Revised Common Lectionary (Complementary)
12 किन्तु हे यहोवा, तू तो सदा ही अमर रहेगा।
तेरा नाम सदा और सर्वदा बना ही रहेगा।
13 तेरा उत्थान होगा और तू सिय्योन को चैन देगा।
वह समय आ रहा है, जब तू सिय्योन पर कृपालु होगा।
14 तेरे भक्त, उसके (यरूशलेम के) पत्यरों से प्रेम करते हैं।
वह नगर उनको भाता है।
15 लोग यहोवा के नाम कि आराधना करेंगे।
हे परमेश्वर, धरती के सभी राजा तेरा आदर करेंगे।
16 क्यों? क्योंकि यहोवा फिर से सिय्योन को बनायेगा।
लोग फिर उसके (यरूशलेम के) वैभव को देखेंगे।
17 जिन लोगों को उसने जीवित छोड़ा है, परमेश्वर उनकी प्रार्थनाएँ सुनेगा।
परमेश्वर उनकी विनतियों का उत्तर देगा।
18 उन बातों को लिखो ताकि भविष्य के पीढ़ी पढ़े।
और वे लोग आने वाले समय में यहोवा के गुण गायेंगे।
19 यहोवा अपने ऊँचे पवित्र स्थान से नीचे झाँकेगा।
यहोवा स्वर्ग से नीचे धरती पर झाँकेगा।
20 वह बंदी की प्रार्थनाएँ सुनेगा।
वह उन व्यक्तियों को मुक्त करेगा जिनको मृत्युदण्ड दिया गया।
21 फिर सिय्योन में लोग यहोवा का बखान करेंगे।
यरूशलेम में लोग यहोवा का गुण गायेंगे।
22 ऐसा तब होगा जब यहोवा लोगों को फिर एकत्र करेगा,
ऐसा तब होगा जब राज्य यहोवा की सेवा करेंगे।
23 मेरी शक्ति ने मुझको बिसार दिया है।
यहोवा ने मेरा जीवन घटा दिया है।
24 इसलिए मैंने कहा, “मेरे प्राण छोटी उम्र में मत हरा।
हे परमेश्वर, तू सदा और सर्वदा अमर रहेगा।
25 बहुत समय पहले तूने संसार रचा!
तूने स्वयं अपने हाथों से आकाश रचा।
26 यह जगत और आकाश नष्ट हो जायेंगे,
किन्तु तू सदा ही जीवित रहेगा!
वे वस्त्रों के समान जीर्ण हो जायेंगे।
वस्त्रों के समान ही तू उन्हें बदलेगा। वे सभी बदल दिये जायेंगे।
27 हे परमेश्वर, किन्तु तू कभी नहीं बदलता:
तू सदा के लिये अमर रहेगा।
28 आज हम तेरे दास है,
हमारी संतान भविष्य में यही रहेंगी
और उनकी संताने यहीं तेरी उपासना करेंगी।”
शूनेम में एक स्त्री एलीशा को कमरा देती है
8 एक दिन एलीशा शूनेम को गया। शूनेम में एक महत्वपूर्ण स्त्री रहती थी। इस स्त्री ने एलीशा से कहा कि वह ठहरे और उसके घर भोजन करे। इसलिये जब भी एलीशा उस स्थान से होकर जाता था तब भोजन करने के लिये वहाँ रूकता था।
9 उस स्त्री ने अपने पति से कहा, “देखो मैं समझती हूँ कि एलीशा परमेश्वर का जन है। वह सदा हमारे घर होकर जाता है। 10 कृपया हम लोग एक कमरा एलीशा के लिये छत पर बनाएं। इस कमरे में हम एक बिछौना लगा दें। उसमें हम लोग एक मेज, एक कुर्सी और एक दीपाधार रख दें। तब जब वह हमारे यहाँ आए तो वह इस कमरे को अपने रहने के लिये रख सकता है।”
11 एक दिन एलीशा उस स्त्री के घर आया। वह उस कमरे में गया और वहाँ आराम किया। 12 एलीशा ने अपने सेवक गेहजी से कहा, “शूनेमिन स्त्री को बुलाओ।”
सेवक ने शूनेमिन स्त्री को बुलाया और वह उसके सामने आ खड़ी हूई। 13 एलीशा ने अपने सेवक से कहा—अब इस स्त्री से कहो, “देखो हम लोगों की देखभाल के लिये तुमने यथासम्भव अच्छा किया है। हम लोग तुम्हारे लिये क्या करें क्या तुम चाहती हो कि हम लोग तुम्हारे लिये राजा या सेना के सेनापती से बात करें”
उस स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं यहाँ बहुत अच्छी तरह अपने लोगों में रह रही हूँ।”
14 एलीशा ने गेहजी से कहा, “हम उसके लिये क्या कर सकते हैं”
गेहजी ने कहा, “मैं जानता हूँ कि उसका पुत्र नहीं है और उसका पति बूढ़ा है।”
15 तब एलीशा ने कहा, “उसे बुलाओ।”
अतः गेहजी ने उस स्त्री को बुलाया। वह आई और उसके दरवाजे के पास खड़ी हो गई। 16 एलीशा ने स्त्री से कहा, “अगले बसन्त में इस समय तुम अपने पुत्र को गले से लगा रही होगी।”
उस स्त्री ने कहा, “नहीं महोदय! परमेश्वर के जन, मुझसे झूठ न बोलो।”
शूनेम की स्त्री को पुत्र होता है
17 किन्तु वह स्त्री गर्भवती हुई। उसने अगले बसन्त में एक पुत्र को जन्म दिया, जैसा एलीशा ने कहा था।
शूनेमिन स्त्री का पुत्र पुनःजीवित होता है
32 एलीशा घर में आया और बच्चा अपने बिछौने पर मरा पड़ा था। 33 एलीशा कमरे में आया और उसने दरवाजा बन्द कर लिया। अब एलीशा और वह बच्चा कमरे में अकेले थे। तब एलीशा ने यहोवा से प्रार्थना की। 34 एलीशा बिछौनो पर गया और बच्चे पर लेटा। एलीशा ने अपना मुख बच्चे के मुख पर रखा। एलीशा ने अपनी आँखें बच्चे की आँखों पर रखीं। एलीशा ने अपने हाथों को बच्चे के हाथों पर रखा। एलीशा ने अपने को बच्चे के ऊपर फैलाया। तब बच्चे का शरीर गर्म हो गया।
35 एलीशा कमरे के बाहर आया और घर में चारों ओर घूमा। तब वह कमरे में लौटा और बच्चे के ऊपर लेट गया। तब बच्चा सात बार छींका और उसने आँखें खोलीं।
36 एलीशा ने गेहजी को बुलाया और कहा, “शूनेमिन स्त्री को बुलाओ!”
गेहजी ने शूनेमिन स्त्री को बुलाया और वह एलीशा के पास आई। एलीशा ने कहा, “अपने पुत्र को उठा लो।”
37 तब शूनेमिन स्त्री कमरे में गई और एलीशा के चरणों पर झुकी। तब उसने अपने पुत्र को उठाया और वह बाहर गई।
इकुनियुम में पौलुस और बरनाबास
14 इसी प्रकार पौलुस और बरनाबास इकुनियुम में यहूदी आराधनालय में गये। वहाँ उन्होंने इस ढंग से व्याख्यान दिया कि यहूदियों के एक विशाल जनसमूह ने विश्वास धारण किया। 2 किन्तु उन यहूदियों ने जो विश्वास नहीं कर सके थे, ग़ैर यहूदियों को भड़काया और बन्धुओं के विरूद्ध उनके मनों में कटुता पैदा कर दी।
3 सो पौलुस और बरनाबास वहाँ बहुत दिनों तक ठहरे रहे तथा प्रभु के विषय में निर्भयता से प्रवचन करते रहे। उनके द्वारा प्रभु अद्भुत चिन्ह और आश्चर्यकर्मों को करवाता हुआ अपने दया के संदेश की प्रतिष्ठा कराता रहा। 4 उधर नगर के लोगों में फूट पड़ गयी। कुछ प्रेरितों की तरफ और कुछ यहूदियों की तरफ़ हो गये।
5 फिर जब ग़ैर यहूदियों और यहूदियों ने अपने नेताओं के साथ मिलकर उनके साथ बुरा व्यवहार करने और उन पर पथराव करने की चाल चली। 6 जब पौलुस और बरनाबास को इसका पता चल गया और वे लुकाउनिया के लिस्तरा और दिरबे जैसे नगरों तथा आसपास के क्षेत्र में बच भागे। 7 वहाँ भी वे सुसमाचार का प्रचार करते रहे।
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