Revised Common Lectionary (Complementary)
काफ्
81 मैं तेरी प्रतिज्ञा में मरने को तत्पर हूँ कि तू मुझको बचायेगा।
किन्तु यहोवा, मुझको उसका भरोसा है, जो तू कहा करता था।
82 जिन बातों का तूने वचन दिया था, मैं उनकी बाँट जोहता रहता हूँ। किन्तु मेरी आँखे थकने लगी है।
हे यहोवा, मुझे कब तू आराम देगा
83 यहाँ तक जब मैं कूड़े के ढेर पर दाखमधु की सूखी मशक सा हूँ,
तब भी मैं तेरे विधान को नहीं भूलूँगा।
84 मैं कब तक जीऊँगा हे यहोवा, कब दण्ड देगा
तू ऐसे उन लोगों को जो मुझ पर अत्याचार किया करते हैं
85 कुछ अहंकारी लोग ने अपनी झूठों से मुझ पर प्रहार किया था।
यह तेरी शिक्षाओं के विरूद्ध है।
86 हे यहोवा, सब लोग तेरी शिक्षाओं के भरोसे रह सकते हैं।
झूठे लोग मुझको सता रहे है।
मेरी सहायता कर!
87 उन झूठे लोगों ने मुझको लगभग नष्ट कर दिया है।
किन्तु मैंने तेरे आदेशों को नहीं छोड़ा।
88 हे यहोवा, अपनी सत्य करूणा को मुझ पर प्रकट कर।
तू मुझको जीवन दे मैं तो वही करूँगा जो कुछ तू कहता है।
8 “मनुष्य के पुत्र, तुम्हें उन बातों को सुनना चाहिये जिन्हें मैं तुमसे कहता हूँ। उन विद्रोही लोगों की तरह मेरे विरुद्ध न जाओ। अपना मुँह खोलो जो बात मैं तुमसे कहता हूँ, स्वीकार करो और उन वचनों को लोगों से कहो। इन वचनों को खा लो।”
9 तब मैंने (यहेजकेल) एक भुजा को अपनी ओर बढ़ते देखा। वह एक गोल किया हुआ लम्बा पत्र जिस पर वचन लिखे थे, पकड़े हुए थे। 10 मैंने उस गोल किये हुए पत्र को खोला और उस पर सामने और पीछे वचन लिखे थे। उसमें सभी प्रकार के करूण गीत, कथायें और चेतावनियाँ थीं।
3 परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, जो तुम देखते हो उसे खा जाओ। इस गोल किये पत्र कोखा जाओ और तब जाकर इस्राएल के लोगों से ये बाते कहो।”
2 इसलिये मैंने अपना मुँह खोला और उसने गोल किये पत्र को मेरे मुँह में रखा। 3 तब परमेश्वर ने कहा, “मनुष्य के पुत्र, मैं तुम्हें इस गोल किये पत्र को दे रहा हूँ। इसे निगल जाओ! इस गोल किये पत्र को अपने शरीर में भर जाने दो।”
इसलिये मैं गोल किये पत्र को खा गया। यह मेरे मुँह में शहद की तरह मीठा था।
4 तब परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के परिवार में जाओ। मेरे कहे हुए वचन उनसे कहो। 5 मैं तुम्हें किन्हीं विदेशियों में नहीं भेज रहा हूँ जिनकी बातें तुम समझ न सको। तुम्हें दूसरी भाषा सीखनी नहीं पड़ेगी। मैं तुम्हें इस्राएल के परिवार में भेज रहा हूँ। 6 मैं तुम्हें कोई भिन्न देशों में नहीं भेज रहा हूँ जहाँ लोग ऐसी भाषा बोलते हैं कि तुम समझ नहीं सकते। यदि तुम उन लोगों के पास जाओगे और उनसे बातें करोगे तो वे तुम्हारी सुनेंगे। किन्तु तुम्हें उन कठिन भाषाओं को नहीं समझना है। 7 नहीं! मैं तो तुम्हें इस्राएल के परिवार में भेज रहा हूँ। केवल वे लोग ही कठोर चित्त वाले हैं—वे बहुत ही हठी है और इस्राएल के लोग तुम्हारी सुनने से इन्कार कर देंगे। वे मेरी सुनना नहीं चाहते! 8 किन्तु मैं तुमको उतना ही हठी बनाऊँगा जितने वे हैं। तुम्हारा चित्त ठीक उतना ही कठोर होगा जितना उनका! 9 हीरा अग्नि—चट्टान से भी अधिक कठोर होता है। उसी प्रकार तुम्हारा चित्त उनके चित्त से अधिक कठोर होगा। तुम उनसे अधिक हठी होगे अत: तुम उन लोगों से नहीं डरोगे। तुम उन लोगों से नहीं डरोगे जो सदा मेरे विरुद्ध जाते हैं।”
10 तब परमेश्वर ने मुझसे कहा, “मनुष्य के पुत्र, तुम्हें मेरी हर एक बात, जो मैं तुमसे कहता हूँ, सुनना होगा और तुम्हें उन बातों को याद रखना होगा। 11 तब तुम अपने उन सभी लोगों के बीच जाओ जो देश—निष्कासित हैं। उनके पास जाओ और कहो, ‘हमारा स्वामी यहोवा ये बातें कहता है,’ वे मेरी नहीं सुनेंगे और वे पाप करना बन्द नहीं करेंगे। किन्तु तुम्हें ये बातें कहनी हैं।”
पौलुस की यातनाएँ
16 मैं फिर दोहराता हूँ कि मुझे कोई मूर्ख न समझे। किन्तु यदि फिर भी तुम ऐसे समझते हो तो मुझे मूर्ख बनाकर ही स्वीकार करो। ताकि मैं भी कुछ गर्व कर सकूँ। 17 अब यह जो मैं कह रहा हूँ, वह प्रभु के अनुसार नहीं कर रहा हूँ बल्कि एक मूर्ख के रूप में गर्वपूर्ण विश्वास के साथ कह रहा हूँ। 18 क्योंकि बहुत से लोग अपने सांसारिक जीवन पर ही गर्व करते हैं। 19 फिर तो मैं भी गर्व करूँगा। और फिर तुम तो इतने समझदार हो कि मूर्खों की बातें प्रसन्नता के साथ सह लेते हो। 20 क्योंकि यदि कोई तुम्हें दास बनाये, तुम्हारा शोषण करे, तुम्हें किसी जाल में फँसाये, अपने को तुमसे बड़ा बनाये अथवा तुम्हारे मुँह पर थप्पड़ मारे तो तुम उसे सह लेते हो। 21 मैं लज्जा के साथ कह रहा हूँ, हम बहुत दुर्बल रहे हैं।
यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु पर गर्व करने का साहस करता है तो वैसा ही साहस मैं भी करूँगा। (मैं मूर्खतापूर्वक कह रहा हूँ) 22 इब्रानी वे ही तो नहीं हैं। मैं भी हूँ। इस्राएली वे ही तो नहीं हैं। मैं भी हूँ। इब्राहीम की संतान वे ही तो नहीं हैं। मैं भी हूँ। 23 क्या वे ही मसीह के सेवक हैं? (एक सनकी की तरह मैं यह कहता हूँ) कि मैं तो उससे भी बड़ा मसीह का दास हूँ। मैंने बहुत कठोर परिश्रम किया है। मैं बार बार जेल गया हूँ। मुझे बार बार पीटा गया है। अनेक अवसरों पर मेरा मौत से सामना हुआ है।
24 पाँच बार मैंने यहूदियों से एक कम चालीस चालीस कोड़े खाये हैं। 25 मैं तीन-तीन बार लाठियों से पीटा गया हूँ। एक बार तो मुझ पर पथराव भी किया गया। तीन बार मेरा जहाज़ डूबा। एक दिन और एक रात मैंने समुद्र के गहरे जल में बिताई। 26 मैंने भयानक नदियों, खूँखार डाकुओं स्वयं अपने लोगों, विधर्मियों, नगरों, ग्रामों, समुद्रों और दिखावटी बन्धुओं के संकटों के बीच अनेक यात्राएँ की हैं।
27 मैंने कड़ा परिश्रम करके थकावट से चूर हो कर जीवन जिया है। अनेक अवसरों पर मैं सो तक नहीं पाया हूँ। भूखा और प्यासा रहा हूँ। प्रायः मुझे खाने तक को नहीं मिल पाया है। बिना कपड़ों के ठण्ड में ठिठुरता रहा हूँ। 28 और अब और अधिक क्या कहूँ? मुझ पर सभी कलीसियाओं की चिंता का भार भी प्रतिदिन बना रहा है। 29 किसकी दुर्बलता मुझे शक्तिहीन नहीं कर देती है और किसके पाप में फँसने से मैं बेचैन नहीं होता हूँ?
30 यदि मुझे बढ़ चढ़कर बातें करनी ही हैं तो मैं उन बातों को करूँगा जो मेरी दुर्बलता की हैं। 31 परमेश्वर और प्रभु यीशु का परमपिता जो सदा ही धन्य है, जानता है कि मैं कोई झूठ नहीं बोल रहा हूँ। 32 जब मैं दमिश्क में था तो महाराजा अरितास के राज्यपाल ने दमिश्क पर घेरा डाल कर मुझे बंदी कर लेने का जतन किया था। 33 किन्तु मुझे नगर की चार दीवारी की खिड़की से टोकरी में बैठा कर नीचे उतार दिया गया और मैं उसके हाथों से बच निकला।
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