Revised Common Lectionary (Complementary)
दाऊद का एक गीत।
1 धन्य है वह जन जिसके पाप क्षमा हुए।
धन्य है वह जन जिसके पाप धुल गए।
2 धन्य है वह जन
जिसे यहोवा दोषी न कहे,
धन्य है वह जन जो अपने गुप्त पापों को छिपाने का जतन न करे।
3 हे परमेश्वर, मैंने तुझसे बार बार विनती की,
किन्तु अपने छिपे पाप तुझको नहीं बताए।
जितनी बार मैंने तेरी विनती की, मैं तो और अधिक दुर्बल होता चला गया।
4 हे परमेश्वर, तूने मेरा जीवन दिन रात कठिन से कठिनतर बना दिया।
मैं उस धरती सा सूख गया हूँ जो ग्रीष्म ताप से सूख गई है।
5 किन्तु फिर मैंने यहोवा के समक्ष अपने सभी पापों को मानने का निश्चय कर लिया है। हे यहोवा, मैंने तुझे अपने पाप बता दिये।
मैंने अपना कोई अपराध तुझसे नहीं छुपाया।
और तूने मुझे मेरे पापों के लिए क्षमा कर दिया!
6 इसलिए, परमेश्वर, तेरे भक्तों को तेरी विनती करनी चाहिए।
वहाँ तक कि जब विपत्ति जल प्रलय सी उमड़े तब भी तेरे भक्तों को तेरी विनती करनीचाहिए।
7 हे परमेश्वर, तू मेरा रक्षास्थल है।
तू मुझको मेरी विपत्तियों से उबारता है।
तू मुझे अपनी ओट में लेकर विपत्तियों से बचाता है।
सो इसलिए मैं, जैसे तूने रक्षा की है, उन्हीं बातों के गीत गाया करता हूँ।
21 “अय्यूब, अब स्वयं को तू परमेश्वर को अर्पित कर दे, तब तू शांति पायेगा।
यदि तू ऐसा करे तो तू धन्य और सफल हो जायेगा।
22 उसकी सीख अपना ले,
और उसके शब्द निज मन में सुरक्षित रख।
23 अय्यूब, यदि तू फिर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास आये तो फिर से पहले जैसा हो जायेगा।
तुझको अपने घर से पाप को बहुत दूर करना चाहिए।
24 तुझको चाहिये कि तू निज सोना धूल में
और निज ओपीर का कुन्दन नदी में चट्टानो पर फेंक दे।
25 तब सर्वशक्तिमान परमेश्वर तेरे लिये
सोना और चाँदी बन जायेगा।
26 तब तू अति प्रसन्न होगा और तुझे सुख मिलेगा।
परमेश्वर के सामने तू बिना किसी शर्म के सिर उठा सकेगा।
27 जब तू उसकी विनती करेगा तो वह तेरी सुना करेगा,
जो प्रतिज्ञा तूने उससे की थी, तू उसे पूरा कर सकेगा।
28 जो कुछ तू करेगा उसमें तुझे सफलता मिलेगी,
तेरे मार्ग पर प्रकाश चमकेगा।
29 परमेश्वर अहंकारी जन को लज्जित करेगा,
किन्तु परमेश्वर नम्र व्यक्ति की रक्षा करेगा।
30 परमेश्वर जो मनुष्य भोला नहीं है उसकी भी रक्षा करेगा,
तेरे हाथों की स्वच्छता से उसको उद्धार मिलेगा।”
23 फिर अय्यूब ने उत्तर देते हुये कहा:
2 “मैं आज भी बुरी तरह शिकायत करता हूँ कि परमेश्वर मुझे कड़ा दण्ड दे रहा है,
इसलिये मैं शिकायत करता रहता हूँ।
3 काश! मैं यह जान पाता कि उसे कहाँ खोजूँ!
काश! मैं जान पाता की परमेश्वर के पास कैसे जाऊँ!
4 मैं अपनी कथा परमेश्वर को सुनाता,
मेरा मुँह युक्तियों से भरा होता यह दर्शाने को कि मैं निर्दोष हूँ।
5 मैं यह जानना चाहता हूँ कि परमेश्वर कैसे मेरे तर्को का उत्तर देता है,
तब मैं परमेश्वर के उत्तर समझ पाता।
6 क्या परमेश्वर अपनी महाशक्ति के साथ मेरे विरुद्ध होता
नहीं! वह मेरी सुनेगा।
7 मैं एक नेक व्यक्ति हूँ।
परमेश्वर मुझे अपनी कहानी को कहने देगा, तब मेरा न्यायकर्ता परमेश्वर मुझे मुक्त कर देगा।
8 “किन्तु यदि मैं पूरब को जाऊँ तो परमेश्वर वहाँ नहीं है
और यदि मैं पश्चिम को जाऊँ, तो भी परमेश्वर मुझे नहीं दिखता है।
9 परमेश्वर जब उत्तर में क्रियाशील रहता है तो मैं उसे देख नहीं पाता हूँ।
जब परमेश्वर दक्षिण को मुड़ता है, तो भी वह मुझको नहीं दिखता है।
10 किन्तु परमेश्वर मेरे हर चरण को देखता है, जिसको मैं उठाता हूँ।
जब वह मेरी परीक्षा ले चुकेगा तो वह देखेगा कि मुझमें कुछ भी बुरा नहीं है, वह देखेगा कि मैं खरे सोने सा हूँ।
11 परमेश्वर जिस को चाहता है मैं सदा उस पर चला हूँ,
मैं कभी भी परमेश्वर की राह पर चलने से नहीं मुड़ा।
12 मैं सदा वही बात करता हूँ जिनकी आशा परमेश्वर देता है।
मैंने अपने मुख के भोजन से अधिक परमेश्वर के मुख के शब्दों से प्रेम किया है।
13 “किन्तु परमेश्वर कभी नहीं बदलता।
कोई भी व्यक्ति उसके विरुद्ध खड़ा नहीं रह सकता है।
परमेश्वर जो भी चाहता है, करता है।
14 परमेश्वर ने जो भी योजना मेरे विरोध में बना ली है वही करेगा,
उसके पास मेरे लिये और भी बहुत सारी योजनायें है।
15 मैं इसलिये डरता हूँ, जब इन सब बातों के बारे में सोचता हूँ।
इसलिये परमेश्वर मुझको भयभीत करता है।
16 परमेश्वर मेरे हृदय को दुर्बल करता है और मेरी हिम्मत टूटती है।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर मुझको भयभीत करता है।
17 यद्यपि मेरा मुख सघन अंधकार ढकता है
तो भी अंधकार मुझे चुप नहीं कर सकता है।
1 यीशु मसीह के सेवक तथा प्रेरित शमौन पतरस की ओर से उन लोगों के नाम जिन्हें परमेश्वर से हमारे जैसा ही विश्वास प्राप्त है। क्योंकि हमारा परमेश्वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह न्यायपूर्ण है।
2 तुम परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु मसीह को जान चुके हो इसलिए तुम्हें परमेश्वर की कृपा और अनुग्रह अधिक से अधिक प्राप्त हो।
परमेश्वर ने हमें सब कुछ दिया है
3 अपने जीवन के लिए और परमेश्वर की सेवा के लिए जो कुछ हमें चाहिए, अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा उसने सब कुछ हमें दिया है। क्योंकि हम उसे जानते हैं, जिसने अपनी धार्मिकता और महिमा के कारण हमें बुलाया है। 4 इन्हीं के द्वारा उसने हमें वे महान और अमूल्य वरदान दिये हैं, जिन्हें देने की उसने प्रतिज्ञा की थी ताकि उनके द्वारा तुम स्वयं परमेश्वर के समान हो जाओ और उस विनाश से बच जाओ जो लोगों की बुरी इच्छाओं के कारण इस जगत में स्थित है।
5 सो इसलिए अपने विश्वास में उत्तम गुणों को, उत्तम गुणों में ज्ञान को, 6 ज्ञान में आत्मसंयम को, आत्मसंयम में धैर्य को, धैर्य में परमेश्वर की भक्ति को, 7 भक्ति में भाईचारे को और भाईचारे में प्रेम को उदारता के साथ बढ़ाते चलो। 8 क्योंकि यदि ये गुण तुममें हैं और उनका विकास हो रहा है तो वे तुम्हें कर्मशील और सफल बना देंगे तथा उनसे तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह का परिपूर्ण ज्ञान प्राप्त होगा 9 किन्तु जिसमें ये गुण नहीं हैं, उसमें दूर-दृष्टि नहीं है, वह अन्धा है। तथा वह यह भूल चुका है कि उसके पूर्व पापों को धोया जा चुका है।
10 इसलिए हे भाइयो, यह दिखाने के लिए और अधिक तत्पर रहो कि तुम्हें वास्तव में परमेश्वर द्वारा बुलाया गया है और चुना गया है क्योंकि यदि तुम इन बातों को करते हो तो न कभी ठोकर खाओगे और न ही गिरोगे, 11 और इस प्रकार हमारे प्रभु एवम् उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनन्त राज्य में तुम्हें प्रवेश देकर परमेश्वर अपनी उदारता दिखायेगा।
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