिखाई देता है, वह क्षण भर का है किन्तु जो दिखाई नहीं देता वह अनन्त काल का.
हमारा स्वर्गीय घर
5 हमें यह मालूम है कि जब हमारे घर—हमारी शारीरिक देह—को गिरा दिया जाएगा तो हमारे लिए परमेश्वर की ओर से एक ऐसा घर तय किया गया है, जो मनुष्य के हाथ का बनाया हुआ नहीं परन्तु स्वर्गीय और अनन्त काल का है.
मसीह येशु पर शैतान का दूत होने का आरोप
(मत्ति 12:22-37; लूकॉ 11:14-28)
20 जब मसीह येशु किसी के घर में थे तो दोबारा एक बड़ी भीड़ वहाँ इकठ्ठी हो गयी—यहाँ तक कि उनके लिए भोजन करना भी असम्भव हो गया. 21 जब मसीह येशु के परिवार जनों को इसका समाचार मिला तो वे मसीह येशु को अपने संरक्षण में अपने साथ ले जाने के लिए वहाँ आ गए—उनका विचार था कि मसीह येशु अपना मानसिक सन्तुलन खो चुके हैं.
22 येरूशालेम नगर से वहाँ आए हुए शास्त्रियों का मत था कि मसीह येशु में शैतान समाया हुआ है तथा वह दुष्टात्मा के प्रधान की सहायता से दुष्टात्मा निकाला करते हैं.
23 इस पर मसीह येशु ने उन्हें अपने पास बुला कर उनसे दृष्टान्तों में कहना प्रारम्भ किया, “भला शैतान ही शैतान को कैसे निकाल सकता है? 24 यदि किसी राज्य में फूट पड़ चुकी है तो उसका अस्तित्व बना नहीं रह सकता. 25 वैसे ही यदि किसी परिवार में फूट पड़ जाए तो वह स्थायी नहीं रह सकता. 26 यदि शैतान अपने ही विरुद्ध उठ खड़ा हुआ है और वह बंट चुका है तो उसका अस्तित्व बना रहना असम्भव है—वह तो नाश हो चुका है! 27 कोई भी किसी बलवान व्यक्ति के यहाँ जबरदस्ती प्रवेश कर उसकी सम्पत्ति उस समय तक लूट नहीं सकता जब तक वह उस बलवान व्यक्ति को बान्ध न ले. तभी उसके लिए उस बलवान व्यक्ति की सम्पत्ति लूटना सम्भव होगा.
28 “मैं तुम पर एक अटूट सच प्रकट कर रहा हूँ: मनुष्य द्वारा किए गए सभी पाप और परमेश्वर की निन्दाएँ क्षमा योग्य हैं 29 किन्तु पवित्रात्मा के विरुद्ध की गई निन्दा किसी भी प्रकार क्षमा योग्य नहीं है. वह व्यक्ति अनन्त पाप का दोषी है.”
30 मसीह येशु ने यह सब इसलिए कहा था कि शास्त्रियों ने उन पर दोष लगाया था कि मसीह येशु में प्रेत समाया हुआ है.
31 तभी मसीह येशु की माता और उनके भाई वहाँ आ गए. वे बाहर ही खड़े रहे. उन्होंने सन्देश भेज कर उन्हें बाहर बुलवाया. 32 भीड़ उन्हें घेरे हुए बैठी थी. उन्होंने मसीह येशु को बताया, “वह देखिए! आपकी माता तथा आपके भाई बाहर खड़े हैं.”
33 “कौन हैं मेरी माता और कौन हैं मेरे भाई?” मसीह येशु ने पूछा.
34 तब अपनी दृष्टि अपने आस-पास बैठे भीड़ पर डालते हुए उन्होंने कहा, “ये हैं मेरी माता तथा मेरे भाई! 35 जो कोई परमेश्वर की इच्छा को पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन तथा मेरी माता.”
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