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Old/New Testament

Each day includes a passage from both the Old Testament and New Testament.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
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लूकॉ 18:1-23

दुराग्रही विधवा

18 तब मसीह येशु ने शिष्यों को यह समझाने के उद्देश्य से कि हतोत्साहित हुए बिना निरन्तर प्रार्थना करते रहना ही सही है, यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया. “किसी नगर में एक न्यायाधीश था. वह न तो परमेश्वर से डरता था और न किसी को कुछ समझता था. उसी नगर में एक विधवा भी थी, जो बार-बार उस न्यायाधीश के पास ‘आकर विनती करती थी कि उसे न्याय दिलाया जाए.’

“कुछ समय तक तो वह न्यायाधीश उसे टालता रहा किन्तु फिर उसने मन में विचार किया, ‘यद्यपि मैं न तो परमेश्वर से डरता हूँ और न लोगों से प्रभावित होता हूँ फिर भी यह विधवा आ-आकर मेरी नाक में दम किए दे रही है. इसलिए उत्तम यही होगा कि मैं इसका न्याय कर ही दूँ कि यह बार-बार आ कर मेरी नाक में दम तो न करे.’”

प्रभु ने आगे कहा, “उस अधर्मी न्यायाधीश के शब्दों पर ध्यान दो कि उसने क्या कहा. तब क्या परमेश्वर अपने उन चुने हुओं का न्याय न करेंगे, जो दिन-रात उनके नाम की दोहाई दिया करते हैं? क्या वह उनके सम्बन्ध में देर करेंगे? सच मानो, परमेश्वर बिना देर किए उनके पक्ष में सक्रिय हो जाएँगे. फिर भी, क्या मनुष्य के पुत्र के पुनरागमन पर विश्वास बना रहेगा?”

दो भिन्न प्रार्थनाएँ

तब मसीह येशु ने उनके लिए, जो स्वयं को तो धर्मी मानते थे परन्तु अन्यों को तुच्छ दृष्टि से देखते थे, यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया.

10 “प्रार्थना करने दो व्यक्ति मन्दिर में गए, एक फ़रीसी था तथा दूसरा चुँगी लेने वाला. 11 फ़रीसी की प्रार्थना इस प्रकार थी: ‘परमेश्वर! मैं आपका आभारी हूँ कि मैं अन्य मनुष्यों जैसा नहीं हूँ—छली, अन्यायी, व्यभिचारी और न इस चुँगी लेने वाले के जैसा. 12 मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ और अपनी सारी आय का दसवां अंश दिया करता हूँ.’ 13 किन्तु चुँगी लेने वाला दूर ही खड़ा रहा. उसने दृष्टि तक उठाने का साहस न किया, अपने सीने पर शोक में प्रहार करते हुए उसने कहा, ‘प्रभु परमेश्वर! कृपा कीजिए मुझ पापी पर!’

14 “विश्वास करो वास्तव में यही चुँगी लेने वाला (परमेश्वर से) धर्मी घोषित किया जा कर घर लौटा—न कि वह फ़रीसी. क्योंकि हर एक, जो स्वयं को बड़ा बनाता है, छोटा बना दिया जाएगा तथा जो व्यक्ति स्वयं नम्र हो जाता है, वह ऊँचा उठाया जाता है.”

मसीह येशु तथा बालक

(मत्ति 19:13-15; मारक 10:13-16)

15 लोग अपने बालकों को मसीह येशु के पास ला रहे थे कि मसीह येशु उन्हें स्पर्श मात्र कर दें. शिष्य यह देख उन्हें डाँटने लगे. 16 मसीह येशु ने बालकों को अपने पास बुलाते हुए कहा, “नन्हे बालकों को मेरे पास आने दो. मत रोको उन्हें! क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है. 17 वास्तव में जो परमेश्वर के राज्य को एक नन्हे बालक के भाव में ग्रहण नहीं करता, उसमें कभी प्रवेश न कर पाएगा.”

अनन्त काल के जीवन का अभिलाषी धनी युवक

(मत्ति 19:16-30; मारक 10:17-31)

18 एक प्रधान ने उनसे प्रश्न किया, “उत्तम गुरु! अनन्त काल के जीवन को पाने के लिए मेरे लिए क्या करना सही होगा?”

19 “तुम मुझे उत्तम कह कर क्यों बुला रहे हो?” मसीह येशु ने कहा. “परमेश्वर के अलावा दूसरा कोई भी उत्तम नहीं. 20 आज्ञा तो तुम्हें मालूम ही हैं: व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने माता-पिता का सम्मान करना.”

21 “इन सबका पालन तो मैं बचपन से करता आ रहा हूँ,” उसने उत्तर दिया.

22 यह सुन मसीह येशु ने उससे कहा, “एक कमी फिर भी है तुममें. अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर निर्धनों में बांट दो. धन तुम्हें स्वर्ग में प्राप्त होगा. तब आ कर मेरे पीछे हो लो.” 23 यह सुन वह प्रधान बहुत दुःखी हो गया क्योंकि वह बहुत धनी था.

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