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Revised Common Lectionary (Complementary)

Daily Bible readings that follow the church liturgical year, with thematically matched Old and New Testament readings.
Duration: 1245 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 107:1-16

पाँचवाँ भाग

(भजनसंहिता 107–150)

यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह उत्तम है।
    उसका प्रेम अमर है।
हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने बचाया है, इन राष्ट्रों को कहे।
    हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने अपने शत्रुओं से छुड़ाया उसके गुण गाओ।
यहोवा ने निज भक्तों को बहुत से अलग अलग देशों से इकट्ठा किया है।
    उसने उन्हें पूर्व और पश्चिम से, उत्तर और दक्षिण से जुटाया है।

कुछ लोग निर्जन मरूभूमि में भटकते रहे।
    वे लोग ऐसे एक नगर की खोज में थे जहाँ वे रह सकें।
    किन्तु उन्हें कोई ऐसा नगर नहीं मिला।
वे लोग भूखे थे और प्यासे थे
    और वे दुर्बल होते जा रहे थे।
ऐसे उस संकट में सहारा पाने को उन्होंने यहोवा को पुकारा।
    यहोवा ने उन सभी लोगों को उनके संकट से बचा लिया।
परमेश्वर उन्हें सीधा उन नगरों में ले गया जहाँ वे बसेंगे।
परमेश्वर का धन्यवाद करो उसके प्रेम के लिये
    और उन अद्भुत कर्मों के लिये जिन्हें वह अपने लोगों के लिये करता है।
प्यासी आत्मा को परमेश्वर सन्तुष्ट करता है।
    परमेश्वर उत्तम वस्तुओं से भूखी आत्मा का पेट भरता है।

10 परमेश्वर के कुछ भक्त बन्दी बने ऐसे बन्दीगृह में, वे तालों में बंद थे, जिसमें घना अंधकार था।
11 क्यों? क्योंकि उन लोगों ने उन बातों के विरूद्ध लड़ाईयाँ की थी जो परमेश्वर ने कहीं थी,
    परम परमेश्वर की सम्मति को उन्होंने सुनने से नकारा था।
12 परमेश्वर ने उनके कर्मो के लिये जो उन्होंने किये थे उन लोगों के जीवन को कठिन बनाया।
    उन्होंने ठोकर खाई और वे गिर पड़े, और उन्हें सहारा देने कोई भी नहीं मिला।
13 वे व्यक्ति संकट में थे, इसलिए सहारा पाने को यहोवा को पुकारा।
    यहोवा ने उनके संकटों से उनकी रक्षा की।
14 परमेश्वर ने उनको उनके अंधेरे कारागारों से उबार लिया।
    परमेश्वर ने वे रस्से काटे जिनसे उनको बाँधा गया था।
15 यहोवा का धन्यवाद करो।
    उसके प्रेम के लिये और उन अद्भुत कामों के लिये जिन्हें वह लोगों के लिये करता है उसका धन्यवाद करो।
16 परमेश्वर हमारे शत्रुओं को हराने में हमें सहायता देता है। उनके काँसें के द्वारों को परमेश्वर तोड़ गिरा सकता है।
    परमेश्वर उनके द्वारों पर लगी लोहे कि आगलें छिन्न—भिन्न कर सकता है।

यशायाह 60:15-22

15 “फिर तुझको अकेला नहीं छोड़ा जायेगा।
    फिर कभी तुझसे घृणा नहीं होगी।
तू फिर से कभी भी उजड़ेगी नहीं।
    तू महान रहेगी, तू सदा और सर्वदा आनन्दित रहेगी।
16 तेरी जरूरत की वस्तुएँ तुझको जातियाँ प्रदान करेंगी।
    यह इतना ही सहज होगा जैसे दूध मुँह बच्चे को माँ का दूध मिलता है।
वैसे ही तू शासकों की सम्पत्तियाँ पियेगी।
    तब तुझको पता चलेगा कि यह मैं यहोवा हूँ जो तेरी रक्षा करता है।
    तुझको पता चल जायेगा कि वह याकूब का महामहिम तुझको बचाता है।

17 “फिलहाल तेरे पास ताँबा है
    परन्तु इसकी जगह मैं तुझको सोना दूँगा।
अभी तो तेरे पास लोहा है,
    पर उसकी जगह तुझे चाँदी दूँगा।
तेरी लकड़ी की जगह मैं तुझको ताँबा दूँगा।
    तेरे पत्थरों की जगह तुझे लोहा दूँगा और तुझे दण्ड देने की जगह मैं तुझे सुख चैन दूँगा।
जो लोग अभी तुझको दु:ख देते हैं
    वे ही लोग तेरे लिये ऐसे काम करेंगे जो तुझे सुख देंगे।
18 तेरे देश में हिंसा और तेरी सीमाओं में तबाही और बरबादी कभी नहीं सुनाई पड़ेगी।
    तेरे देश में लोग फिर कभी तेरी वस्तुएँ नहीं चुरायेंगे।
तू अपने परकोटों का नाम ‘उद्धार’ रखेगा
    और तू अपने द्वारों का नाम ‘स्तुति’ रखेगा।

19 “दिन के समय में तेरे लिये सूर्य का प्रकाश नहीं होगा
    और रात के समय में चाँद का प्रकाश तेरी रोशनी नहीं होगी।
क्यों क्योंकि यहोवा ही सदैव तेरे लिये प्रकाश होगा।
    तेरा परमेश्वर तेरी महिमा बनेगा।
20 तेरा ‘सूरज’ फिर कभी भी नहीं छिपेगा।
    तेरा ‘चाँद’ कभी भी काला नहीं पड़ेगा।
क्यों क्योंकि यहोवा का प्रकाश सदा सर्वदा तेरे लिये होगा
    और तेरा दु:ख का समय समाप्त हो जायेगा।

21 “तेरे सभी लोग उत्तम बनेंगे।
    उनको सदा के लिये धरती मिल जायेगी।
मैंने उन लोगों को रचा है।
    वे अद्भुत पौधे मेरे अपने ही हाथों से लगाये हुए हैं।
22 छोटे से छोटा भी विशाल घराना बन जायेगा।
    छोटे से छोटा भी एक शक्तिशाली राष्ट्र बन जायेगा।
जब उचित समय आयेगा,
    मैं यहोवा शीघ्र ही आ जाऊँगा
    और मैं ये सभी बातें घटित कर दूँगा।”

यूहन्ना 8:12-20

जगत का प्रकाश यीशु

12 फिर वहाँ उपस्थित लोगों से यीशु ने कहा, “मैं जगत का प्रकाश हूँ। जो मेरे पीछे चलेगा कभी अँधेरे में नहीं रहेगा। बल्कि उसे उस प्रकाश की प्राप्ति होगी जो जीवन देता है।”

13 इस पर फ़रीसी उससे बोले, “तू अपनी साक्षी अपने आप दे रहा है, इसलिये तेरी साक्षी उचित नहीं है।”

14 उत्तर में यीशु ने उनसे कहा, “यदि मैं अपनी साक्षी स्वयं अपनी तरफ से दे रहा हूँ तो भी मेरी साक्षी उचित है क्योंकि मैं यह जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। किन्तु तुम लोग यह नहीं जानते कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। 15 तुम लोग इंसानी सिद्धान्तों पर न्याय करते हो, मैं किसी का न्याय नहीं करता। 16 किन्तु यदि मैं न्याय करूँ भी तो मेरा न्याय उचित होगा। क्योंकि मैं अकेला नहीं हूँ बल्कि परम पिता, जिसने मुझे भेजा है वह और मैं मिलकर न्याय करते हैं। 17 तुम्हारे विधान में लिखा है कि दो व्यक्तियों की साक्षी न्याय संगत है। 18 मैं अपनी साक्षी स्वयं देता हूँ और परम पिता भी, जिसने मुझे भेजा है, मेरी ओर से साक्षी देता है।”

19 इस पर लोगों ने उससे कहा, “तेरा पिता कहाँ है?”

यीशु ने उत्तर दिया, “न तो तुम मुझे जानते हो, और न मेरे पिता को। यदि तुम मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जान लेते।” 20 मन्दिर में उपदेश देते हुए, भेंट-पात्रों के पास से उसने ये शब्द कहे थे। किन्तु किसी ने भी उसे बंदी नहीं बनाया क्योंकि उसका समय अभी नहीं आया था।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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