Revised Common Lectionary (Complementary)
8 तब परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों से कहा, 9 “अब मैं तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को वचन देता हूँ। 10 मैं यह वचन तुम्हारे साथ जहाज़ से बाहर आने वाले सभी पक्षियों, सभी पशुओं तथा सभी जानवरों को देता हूँ। मैं यह वचन पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों को देता हूँ।” 11 मैं तुमको वचन देता हूँ, “जल की बाढ़ से पृथ्वी का सारा जीवन नष्ट हो गया था। किन्तु अब यह कभी नहीं होगा। अब बाढ़ फिर कभी पृथ्वी के जीवन को नष्ट नहीं करेगी।”
12 और परमेश्वर ने कहा, “यह प्रमाणित करने के लिए कि मैंने तुमको वचन दिया है कि मैं तुमको कुछ दूँगा। यह प्रमाण बतायेगा कि मैंने तुम से और पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों से एक वाचा बाँधी है। यह वाचा भविष्य में सदा बनी रहेगी जिसका प्रमाण यह है 13 कि मैंने बादलों में मेघधनुष बनाया है। यह मेघधनुष मेरे और पृथ्वी के बीच हुए वाचा का प्रमाण है। 14 जब मैं पृथ्वी के ऊपर बादलों को लाऊँगा तो तुम बादलों में मेघधनुष को देखोगे। 15 जब मैं इस मेघधनुष को देखूँगा तब मैं तुम्हारे, पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों और अपने बीच हुई वाचा को याद करूँगा। यह वाचा इस बात की है कि बाढ़ फिर कभी पृथ्वी के प्राणियों को नष्ट नहीं करेगी। 16 जब मैं ध्यान से बादलों में मेघधनुष को देखूँगा तब मैं उस स्थायी वाचा को याद करूँगा। मैं अपने और पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों के बीच हुई वाचा को याद करूँगा।”
17 इस तरह यहोवा ने नूह से कहा, “वह मेघधनुष मेरे और पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों के बीच हुई वाचा का प्रमाण है।”
दाऊद को समर्पित।
1 हे यहोवा, मैं स्वयं को तुझे समर्पित करता हूँ।
2 मेरे परमेश्वर, मेरा विश्वस तुझ पर है।
मैं तुझसे निराश नहीं होऊँगा।
मेरे शत्रु मेरी हँसी नहीं उड़ा पायेंगे।
3 ऐसा व्यक्ति, जो तुझमें विश्वास रखता है, वह निराश नहीं होगा।
किन्तु विश्वासघाती निराश होंगे और,
वे कभी भी कुछ नहीं प्राप्त करेंगे।
4 हे यहोवा, मेरी सहायता कर कि मैं तेरी राहों को सीखूँ।
तू अपने मार्गों की मुझको शिक्षा दे।
5 अपनी सच्ची राह तू मुझको दिखा और उसका उपदेश मुझे दे।
तू मेरा परमेश्वर मेरा उद्धारकर्ता है।
मुझको हर दिन तेरा भरोसा है।
6 हे यहोवा, मुझ पर अपनी दया रख
और उस ममता को मुझ पर प्रकट कर, जिसे तू हरदम रखता है।
7 अपने युवाकाल में जो पाप और कुकर्म मैंने किए, उनको याद मत रख।
हे यहोवा, अपने निज नाम निमित, मुझको अपनी करुणा से याद कर।
8 यहोवा सचमुच उत्तम है,
वह पापियों को जीवन का नेक राह सिखाता है।
9 वह दीनजनों को अपनी राहों की शिक्षा देता है।
बिना पक्षपात के वह उनको मार्ग दर्शाता है।
10 यहोवा की राहें उन लोगों के लिए क्षमापूर्ण और सत्य है,
जो उसके वाचा और प्रतिज्ञाओं का अनुसरण करते हैं।
18 क्योंकि मसीह ने भी हमारे पापों
के लिए दुःख उठाया।
अर्थात् वह जो निर्दोष था
हम पापियों के लिये एक बार मर गया
कि हमें परमेश्वर के समीप ले जाये।
शरीर के भाव से तो वह मारा गया
पर आत्मा के भाव से जिलाया गया।
19 आत्मा की स्थिति में ही उसने जाकर उन स्वर्गीय आत्माओं को जो बंदी थीं उन बंदी आत्माओं को संदेश दिया 20 जो उस समय परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानने वाली थी जब नूह की नाव बनायी जा रही थी और परमेश्वर धीरज के साथ प्रतीक्षा कर रहा था उस नाव में थोड़े से अर्थात् केवल आठ व्यक्ति ही पानी से बच पाये थे। 21 यह पानी उस बपतिस्मा के समान है जिससे अब तुम्हारा उद्धार होता है। इसमें शरीर का मैल छुड़ाना नहीं, वरन एक शुद्ध अन्तःकरण के लिए परमेश्वर से विनती है। अब तो बपतिस्मा तुम्हें यीशु मसीह के पुनरुत्थान द्वारा बचाता है। 22 वह स्वर्ग में परमेश्वर के दाहिने विराजमान है, और अब स्वर्गदूत, अधिकारीगण और सभी शक्तियाँ उसके अधीन कर दी गयी है।
यीशु का बपतिस्मा और उसकी परीक्षा
(मत्ती 3:13-17; लूका 3:21-22)
9 उन दिनों ऐसा हुआ कि यीशु नासरत से गलील आया और यर्दन नदी में उसने यूहन्ना से बपतिस्मा लिया। 10 जैसे ही वह जल से बाहर आया उसने आकाश को खुले हुए देखा। और देखा कि एक कबूतर के रूप में आत्मा उस पर उतर रहा है। 11 फिर आकाशवाणी हुई: “तू मेरा पुत्र है, जिसे मैं प्यार करता हूँ। मैं तुझ से बहुत प्रसन्न हूँ।”
यीशु की परीक्षा
(मत्ती 4:1-11; लूका 4:1-13)
12 फिर आत्मा ने उसे तत्काल बियाबान जंगल में भेज दिया। 13 जहाँ चालीस दिन तक शैतान उसकी परीक्षा लेता रहा। वह जंगली जानवरों के साथ रहा और स्वर्गदूत ने उसकी सेवा करते रहे।
यीशु के कार्य का आरम्भ
(मत्ती 4:12-17; लूका 4:14-15)
14 यूहन्ना को बंदीगृह में डाले जाने के बाद यीशु गलील आया। और परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने लगा। 15 उसने कहा, “समय पूरा हो चुका है। परमेश्वर का राज्य आ रहा है। मन फिराओ और सुसमाचार में विश्वास करो।”
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